"छमा बड़न को चाहिये -रहीम": अवतरणों में अंतर

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छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।<br />
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।<br />
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।
;अर्थ
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बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। अर्थात अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। छोटे अगर उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे यदि कोई कीड़ा (भृगु) अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती।
बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। अर्थात् अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। छोटे अगर उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे यदि कोई कीड़ा (भृगु) अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती।


{{लेख क्रम3| पिछला=रहीम के दोहे |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=तरुवर फल नहिं खात है -रहीम }}
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07:47, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।

अर्थ

बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। अर्थात् अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। छोटे अगर उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे यदि कोई कीड़ा (भृगु) अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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