"शेख़ भिखारी": अवतरणों में अंतर
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*राँची ज़िले के ओरमांझी थाना अंतर्गत खुदिया गांव में 1819 में जन्मे शेख़ भिखारी की गिनती [[स्वतंत्रता आंदोलन]] के | '''शेख़ भिखारी'''' (जन्म- 1819 ई., [[राँची]], [[झारखण्ड]]) का नाम [[भारत]] के प्रसिद्ध अमर क्रांतिकारियों में लिया जाता है। उनका नाम [[छोटा नागपुर]] के [[इतिहास]] में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 ई. के संग्राम]] में उन्होंने अपनी वीरता, साहस, बुद्धि एवं राजनीति से [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के छक्के छुड़ा दिये थे। [[टिकैत उमराव सिंह]] के साथ मिलकर शेख़ भिखारी ने पिठोरिया तक [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को छकाया था। | ||
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शेख़ भिखारी
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पूरा नाम | शेख़ भिखारी |
जन्म | 1819 ई. |
जन्म भूमि | राँची, झारखण्ड |
मृत्यु कारण | फ़ाँसी |
अभिभावक | पिता- 'पहलवान' |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
धर्म | हिन्दू |
संबंधित लेख | प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम, टिकैत उमराव सिंह |
अन्य जानकारी | शेख़ भिखारी तलवार में इतनी ताकत थी कि अंग्रेज़ कमिश्नर मैकडोनाल्ड ने इसका 'गजट' में ज़िक्र किया था और उन्हें 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में खतरनाक बागी करार दिया था। |
शेख़ भिखारी' (जन्म- 1819 ई., राँची, झारखण्ड) का नाम भारत के प्रसिद्ध अमर क्रांतिकारियों में लिया जाता है। उनका नाम छोटा नागपुर के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। 1857 ई. के संग्राम में उन्होंने अपनी वीरता, साहस, बुद्धि एवं राजनीति से अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिये थे। टिकैत उमराव सिंह के साथ मिलकर शेख़ भिखारी ने पिठोरिया तक अंग्रेज़ों को छकाया था।
- राँची ज़िले के ओरमांझी थाना अंतर्गत खुदिया गांव में 1819 में जन्मे शेख़ भिखारी की गिनती स्वतंत्रता आंदोलन के महान् नायकों में होती है। इनके पिता का नाम 'पहलवान' था।
- इनका जन्म एक बुनकर अंसारी परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपना पूरा जीवन ओरमांझी, खुदिया में बिताया।
- 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में इस महान् योद्धा और ओजस्वी सेनापति ने बड़ी वीरता और साहस के साथ अंग्रेज़ों के दांत खट्टे किये थे।
- कहा जाता है कि उनकी तलवार में इतनी ताकत थी कि अंग्रेज़ कमिश्नर मैकडोनाल्ड ने इसका 'गजट' में ज़िक्र किया था और उन्हें 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में खतरनाक बागी करार दिया था।
- शेख़ भिखारी ओरमांझी खुदिया के राजा टिकैत उमराव सिंह के दीवान और कुशल सेनापति भी थे।
- 1858 ई. में अंग्रेज़ों ने छल-बल के साथ चुटूपालू के निकट भीषण लड़ाई के बाद शेख़ भिखारी को गिरफ्तार कर लिया और 7 जनवरी को उन पर मुकदमा चलाया गया।
- इस दौरान उनकी वीरता और साहस से भयभीत अंग्रेज़ों ने अदालती कारवाई पूरे किये बिना ही टिकैत उमराव सिंह के साथ शेख़ भिखारी को बरगद के पेड़ पर फाँसी दे दी। यह पेड़ आज भी चुटूपालू घाटी में प्रेरणा स्थल के रूप में मौजूद है। 8 जनवरी को झारखंड के निवासी उन्हें याद कर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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