"हड़प्पा सभ्यता की मृण्मूर्तियां": अवतरणों में अंतर
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[[हड़प्पा सभ्यता]] से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है। इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, बाघ, सुअर, गैंडा, भालू, बन्दर, मोर, तोता, | [[हड़प्पा सभ्यता]] से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है। इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, [[बाघ]], सुअर, गैंडा, [[भालू]], [[बन्दर]], [[मोर]], [[तोता]], [[बत्तख़]] एवं [[कबूतर]] की मृणमूर्तियां मिली है। मानव मृण्मूर्तियां ठोस है पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां ठोस हैं, पर पशुओ की खोखली। नर एवं नारी- मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां मिली है। | ||
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[[भारत|भारतीय गणराज्य]] में सिधु सभ्यता के स्थलों में केवल [[हरियाणा]] के [[बणावली]] से दो स्त्री प्राप्त | [[भारत|भारतीय गणराज्य]] में सिधु सभ्यता के स्थलों में केवल [[हरियाणा]] के [[बणावली]] से दो स्त्री प्राप्त हुई है इसके अतिरिक्त किसी अन्य स्थल से नारी मृण्मूर्तियां नहीं मिली है। सिन्धु सभ्यता की मिट्टी की बनी वस्तुओं में पशु-पक्षियों के रूप में बने वस्तुओ की प्रधानता है। पशुओं में बैल, भैसा, भेड़, बकरा, कुत्ता, हाथी, बाघ, गैंडा, भालू, सुअर, खरगोश, बन्दर आदि की मूर्तियां मिली है। [[मोहनजोदाड़ो]] से प्राप्त वृषभ की बलिष्ठ मूर्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। डील वाले बैल की तुलना में बिना डील वाले बैलों की मृण्मूर्तियां अधिक संख्या में मिली है। गाय और घोड़े की मृण्मूर्तियां का अभाव है। गिलहरी, सर्प, कछुवा, घड़ियाल तथा मछली की भी मूर्तियां मिली है। पक्षियों में मोर, तोता, कबूतर, बतख, गौरेया, मुर्गा, चील, और [[उल्लू]] की मूर्तियां मिली हैं। हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित वणावली से खेत की जुताई में प्रयुक्त होने वाले हल के मिट्टी के खिलौने मिले है। इस पक्की मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण 'चिकोही पद्धति' से किया गया हैं। | ||
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धातु की बनी मूर्तियां अब तक [[मोहनजोदाड़ो]], [[चन्हूदड़ों]], [[लोथल]] एवं [[कालीबंगा]] से प्राप्त हुई हैं। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त 10 सेमी. लम्बी कांस्य की मूर्ति के गले में कण्ठहार सुशोभित है। सहज भाव से नृत्यरत नर्तकी का चूड़ियों से भरा बायां हाथ जांघ पर दाहिना हाथ, बैलगाड़ी, इक्का गाड़ी, लोथल से तांबे की बैल की आकृति एवं कालीबंगा से तांबे की वृषभ की आकृति मिली है। | धातु की बनी मूर्तियां अब तक [[मोहनजोदाड़ो]], [[चन्हूदड़ों]], [[लोथल]] एवं [[कालीबंगा]] से प्राप्त हुई हैं। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त 10 सेमी. लम्बी कांस्य की मूर्ति के गले में कण्ठहार सुशोभित है। सहज भाव से नृत्यरत नर्तकी का चूड़ियों से भरा बायां हाथ जांघ पर दाहिना हाथ, [[बैलगाड़ी]], इक्का गाड़ी, लोथल से तांबे की बैल की आकृति एवं कालीबंगा से तांबे की वृषभ की आकृति मिली है। | ||
==प्रस्तर तथा धातु== | ==प्रस्तर तथा धातु== | ||
प्रस्तर तथा धातु की मूर्तियां यद्यपि कम है तथापि वे कलात्मक दृष्टि से उच्चकोटि की है। प्रस्तर मूर्तियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध मोहनजोदाड़ो से प्राप्त 'योगी' अथवा 'पुरोहित' की मूर्ति उल्लेखनीय है। योगी के मूंछें नहीं है किन्तु दाढ़ी विशेष रूप से संवारी गयी है। बांये कंधे को ढकते हुए तिपतिया छाप वाली शॉल ओढ़े हुए हैं। योगी के नेत्र अधखुले हैं। उसके निचले होंठ मोटे तथा उसकी दृष्टि नाक के अग्र भाग पर टिकी हुई है। मोहनजोदाड़ो से कुछ अन्य पाषाण निर्मित पशुमूर्तियां भी कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की हैं। सर्वाधिक उल्लेखनीय श्वेत पाषाण निर्मित एक संयुक्त पशु मूर्ति है जिसमें शरीर भेड़ का तथा मस्तक हाथी का है। [[हड़प्पा]] की पाषाण मूतियों में दो सिर रहित मानव मूर्तियां उल्लेखनीय है। धातु मूर्तियों में ढलाई की जिस विधि का प्रयोग किया गया है उसे हमारे प्राचीन साहित्य में 'मधूच्छिष्ट विधि' कहा गया है। इसी से कालान्तर में दक्षिण की 'नटराज मूर्ति' तथा सुल्तानगंज की '[[बुद्ध]]' मूर्ति का निर्माण किया गया। | प्रस्तर तथा धातु की मूर्तियां यद्यपि कम है तथापि वे कलात्मक दृष्टि से उच्चकोटि की है। प्रस्तर मूर्तियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध मोहनजोदाड़ो से प्राप्त 'योगी' अथवा 'पुरोहित' की मूर्ति उल्लेखनीय है। योगी के मूंछें नहीं है किन्तु दाढ़ी विशेष रूप से संवारी गयी है। बांये कंधे को ढकते हुए तिपतिया छाप वाली शॉल ओढ़े हुए हैं। योगी के नेत्र अधखुले हैं। उसके निचले होंठ मोटे तथा उसकी दृष्टि नाक के अग्र भाग पर टिकी हुई है। मोहनजोदाड़ो से कुछ अन्य पाषाण निर्मित पशुमूर्तियां भी कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की हैं। सर्वाधिक उल्लेखनीय श्वेत पाषाण निर्मित एक संयुक्त पशु मूर्ति है जिसमें शरीर भेड़ का तथा मस्तक हाथी का है। [[हड़प्पा]] की पाषाण मूतियों में दो सिर रहित मानव मूर्तियां उल्लेखनीय है। धातु मूर्तियों में ढलाई की जिस विधि का प्रयोग किया गया है उसे हमारे प्राचीन साहित्य में 'मधूच्छिष्ट विधि' कहा गया है। इसी से कालान्तर में दक्षिण की 'नटराज मूर्ति' तथा सुल्तानगंज की '[[बुद्ध]]' मूर्ति का निर्माण किया गया। | ||
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07:39, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है। इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, बाघ, सुअर, गैंडा, भालू, बन्दर, मोर, तोता, बत्तख़ एवं कबूतर की मृणमूर्तियां मिली है। मानव मृण्मूर्तियां ठोस है पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां ठोस हैं, पर पशुओ की खोखली। नर एवं नारी- मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां मिली है।
मिट्टी की वस्तुएँ
भारतीय गणराज्य में सिधु सभ्यता के स्थलों में केवल हरियाणा के बणावली से दो स्त्री प्राप्त हुई है इसके अतिरिक्त किसी अन्य स्थल से नारी मृण्मूर्तियां नहीं मिली है। सिन्धु सभ्यता की मिट्टी की बनी वस्तुओं में पशु-पक्षियों के रूप में बने वस्तुओ की प्रधानता है। पशुओं में बैल, भैसा, भेड़, बकरा, कुत्ता, हाथी, बाघ, गैंडा, भालू, सुअर, खरगोश, बन्दर आदि की मूर्तियां मिली है। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त वृषभ की बलिष्ठ मूर्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। डील वाले बैल की तुलना में बिना डील वाले बैलों की मृण्मूर्तियां अधिक संख्या में मिली है। गाय और घोड़े की मृण्मूर्तियां का अभाव है। गिलहरी, सर्प, कछुवा, घड़ियाल तथा मछली की भी मूर्तियां मिली है। पक्षियों में मोर, तोता, कबूतर, बतख, गौरेया, मुर्गा, चील, और उल्लू की मूर्तियां मिली हैं। हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित वणावली से खेत की जुताई में प्रयुक्त होने वाले हल के मिट्टी के खिलौने मिले है। इस पक्की मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण 'चिकोही पद्धति' से किया गया हैं।
धातु की वस्तुएँ
धातु की बनी मूर्तियां अब तक मोहनजोदाड़ो, चन्हूदड़ों, लोथल एवं कालीबंगा से प्राप्त हुई हैं। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त 10 सेमी. लम्बी कांस्य की मूर्ति के गले में कण्ठहार सुशोभित है। सहज भाव से नृत्यरत नर्तकी का चूड़ियों से भरा बायां हाथ जांघ पर दाहिना हाथ, बैलगाड़ी, इक्का गाड़ी, लोथल से तांबे की बैल की आकृति एवं कालीबंगा से तांबे की वृषभ की आकृति मिली है।
प्रस्तर तथा धातु
प्रस्तर तथा धातु की मूर्तियां यद्यपि कम है तथापि वे कलात्मक दृष्टि से उच्चकोटि की है। प्रस्तर मूर्तियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध मोहनजोदाड़ो से प्राप्त 'योगी' अथवा 'पुरोहित' की मूर्ति उल्लेखनीय है। योगी के मूंछें नहीं है किन्तु दाढ़ी विशेष रूप से संवारी गयी है। बांये कंधे को ढकते हुए तिपतिया छाप वाली शॉल ओढ़े हुए हैं। योगी के नेत्र अधखुले हैं। उसके निचले होंठ मोटे तथा उसकी दृष्टि नाक के अग्र भाग पर टिकी हुई है। मोहनजोदाड़ो से कुछ अन्य पाषाण निर्मित पशुमूर्तियां भी कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की हैं। सर्वाधिक उल्लेखनीय श्वेत पाषाण निर्मित एक संयुक्त पशु मूर्ति है जिसमें शरीर भेड़ का तथा मस्तक हाथी का है। हड़प्पा की पाषाण मूतियों में दो सिर रहित मानव मूर्तियां उल्लेखनीय है। धातु मूर्तियों में ढलाई की जिस विधि का प्रयोग किया गया है उसे हमारे प्राचीन साहित्य में 'मधूच्छिष्ट विधि' कहा गया है। इसी से कालान्तर में दक्षिण की 'नटराज मूर्ति' तथा सुल्तानगंज की 'बुद्ध' मूर्ति का निर्माण किया गया।
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