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*<u>[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में केशान्त संस्कार एकादश संस्कार है।</u>
*[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में केशान्त संस्कार एकादश संस्कार है।
*बालक का प्रथम मुंण्डन प्रायः पहले या तीसरे वर्ष में हो जाता है। यह बात पहले ही कही जा चुकी है।
*बालक का प्रथम मुंण्डन प्रायः पहले या तीसरे वर्ष में हो जाता है। यह बात पहले ही कही जा चुकी है।
* प्रथम मुंण्डन का प्रयोजन केवल गर्भ के केशमात्र दूर करना होता है।  
* प्रथम मुंण्डन का प्रयोजन केवल गर्भ के केशमात्र दूर करना होता है।  
*उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंण्डन करना होता है।  
*उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंण्डन करना होता है।  
*जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके अर्थात वेद-वेदान्तों के पढ़ने तथा यज्ञादिक कार्यों में भाग ले सके। इसलिए कहा भी है कि शास्त्रोक्त विधि से भली-भाँति व्रत का आचरण करने वाला ब्रह्मचारी इस केशान्त-संस्कार में सिर के केशों को तथा श्मश्रु के बालों को कटवाता है।<ref>'केशान्तकर्मणा तत्र यथोक्त-चरितव्रतः' (व्यासस्मृति 1|41)।</ref>
*जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके अर्थात् वेद-वेदान्तों के पढ़ने तथा यज्ञादिक कार्यों में भाग ले सके। इसलिए कहा भी है कि शास्त्रोक्त विधि से भली-भाँति व्रत का आचरण करने वाला ब्रह्मचारी इस केशान्त-संस्कार में सिर के केशों को तथा श्मश्रु के बालों को कटवाता है।<ref>'केशान्तकर्मणा तत्र यथोक्त-चरितव्रतः' (व्यासस्मृति 1|41)।</ref>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]
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07:58, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में केशान्त संस्कार एकादश संस्कार है।
  • बालक का प्रथम मुंण्डन प्रायः पहले या तीसरे वर्ष में हो जाता है। यह बात पहले ही कही जा चुकी है।
  • प्रथम मुंण्डन का प्रयोजन केवल गर्भ के केशमात्र दूर करना होता है।
  • उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंण्डन करना होता है।
  • जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके अर्थात् वेद-वेदान्तों के पढ़ने तथा यज्ञादिक कार्यों में भाग ले सके। इसलिए कहा भी है कि शास्त्रोक्त विधि से भली-भाँति व्रत का आचरण करने वाला ब्रह्मचारी इस केशान्त-संस्कार में सिर के केशों को तथा श्मश्रु के बालों को कटवाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'केशान्तकर्मणा तत्र यथोक्त-चरितव्रतः' (व्यासस्मृति 1|41)।

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