"तोर कलंकु मोर पछिताऊ": अवतरणों में अंतर
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चौपाईतोर कलंकु मोर पछिताऊ। मुएहुँ न मिटिहि न जाइहि काऊ॥ | |||
अब तोहि नीक लाग करु सोई। लोचन ओट बैठु मुहु गोई॥3॥</poem> | अब तोहि नीक लाग करु सोई। लोचन ओट बैठु मुहु गोई॥3॥</poem> | ||
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केवल तेरा कलंक और मेरा पछतावा मरने पर भी नहीं मिटेगा, यह किसी तरह नहीं जाएगा। अब तुझे जो अच्छा लगे वही कर। मुँह छिपाकर मेरी आँखों की ओट जा बैठ ( | केवल तेरा कलंक और मेरा पछतावा मरने पर भी नहीं मिटेगा, यह किसी तरह नहीं जाएगा। अब तुझे जो अच्छा लगे वही कर। मुँह छिपाकर मेरी आँखों की ओट जा बैठ (अर्थात् मेरे सामने से हट जा, मुझे मुँह न दिखा)॥3॥ | ||
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07:44, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
तोर कलंकु मोर पछिताऊ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
चौपाईतोर कलंकु मोर पछिताऊ। मुएहुँ न मिटिहि न जाइहि काऊ॥ |
- भावार्थ
केवल तेरा कलंक और मेरा पछतावा मरने पर भी नहीं मिटेगा, यह किसी तरह नहीं जाएगा। अब तुझे जो अच्छा लगे वही कर। मुँह छिपाकर मेरी आँखों की ओट जा बैठ (अर्थात् मेरे सामने से हट जा, मुझे मुँह न दिखा)॥3॥
तोर कलंकु मोर पछिताऊ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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