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जन्म: 18 फ़रवरी 1931
जन्म: 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)


कार्यक्षेत्र: भारतीय मूल के ब्रिटिश उद्योगपति और राजनीतिज्ञ, कपारो ग्रुप के संस्थापक
वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)


स्वराज पॉल (बैरन पॉल) भारतीय मूल के ब्रिटिश उद्योगपति, समाजसेवी और लेबर राजनीतिज्ञ हैं। सन 1996 में वे लेबर पार्टी के टिकट पर ‘हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स’ का सदस्य बने और बैरन पॉल की पदवी ग्रहण की। दिसम्बर 2008 में उन्हें ‘हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स’ का उपाध्यक्ष चुना गया और अक्टूबर 2009 में उन्हें प्रिवी कौंसिल के लिए चुना गया। उन्हें इंग्लैंड के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डोन ब्राउन और औंकी पत्नी सारा का करीबी माना जाता है। यूनाईटेड किंगडम संसदीय खर्चे घोटाले के संदर्भ में उन्हें 1 नवम्बर 2010 को ‘हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स’ के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा।
कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक


प्रारंभिक जीवन
पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त [[संगीतकार]] और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘[[पद्मभूषण]]’ और ‘[[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।


लार्ड स्वराज पॉल का जन्म 18 फरवरी 1931 में पंजाब के जालंधर शहर में हुआ था। उनके पिता एक छोटा ढलाईखाना चलाते थे जहाँ बाल्टियों और कृषि उपकरणों का निर्माण होता था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के फॉरमैन क्रिस्चियन कॉलेज से हुई जिसके बाद उन्होंने जालंधर के दोआबा कॉलेज से भी शिक्षा ग्रहण की। उसके पश्चात उन्होंने बी.एस.सी, एम.एस.सी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई अमेरिका के मशहूर मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) से की।
ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के [[शास्त्रीय संगीत]] के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।
==प्रारम्भिक एवं पारिवारिक जीवन==
पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष [[1935]] में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान [[बांग्लादेश]] में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके [[संगीत]] के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष [[1953]] में हुआ था।
जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।
==शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य==
इन्होंने वर्ष [[1971]] से वर्ष [[1982]] तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष [[1985]] से वर्ष [[1988]] तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे। इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष [[1991]] से वर्ष [[1994]] तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं।


करियर
[[दिल्ली विश्वविद्यालय|दिल्ली विश्वविद्याल]] से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है। यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा।
==संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण==
इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने [[अमेरिका]] प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से  24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।


मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) से निकलने बाद उन्होंने भारत में अपने पारिवारिक कंपनी ‘एपीजे-सुरेन्द्र ग्रुप’ में कार्य किया। इस कंपनी की स्थापना उनके पिता ने की थी और उस समय इसका संचालन स्वराज पॉल के दो बड़े भाई – सत्य पॉल और जीत पॉल – कर रहे थे।
इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।
==संगीत के प्रति इनका लगाव==
पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में  विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष [[1984]] में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में [[भारत सरकार]] ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।


सन 1966 में वे अपनी पुत्री के इलाज के लिए यूनाइटेड किंगडम चले गए। उनकी पुत्री लयूकेमिया से पीड़ित थी और इसी बीमारी से उसकी मौत हो गयी। अपनी बेटी की मौत से उबरने में उन्हें लगभग एक साल का वक्त लगा और उसके बाद उन्होंने ‘नेचुरल गैस ट्यूब्स’ की स्थापना की। इसके पश्चात उन्होंने एक के बाद एक कई स्टील की इकाईओं का अधिग्रहण कर लिया।
ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि. ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।
 
==पुरस्कार एवं सम्मान==
सन 1968 में उन्होंने कपारो ग्रुप की स्थापना की। कपारो ग्रुप वर्तमान में यूनाइटेड किंगडम के अग्रणी स्टील उत्पाद बनाने वालों में से एक है। कपारो ग्रुप स्टील ट्यूब्स के साथ-साथ मर्चेंट बार्स और स्ट्रक्चरल भी बनता है। इसके अलावा वे दूसरे उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले स्टील उत्पाद भी बनाते हैं। कपारो ग्रुप उत्तर अमेरिका, यूरोप, भारत और मध्य पूर्व आदि में लगभग 10 हज़ार लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।
इन्हें [[भारत सरकार]] की तरफ से ‘[[पद्मभूषण]]’ और ‘[[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।
 
भारतीय [[संगीत नाटक अकादमी]] द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ ([[छत्तीसगढ़]]) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है।
लार्ड पॉल ने सन 1996 में अपने आप को कंपनी के प्रबंधन से अलग कर लिया और उनके सबसे छोटे बेटे अंगद ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.इ.ओ.) बनाये गए।
[[भारत सरकार]] के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया।
 
हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए [[दिल्ली]], मुंबई और [[कोलकाता]] के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।
सन्डे टाइम्स के अमीर व्यक्तियों की सूचि में उनका नाम भी आता है। सन 2015 में सन्डे टाइम्स ने उन्हें ब्रिटेन का 38वां सबसे अमीर व्यक्ति माना। वे दवा करते हैं की अन्य आम लोगों की तरह वे भी लन्दन में सार्वजानिक यातायात का उपयोग करते हैं। 1960 के दशक से ही वे मध्य लन्दन के पोर्टलैंड प्लेस में रहते हैं। वे और उनके परिवार के सदस्य इस ब्लाक में लगभग दर्ज़नभर मकानों के मालिक हैं। इनमें से हर मकान की कीमत लगभग 10 लाख ब्रिटिश पौण्ड मानी जाति है। बीकन्सफील्ड (बकिंघमशायर) में लगभग 250 एकड़ में फैला उनका एक कंट्री एस्टेट भी है।
 
सार्वजनिक जीवन
 
लार्ड स्वराज पॉल कई महत्वपूर्ण सार्वजानिक पदों पर रह चुके हैं। वे थेम्स वैली विश्वविद्यालय के प्रो-चांसलर (1998) और उसके गवर्नर (1992-97) के पद पर आसीन रहे। सन 1998 से वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉलवेर्हम्प्टन और यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टमिंस्टर के चांसलर रहे जिसमें उनके पारिवारिक ट्रस्ट ने लगभग £300,000 का योगदान दिया। उन्होंने ‘अम्बिका पॉल फाउंडेशन’ के माध्यम से ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉलवेर्हम्प्टन’ को उदारतापूर्वक दान दिया और इसके ‘स्टूडेंट्स यूनियन सेण्टर’ का नवीनीकरण का खर्चा भी वहन किया। नवीनीकरण के बाद उसका नाम ‘द अम्बिका पॉल स्टूडेंट्स यूनियन सेंटर’ कर दिया गया।
 
लार्ड पॉल ब्रिटेन के विदेश नीति केंद्र सलाहकार परिषद और एमआईटी के यांत्रिक अभियांत्रिकी विजिटिंग समिति के सदस्य रह चुके हैं। वे लन्दन ओलिंपिक डिलिवरी समिति के अध्यक्ष रहे और कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन (सीपीए) की अध्यक्षता के लिए भी चुनाव लड़े।
 
स्वराज पॉल भारतीय मूल के पहले व्यक्ति हैं जिन्हें हाउज़ ऑफ़ लॉर्ड्स का उपाध्यक्ष बनाया गया। वे इस पद आसीन होने वाले बारह लोगों में से एक हैं। इसके पश्चात उन्हें 15 अक्टूबर 2009 को प्रिवी कौंसिल की शपथ दिलाई गयी।
 
अम्बिका पॉल फाउंडेशन के माध्यम से लार्ड पॉल कपारो से हुआ लाभ धर्मार्थ प्रयासों में भी देते हैं। वे ज़ूओलॉजिकल सोसायटी ऑफ़ लन्दन के मानद संरक्षक हैं और रीजेन्ट्स पार्क साईट में प्रमुख परियोजनाओं को वित्त पोषित भी किया है, जिसमें बच्चों का चिड़ियाघर शामिल है।
 
सन 2000-2005 तक वे इंडो-ब्रिटिश राउंडटेबल के को-चेयर थे। लार्ड पॉल पैनल 2000 के सदस्य भी थे जिसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री द्वारा ब्रिटेन के री-ब्रांडिंग के लिए गठित किया गया था।
 
वे ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डोन ब्राउन के बड़े समर्थक हैं और उन्होंने लेबर पार्टी को £500,000 दान में भी दिया।
 
लार्ड पॉल ने लन्दन ओलंपिक्स 2012 के दावेदारी से लेकर आयोजन तक की गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन 2005 में वे लन्दन की दावेदारी का पक्ष रखने वाले दल के साथ सिंगापोर गए थे जहाँ इस दल ने इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी को लन्दन के दावेदारी के लिए मनाने में सफलता प्राप्त की।
 
पुरस्कार और सम्मान
 
लार्ड स्वराज पॉल को कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं जिनमें यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, भारत, रूस और स्विट्ज़रलैंड के विश्विद्यालयों द्वारा मानद सम्मान भी शामिल हैं।
 
    सन 1983 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया
    इंडियन मर्चेंट्स चैम्बर ने उन्हें ‘भारत गौरव’ सम्मान दिया
    सन 1998 में फ्रीडम ऑफ़ द सिटी ऑफ़ लन्दन
    2008 एशियन बिज़नेस अवार्ड्स में ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ दिया गया
    सन २९९5 में अमेरिका के सोसाइटी ऑफ़ मैन्युफैक्चरिंग एन्जिनेअर्स ने उन्हें ‘डोनाल्ड सी. बुर्न्हम मैन्युफैक्चरिंग अवार्ड’ दिया
    सन 1987 में एशियन हूज हु में उन्हें ‘फर्स्ट एशियन ऑफ़ द इयर’ चुना गया
    सन 2008 में एशियन वीमेन मैगज़ीन ने उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ दिया
    सन 2011 में ‘पॉवरब्रांड्स हाल ऑफ़ फेम’ ने उन्हें ‘ग्लोबल इंडियन ऑफ़ द इयर’ के लिए नामांकित किया
    सन 1989 में मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) ने उन्हें कॉर्पोरेट लीडरशिप अवार्ड दिया
    नवम्बर 2013 में ‘इंडिया लिंक इंटरनेशनल’ पत्रिका ने उन्हें ‘इंटरनेशनल इंडियन ऑफ़ द डिकेड’ चुना
    ब्लैक कंट्री एशियन बिज़नस एसोसिएशन द्वारा उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ दिया गया
    ग्लोबल स्किल तरी कंसोर्टियम ने उन्हें सन 2014 में ‘लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ दिया
    जुलाई 2014 में ‘ वर्ल्ड कंसल्टिंग रिसर्च कारपोरेशन’ ने उन्हें ‘इंटरनेशनल आइकॉन ऑफ़ द डिकेड अवार्ड’ दिया
 
विवाद
 
लार्ड स्वराज पॉल का नाम ब्रिटेन के ‘सांसद व्यय घोटाले’ में आया था। इसके अंतर्गत सांसदों ने गलत ढंग से भत्ते का दावा किया था। सांसद व्यय घोटाले की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन और  कंजरवेटिव नेता डेविड कैमरॉन समेत कई अन्य सांसदों को दावे की राशि का भुगतान करना पड़ा था।
 
हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स की विशेषाधिकार और आचार की समिति ने इस मामले की जांच की और निष्कर्ष निकाला कि: ” लॉर्ड पॉल ने असन्निष्ठा से या बदनीयती से काम नहीं किया था, हालांकि, उनके कृत्य पूरी तरह से अनुचित थे और उन्होंने लापरवाही और उपेक्षा का प्रदर्शन किया। इसलिए उन्हें हाउस द्वारा दंड दिया जाना चाहिए”।
 
1 नवम्बर 2010 में लार्ड स्वराज पॉल ने ‘हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स’ के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

12:21, 22 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

जन्म: 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)

वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)

कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक

पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त संगीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।

ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।

प्रारम्भिक एवं पारिवारिक जीवन

पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष 1935 में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था। जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।

शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य

इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे। इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं।

दिल्ली विश्वविद्याल से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है। यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा।

संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण

इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।

इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।

संगीत के प्रति इनका लगाव

पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।

ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि. ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान

इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया। हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।