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4 ज़िलो- धालाई, उत्तरी त्रिपुरा, दक्षिणी त्रिपुरा पश्चिमी त्रिपुरा- वाला [[भारत]] का अति लघु प्रदेश 'त्रिपुरा' बांग्लादेश से घिरा है। पूर्वोत्तर में एक सँकरी पट्टी है, जहाँ त्रिपुरा की सीमा [[असम]] तथा [[मिजोरम]] से मिलती है। इन चार ज़िलों के मुख्यालय हैं- अम्बासा (धलाई), कैलास शहर (उत्तरी त्रिपुरा), उदयपुर (दक्षिणी त्रिपुरा), [[अगरतला]] (राजधानी तथा पश्चिमी त्रिपुरा)। त्रिपुरा का क्षेत्रफल मात्र 10491 वर्ग किलोमीटर है। त्रिपुरा की पुरानी राजधानी उदयपुर ही थी।  
'''त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ''' [[हिन्दू धर्म]] में प्रसिद्ध [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में से एक है। हिन्दू धर्म के [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जहाँ-जहाँ माता [[सती]] के [[अंग]] के टुकड़े, धारण किये हुए [[वस्त्र]] और [[आभूषण]] गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थान]] कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। 'देवीपुराण' में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। 'त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ' इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है।
 
चार ज़िलों- '[[धलाई ज़िला|धालाई]]', '[[उत्तर त्रिपुरा ज़िला|उत्तरी त्रिपुरा]]', '[[दक्षिण त्रिपुरा ज़िला|दक्षिणी त्रिपुरा]]' और '[[पश्चिम त्रिपुरा ज़िला|पश्चिमी त्रिपुरा]]' वाला [[भारत]] का अति लघु प्रदेश [[त्रिपुरा]] [[बांग्लादेश]] से घिरा है। पूर्वोत्तर में एक सँकरी पट्टी है, जहाँ त्रिपुरा की सीमा [[असम]] तथा [[मिज़ोरम]] से मिलती है। इन चार ज़िलों के मुख्यालय हैं- धालाई का मुख्यालय 'अम्बासा', उत्तरी त्रिपुरा का मुख्यालय 'कैलास शहर', दक्षिणी त्रिपुरा का मुख्यालय 'उदयपुर' और पश्चिमी त्रिपुरा का मुख्यालय 'अगरतला', जो त्रिपुरा राज्य की राजधानी भी है। त्रिपुरा का क्षेत्रफल मात्र 10491 वर्ग किलोमीटर है। इसकी पुरानी राजधानी उदयपुर ही थी।
==स्थिति==  
==स्थिति==  
उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा<ref>श्री कामराज विद्या की अधिष्ठातृ श्री विद्या का ही नामांतर त्रिपुरा है त्रि (तीन या त्रिमूर्तियों से) पुरा (पुरातन) होने से त्रिपुरा यानी गुणत्रयातीता त्रिगुणानियंत्री शक्ति। तंत्र ग्रंथ त्रिपुरार्णव में त्रिपुरा की निरुक्ति है-तीन नाड़ियाँ (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना,)। वह मन, बुद्धि एवं चित्त रूपी तीन पुरों में वास करने वाली शक्ति हैं। प्रकारांतर में त्रिपुरा की निरुक्ति है-त्रिमूर्ति ([[ब्रह्मा]], [[विष्णु]], [[शिव|महेश्वर शिव]]) की जननी होने से, त्रयी (ऋक्, साम, यजु,) वेदमयी होने से, महाप्रलय की त्रिलोकी को अपने में लीन करने से जगदम्बा 'श्री विद्या' ही त्रिपुरा हैं। इच्छा-शक्ति उनका शिरोभाग है, ज्ञान-शक्ति मध्य भाग है तथा क्रियाशक्ति अधोभाग है, इसी से शक्ति-त्रयात्मक होने से वह त्रिपुरा कही जाती हैं।</ref> नाम की अनेक देवियाँ हैं,<ref>श्री विद्यार्णव (भाग-2)</ref> जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। देवी त्रिपुरसुंदरी ब्रह्मस्वरूपा हैं, भुवनेश्वरी, विश्वमोहिनी हैं। वही परदेवता, महाविद्या, त्रिपुरसुंदरी, ललिताम्बा आदि अनेक नामों से स्मरण की जाती हैं। त्रिपुरसुंदरी का शक्ति-संप्रदाय में असाधारण महत्त्व है। इन्हीं के नाम पर सीमांत प्रदेश भारत के पूर्वोत्तर भाग में 'त्रिपुरा राज्य' नाम से स्थापित है। कुछ का यह कथन है कि त्रिपुरी भाषा के दो शब्द 'तुर्ड' तथा 'प्रा' पर इस राज्य का नाम पड़ा है, जिसका संयुक्त रूप से अर्थ होता है- 'पानी के पास'दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में पड़ता है। यहाँ सती के दक्षिण "पाद" (पैर) का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'त्रिपुर सुंदरी' तथा शिव 'त्रिपुरेश' हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं। इस मंदिर का प्रांगण कूर्म (कछुवे) की तरह है तथा इस मंदिर में लाल-काली कास्टिक पत्थर की बनी माँ महाकाली की भी मूर्ति है। इसके अतिरिक्त आधा मीटर ऊँची एक छोटी मूर्ति भी है, जिसे माता कहते हैं। उनकी भी महिमा माँ काली की तरह है। कहते हैं कि त्रिपुरा-नरेश शिकार हेतु या युद्ध पर प्रस्थान करते समय इन्हें अपने साथ रखते थे।  
उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा<ref>श्री कामराज विद्या की अधिष्ठात्र श्री विद्या का ही नामांतर त्रिपुरा है। 'त्रि' अर्थात् 'तीन या त्रिमूर्तियों से', 'पुरा' 'पुरातन' होने से त्रिपुरा यानी गुणत्रयातीता त्रिगुणानियंत्री शक्ति। तंत्र ग्रंथ त्रिपुरार्णव में त्रिपुरा की निरुक्ति है-तीन नाड़ियाँ (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना)। वह मन, बुद्धि एवं चित्त रूपी तीन पुरों में वास करने वाली शक्ति हैं। प्रकारांतर में त्रिपुरा की निरुक्ति है-त्रिमूर्ति ([[ब्रह्मा]], [[विष्णु]], [[शिव|महेश्वर शिव]]) की जननी होने से, त्रयी (ऋक्, साम, यजु,) वेदमयी होने से, महाप्रलय की त्रिलोकी को अपने में लीन करने से जगदम्बा 'श्री विद्या' ही त्रिपुरा हैं। इच्छा-शक्ति उनका शिरोभाग है, ज्ञान-शक्ति मध्य भाग है तथा क्रियाशक्ति अधोभाग है, इसी से शक्ति-त्रयात्मक होने से वह त्रिपुरा कही जाती हैं।</ref> नाम की अनेक देवियाँ हैं<ref>श्री विद्यार्णव (भाग-2)</ref>, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। देवी त्रिपुरसुंदरी ब्रह्मस्वरूपा हैं, भुवनेश्वरी विश्वमोहिनी हैं। वही परदेवता, महाविद्या, त्रिपुरसुंदरी, ललिताम्बा आदि अनेक नामों से स्मरण की जाती हैं। त्रिपुरसुंदरी का शक्ति-संप्रदाय में असाधारण महत्त्व है। इन्हीं के नाम पर सीमांत प्रदेश भारत के पूर्वोत्तर भाग में 'त्रिपुरा राज्य' नाम से स्थापित है। कुछ का यह कथन है कि त्रिपुरी भाषा के दो शब्द 'तुर्ड' तथा 'प्रा' पर इस राज्य का नाम पड़ा है, जिसका संयुक्त रूप से अर्थ होता है- 'पानी के पास।' दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम<ref>नैऋत्यकोण</ref> में पड़ता है। यहाँ [[सती]] के दक्षिण 'पाद'<ref>पैर</ref> का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'त्रिपुर सुंदरी' तथा शिव 'त्रिपुरेश' हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं। इस मंदिर का प्रांगण कूर्म<ref>कछुवे</ref> की तरह है तथा इस मंदिर में लाल-काली कास्टिक पत्थर की बनी माँ महाकाली की भी मूर्ति है। इसके अतिरिक्त आधा मीटर ऊँची एक छोटी मूर्ति भी है, जिसे माता कहते हैं। उनकी भी महिमा माँ काली की तरह है। कहते हैं कि त्रिपुरा-नरेश शिकार हेतु या युद्ध पर प्रस्थान करते समय इन्हें अपने साथ रखते थे।
==प्रचलित कथा==
==प्रचलित कथा==
एक प्रचलित कथा के अनुसार 16वीं शताब्दी के प्रथम दशक (सन् 1501) में त्रिपुरा पर धन्यमाणिक का शासन था। एक रात उन्हें माँ त्रिपुरेश्वरी स्पप्न में दिखीं तथा बोलीं कि चिंतागाँव के पहाड़ पर उनकी मूर्ति है, जो उन्हें वहाँ से आज ही लानी है (रात में ही) स्वप्न देखते ही राजा जाग गए तथा सैनिकों को तुरंत जाकर रात में ही मूर्ति लाने का हुक्म सुना दिया। सैनिक मूर्ति लेकर लौट रहे थे कि माताबाड़ी पहुँचते-पहुँचते सूर्योदय हो गया और माता के आदेशानुसार वहीं मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापित कर दी गई। यही कालांतर में त्रिपुरसुंदरी के नाम से जानी गईं। यह भी किवदंती है कि राजा धन्यमाणिक वहाँ विष्णु मंदिर बनवाने वाले थे, किंतु त्रिपुरेश्वरी की मूर्ति स्थापित हो जाने के कारण राजा पेशोपेश में पड़ गए कि वहाँ वे किसका मंदिर बनवाएँ? किंतु सहसा आकाशवाणी हुई की राजा उस स्थान पर, जहाँ विष्णु मंदिर बनवाने वाले थे, माँ त्रिपुरसुंदरी का मंदिर बनवा दें और राजा ने यही किया।  
एक प्रचलित कथा के अनुसार 16वीं शताब्दी के प्रथम दशक, सन् 1501 में त्रिपुरा पर धन्यमाणिक का शासन था। एक रात उन्हें माँ त्रिपुरेश्वरी स्वप्न में दिखीं तथा बोलीं कि चिंतागाँव के पहाड़ पर उनकी मूर्ति है, जो उन्हें वहाँ से आज ही लानी है, रात में ही। स्वप्न देखते ही राजा जाग गए तथा सैनिकों को तुरंत जाकर, रात में ही मूर्ति लाने का हुक्म सुना दिया। सैनिक मूर्ति लेकर लौट रहे थे कि माताबाड़ी पहुँचते-पहुँचते सूर्योदय हो गया और माता के आदेशानुसार वहीं मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापित कर दी गई। यही कालांतर में 'त्रिपुर सुंदरी' के नाम से जानी गईं। यह भी किवदंती है कि राजा धन्यमाणिक वहाँ [[विष्णु]] मंदिर बनवाने वाले थे, किंतु त्रिपुरेश्वरी की मूर्ति स्थापित हो जाने के कारण राजा पेशोपेश में पड़ गए कि वहाँ वे किसका मंदिर बनवाएँ? किंतु सहसा आकाशवाणी हुई कि राजा उस स्थान पर, जहाँ विष्णु मंदिर बनवाने वाले थे, माँ त्रिपुर सुंदरी का मंदिर बनवा दें और राजा ने यही किया।
==तालाब==
==तालाब==
मंदिर के पीछे पूर्व की ओर 6.4 एकड़ भूमि पर झील की तरह एक तालाब है, जिसे कल्याणसागर कहते हैं। इसमें बड़े-बड़े कछुए तथा मछलियाँ हैं, जिन्हें मारना या पकड़ना अपराध है। प्राकृतिक मृत्यु प्राप्त कछुओं/मछलियों को दफनाने के लिए अलग से एक स्थान वहाँ नियत है, जहाँ पर पुजारियों की समाधियाँ भी बनी हैं। मंदिर तथा कल्याण सागर की देख-रेख त्रिपुरा सरकार के राजस्व विभाग की एक समिति के द्वारा होता है। मंदिर का दैनिक व्यय राजस्व विभाग ही वहन करता है। [[दीपावली]] पर यहाँ भव्यायोजन एवं मेला लगता है।  
मंदिर के पीछे, पूर्व की ओर 6.4 एकड़ भूमि पर झील की तरह एक तालाब है, जिसे कल्याणसागर कहते हैं। इसमें बड़े-बड़े कछुए तथा मछलियाँ हैं, जिन्हें मारना या पकड़ना अपराध है। प्राकृतिक मृत्यु प्राप्त कछुओं/मछलियों को दफनाने के लिए अलग से एक स्थान वहाँ नियत है, जहाँ पर पुजारियों की समाधियाँ भी बनी हैं। मंदिर तथा कल्याण सागर की देख-रेख त्रिपुरा सरकार के राजस्व विभाग की एक समिति के द्वारा होती है। मंदिर का दैनिक व्यय राजस्व विभाग ही वहन करता है। [[दीपावली]] पर यहाँ भव्यायोजन एवं मेला लगता है।  
==यातायात==  
==यातायात==  
उदयपुर-सबरम पक्की सड़क के किनारे स्थापित इस शक्तिपीठ के मंदिर का क्षेत्रफल 24x24x75 फुट है। उदयपुर से माताबाड़ी के लिए बस, टैक्सी, ऑटोरिक्शा उपलब्ध हैं तथा मंदिर के निकट अनेक धर्मशालाएँ एवं रेस्ट हाउस भी है बने हुए हैं। दक्षिणी त्रिपुरा की प्राचीन राजधानी उदयपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर त्रिपुरसुंदरी मंदिर है। वहाँ जाने के लिए अगरतला तक वायुमान से यात्रा करनी होगी। वहाँ से सड़कमार्ग ही मुख्य यातायात साधन है। यहाँ रेलमार्ग मात्र 64 किलोमीटर तक उपलब्ध है। [[कोलकाता]] से लामडिंग, वहाँ से सिलचर जाकर वायुमार्ग से यात्रा करना सुविधाजनक है। यद्यपि सड़कमार्ग भी उपलब्ध है, पर अधिक सुविधाजनक नहीं है।
उदयपुर-सबरम पक्की सड़क के किनारे स्थापित इस शक्तिपीठ के मंदिर का क्षेत्रफल 24x24x75 फुट है। उदयपुर से माताबाड़ी के लिए बस, टैक्सी, ऑटोरिक्शा उपलब्ध हैं तथा मंदिर के निकट अनेक धर्मशालाएँ एवं रेस्ट हाउस भी बने हुए हैं। दक्षिणी त्रिपुरा की प्राचीन राजधानी उदयपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर त्रिपुर सुंदरी मंदिर है। वहाँ जाने के लिए [[अगरतला]] तक वायुयान से यात्रा करनी होगी। वहाँ से सड़क मार्ग ही मुख्य यातायात साधन है। यहाँ रेलमार्ग मात्र 64 किलोमीटर तक उपलब्ध है। [[कोलकाता]] से लामडिंग, वहाँ से सिलचर जाकर वायुमार्ग से यात्रा करना सुविधाजनक है। यद्यपि सड़क मार्ग भी उपलब्ध है, पर अधिक सुविधाजनक नहीं है।
 


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07:59, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ
त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ
त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ
वर्णन त्रिपुरा स्थित 'त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ' भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है।
स्थान राधा किशोर ग्राँव, त्रिपुरा
देवी-देवता सती 'त्रिपुर सुंदरी' तथा शिव 'त्रिपुरेश'।
संबंधित लेख शक्तिपीठ, सती
पौराणिक मान्यता मान्यतानुसार यह माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती का 'दक्षिण पाद'[1] गिरा था।
अन्य जानकारी इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं। मंदिर का प्रांगण कूर्म[2] की तरह है तथा मंदिर में लाल-काली कास्टिक पत्थर की बनी माँ महाकाली की भी मूर्ति है।

त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किये हुए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। 'देवीपुराण' में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। 'त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ' इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है।

चार ज़िलों- 'धालाई', 'उत्तरी त्रिपुरा', 'दक्षिणी त्रिपुरा' और 'पश्चिमी त्रिपुरा' वाला भारत का अति लघु प्रदेश त्रिपुरा बांग्लादेश से घिरा है। पूर्वोत्तर में एक सँकरी पट्टी है, जहाँ त्रिपुरा की सीमा असम तथा मिज़ोरम से मिलती है। इन चार ज़िलों के मुख्यालय हैं- धालाई का मुख्यालय 'अम्बासा', उत्तरी त्रिपुरा का मुख्यालय 'कैलास शहर', दक्षिणी त्रिपुरा का मुख्यालय 'उदयपुर' और पश्चिमी त्रिपुरा का मुख्यालय 'अगरतला', जो त्रिपुरा राज्य की राजधानी भी है। त्रिपुरा का क्षेत्रफल मात्र 10491 वर्ग किलोमीटर है। इसकी पुरानी राजधानी उदयपुर ही थी।

स्थिति

उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा[3] नाम की अनेक देवियाँ हैं[4], जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। देवी त्रिपुरसुंदरी ब्रह्मस्वरूपा हैं, भुवनेश्वरी विश्वमोहिनी हैं। वही परदेवता, महाविद्या, त्रिपुरसुंदरी, ललिताम्बा आदि अनेक नामों से स्मरण की जाती हैं। त्रिपुरसुंदरी का शक्ति-संप्रदाय में असाधारण महत्त्व है। इन्हीं के नाम पर सीमांत प्रदेश भारत के पूर्वोत्तर भाग में 'त्रिपुरा राज्य' नाम से स्थापित है। कुछ का यह कथन है कि त्रिपुरी भाषा के दो शब्द 'तुर्ड' तथा 'प्रा' पर इस राज्य का नाम पड़ा है, जिसका संयुक्त रूप से अर्थ होता है- 'पानी के पास।' दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम[5] में पड़ता है। यहाँ सती के दक्षिण 'पाद'[6] का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'त्रिपुर सुंदरी' तथा शिव 'त्रिपुरेश' हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं। इस मंदिर का प्रांगण कूर्म[7] की तरह है तथा इस मंदिर में लाल-काली कास्टिक पत्थर की बनी माँ महाकाली की भी मूर्ति है। इसके अतिरिक्त आधा मीटर ऊँची एक छोटी मूर्ति भी है, जिसे माता कहते हैं। उनकी भी महिमा माँ काली की तरह है। कहते हैं कि त्रिपुरा-नरेश शिकार हेतु या युद्ध पर प्रस्थान करते समय इन्हें अपने साथ रखते थे।

प्रचलित कथा

एक प्रचलित कथा के अनुसार 16वीं शताब्दी के प्रथम दशक, सन् 1501 में त्रिपुरा पर धन्यमाणिक का शासन था। एक रात उन्हें माँ त्रिपुरेश्वरी स्वप्न में दिखीं तथा बोलीं कि चिंतागाँव के पहाड़ पर उनकी मूर्ति है, जो उन्हें वहाँ से आज ही लानी है, रात में ही। स्वप्न देखते ही राजा जाग गए तथा सैनिकों को तुरंत जाकर, रात में ही मूर्ति लाने का हुक्म सुना दिया। सैनिक मूर्ति लेकर लौट रहे थे कि माताबाड़ी पहुँचते-पहुँचते सूर्योदय हो गया और माता के आदेशानुसार वहीं मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापित कर दी गई। यही कालांतर में 'त्रिपुर सुंदरी' के नाम से जानी गईं। यह भी किवदंती है कि राजा धन्यमाणिक वहाँ विष्णु मंदिर बनवाने वाले थे, किंतु त्रिपुरेश्वरी की मूर्ति स्थापित हो जाने के कारण राजा पेशोपेश में पड़ गए कि वहाँ वे किसका मंदिर बनवाएँ? किंतु सहसा आकाशवाणी हुई कि राजा उस स्थान पर, जहाँ विष्णु मंदिर बनवाने वाले थे, माँ त्रिपुर सुंदरी का मंदिर बनवा दें और राजा ने यही किया।

तालाब

मंदिर के पीछे, पूर्व की ओर 6.4 एकड़ भूमि पर झील की तरह एक तालाब है, जिसे कल्याणसागर कहते हैं। इसमें बड़े-बड़े कछुए तथा मछलियाँ हैं, जिन्हें मारना या पकड़ना अपराध है। प्राकृतिक मृत्यु प्राप्त कछुओं/मछलियों को दफनाने के लिए अलग से एक स्थान वहाँ नियत है, जहाँ पर पुजारियों की समाधियाँ भी बनी हैं। मंदिर तथा कल्याण सागर की देख-रेख त्रिपुरा सरकार के राजस्व विभाग की एक समिति के द्वारा होती है। मंदिर का दैनिक व्यय राजस्व विभाग ही वहन करता है। दीपावली पर यहाँ भव्यायोजन एवं मेला लगता है।

यातायात

उदयपुर-सबरम पक्की सड़क के किनारे स्थापित इस शक्तिपीठ के मंदिर का क्षेत्रफल 24x24x75 फुट है। उदयपुर से माताबाड़ी के लिए बस, टैक्सी, ऑटोरिक्शा उपलब्ध हैं तथा मंदिर के निकट अनेक धर्मशालाएँ एवं रेस्ट हाउस भी बने हुए हैं। दक्षिणी त्रिपुरा की प्राचीन राजधानी उदयपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर त्रिपुर सुंदरी मंदिर है। वहाँ जाने के लिए अगरतला तक वायुयान से यात्रा करनी होगी। वहाँ से सड़क मार्ग ही मुख्य यातायात साधन है। यहाँ रेलमार्ग मात्र 64 किलोमीटर तक उपलब्ध है। कोलकाता से लामडिंग, वहाँ से सिलचर जाकर वायुमार्ग से यात्रा करना सुविधाजनक है। यद्यपि सड़क मार्ग भी उपलब्ध है, पर अधिक सुविधाजनक नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पैर
  2. कछुवे
  3. श्री कामराज विद्या की अधिष्ठात्र श्री विद्या का ही नामांतर त्रिपुरा है। 'त्रि' अर्थात् 'तीन या त्रिमूर्तियों से', 'पुरा' 'पुरातन' होने से त्रिपुरा यानी गुणत्रयातीता त्रिगुणानियंत्री शक्ति। तंत्र ग्रंथ त्रिपुरार्णव में त्रिपुरा की निरुक्ति है-तीन नाड़ियाँ (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना)। वह मन, बुद्धि एवं चित्त रूपी तीन पुरों में वास करने वाली शक्ति हैं। प्रकारांतर में त्रिपुरा की निरुक्ति है-त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर शिव) की जननी होने से, त्रयी (ऋक्, साम, यजु,) वेदमयी होने से, महाप्रलय की त्रिलोकी को अपने में लीन करने से जगदम्बा 'श्री विद्या' ही त्रिपुरा हैं। इच्छा-शक्ति उनका शिरोभाग है, ज्ञान-शक्ति मध्य भाग है तथा क्रियाशक्ति अधोभाग है, इसी से शक्ति-त्रयात्मक होने से वह त्रिपुरा कही जाती हैं।
  4. श्री विद्यार्णव (भाग-2)
  5. नैऋत्यकोण
  6. पैर
  7. कछुवे

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