"एकहि साधै सब सधै -रहीम": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('<div class="bgrahimdv"> एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।<br /> रहिमन म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर")
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
;अर्थ
;अर्थ
एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है। वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है।
एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है। वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की ज़रूरत नहीं होती है।


{{लेख क्रम3| पिछला=माली आवत देख के -रहीम |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन वे नर मर गये -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=माली आवत देख के -रहीम |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन वे नर मर गये -रहीम}}

10:46, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥

अर्थ

एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है। वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की ज़रूरत नहीं होती है।


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ
आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख