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'''श्रीकंठ''' '[[हर्षचरित]]' में उल्लिखित एक प्राचीन जनपद, जहां प्रभाकरवर्धन (हर्षवर्धन के पिता) की राजधानी 'स्थानीश्वर' या 'स्थानेश्वर'<ref>थानेश्वर</ref> स्थित थी।
'''श्रीकंठ''' '[[हर्षचरित]]' में उल्लिखित एक प्राचीन जनपद, जहां [[प्रभाकरवर्धन]] ([[हर्षवर्धन]] के [[पिता]]) की राजधानी 'स्थानीश्वर' या 'स्थानेश्वर' ([[थानेश्वर]]) स्थित थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=918|url=}}</ref>


*इसका विस्तार पूर्वी [[पंजाब]], पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] तथा [[दिल्ली]] राज्य के कुछ भाग में था।
*इसका विस्तार पूर्वी [[पंजाब]], पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] तथा [[दिल्ली]] राज्य के कुछ भाग में था।
*'[[हर्षचरित]]' के तृतीय उच्छवास में इस जनपद की समृद्धि तथा वैभव का काव्यात्मक वर्णन किया गया है।
*'[[हर्षचरित]]' के तृतीय उच्छ्वास में इस जनपद की समृद्धि तथा वैभव का काव्यात्मक वर्णन किया गया है।
*बाण ने इस देश में [[गन्ना]], [[धान]] तथा [[गेहूँ]] की [[कृषि]] का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त तरह-तरह के द्राक्षा तथा दाडि़म के उद्यान यहां की शोभा बढ़ाते थे। वहां की धरती केले के निकुंजों से श्यामल दीखती थी। पद-पद पर ऊंटों के झुण्ड थे। सहस्त्रों कृष्ण-मृगों से वह देश चित्र विचित्र लगता था।<ref>हर्षचरित, हिंदी अनुवाद, सूर्यनारायण चैधरी, पृ, 119</ref>
*[[बाण]] ने इस देश में [[गन्ना]], [[धान]] तथा [[गेहूँ]] की [[कृषि]] का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त तरह-तरह के द्राक्षा तथा दाड़िम के उद्यान यहाँ की शोभा बढ़ाते थे। वहाँ की धरती [[केला|केलों]] के निकुंजों से श्यामल दीखती थी। पद-पद पर ऊंटों के झुण्ड थे। सहस्त्रों कृष्ण-मृगों से वह देश चित्र-विचित्र लगता था।<ref>हर्षचरित, हिंदी अनुवाद, सूर्यनारायण चैधरी, पृ, 119</ref>




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07:50, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

श्रीकंठ 'हर्षचरित' में उल्लिखित एक प्राचीन जनपद, जहां प्रभाकरवर्धन (हर्षवर्धन के पिता) की राजधानी 'स्थानीश्वर' या 'स्थानेश्वर' (थानेश्वर) स्थित थी।[1]

  • इसका विस्तार पूर्वी पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली राज्य के कुछ भाग में था।
  • 'हर्षचरित' के तृतीय उच्छ्वास में इस जनपद की समृद्धि तथा वैभव का काव्यात्मक वर्णन किया गया है।
  • बाण ने इस देश में गन्ना, धान तथा गेहूँ की कृषि का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त तरह-तरह के द्राक्षा तथा दाड़िम के उद्यान यहाँ की शोभा बढ़ाते थे। वहाँ की धरती केलों के निकुंजों से श्यामल दीखती थी। पद-पद पर ऊंटों के झुण्ड थे। सहस्त्रों कृष्ण-मृगों से वह देश चित्र-विचित्र लगता था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 918 |
  2. हर्षचरित, हिंदी अनुवाद, सूर्यनारायण चैधरी, पृ, 119

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