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'''चैनपुर''' [[बिहार]] के [[सहरसा ज़िला]] के अन्तर्गत, ज़िला मुख्यालय से 10 किलोमिटर के दूरी पर अवस्थित एक गाँव है। बिहार राज्य के [[मिथिला]] क्षेत्र में [[कोसी नदी]] के बेसिन में चैनपुर गाँव स्थित है। यह गाँव अपने शिक्षा संस्कार और विद्वानों के कारण पूरे मिथिला में प्रसिद्ध है।
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==परिचय==
चैनपुर सहरसा जिलान्तर्गत, जिला मुख्यालय से 10 किलोमिटर के दुरी पर अवस्थित एक गाव है. बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र में कोशी नदी के बेसिन में बसल चैनपुर गाम सहरसा जिला मुख्यालय से १० किलोमीटर के दूरी पर अवस्थित है. यह गाव अपने शिक्षा संस्कार और विद्वान सबके कारन से पुरे मिथिला में प्रसिद्ध है.


==इतिहास==
==इतिहास==
इस गाव के आदि पुरुष श्री भागीरथ ठाकुर को माना जाता है और गाव के लोक अपने को भागीरथ ठाकुर के ही वंशज मानते है. परंपरागत विश्वास के अनुसार आज से लगभग २५० साल पहले इस गाव में भागीरथ बाबा आये थे. ऐसि भि मान्यता है यह गाव बहुत प्राचिन है. किम्वदन्ति है कि जब आठवी सदी में शंकराचार्य शास्त्रार्थ करने के लिये मंडन मिश्र के पास महिषी आये थे तब वे चैनपुर होकर हि गये थे..चैन्पुर गाव के नीलकंठ महादेव मन्दिर मे क पूजा कर्ने के उपरान्त वे धेमरा नदी (धर्ममूला) पार कर के महिषी पहुन्चे थे. यह अख्यायन शायद शंकर विजय नामक प्रबंध ग्रन्थ में उपलब्ध है. साथ ही, इस गाव मे ढेरो प्राचीन मूर्तिया भि प्राप्त हुइ है.ये सब अद्वितीय है जैसे कि सूर्य भगवान् के आदमकद मूर्ति, विष्णु भगवन के मूर्ति आदि आदि. अवश्य हि यह गाव बहुत प्राचीन है, लेकिन इस्के पौराणिकता को सिद्ध करने का कोइ सबूत शायद उपलब्ध नहीं है. कुछ अपठनीय लेख भी उपलब्ध है जिसको पध्ने के बाद शायद इस गाव कि पौराणिकता सिद्ध हो सकती है.
इस गाँव के आदि पुरुष श्री भागीरथ ठाकुर को माना जाता है और गाँव के लोग अपने को भागीरथ ठाकुर के ही वंशज मानते है। परंपरागत विश्वास के अनुसार आज से लगभग 250 साल पहले इस गाव में भागीरथ बाबा आये थे। ऐसी भी मान्यता है कि यह गाँव बहुत प्राचीन है। किवदंति है कि जब आठवीं सदी में [[शंकराचार्य]] शास्त्रार्थ करने के लिये मंडन मिश्र के पास महिषी आये थे तब वे चैनपुर होकर गये थे। चैनपुर गाँव के नीलकंठ महादेव मन्दिर में पूजा करने के उपरान्त वे धेमरा नदी (धर्ममूला) पार कर के महिषी पहुँचे थे। यह आख्यान शायद शंकर विजय नामक प्रबंध ग्रन्थ में उपलब्ध है। साथ ही, इस गाँव में ढेरों प्राचीन मूर्तिया भी प्राप्त हुदी हैं। ये सब अद्वितीय है जैसे कि [[सूर्य देवता|सूर्य भगवान]] के आदमकद मूर्ति, [[विष्णु  |विष्णु भगवान]] के मूर्ति।  इसके पौराणिकता को सिद्ध करने का कोई सबूत शायद उपलब्ध नहीं है। कुछ अपठनीय लेख भी उपलब्ध है जिसको पढ़ने के बाद शायद इस गाँव की पौराणिकता सिद्ध हो सकती है।
 
==संरचना==
==संरचना==
इस गाँव की बनावट अद्भुत है। आस पास के किसी भी गाँव की संरचना ऐसी नहीं है। लगता है कि कोई मंझा हुआ कलाकार अपने कला का प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोडा। गाँव की संरचना की योजना बनाने में चार-चार  समानांतर सड़क जो गाँव के एक छोर से दूसरे छोर तक जाती है एवं पुनः इन चारों सड़कों को समकोण पर काटती है।
==शिक्षा एवं संस्कृति==
5 प्राथमिक विद्यालय, दो मिड्डल स्कूल, दो हाई स्कूल, एक संस्कृत महाविद्यालय है। धार्मिक स्थान के रूप में नीलकंठ मंदिर, काली मंदिर, दुर्गा मंदिर, विष्णु घर, हनुमान थान, ब्रहम बाबा, राधा कृष्ण कुटी, मार्कंडेय बाबा के काली मंदिर इत्यादि दर्शनीय स्थल है। गाँव में सभी पर्व त्यौहार संपूर्ण उमंग, उत्साह और धार्मिक वातावरण में मनाये जाते हैं। काली पूजा एवं फगुआ कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध है। [[दशहरा]] और [[शिवरात्रि]], [[जन्माष्टमी|कृष्णाष्टमी]], [[राम नवमी]] और हनुमान जयंती आदि त्योहार भी परम श्रद्धा और भक्ति मनाये जाते हैं।


इस गाव कि बनाबट अद्भुत है.आस पास के किसी भी गाव कि संरचना ऐसी नहीं है. लगता है कि कोई मन्जा हुआ कलाकार अपने कला का प्रदर्शन कर्ने मे कोई कसर नही छोडा गाव के संरचना का योजना बनाने में. चार-चार  सीधा सामानांतर सड़क जो गाव के एक छोड़ से दूस्ररे छोड़ तक जाती है एवम पुनः इन चारो सडको को समकोण पर काटती पांच छ: टा सड़क. गाम के शुरू में पश्चिम भाग में टीला पर विराज्मान आदि काली मंदिर तो दूसरी ओर नीलकंठ महादेव मदिर पूरब में दूसरे टीला पर. प्रतीत होता है कि शिव एवं शिवा दोनो ओर से गाव कि रक्षा के लिये स्वयं विराजमान है. साथ ही गाव के मध्य में दुर्गा स्थान, सम्पूर्ण शक्ति को संतुलित करते हुए प्रतीत होता है. गाव के चारो ओर पानी बहने कि उत्तम व्यवस्था घोर आश्चर्य उत्पन्न करती है.
== काली पूजा ==
 
इस गाँव का सबसे प्रमुख त्यौहार काली पूजा है. लगभग 200 बर्ष से इस गाँव में काली की पूजा हो रही है. कलकत्ता के दक्षिणेश्वर से काली माँ को मृतिका स्वरूप में लाया गया था. प्रत्येक वर्ष काली माता की भव्य प्रतिमा बनाइ जाती है  तथा मेला का आयोजन किया जाता है. सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में गाँव के कलाकारों द्वारा नाटको के मंचन की एक सुदीर्घ परंपरा रही है इस गाँव में. आस पास के गाँव के लोग इस गाँव के मेला और नाटक को देखने आते है. ये काली माता सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाली मानी जाती है. लोग अपनी मनौती के पूरा होने पर छागर की बलि देते है.
==शिक्षा एवम सन्स्कृति==
 
5 प्रथमिक विद्यालय, दो मिड्डल स्कूल, दो हाई स्कूल, एक संस्कृत महाविद्यालय है. धार्मिक स्थान के रूप में नीलकंठ मंदिर, काली मंदिर (बुढ़िया काली आ नवकि काली), दुर्गा मंदिर, विष्णु घर, हनुमान थान, ब्रहम बाबा, राधा कृष्ण कुटी, मार्कंडेय बाबा के काली मंदिर इत्यादि दर्शनीय स्थल है. गाव में तालाब, इनार के कमी नहि है.  
 
गाव में सभी पर्व त्यौहार संपूर्ण उमंग, उत्साह आ धार्मिक वातावरण में मनाया जाता है. काली पूजा एवम फगुआ कुछ ज्यादा हि प्रसिद्ध है.दशहरा आ शिवरात्रि, कृष्णाष्टमी, रामनवमी आ हनुमान जयंती आदि त्योहार भी परम श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है.
 
=गाव के रत्न==


पं अमृत्नाथ झा, पं अर्जुन झा, पं गंगाधर मिश्र, पं छोटू बाबु, श्री कृष्ण मिश्र, स्व.भ्रिगुदेव झा, पं इन्द्रानन झा, पं शिलानंद झा, पं. मधुकांत झा 'मधुकर'....,
चैनपुर गाँव में काली की पूजा दो जगहों पर होती है, जो लगभग 50 वर्षों से की जा रही है.


गुनी बाबा, नुनु बाबा, श्री नारायण ठाकुर, श्री जय नारायण ठाकुर, श्री यदु झा, श्री भूप नारायण ठाकुर (गबैया बाबा), वीरन गोसाईं...........
== दशहरा ==


पं हरेकृष्ण मिश्र, स्व. गुनी ठाकुर, श्री तुलाकृष्ण झा, श्री दीना नाथ मिश्र, श्री हरे कृष्ण झा, श्री गिरीश चन्द्र झा, श्री रतिश चन्द्र झा, श्री सतीश चन्द्र मिश्र, श्री शशि कान्त झा, श्री भाल चन्द्र मिश्र ...
दुर्गा स्थान चैनपुर गाँव का सबसे पुराना पूजा अर्चना स्थल है. प्रत्येक वर्ष यहाँ दुर्गा पूजा बड़े हि पवित्रता एवं भक्ति भाव से की जाती है. पहले यहाँ मा दुर्गा की एक पाषाण मूर्ति थी, जो की बहुत पहले एक अगलगी के दौरान चोरी हो गयी थी. बाद में एक दूसरी प्रतिमा स्थापित की गयी. अभी हाल हि में दुर्गा माँ के एक आदमकद संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गयी है. मंदिर भी बहुत भव्य बना दिया गया है. दशहरा के दौरान अहर्निश दुर्गा सप्तशती का समवेत पाठ एवं हजारों कुमारि कन्यायों का पूजन किया जाता है.  


स्व. गंगाधर झा, श्री उमा कान्त झा, स्व. घुघुर बाबु, श्री अरुण ठाकुर, श्री मनोज झा, श्री सरोज कुमार ठाकुर, श्री आशीष भरद्वाज, श्री शैलेश मिश्र, श्री लड्डू बाबु, श्री डी.न.ठाकुर, श्री रविन्द्र नारायण ठाकुर, श्री राम चन्द्र ठाकुर ....................


अमर शहीद भोला ठाकुर, स्व. जनार्दन झा, स्व. अनिरुद्ध मिश्र, स्व. बिह नारायण ठाकुर (स्वतंत्रता सेनानी), अमर शहीद परसमनि झा
===पड़ोसी गाव===
चैनपुर के पड़ोसी गाँव पडरी, बनगाव, महिशि, बलहि, तेघरा, बसौना, बलहा, गढिया आदि हैं।


==विविध==


===पडोसी गाव===
चैनपुर में ढेर सारे पंडित हुए. उदहारण के लिए : गंगाधर मिश्र, अमृत नाथ झा, भृगु देव झा, अर्जुन झा, छोटू बाबु, कामेश्वर बाबु, इन्द्रानंद झा, शिलानंद झा  इत्यादि.....  
पडरी, बनगाव, महिशि, बलहि, तेघरा, बसौना, बलहा, गढिया, ......


पंडित मधुकांत झा 'मधुकर' अपने शिव भजन, देवी भजन इत्यादि के लिए बहुत प्रसिद्ध है.


स्वर्गीय भोला ठाकुर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 29 अगस्त 1942 को अंग्रेजों के गोली के शिकार हुए थे.


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स्वर्गीय परस 26 जनवरी 2012 को आतंकवादियों से लड़ते हुए मणिपुर में शहीद हुए.


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==


[[Category:नया पन्ना जनवरी-2013]]
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[[Category:भारत के गाँव]]


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13:18, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

चैनपुर बिहार के सहरसा ज़िला के अन्तर्गत, ज़िला मुख्यालय से 10 किलोमिटर के दूरी पर अवस्थित एक गाँव है। बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र में कोसी नदी के बेसिन में चैनपुर गाँव स्थित है। यह गाँव अपने शिक्षा संस्कार और विद्वानों के कारण पूरे मिथिला में प्रसिद्ध है।

इतिहास

इस गाँव के आदि पुरुष श्री भागीरथ ठाकुर को माना जाता है और गाँव के लोग अपने को भागीरथ ठाकुर के ही वंशज मानते है। परंपरागत विश्वास के अनुसार आज से लगभग 250 साल पहले इस गाव में भागीरथ बाबा आये थे। ऐसी भी मान्यता है कि यह गाँव बहुत प्राचीन है। किवदंति है कि जब आठवीं सदी में शंकराचार्य शास्त्रार्थ करने के लिये मंडन मिश्र के पास महिषी आये थे तब वे चैनपुर होकर गये थे। चैनपुर गाँव के नीलकंठ महादेव मन्दिर में पूजा करने के उपरान्त वे धेमरा नदी (धर्ममूला) पार कर के महिषी पहुँचे थे। यह आख्यान शायद शंकर विजय नामक प्रबंध ग्रन्थ में उपलब्ध है। साथ ही, इस गाँव में ढेरों प्राचीन मूर्तिया भी प्राप्त हुदी हैं। ये सब अद्वितीय है जैसे कि सूर्य भगवान के आदमकद मूर्ति, विष्णु भगवान के मूर्ति। इसके पौराणिकता को सिद्ध करने का कोई सबूत शायद उपलब्ध नहीं है। कुछ अपठनीय लेख भी उपलब्ध है जिसको पढ़ने के बाद शायद इस गाँव की पौराणिकता सिद्ध हो सकती है।

संरचना

इस गाँव की बनावट अद्भुत है। आस पास के किसी भी गाँव की संरचना ऐसी नहीं है। लगता है कि कोई मंझा हुआ कलाकार अपने कला का प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोडा। गाँव की संरचना की योजना बनाने में चार-चार समानांतर सड़क जो गाँव के एक छोर से दूसरे छोर तक जाती है एवं पुनः इन चारों सड़कों को समकोण पर काटती है।

शिक्षा एवं संस्कृति

5 प्राथमिक विद्यालय, दो मिड्डल स्कूल, दो हाई स्कूल, एक संस्कृत महाविद्यालय है। धार्मिक स्थान के रूप में नीलकंठ मंदिर, काली मंदिर, दुर्गा मंदिर, विष्णु घर, हनुमान थान, ब्रहम बाबा, राधा कृष्ण कुटी, मार्कंडेय बाबा के काली मंदिर इत्यादि दर्शनीय स्थल है। गाँव में सभी पर्व त्यौहार संपूर्ण उमंग, उत्साह और धार्मिक वातावरण में मनाये जाते हैं। काली पूजा एवं फगुआ कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध है। दशहरा और शिवरात्रि, कृष्णाष्टमी, राम नवमी और हनुमान जयंती आदि त्योहार भी परम श्रद्धा और भक्ति मनाये जाते हैं।

काली पूजा

इस गाँव का सबसे प्रमुख त्यौहार काली पूजा है. लगभग 200 बर्ष से इस गाँव में काली की पूजा हो रही है. कलकत्ता के दक्षिणेश्वर से काली माँ को मृतिका स्वरूप में लाया गया था. प्रत्येक वर्ष काली माता की भव्य प्रतिमा बनाइ जाती है तथा मेला का आयोजन किया जाता है. सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में गाँव के कलाकारों द्वारा नाटको के मंचन की एक सुदीर्घ परंपरा रही है इस गाँव में. आस पास के गाँव के लोग इस गाँव के मेला और नाटक को देखने आते है. ये काली माता सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाली मानी जाती है. लोग अपनी मनौती के पूरा होने पर छागर की बलि देते है.

चैनपुर गाँव में काली की पूजा दो जगहों पर होती है, जो लगभग 50 वर्षों से की जा रही है.

दशहरा

दुर्गा स्थान चैनपुर गाँव का सबसे पुराना पूजा अर्चना स्थल है. प्रत्येक वर्ष यहाँ दुर्गा पूजा बड़े हि पवित्रता एवं भक्ति भाव से की जाती है. पहले यहाँ मा दुर्गा की एक पाषाण मूर्ति थी, जो की बहुत पहले एक अगलगी के दौरान चोरी हो गयी थी. बाद में एक दूसरी प्रतिमा स्थापित की गयी. अभी हाल हि में दुर्गा माँ के एक आदमकद संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गयी है. मंदिर भी बहुत भव्य बना दिया गया है. दशहरा के दौरान अहर्निश दुर्गा सप्तशती का समवेत पाठ एवं हजारों कुमारि कन्यायों का पूजन किया जाता है.


पड़ोसी गाव

चैनपुर के पड़ोसी गाँव पडरी, बनगाव, महिशि, बलहि, तेघरा, बसौना, बलहा, गढिया आदि हैं।

विविध

चैनपुर में ढेर सारे पंडित हुए. उदहारण के लिए : गंगाधर मिश्र, अमृत नाथ झा, भृगु देव झा, अर्जुन झा, छोटू बाबु, कामेश्वर बाबु, इन्द्रानंद झा, शिलानंद झा इत्यादि.....

पंडित मधुकांत झा 'मधुकर' अपने शिव भजन, देवी भजन इत्यादि के लिए बहुत प्रसिद्ध है.

स्वर्गीय भोला ठाकुर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 29 अगस्त 1942 को अंग्रेजों के गोली के शिकार हुए थे.

स्वर्गीय परस 26 जनवरी 2012 को आतंकवादियों से लड़ते हुए मणिपुर में शहीद हुए.



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