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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार राज्य के गठन का आसन्न कारण क्या था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-1 | | {[[महाभारत]] में [[कीचक वध]] किस पर्व के अंतर्गत आता है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -शोषण | | +[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] |
| -सामंतवाद | | -[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] |
| +असमाधेय वर्ग संघर्ष
| | -[[आदि पर्व महाभारत |आदि पर्व]] |
| -पूंजीवाद | | -[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] |
| ||[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार, [[राज्य]] की उत्पत्ति का कारण वर्ग संघर्ष की असमाधेय स्थिति है। एंजेल्स ने अपनी प्रशंसनीय पुस्तक 'ऑरिजिन ऑफ फैमिली, प्राइवेट प्रॉपर्टी एण्ड द स्टेट' में राज्य की उत्पत्ति और स्वरूप के विषय में लिखा है कि 'यह समाज के विकास के एक निश्चित चरण की उपज है। यह इस बात की स्वीकृति है कि समाज ऐसे वर्ग अंतर्विरोध (संघर्ष) का शिकार है जिसका कोई हल नहीं है। ये वर्ग संघर्ष समाज और वर्गों को भस्म न कर दे इसलिए प्रकट रूप से राज्य की आवश्यकता हुई जो इस संघर्ष पर नियंत्रण कर सके और व्यवस्था के अंतर्गत सीमित रख सके। इस संदर्भ में लेकिन का भी यही निष्कर्ष है कि 'राज्य वर्ग संघर्षों' की, जिनमें कोई समझौता सम्भव नहीं है, उपज और अभिव्यक्ति है। | | ||[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] में [[अज्ञातवास]] की अवधि में [[विराट नगर]] में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, [[युधिष्ठिर]] द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, [[भीमसेन]] द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा [[कीचक]] और उपकीचकों का वध, [[दुर्योधन]] के गुप्तचरों द्वारा [[पाण्डव|पाण्डवों]] की खोज तथा लौटकर [[कीचक वध]] की जानकारी देना, त्रिगर्तों और [[कौरव|कौरवों]] द्वारा [[मत्स्य]] देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा [[विराट]] की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, [[अर्जुन]] द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा [[उत्तरा]] को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[विराट पर्व महाभारत]], [[कीचक वध]] |
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| {"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है" किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-1 | | {[[महाभारत]] युद्ध में कौन-से दिन [[श्रीकृष्ण]] ने [[शस्त्र]] न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[रवींद्रनाथ टैगोर]]
| | -[[महाभारत युद्ध आठवाँ दिन|आठवें दिन]] |
| -[[महात्मा गाँधी]]
| | -[[महाभारत युद्ध दसवाँ दिन|दसवें दिन]] |
| -जे.एस. मिल
| | -[[महाभारत युद्ध ग्यारहवाँ दिन|ग्यारहवें दिन]] |
| -मैकियावेली
| | +[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] |
| ||"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है", यह कथन [[रवींद्रनाथ टैगोर]] का है। रवींद्रनाथ टैगोर की विचारधारा में विश्वबंधुत्व का तत्त्व गहरे से समाया हुआ था। उनका मानवतावाद सीमाहीन था। उनके मानवतावाद में जाति, [[धर्म]], भाषा, रंग एवं सीमा जैसे तत्त्वों का कोई स्थान नहीं था। वे विश्वबंधुत्व के पोषक थे और विश्व की समस्त संस्कृतियों को सुंदर मानते थे। वे भारतीय शिक्षा प्रणाली में [[अंग्रेज़ी भाषा]] के विरोधी थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रवादी होने के साथ वे अंतर्राष्ट्रीयतावाद के भी समर्थक थे।
| | ||[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] के युद्ध में [[भीष्म]] के [[बाण अस्त्र|बाणों]] से [[अर्जुन]] घायल हो गए। भीष्म की भीषण बाण-वर्षा से [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। वे श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हैं कि वे युद्ध में [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] नहीं उठायेंगे। |
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| {कौन-सी विचारधारा समर्थन करती है कि "तथ्य अनिवार्यत: तकनीक से पूर्व है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-101
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| +व्यवहारवाद
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| -अस्तित्ववाद
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| -उत्तर-व्यवहारवाद
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| -प्रत्यक्षवाद
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| ||व्यवहारवाद वैज्ञानिक पद्धति पर बल देते हुए मूल्य-निरक्षेप उपागम का समर्थन करता है। व्यवहारवादी ऐसे किसी कथन को मान्यता नहीं देते, जिसकी वैज्ञानिक स्तर पर पुष्टि नहीं की जा सकती है। व्यवहारवाद सामाजिक स्थिरता पर बल देता रहा है, अत: उसने अपना ध्यान तथ्यों के विश्लेषण तक सीमित रखा है। व्यवहारवादी विचारधारा तथ्य को अनिवार्यत: तकनीक से पूर्व मानती है।
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| {आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-1
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| -चार्ल्स मेरियम
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| -डेविड ईस्टन
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| -हैरॉल्ड लासवेल
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| +उपर्युक्त सभी
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| ||आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक हैं- चार्ल्स मेरियम, ग्राहम वालास, लिओनार्ड ह्वाइट, क्विंसी राइट, हैरल्ड लासवेल, फ़्रेडरिक शूमैन, वी.ओ.की. जूनियर, गेब्रीयल आमंड, हर्बर्ट साइमन, डेविड ट्रूमैन, डेविड ईस्टन, कैटलिन।
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| {राज्य की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक सिद्धांत किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-16 प्रश्न-1
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| +हेनरी मेन
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| -ट्राइट्सके
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| -ओपेनहाइमर
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| -दुर्खीम
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| ||राज्य की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धांत का प्रतिपादन सर हेनरी मेन द्वारा किया गया। इन्होंने अपनी पुस्तक 'An- cient Law' ([[1861]]) में माना कि समाजों की उत्पत्ति प्रस्थिति से संविदा में हुई है, अर्थात प्रारंभिक समाजों में मनुष्यों के समाजिक संबंध, प्रस्थिति या स्थिर स्थिति से निर्धारित होते थे। इनके अनुसार, सामाजिक संबंधों में एकता का प्रारंभिक बंधन रक्त संबंध ही था, जो राज्य के विकास में प्रमुख सहायक तत्त्व है। '''अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- बेजहाट राज्य के विकास को डार्विन के उद्विकास सिद्धांत से जोड़कर देखते हैं। वे विभिन्न समाजों के विकास में संघर्ष व नव प्रवर्तन (Innovation) को जरूरी मानता है। बेजहाट ने 'चर्चा की प्रवृत्ति' (Instinct of Discussion) को समाज के प्रगतिशीलता के लिए आवश्यक माना है।
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| {निम्न में से तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य क्या है? (नागरिकक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-1
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| -दार्शनिक लक्ष्य
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| -वैज्ञानिक लक्ष्य
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| -शासन नीति के प्रयोग का लक्ष्य
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| +उपर्युक्त सभी
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| {व्यक्तिवाद व समाजवाद में किस प्रकार का संबंध हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-30 प्रश्न-1
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| |type="()"}
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| -परस्पर सहयोग
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| -परस्पर आदान-प्रदान
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| -परस्पर मिलना
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| +परस्पर विरोध
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| ||समाजवाद व व्यक्तिवाद परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं। व्यक्तिवाद राज्य के अहस्तक्षेप का समर्थन करता है जो पूंजीवाद को बढ़ावा देता है। पूंजीवाद के अंतर्गत उत्पादन, वितरण और विनिमय के प्रमुख साधन निजी स्वामित्व में रहते हैं। इसके विरोध में समाजवाद का उदय हुआ समाजवाद के अनुसार, समाज में उत्पादन, वितरण और विनियम के प्रमुख साधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित होना चाहिए।
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| {"सभी कुछ राज्य के अंदर है, राज्य के विरुद्ध और बाहर कुछ नहीं है।" किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-1
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| |type="()"}
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| -हीगल
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| -हिटलर
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| -ग्रीन
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| +मुसोलिनी
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| ||फॉसीवाद एक सर्वशक्तिमान राज्य का समर्थन करता है। राज्य की सत्ता परम असीमित तथा अविभाज्य है इसी संदर्भ में मुसोलिनी ने कहा "राज्य के बाहर कुछ नहीं, इसके ऊपर कुछ नहीं।" राज्य के हित के सामने व्यक्ति का हित गौण हैं इसी प्रकार त्रीत्सके ने भी कहा है कि "दण्डवत होकर राज्य की पूजा करनी चाहिए।"
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| {[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद में कितने सदस्य अस्थायी हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-118 प्रश्न-1
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| -5
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| -7
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| +10
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| -15
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| ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है।
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| {'केस' पद्धति किस देश की देन है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-1
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| |type="()"}
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| +[[अमेरिका]]
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| -[[भारत]]
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| -[[इंग्लैंड]]
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| -[[फ़्राँस]]
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| ||केस पद्धति [[अमेरिका]] की देन है। अमेरिकी प्रशासन में केस पद्धति का विकास [[1930]] के दशक में विशेष परिस्थितियों में प्रशासक द्वारा निर्णय निर्माण करने के लिए हुआ। केस पद्धति निर्णय निर्माण करने वाले प्रशासक के निर्णयन, व्यवहार तथा उसको प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों (वैयक्तिक, विधिक तथा सांस्थानिक) पर विशेष बल देता है। वर्तमान समय में यह पद्धति लोक प्रशासन के अध्ययन और अध्यापन का स्थाई साधन बन गई है।
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| {निम्नलिखित में से [[कार्ल मार्क्स]] के अनुसार कौन ऐतिहासिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -व्यक्ति
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| -जनता
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| +वर्ग
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| -दल
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| ||[[कार्ल मार्क्स]] के अनुसार, वर्ग ऐतिहासिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है। मार्क्स के अनुसार समाज का अब तक का इतिहास, वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है। मार्क्स के अनुसार, धनवान एवं निर्धन वर्गों के बीच संघर्ष आदिमकाल से ही रहा है जो तब तक जारी रहेगा जब तक स्वयं कामगार वर्ग समाज की बागडोर नहीं लेता।
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| {निम्नलिखित में से अनमेल को बताइए- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -[[बाल गंगाधर तिलक|तिलक]]-[[विपिन चंद्र पाल]]
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| -[[गोपाल कृष्ण गोखले|गोखले]]-[[दादा भाई नौरोजी|नौरोजी]]
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| +[[जवाहर लाल नेहरू|नेहरू]]-[[सुभाष चंद्र बोस|बोस]]
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| -[[जयप्रकाश नारायण|जय प्रकाश]]-[[राम मनोहर लोहिया|लोहिया]]
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| ||[[बाल गंगाधर तिलक|तिलक]]और [[विपिन चंद्र पाल|बिपिन चंद्र पाल]] उग्रवादी विचारधारा से संबंधित थे। [[गोपाल कृष्ण गोखले]] तथा [[दादाभाई नौरोजी]] उदारवादी विचारधारा से या नरमपंथी विचारधारा से संबंधित थे। [[जयप्रकाश नारायण]] और [[डॉ. राम मनोहर लोहिया]] प्रमुख समाजवादी विचारक थे। विकल्प (c) में [[जवाहर लाल नेहरू]] लोकतांत्रिक समाजवादी थे जबकि [[सुभाष चंद्र बोस]] क्रांतिकारी समाजवादी थे। इस प्रकार विकल्प (c) बेमेल है।
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| {बहुलतावादी वकालत करते हैं- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-102
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| |type="()"}
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| -राज्यों की स्वायत्तता की
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| -सरकार की स्वायत्तता की
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| +समुदायों की स्वायत्तता की
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| -केंद्र सरकार की स्वायत्तता की
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| ||राज्य तथा अन्य समुदायों के संबंध में बहुलवादियों का यह विश्वास है कि समाज में कुछ समुदाय या तो राज्य से भी अधिक आवश्यक हैं, अन्यथा समाज हैं। बहुलवादियों के अनुसार, राज्य भी अन्य समुदायों के समान एक समुदाय है। जिस प्रकार राज्य के क़ानून एवं नियम होते हैं, उसी प्रकार अन्य समुदायों के भी अपने नियम व क़ानून निर्मित होते हैं। बहुलवादी राज्य से ज्यादा समाज को महत्त्व देते हैं। लॉस्की राज्य को अनेक समितियों जी भांति एक समिति मानते हैं, पर उसे अन्य समितियों की तुलना में प्रथम मानते हैं।
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| {"राजनीति शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है।" किसकी उक्ति है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -लास्की
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| +गार्नर
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| -सेबाइन
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| -माउंट बेटन
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| ||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" (Political Science begins and ends with the State)। अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है।
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| {जॉन लॉक और रूसो के सामाजिक संविदा सिद्धांत के संबंध में क्या सही है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-16 प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -लॉक का समझौता पूर्णतया स्वतंत्र समझौता है, जबकि रूसो की संविदा आबद्ध संविदा है।
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| -लॉक समुदाय को नगण्य शक्तियां प्रदान करता है, जबकि रूसो की संविदा में व्यक्ति का समुदाय में पूर्ण समर्पण हो जाता है।
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| -लॉक की संविदा में व्यक्तियों के अधिकार सुरक्षित हो जाता हैं जबकि रूसो की संविदा में व्यक्ति के अधिकार का अवसान हो जाता है।
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| +उपर्युक्त सभी
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| ||लॉक का समझौता एक ऐतिहासिक तथ्य है जबकि रूसो का एक दार्शनिक विचार। लॉक का मत है कि लोगों ने अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए राज्य बनाने का समझौता किया था तथा इस प्रक्रिया में वे अपने किसी अधिकार का समर्पण नहीं करते। रूसो का कहना है कि प्राकृतिक अवस्था के लोग अपनी यथार्थ इच्छा (अर्थात स्वार्थ इच्छा) द्वारा समझौता करते हैं और वे जंजीरों में जकड़ते चले जाते हैं। लॉक के अनुसार, सामाजिक समझौता समाज व राज्य के बीच होता है, जिसके अंतर्गत राज्य लोगों की संपत्ति की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लेता है। रूसो ने लोगों की वास्तविक इच्छा से बनी सामान्य इच्छा के आधार पर राज्य की रचना की बात की है जो अपने स्वरूप में इतना उच्चतम है कि वह सर्वाहित में कार्य करता है तथा जिसके विरुद्ध लोगों को उसके क़ानूनों की अवहेलना का अधिकार नहीं होता है जबकि रूसो का असीमित, अविभाज्य एवं अमर्यादित। हॉब्स कानूनी, लॉक राजनीतिक एवं रूसो लौकिक संप्रभुता की चर्चा करते हैं। वस्तुत: रूसो अपने सामाजिक समझौते के सिद्धांत में लॉक की भांति आरंभ करता है, परंतु इसका अंत हॉब्स के लेवियाथन ने जिसका सिर कटा हुआ है, पर समाप्त करता है।
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| {"तुलनात्मक राजनीति सब कुछ है या कुछ भी नहीं" यह कथन किसका है? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -मेकीडिस
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| +जी. के. रॉबर्ट्स
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| -जीन ब्लोण्डेल
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| -स्प्रेंगलर
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| ||तुलनात्मक राजनीति विभिन्न परिवेश तथा विभिन्न देशों में राजनीतिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन करता है। इसके अध्ययन के विषय वस्तु लेकर हमेशा संशय बना रहता है कि यह केवल राजनीतिक संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन है या इसमें राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण, या सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक विकास, आदि विषय को शामिल किया जाए। इसी विषय-वस्तु के संदर्भ में जी. के. रॉबर्ट्स ने अपनी शोध 'कम्परेटिव पोलिटिक्स टुडे' में लिखा है कि 'तुलनात्मक राजनीति या तो सब कुछ है या कुछ भी नहीं है।"
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| {इनमें से किस विचार को प्राय: व्यक्तिवादी विचारक अपने अनुकूल पाते हैं? (नाग शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -[[कार्ल मार्क्स]] का वर्ग संघर्ष सिद्धांत
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| -[[कार्ल मार्क्स]] का क्रांतिकारी हिंसा का सिद्धांत | |
| +डार्विन का अनुकूलतम की अतिजीविता का सिद्धांत
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| -ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत
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| ||व्यक्तिवादी विचारक डॉर्विन का 'अनुकूलतम की अतिजीविता का सिद्धांत' को अपनी विचारधारा के अनुकूल पाते हैं। व्यक्तिवादी विचारधारा के अनुसार, व्यक्ति अपने हित का सर्वोत्तम निर्णायक है और उसकी सिद्धि करते समय वह दूसरों के हित साधने में योग देता है। अत: राज्य का अन्य कोष अथवा संस्था भी व्यक्ति के लिए है, व्यक्ति स्वयं राज्य या अन्य किसी स्थान के लिए नहीं है।
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| प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक [[हर्बर्ट स्पेंसर]] ने समाज की संकल्पना जीवित प्राणी (Organism) के रूप में की है। जिसमें विकास की प्रवृत्ति पाई जाती है।
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| {"जिसे जीना है उसे युद्ध करना होगा" यह कथन किसका है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-2
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| |type="()"}
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| -[[सिकंदर|सिकंदर महान]]
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| -मुसोलिनी
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| -माओत्से तुंग
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| +हिटलर
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| ||हिटलर ने कहा था कि "अविराम युद्ध से ही मानव जाति की उन्नति हुई है। "जिसे जीना है उसे युद्ध करना होगा। सदा के लिए शांति की स्थापना से मानव जाति गर्त में चली जायेगी।" एक अन्य स्थान पर हिटलर ने कहा है कि "युद्ध सदाबहार तथा विश्वव्यापी हैं युद्ध जिंदगी है। हर संघर्ष युद्ध है, हर चीज की उत्पत्ति युद्ध के माध्यम से हुई है।"
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| {निम्नलिखित में से कौन एक [[संयुक्त राष्ट्र]] का मुख्य अंग नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-11
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| |type="()"}
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| +अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
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| -महासभा
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| -सुरक्षा परिषद
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| -न्याय परिषद
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| ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं।
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| {'पोस्डकोर्ब' की अवधारणा दी गई है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| +लूथर गुलिक
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| -एल.डी. व्हाइट
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| -विलोबी
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| -गिलक्राइस्ट
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| ||लोक प्रशासन प्रशासन की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य-क्षेत्र के संबंध में लूथर ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे 'पोस्डकोर्ब' कहा जाता है। पोस्डकोर्ब शब्द, [[अंग्रेज़ी]] के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलाकर बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं-
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| P-Planning (योजना बनाना), O-Organizing (संगठन बनाना), S-Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना), D-Directing (निर्देशन करना), Co-Co-ordination (समंवय करना), R-Reporting (रपट देना), B-Budgeting (बजट तैयार करना।)।
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| {[[कार्ल मार्क्स]] किस देश का रहने वाला था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| -[[जापान]]
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| +[[जर्मनी]]
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| -[[फ़्राँस]]
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| -[[इटली]]
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| ||[[कार्ल मार्क्स]] का जन्म [[5 मई]], 1818 को [[जर्मनी]] के राइन प्रांत के 'ट्रियर' शहर में हुआ था। मार्क्स ने अपने जीवन का अधिकांश समय फ़्राँस और [[ब्रिटेन]] में बिताया। मार्क्स ने काल्पनिक समाजवाद को वैज्ञानिक समाजवाद में रूपांतरित किया। मार्क्स की शिक्षा बॉन और बर्लिन विश्वविद्यालय में हुई जहां वह जी. डब्ल्यू. एफ. हेगेल के चिंतन से बहुत प्रभावित हुआ। बाद में उसने हेगेल की द्वंद्वात्मक पद्धति को लेते हुए तथा फायरबाख से भौतिकवाद को लेते हुए अपने 'द्वंद्वात्मक भौतिकवाद' का निरूपण किया।
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| {निम्न में से कौन प्राचीन भारतीय राजनैतिक चिंतन के सप्तांग सिद्धांत में सम्मिलित नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| +सामंत एवं गुरुकुल
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| -राजा एवं कोष
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| -मित्र एवं बल
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| -मित्र एवं कोष
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| ||[[प्राचीन भारत]] के प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक [[कौटिल्य]] ने राज्य के अंगों की चर्चा करते हुए [[अर्थशास्त्र ग्रन्थ|अर्थशास्त्र]] के छठे अधिकरण में सप्तांग की चर्चा की। राज्य के सप्तांग अर्थात सात अंगों का उल्लेख इस प्रकार है- 1.राजा या स्वामी, 2.अमात्य अथवा मंत्री, 3.जनपद या प्रादेशिक क्षेत्र, 4 दुर्ग या क़िला, 5.राजकोष, 6.दण्ड या सेना, 7.मित्र। अत: सामंत एवं गुरुकुल का उल्लेख इसमें नहीं है।
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| {'अंतर्रष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति तब तक संभव नहीं हैं जब तक नार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-103
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| |type="()"}
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| -के.डब्ल्यू. थाम्पसन
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| +बेनो वासरमैन
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| -रॉबर्ट टकर
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| -क्विंसी राइट
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| ||बेनो वासरमैन के अनुसार, "अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति कब तक संभव नहीं है जब तक मार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है"।
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| {"राजनीति शास्त्र के अध्ययन का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है।" किसने कहा? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| -लीकॉक
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| -सीले
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| +गार्नर
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| -गेटिल
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| ||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" (Political Science begins and ends with the State)। अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है।
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| {हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| +एकाकी, निर्धन, निंदनीय अल्पकालिक था
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| -एकाकी किंतु शांतिपूर्ण था
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| -सामाजिक और सहयोगात्मक किंतु दरिद्र था
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य का जीवन एकाकी, दीन, अपवित्र, निंदनीय, पाशविक तथा अल्पकालिक होता था। इस प्रकार राज्य की अनुपस्थिति में अराजकता थी। *'''अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. हॉब्स बुद्धिवादी हैं, इनका मानना है कि मृत्यु के भय एवं पाशविक प्रतियोगिता के कारण प्राकृतिक अवस्था के मनुष्यों ने आपस में समझौता किया और कहा" मैं इस व्यक्ति अथवा सभा को अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण करता हूं जिससे कि वह हम पर शासन करे परंतु इसी शर्त पर कि आप भी अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण इसे इसी रूप में करें और इसकी आज्ञाओं को मानें।" परिणामस्वरूप जनसमुदाय आपस में संयुक्त होकर राज्य या लेटिन में सिविटास का रूप धारण कर लिया। इस प्रकार हॉब्स ने राज्य के उत्पत्ति का सामाजिक समझौता प्रतिपादित किया। 2. हॉब्स के द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रंथ हैं डी सिवे (De Cive), डी कारपोरे (De Corpore), लेवियाथन (Leviathan) और एलीमेंट्स ऑफ़ ला (Elements of Law)।
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| {अध्यक्षात्मक शासन का सैद्धांतिक आधार है- (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| -शक्तियों का संतुलन
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| +शक्तियों का पृथक्करण
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| -शक्तियों का एकीकरण
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||अध्यक्षात्मक शासन का सैद्धांतिक आधार शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत है जो शासन के विभिन्न अंगों में शक्तियों के वितरण से संबंधित है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य''' - शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का अर्थ यह है कि शासन की शक्तियां, दायित्व एवं नियंत्रण किसी एक व्यक्ति या संस्था के हाथों केंद्रित न रहें, बल्कि वे शासन की विभिन्न शाखाओं में बंटे हों और ये शाखाएं एक दूसरे से स्वाधीन हों।
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| {'राज्य एक आवश्यक बुराई है-' यह कथन किस विचारधारा से संबंधित है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| -अराजकतावाद
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| +व्यक्तिवाद
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| -मार्क्सवाद
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| -श्रमिक-संघवाद
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| ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं।
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| {नाज़ीवाद का जनक कौन था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| -मुसोलिनी
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| +हिटलर
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| -लेनिन
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| -इनमें से कोई नहीं।
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| ||[[जर्मनी]] के नेता एडोल्फ हिटलर ने अपने साम्राज्यवादी, प्रजातिवादी और लोकतंत्र विरोधी कार्यक्रम के पक्ष में जो तर्क प्रस्तुत किए उन्हें 'नाज़ीवाद' की संज्ञा दी गई। नाज़ीवाद को '''फॉसीवाद''' का ही एक प्रसार माना जाता हैं।
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| {[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों की कुल संख्या है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| +5
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| -12
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| -15
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| -7
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| ||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है।
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| {इनमें से किसने 'पोस्डकोर्ब' का सिद्धांत दिया था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| -हेनरी फेयोल
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| +लूथर गुलिक
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| -रेनसिस लाजइर्ट
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| -एफ.डब्ल्यू. टेलर
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| ||लोक प्रशासन प्रशासन की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य-क्षेत्र के संबंध में लूथर ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे 'पोस्डकोर्ब' कहा जाता है। पोस्डकोर्ब शब्द, [[अंग्रेज़ी]] के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलाकर बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- P-Planning (योजना बनाना), O-Organizing (संगठन बनाना), S-Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना), D-Directing (निर्देशन करना), Co-Co-ordination (समंवय करना), R-Reporting (रपट देना), B-Budgeting (बजट तैयार करना।)।
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| {इनमें से किस वर्ग के विचारकों ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वन्द्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| -[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] और मिल
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| -मार्क्स और कांट ने
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| +हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]]
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| -हेगेल और लास्की | |
| ||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है।
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| {राज्य के संबंध में [[गांधी जी]] के विचार इनमें से किसके निकट थे?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| +दार्शनिक अराजकतावादी
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| -सामूहिकतावादी
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| -नैतिक अंतर्निहितवाद
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||राज्य के संबंध में [[गांधी जी]] के विचार दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि गांधी राज्य विरोधी थे। वे मार्क्सवादियों तथा अराजकतावादियों के समान एक राज्यविहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे। वे दार्शनिक, नैतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक कारणों के आधार पर राज्य का विरोध करते थे। अत: उनके सिद्धांत को दार्शनिक अराजकतावाद कहा जाता है।
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| {जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण तथ्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-104
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| |type="()"}
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| +अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का
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| -[[भारत का संविधान|भारत के संविधान]] की उद्देशिका का
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| -सोवियत नागरिकों के अधिकार से संबंध रखने वाले यू.एस.एस.आर. के संविधान का
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| -यूनाइटेड स्टेट्स के संविधान के अधिकार-पत्र का
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| ||[[जुलाई]], 1776 को [[अमेरिका]] की कांटिनेंटल कांग्रेस द्वारा अंग्रीकृत अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र में सभी मनुष्यों को जन्म से समान घोषित करते हुए जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण को उनके जन्म से प्राप्त अहस्तांतरणीय अधिकार घोषित किया गया है।
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| {'राजनीति विज्ञान का प्रारंभ और अंत राज्य से होता है' यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| -[[अरस्तू]]
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| -लीकॉक
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| +गार्नर
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| -ग्रीसस
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| ||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" (Political Science begins and ends with the State)। अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है।
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| {इनमें से किससे लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| -1655 की हिंसक क्रांति
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| -1642 का गृह युद्ध
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| -1650 की स्वर्णिम क्रांति
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| +1688 की स्वर्णिम क्रांति
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| ||1688 की [[इंग्लैंड]] की स्वर्णिम क्रांति से लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई। लॉक ने इनका समर्थन किया जिसके कारण इसे क्रांति का दार्शनिक कहा जाता है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1.लॉक का सबसे प्रमुख ग्रंथ 'Two Treaties on Government है| 2.लॉक अपने विचारों के लिए 'The Laws of Ecclesiastical Polity' के लेखक रिचार्ड हूकर के ऋणी थे। | |
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| {"तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन रामसामयिक राजनीति विज्ञान का हृदय है।" यह किसने कहा? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| +एम. कर्टिस
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| -जी.के. रॉबर्ट्स
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| -जीन ब्लोण्डेल
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| -आर.सी. मैक्रीडिस
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| ||वर्तमान समय में तुलनात्मक राजनीति में विभिन्न देशों की राजनीति व्यवस्थाओं यथा संसदात्मक-अध्यक्षात्मक, संघात्मक-एकात्मक, निर्णय निर्माण प्रक्रिया, शक्ति संरचना तथा शासन प्रणालियों का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा इसमें राजनीतिक विकास, राजनीतिक समाजीकरण, आधुनिकीकरण, सांस्कृतिकरण आदि का भी अध्ययन किया जाता है। इसके महत्त्व को देखते हुए एम. कार्टिस ने लिखा है कि "तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन सम-सामयिक राजनीति विज्ञान का हृदय है।"
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| {निम्नलिखित में से कौन राज्य को "आवश्यक बुराई" मानते है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| +व्यक्तिवादी
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| -अराजकतावादी
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| -आदर्शवादी
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| -समाजवादी
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| ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं।
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| {"अस्थायी अधिनायकवाद के स्थायी और सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना सदा बनी रहती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| +के. सी. व्हीयर
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| -गार्नर
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| -विलियम एण्डूज
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| -बार्कर
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| ||उपरोक्त कथन के. सी. व्हीयर का है। के.सी.व्हीयर पुस्तक माडर्न कांस्टीट्यूशन में चेतावनी देते हुए लिखते हैं कि शासक वर्ग युद्ध या आपात की स्थितियों में शक्ति को अपने हाथों में केंद्रित कर लेते हैं उसे स्थाई बनाकर अत्याचारपूर्ण व्यवस्था में बदल लेते हैं। इसी संदर्भ में इन्होंने लिखा है कि "अस्थाई अधिनायकवाद के स्थाई एवं सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना रहती है।"
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| {सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्य कितनी अवधि के लिए चुने जाते हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-4
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| |type="()"}
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| -1 वर्ष
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| +2 वर्ष
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| -3 वर्ष
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| -5 वर्ष
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| ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है।
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| {लूथर गुलिक ने संगठन के सिद्धांतों को 'POSDCORB' शब्द में अभिव्यक्त किया है इसमें 'CO' का तात्पर्य किससे है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-5
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| |type="()"}
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| -कॉरपोरेशन
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| -कोऑपरेशन
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| +कोआर्डीनेशन
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| -कंपनी
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| ||लोक प्रशासन प्रशासन की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य-क्षेत्र के संबंध में लूथर ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे 'पोस्डकोर्ब' कहा जाता है। पोस्डकोर्ब शब्द, [[अंग्रेज़ी]] के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलाकर बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- P-Planning (योजना बनाना), O-Organizing (संगठन बनाना), S-Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना), D-Directing (निर्देशन करना), Co-Co-ordination (समंवय करना), R-Reporting (रपट देना), B-Budgeting (बजट तैयार करना।)।
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| {निम्नलिखित विचारों में से [[कार्ल मार्क्स]] ने हीगल से कौन-सा विचार लिया था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-5
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| |type="()"} | |
| -वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत
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| -अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
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| +द्वंद्वात्मक पद्धति
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक क्रिया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा की तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है।
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| {[[1936]] किसने कहा "गांधीवाद जैसी कोई चीज़ नहीं है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-5
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| |type="()"}
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| +[[महात्मा गांधी]] | |
| -[[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]]
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| -[[जवाहर लाल नेहरु]]
| |
| -[[रविन्द्रनाथ टैगोर]]
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| ||[[गांधी जी]] की शिक्षाओं को अक्सर 'गांधीवाद' के नाम से संबोधित किया गया परंतु इस शब्द से उन्हें स्वयं आपत्ति थी, महात्मा गांधी का कहना था कि गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है और मैं अपने बाद कोई संप्रदाय छोड़ना नहीं चाहता। मैं कभी इस बात का दावा नहीं करता कि मैंने कोई नया सिद्धान्त चलाया..... आप लोग इसे गांधीवाद न कहें, इसमें वाद जैसा कुछ भी नहीं है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. गांधी-इर्विन समझौते के बाद एक सार्वजनिक सभा में गांधी जी ने अपने वक्तव्य में कहा था- "गांधी मर सकता है परंतु गांधीवाद सदा जीवित रहेगा।" 2. गांधी जी ने अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन मुख्य रूप से अपनी दो पुस्तकों 'हिंद स्वराज' तथा अपनी आत्मकथा 'मेरे सत्य के प्रयोग' में किया। 3. गांधी जी की रचनाएं- शांति और युद्ध में अहिंसा, नैतिक धर्म, सत्याग्रह, सत्य ही ईश्वर है. सर्वोदय आदि हैं। इसके अतिरिक्त गांधी जी ने [[दक्षिण अफ़्रीका]] में इंडियन ओपिनियन नामक साप्ताहिक पत्र तथा [[भारत]] में यंग इंडिया, हरिजन सेवक, हतिजन बंधु आदि पत्रों का संपादन किया।
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| {"एक व्यवस्थापिका जो [[मंत्रिपरिषद]] के समक्ष निर्बल है तथा एक मंत्रिपरिषद जो [[राष्ट्रपति]] के समक्ष निर्बल है" किस देश की शासन व्यवस्था की विशेषता दर्शाता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-105
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| |type="()"} | |
| +[[फ़्राँस]]
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| -[[जर्मनी]]
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| -[[भारत]]
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| -[[श्रीलंका]]
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| ||उपरोक्त शासन व्यवस्था [[फ्रांस]] की शासन व्यवस्था की विशेषता है। क्योंकि फ्रांस के पंचम गणतंत्र के संविधान में शासन प्रणाली को अपनाया गया है। किंतु यह अर्द्ध संसदीय शासन प्रणाली ही है। इसमें मंत्रिमण्डल संसद के सम्मुख पूर्ण उत्तरदायी नहीं है। [[प्रधानमंत्री]] का चुनाव [[राष्ट्रपति]] करता है जिसको साधारण शक्तियों के साथ-साथ अनेक असाधरण शक्तियां प्राप्त है। यह केवल नाम मात्र का राज्याध्यक्ष नहीं है। कई मामलों में यह अमेरिकी राष्ट्रपति के समान है। यदि [[संसद]] मंत्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास पास करता है तब भी मंत्रिमण्डल चल सकता है क्योंकि उसका उत्तरदायित्व राष्ट्रपति के प्रति है संसद के प्रति नहीं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर अभियोग भी नहीं चलाया जा सकता। इसीलिए पिकिल्स ने इसे "दो विरोधी सिद्धांतों का मिश्रण कहा है।" | |
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| {"राजनीति विज्ञान के अंतर्गत [[राज्य]] तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है", राजनीति विज्ञान की यह परिभाषा किस विचारक ने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-5
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| |type="()"}
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| -गार्नर
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| -सीले
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| -गेटिल
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| +गिलक्राइस्ट
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| ||राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य और सरकार दोनों की ही अध्ययन किया जाता है राज्य के बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि सरकार राज्य के द्वारा [[राज्य]] के द्वारा प्रदत्त प्रभुत्व शक्ति का प्रयोग करती है और सरकार के बिना राज्य तो एक अमूर्त कल्पना मात्र है। गिलक्राइस्ट ने इसी को परिभाषित करते हुए लिखा है कि 'राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता है। पॉल जैनेट ने भी संदर्भ में लिखा है कि "राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह अंग है जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है।
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| {"सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह इच्छा है, सामान्य नहीं है तथा जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं"। यह किसने कहा है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-5
| |
| |type="()"}
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| -बोसांके
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| -सर हेनरी मेन
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| -एम.पी. फोलेट
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| +हॉबहाउस
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| ||रुसो के सामान्य इच्छा को अस्पष्ट एवं अव्यावहरिक बताते हुए एल.टी. हाबहाउस ने टिप्पणी की है कि "सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं है और जहां तक यह इच्छा है, यह सामान्य नहीं है।" अर्थात यह या तो सामान्य है या इच्छा, यह दोनों नहीं हो सकती। वाहन ने भी रुसो पर अधिनायकवाद के पोषण का आरोप लगाते हुए कहा है कि "रुसो ने अपनी समष्टिवादी विचारधारा व्यक्ति को शून्य बना दिया है।"
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| {तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में पारंपरिक उपागमों में अपेक्षा हुई: (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-5
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| |type="()"}
| |
| -सरकारों के अध्ययन की
| |
| +आनुभविक अनुसंधानों की
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| -संस्थाओं के वर्णन की
| |
| -संविधानों की तुलना की
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| ||तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में पारंपरिक उपागमों में आधुनिक तथ्यों पर जोर नहीं दिया गया और तथ्यों के सुनिश्चित परिमाणन का अभाव ही रहा। पारंपरिक उपागम में सरकारों का अध्ययन, संस्थाओं के वर्णन तथा संविधानों की तुलना पर बल दिया गया है।
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| {व्यक्तिवादी विचारक [[राज्य]] को अनिवार्य बुराई और अराजकतावादी विचारक राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। यह वक्तव्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-5
| |
| |type="()"}
| |
| +प्रमुखत: सत्य
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| -प्रमुखत: असत्य
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| -अर्थहीन
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हॅयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं।
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| {निम्नलिखित में से कौन फॉसीवाद की विशेषता नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-5
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| |type="()"}
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| -फॉसीवाद एक सर्वशक्तिसंपन्न [[राज्य]] का समर्थन करता है।
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| -इसमें जातीय सर्वोच्चता पर बल दिया जाता है।
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| -यह महामानव पूजा और विशेष वर्ग में विश्वास करता है।
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| +यह अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों में पूरी निष्ठा रखता है।
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| ||फॉसीवाद अंतर्राष्ट्रीय एवं शांति का विरोधी है। अत: यह अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों में निष्ठा नहीं रखता। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- फॉसीवादी चिंतन की विशेषताएं हैं:- यह विचारधारा का विरोधी है एवं इसका कोई क्रमबद्ध नहीं है। यह कार्य प्रधान आंदोलन है एवं व्यवहारिक है।, यह सर्वाधिकारवादी अवधारणा है एवं राज्य को सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान संस्था मानती है।, यह समाजवाद एवं साम्यवाद विरोधी है। यह तर्क एवं बुद्धि विरोधी है।, यह महामानव पूजा तथा विशिष्ट वर्ग में विश्वास करती है।, यह लोकतंत्र विरोधी है।, यह हिंसा एवं युद्ध का समर्थक है।, यह उग्र राष्ट्रवाद का समर्थक है।, यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता विरोधी है।, यह क्रांति विरोधी विचारधारा है।, यह व्यक्तिवाद एवं उदारवाद विरोधी है। यह अर्थव्यवस्था पर राज्य नियंत्रण का समर्थन है। और यह अंतर्राष्ट्रीय एवं शांति का विरोधी है।
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| {'[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद' की कुल सदस्य संख्या कितनी है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-5
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| |type="()"}
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| +15
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| -5
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| -11
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| -13
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| ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | |
| | |
| {'POSDCORB' दृष्टिकोण की आलोचना निम्न में से किसने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -हेनरी फियोल
| |
| +लेविस मेरियम
| |
| -उर्विक
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| -उपरोक्त सभी
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| ||लेविस मेरियम के अनुसार "पोस्डकोर्ब" सिद्धांत अत्यंत स्वेच्छाचारी, काल्पनिक एवं संकुचित है जिसमें प्रशासन के वास्तविक तत्त्वों को कोई स्थान नहीं दिया गया है। इस सूत्र में पाठ्य-विषय के ज्ञान के तत्त्व को गौण माना गया है।"
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| {[[कार्ल मार्क्स]] ने द्बंद्व का सिद्धांत किससे लिया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-6
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| |type="()"}
| |
| -एंजिल्स
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| +हेगेल
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| -आवेन
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| -रिकार्डो
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| ||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा की तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है।
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| {[[जयप्रकाश नारायण]] के किस विचार से [[भारत]] में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और [[आपात काल]] लागू हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| +समग्र क्रांति
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| -चौखंभा-राज्य
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| -सर्वोदय-अंत्योदय
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| -भूदान-जीवनदान
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| ||[[जयप्रकाश नारायण]] भारतीय समाजवाद के अग्रणी प्रवक्ता थे। इन्होंने अपना विचार अपनी पुस्तक, 'Why Socialism' (व्हाई सोशलिज्म) तथा 'टूवार्ड्स स्ट्रगल' में व्यक्त किया है। इनके अनुसार सोवियत संघ में भ्रष्ट समाजवाद ने सभी राजनीतिक तथा आर्थिक शक्ति एक ही जगह केंद्रित कर दी है। वहां समाजवाद के नाम पर सर्वाधिकारवाद पनप गया है। इसलिए इन्होंने [[भारत]] में लोकतांत्रिक समाजवाद को सार्थक बनाने के लिए आर्थिक शक्ति के समय के समय में इन्होंने 'समग्र क्रांति' आंदोलन चलाया। जिससे भयभीत होकर सरकार को [[आपात काल]] लागू करना पड़ा।
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| {जैरीमेंडरिंग की प्रथा किस देश में प्रचलित है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-106
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| |type="()"}
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| -[[इंग्लैंड]]
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| -[[फ़्राँस]]
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| -[[चीन]]
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| +[[संयुक्त राज्य अमेरिका]]
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| ||जैरीमेंडरिंग [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] की प्रतिनिधि सभा के गठन से संबंधित एक प्रथा है। इस प्रथा का प्रयोग चुनाव में कूटनीति के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने हेतु किया जाता है।
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| {निम्न में से कौन-सा समुच्चय राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र को परिभाषित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -[[राज्य]], सरकार, विधियां, प्रथाएं और [[संस्कृति]]
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| -संप्रभुता, सरकार, बाज़ार, राजनीतिक दल और सामाजिक वर्ग
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| -[[राज्य]], सरकार, विधियां, सभ्य समाज और राजनीतिक दल
| |
| +राज्य, मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण और राजनीतिक दल
| |
| ||राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र [[राज्य]], मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण, राजनीतिक दल, शक्ति, संघर्षों और सहमति का अध्ययन है। आधुनिक सिद्धांत के अनुसार, राजनीति विज्ञान संस्थाओं एवं राजनीति का अध्ययन है।
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| {प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत किसका एक भाग है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत
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| -दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत
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| -शक्ति सिद्धांत
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| +सामाजिक समझौता सिद्धांत
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| ||प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत सामाजिक समझौता सिद्धांत का भाग है। इस सिद्धांत के प्रबल समर्थक हॉब्स, लॉक तथा रूसो हैं। इनके अनुसार राज्य लोगों के द्वारा किए गए समझौते (सामाजिक समझौते) का फल है। समझौता करने से पूर्व लोग प्राकृतिक अवस्था में रहते थे। प्राकृतिक अवस्था के दौरान लोगों के पास प्राकृतिक अधिकार थे। लॉक ने तीन प्राकृतिक अधिकारों का वर्णन किया है जिनमें जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति सम्मिलित है। हॉब्स ने आत्मरक्षा के अधिकार को वरीयता दी है।
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| {सरकार का व्यवस्थित वर्गीकरण सर्वप्रथम किसके द्वारा प्रस्तुत किया गया था? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -[[प्लेटो]]
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| +[[अरस्तू]]
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| -मैकियावेली
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| -मॉन्टेस्क्यू
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| ||सरकार का व्यवस्थित वर्गीकरण सर्वप्रथम [[अरस्तू]] द्वारा प्रस्तुत किया गया था। अरस्तू की वर्गीकरण का आधार यह था कि क्या किसी देश में सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में रहती है, गिने-चुने लोगों या फिर बहुत सारे व्यक्तियों के हाथ में रहती है अरस्तू का ध्येय इस वर्गीकरण के आधार पर 'आदर्श शासन-प्रणाली' की रूपरेखा प्रस्तुत करना था। यद्यपि अरस्तू से पूर्व [[प्लेटो]] ने अपने पुस्तक 'पॉलिटिक्स' या 'स्टेट्समैन' में राजनीतिक व्यवस्थाओं का वर्गीकरण का श्रेय दिया जाता है।
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| {निम्न में से कौन एक व्यक्तिवाद का समर्थक नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -ग्राहम वालास
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| -हेयक
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| +जी.डी.एच. कोल
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| -मिल
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| ||लॉक, बेंथम, [[एडम स्मिथ]], [[हर्बर्ट स्पेंसर]], ग्राहम वालास, एफ.ए.हॅयक, आइजिया बर्लिन, रॉबर्ट नाजिक, मिल्टन फ्रीडमैन, नार्मन एंजल, मिस फालेट इत्यादि व्यक्तिवादी विचारक हैं जबकि जी.डी.एच. कोल श्रेणी समाजवादी विचारक हैं। ए.जे.पेंटी, ए.आर. ऑरेज, एस.जी. हाब्सन अन्य श्रेणी समाजवादी विचारक हैं।
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| {फॉसीवाद निम्नलिखित में से किसको महिमामंडित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -हिंसा
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| -युद्ध
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| -नेता
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| +उपर्युक्त सभी
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| ||फॉसीवाद हिंसा, युद्ध एवं नेता को महिमामंडित करता है।
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| {निम्नांकित में कौन-सा देश [[संयुक्त राष्ट्र]] की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| +[[भारत]]
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| -[[अमेरिका]]
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| -[[सोवियत संघ]]
| |
| -[[ब्रिटेन]]
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| ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है।
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| {ओ. और एम. किससे संबंधित हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| +संगठन और पद्धति
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| -ओम
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| -संगठन और प्रबंध
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| -संगठन और कार्यालय का स्त्रोत
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| ||ओ. तथा एम. (O and M) [[अंग्रेज़ी भाषा]] में आर्गेनाइजेशन एण्ड मेथड्स का संक्षिप्ताक्षर है। इसे [[हिंदी]] के संगठन एवं प्रणाली अथवा पद्धति कहते हैं। [[भारत]] तथा [[ब्रिटेन]] में O & M का यही अर्थ लिया जाता है। जबकि [[अमेरिका]] में कभी-कभी इसे विस्तृत अर्थ में लिया जाता है। वहां इसे 'संगठन तथा प्रबंध' के रूप में लिया जाता है। भारत में केंद्रीय O & M डिवीजन [[1954]] में स्थापित की गई और इसको मंत्रिमंडलीय सचिवालय में स्थान दिया गया। इस समय प्रशासनिक सुधार तथा लोक शिकायत विभाग प्रशासनिक सुधारों तथा संगठन एवं प्रणाली के लिए [[भारत सरकार]] की नोडल एजेंसी है।
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| {निम्न में से कौन-सा कथन [[कार्ल मार्क्स]] के दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -[[राज्य]] का सकारात्मक अच्छाई है।
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| -राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतरण है।
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| +[[राज्य]] शोषण का एक साधन है।
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| -राज्य एक आवश्यक बुराई है।
| |
| ||[[कार्ल मार्क्स]] के अनुसार, [[राज्य]] का उदय वर्ग विभेद के कारण हुआ और राज्य संस्था सदैव ही शोषक वर्ग के सहायक के रूप में कार्य करती रही है। पूंजीवादी युग में राज्य संस्था पर पूंजीपति वर्ग का आधिपत्य है और पूंजीपति वर्ग राज्य संस्था की सहायता से श्रमिक वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार, "राज्य केवल एक यंत्र है जिसकी सहायता से एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है।"
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| {'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -[[विवेकानंद|स्वामी विवेकानंद]]
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| -[[जवाहरलाल नेहरू]]
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| -[[दादाभाई नौरोजी]]
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| +[[महात्मा गांधी]]
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| ||'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन [[गांधी]] के द्वारा किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार पूंजीपतियों द्वारा स्वयं को अपनी संपत्ति का स्वामी न मानकर संरक्षक मानना चाहिए। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. गांधी के अनुसार धनी व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक ज़मीन, जायदाद, कारख़ाने आदि का स्वामी न समझे अपितु इसे समाज की धरोहर माने। इसका प्रयोग अपने लाभ के लिए न कर समाज के कल्याण के लिए करें। 2. गांधी का यह सिद्धान्त अपरिग्रह के विचार पर आधारित है। अपरिग्रह का अर्थ है कि मनुष्य को अपने जीवन की आवश्यकताओं से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करना चाहिए।
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| {'स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व' नारा है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-107
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| |type="()"}
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| -अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का
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| -आयरलैंड के संविधान की उद्देशिका का
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| -संयुक्त राज्य संघ के मानव अधिकार घोषणा-पत्र का
| |
| +1798 की फ्रांसीसी क्रांति के घोषणा-पत्र का
| |
| ||वर्ष 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के घोषणा-पत्र का शीर्षक 'मानव और नागरिक के अधिकारों की घोषणा' है और इसका नारा 'स्वतंत्रत, समानता और बंधुत्व' है।
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| {नागरिक शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय क्या है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| +नागरिकता
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| -पंचायती राज
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| -[[राज्य]]
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| -नगर निगम
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| ||नागरिक शास्त्र, नागरिक, नागरिक जीवन एवं नागरिक संस्थाओं का अध्ययन है। नागरिक शास्त्र के अंतर्गत मुख्यत: नागरिकता का अध्ययन किया जाता है।
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| {निम्न में से कौन सामाजिक संविदा के सिद्धांत से संबद्ध है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -ऑस्टिन
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| +लॉक
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| -जे.एस. मिल
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| -[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]]
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| ||प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत सामाजिक समझौता सिद्धांत का भाग है। इस सिद्धांत के प्रबल समर्थक हॉब्स, लॉक तथा रूसो हैं। इनके अनुसार राज्य लोगों के द्वारा किए गए समझौते (सामाजिक समझौते) का फल है। समझौता करने से पूर्व लोग प्राकृतिक अवस्था में रहते थे। प्राकृतिक अवस्था के दौरान लोगों के पास प्राकृतिक अधिकार थे। लॉक ने तीन प्राकृतिक अधिकारों का वर्णन किया है जिनमें जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति सम्मिलित है। हॉब्स ने आत्मरक्षा के अधिकार को वरीयता दी है।
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| {निम्नलिखित वक्तव्यों में से कौन-सा संवैधानिक सरकार की प्रकृति को ठीक प्रकार स्पष्ट करता है? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-93 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -सीमित शासन
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| -व्यक्तियों के स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा
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| -व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा
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| +उपर्युक्त सभी
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| ||संवैधानिक सरकार के प्रमुख लक्षण-सीमित शासन, स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा, व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा, संपत्ति का अधिकार, अनुबंध की स्वतंत्रता एवं क़ानूनों का समान संरक्षण आदि है।
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| {'वैज्ञानिक व्यक्तिवाद' की अवधारणा को किसने विकसित किया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -[[एडम स्मिथ]]
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| -बेंथम
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| -जे.एस. मिल
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| +[[हर्बर्ट स्पेंसर]]
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| ||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1930]]) उन्नीसवीं शताब्दी का ब्रिटिश दार्शनिक और सामाजिक सिद्धांतकार था। इसके वैज्ञानिक आधार पर व्यक्तिवाद को स्थापित किया। स्पेंसर के चिंतन को सामाजिक डार्विनवाद की मुख्य अभिव्यक्ति माना जाता है। इसने प्राकृतिक विज्ञानों के नियमों को समाजिक विज्ञान के क्षेत्र में लागू किया। इसने प्राकृतिक चयन के नियम को सामाजिक प्रगति की प्रक्रिया पर लागू करते हुए यह तर्क दिया कि कम योग्य व्यक्तियों को अधिक योग्य व्यक्तियों के हित में बलिदान कर लेना चाहिए। राज्य को अयोग्य व्यक्ति को संरक्षण देने की आवश्यकता नहीं है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. स्पेंसर ने सब तरह के कल्याण कार्यक्रमों का खंडन किया। 2. इसने मताधिकार के विस्तार का विरोध किया। 3. स्पेंसर ने आशा व्यक्त की कि कालान्तर में बाज़ार समाज को इतना विनियमित (Regulste) कर देगा कि राज्य का अस्तित्व निरर्थक हो जाएगा। 4. इनकी प्रमुख कृति Social Statics, Princciples of Socilogy तथा Man Verses State हैं।
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| {फॉसीवाद निम्नलिखित में से किस एक सिद्धांत का समर्थन नहीं करता? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -समाज की निगमवादी समझ
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| -प्रजातीय की तानाशाही
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| +सर्वहारा की तानाशाही
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| -आज्ञापालन तथा अनुशासन
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| ||फॉसीवाद, साम्यवाद एवं समाजवाद का विरोधी है, अत: यह सर्वहारा की तानाशाही का समर्थन नहीं करता है।
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| {[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की महासभा की बैठकें होती हैं- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| +एक वर्ष में एक बार
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| -एक वर्ष में दो बार
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| -दो वर्ष में एक बार
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| -तीन वर्ष में एक बार
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| ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के महासभा का अधिवेशन (बैठक) वर्ष में कम-से-कम एक बार अवश्य बुलाया जाता है, जो सामान्यत: [[सितंबर|सितंबर माह]] में [[न्यूयॉर्क नगर|न्यूयॉर्क]] में आयोजित होता है। असामान्य परिस्थितियों में महासचिव द्वारा चौबीस घंटे के भीतर इसकी बैठक बुलाई जा सकती है।
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| {लोक प्रशासन को अध्ययन विषय के रूप में प्रारंभ करने का श्रेय किसे प्राप्त है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -एल.डी. व्हाइट
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| -विलोबी
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| -मेरी पार्कर फोले
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| +वुडरो विल्सन
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| ||एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में सन् [[1887]] में हुआ। वुडरो विल्सन, जो उस समय प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक थे, लोक प्रशासन के जनक माने जाते हैं। इन्होंने अपने लेख 'प्रशासन का अध्ययन' (The Study of Administration) [[1887]] में राजनीति व प्रशासन को अलग-अलग बताया। वुडरो विल्सन एक तो लोक प्रशासन के पृथक्करण में विश्वास रखते हैं। वुडरो विल्सन [[अमेरिका]] के पूर्व [[राष्ट्रपति]] भी रहे हैं।
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| {निम्नलिखित में से कौन-सा मार्क्सवाद से संबंधित नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
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| -वर्ग संघर्ष
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| -अतिरिक्त मूल्य
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| +यस्मात्यम
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| ||यद्मात्यम् (Laissez Faiire) की नीति का संबंध उदारवाद से है जबकि अन्य सभी सिद्धांतों का संबंध मार्क्सवाद से हैं। '''*मार्क्सवाद की आधारभूत मान्यताएं निम्न हैं'''-
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| द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद, वर्ग संघर्ष का सिद्धांत, अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत, वर्ग चेतना की अवधारणा और क्रांति का सिद्धांत।
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| {किसको [[भारत]] में अशांति का अग्रदूत कहा गया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| +[[बाल गंगाधर तिलक]]
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| -[[फ़िरोजशाह मेहता]]
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| -[[डब्लू सी बनर्जी]]
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| -[[लाला लाजपत राय]]
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| ||प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी [[बाल गंगाधर तिलक]] को 'भारत में अशांति का अग्रदूत' कहा गया है। बेलेंटाइन शिरोल ने उन्हें 'भारतीय अशांति का जनक' कहा है।
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| {किस देश की न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-108
| |
| |type="()"}
| |
| -[[इंग्लैंड]]
| |
| -[[भारत]]
| |
| +[[रूस]]
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| -[[अमेरिका]]
| |
| ||साम्यवादी दल तथा उसकी विचारधारा के साथ संबद्ध रहने के कारण सोवियत संघ ([[रूस]]) में न्यायाधीशों की विचारधारा स्वतंत्र नहीं थी। अत: रूस की न्यायपालिका को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता।
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| {निम्न में से कौन 'राजनीतिक शास्त्र' के जनक कहे जाते हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -[[सुकरात]]
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| +[[अरस्तू]]
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| -[[चाणक्य]]
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| -[[कार्ल मार्क्स]]
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| ||[[अरस्तू]] राजनीति शास्त्र के जनक माने जाते हैं। अरस्तू ने ही राजनीति शास्त्र को व्यवस्थित अध्ययन विषय के रूप में नीति शास्त्र से अलग किया। अरस्तू ने राजनीति को सर्वोच्च विज्ञान की संज्ञा दी।
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| {निम्न सिद्धांतों में किसके अनुसार राज्य की स्थापना जनता की इच्छा से हुई? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -शक्ति सिद्धांत
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| -दैवी सिद्धांत
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| +सामाजिक समझौते के सिद्धांत
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत सामाजिक समझौता सिद्धांत का भाग है। इस सिद्धांत के प्रबल समर्थक हॉब्स, लॉक तथा रूसो हैं। इनके अनुसार राज्य लोगों के द्वारा किए गए समझौते (सामाजिक समझौते) का फल है। समझौता करने से पूर्व लोग प्राकृतिक अवस्था में रहते थे। प्राकृतिक अवस्था के दौरान लोगों के पास प्राकृतिक अधिकार थे। लॉक ने तीन प्राकृतिक अधिकारों का वर्णन किया है जिनमें जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति सम्मिलित है। हॉब्स ने आत्मरक्षा के अधिकार को वरीयता दी है।
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| {कौन-सी समस्या तुलनात्मक राजनीति की समस्या नहीं है? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-93 प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -परिवृत्य
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| +धार्मिक मतभेद
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| -वैचारिक संरचना
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| -भाषा और संस्कृति की विविधता
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| ||तुलनात्मक राजनीति की प्रमुख समस्याएं हैं- प्रत्ययों की रचना एवं परिभाषा, अमूर्तीकरण के स्तर एवं वर्गीकरण, तथ्य एकत्रीकरण, मानकों-संस्थाओं व व्यवहार में अत: संबंध की समस्या और पृष्ठभूमि परिवृर्त्यों की समस्या। प्रश्न में दी गई समस्याएं इन्हीं मुख्य समस्याओं की उप-समस्याएं हैं जिनमें से धार्मिक मतभेद की समस्या तुलनात्मक राजनीति की समस्या नहीं है।
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| {आर्थिक क्षेत्र में व्यक्तिवाद का महान समर्थक कौन है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-32 प्रश्न-8
| |
| |type="()"}
| |
| -बेंथम
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| -[[हरबर्ट स्पेंसर]]
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| -लास्की
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| +[[एडम स्मिथ]]
| |
| ||आर्थिक क्षेत्र में व्यक्तिवाद को [[एडम स्मिथ]] ने अपनी कृति "वैल्थ ऑफ़ नेशंस" के द्वारा स्थापित किया। उन्हें [[अर्थशास्त्र]] का जनक भी माना जाता है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- आर्थिक क्षेत्र में अहस्तक्षेप के सिद्धांत का समर्थन करते हुए इन्होंने तर्क दिया कि यदि बाज़ार व्यवस्था को कोई हस्तक्षेप न किया जाए तो उसमें संतुलन की स्वाभाविक प्रवृत्ति दिखाई देगी। 2. इससे पूंजीपति के लाभ के साथ-साथ आम खुशहाली में वृद्धि होगी। 3.इनके अनुसार सरकार के मुख्यत: दो कार्य है (a) राज्य की रक्षा, (b) न्याय प्रशासन। 3.इनके अनुसार जब सरकार समाज के भीतर किसी विशेष श्रेणी या समुदाय को विशेषाधिकार प्रदान करके आर्थिक जीवन के विनियम का प्रयत्न करती है तब वह न केवल अन्याय और अत्याचार को बढ़ावा देती है बल्कि आर्थिक इष्टसिद्धि में भी बाधा डालती है।
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| | |
| {फॉसीवाद के 'फॉसीस' शब्द का क्या अर्थ है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-8
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| |type="()"}
| |
| +प्राचीन रोम के अधिकारियों की शक्ति के प्रतीक के रूप में डंडों का समूह
| |
| -पोप का मुकुट
| |
| -पवित्र रोमन सम्राट की बाइबिल
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| -[[रोम]] के मुख्य चर्च की घंटी
| |
| ||फॉसीवाद के 'फॉसीस' शब्द का अर्थ प्राचीन रोम के दंडाधीशों (Magic-trates) की शक्ति के प्रतीक के रूप में डंडों का समूह है। इसे सार्वजनिक सेवक उठाकर चलते थे। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1.[[अंग्रेज़ी]] के 'फासिज्म' (Fascism) शब्द की उत्पत्ति इतालवी शब्द फासियो (Fascio) से हुई है, जिसका अर्थ है 'डंडों का गट्ठर जो कुल्हाड़े की मूठ के चारों ओर लाल फीते से बंधा होता है। 2.प्रथम विश्वयुद्ध ([[1914]]-[[1919]]) के दौरान यह डंड समूह [[इटली]] के हित में जीने-मरने वाले लोगों के संगठन का सूचक था। 3.फासियो की स्थापना मुसोलिनी के नेतृत्व में वर्ष [[1915]] में मिलान शहर में की गई थी। 4.साम्यवाद से लड़ने के लिए इसका पुनर्गठन वर्ष [[1919]] में किया गया।
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| {[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] का कौन-सा विशिष्ट अभिकरण नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-8
| |
| |type="()"}
| |
| -[[विश्व स्वास्थ्य संगठन]] (W.H.O.)
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| -अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.)
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| +अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.)
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| -अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक विकास संगठन (U.N.I.D.O.)
| |
| ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं।
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| | |
| {लोक प्रशासन का संबंध किससे है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-9
| |
| |type="()"}
| |
| -[[राजनीतिशास्त्र |राजनीति]]
| |
| -[[अर्थशास्त्र]]
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| -[[मनोविज्ञान]]
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| +इनमें से कोई नहीं
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| ||[[1970]] के बाद लोक प्रशासन का अंतर्विषयक दृष्टिकोण उभर कर आया। [[राजनीतिशास्त्र]], [[अर्थशास्त्र]], [[मनोविज्ञान]], समाजशास्त्र, प्रबंधशास्त्र के साथ लोक प्रशासन के गहरे संबंध स्थापित हुए। अब प्रशासन की गतिशीलता तथा तत्कालीन मुद्दों पर विशेष रूप से विचार किया जा रहा है।
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| {किसने कहा 'सर्वहारा की तानाशाही [[कार्ल मार्क्स]] के सिद्धांत का सार है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-9
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| -ऐंजिल्स
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| +लेनिन
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| -स्टालिन
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| -लास्की
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| ||लेनिन ने 'सर्वहारा की तानाशाही या अधिनायकवाद को मार्क्सवाद का सार' माना है। लेनिन के अनुसार, समाजवादी क्रांति से सर्वहारा का अधिनायकत्व स्थापित होगा। यह व्यवस्था उत्पादन के प्रमुख साधनों को सामाजिक स्वामित्व में रखेगी और अपनी सारी शक्ति तथा राज्य के सब संसाधनों का प्रयोग इस तरह करेगी जिससे पूंजीवाद के अवशेषों को मिटाया जा सके, प्रतिक्रांतिकारी शक्तियों को कुचला जा सके और सभी स्वस्थ व्यक्तियों के लिए श्रम की अनिवार्यता बनाकर प्रौद्योगिकी को इतना उन्नत किया जा सके कि श्रम की उत्पादन क्षमता को उच्चतम स्तर तक पहुंचाया जा सके।
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| {[[कांग्रेस]] के किस अधिवेशन में [[जवाहरलाल नेहरू]] की प्रेरणा से समाज के समाजवादी ढांचे का प्रस्ताव पारित हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -नागपुर अधिवेशन, [[1942]]
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| -रामपुर अधिवेशन, [[1962]]
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| -हरिपुरा अधिवेशन, [[1960]]
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| +अवाडी अधिवेशन, [[1955]]
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| ||[[कांग्रेस]] के अवाडी अधिवेशन, [[1955]] में [[जवाहरलाल नेहरू]] की प्रेरणा से समाज के समाजवादी ढांचे का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू थे।
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| {'स्वतंत्र नियामकीय आयोग' का आविर्भाव कहाँ हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-109
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| |type="()"}
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| -[[जापान]]
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| -[[जर्मनी]]
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| +[[अमेरिका]]
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| -[[इंग्लैंड]]
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| ||'स्वतंत्र नियामकीय आयोगों' का आविर्भाव [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में हुआ। इन्हें 'सरकार की शीर्षकविहीन चौथी शाखा' भी कहा कहा गया है।
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| {'[[राजनीतिशास्त्र]] का पिता' किसे कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -गार्नर
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| -ग्रीन
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| +[[अरस्तू]]
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| -[[प्लेटो]]
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| ||[[अरस्तू]] [[राजनीतिशास्त्र|राजनीति शास्त्र]] के जनक माने जाते हैं। अरस्तू ने ही राजनीति शास्त्र को व्यवस्थित अध्ययन विषय के रूप में नीति शास्त्र से अलग किया। अरस्तू ने राजनीति को सर्वोच्च विज्ञान की संज्ञा दी।
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| {सामाजिक संविदा सिद्धांत के अनुसार-(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -[[राज्य]] एक नैतिक संस्था है।
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| +राज्य एक मानवकृत संस्था है।
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| -राज्य प्राकृतिक एवं आवश्यक है।
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| -[[राज्य]] के प्रकृति सावयवी है।
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| ||सामाजिक संविदा सिद्धांत के अनुसार, राज्य एक मानवकृत संस्था है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1.सामाजिक संविदा सिद्धांत में यह कल्पना की गई है कि राज्य का निर्माण सब मनुष्यों ने मिलकर सबके हितों की पूर्ति हेतु किया है। यह सिद्धांत उदारवाद एवं यंत्रीय सिद्धांत के साथ निकट से जुड़ा है। 2.इस सिद्धांत के प्रमुख समर्थक थामस हॉब्स, जान लॉक एवं रूसो हैं।
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| {राजनीतिक विकास का साधन है: (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-93 प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -राजनीतिक दल
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| -क्रांतिकारी नेता
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| -राष्ट्रीयता की भावना
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| +उपर्युक्त सभी
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| ||राजनीति दल, क्रांतिकारी नेता एवं राष्ट्रीयता की भावना राजनीतिक विकास का साधन है।
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| {निम्नलिखित में से कौन आधुनिक व्यक्तिवाद का प्रणेता माना जाता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-32 प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| +ग्राहम वालास
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| -लास्की
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| -लीकाक
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| -हॉब्स
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| ||आधुनिक व्यक्तिवाद व्यक्ति के स्थान पर समूह या संवासों की सर्वोपरिता में आस्था रखता है। आधुनिक व्यक्तिवाद सत्ता के विकेंद्रीकरण और राज्य की शक्तियों एवं कार्य-क्षेत्र में नियंत्रण का पक्षधर है। ग्राहम वालास, नार्मन एंजल, वेलॉक तथा मिस फालेट आधुनिक व्यक्तिवाद के प्रमुख समर्थक हैं। इनकी प्रमुख कृतियां हैं, ग्राहम वालास (ग्रेट सोसाइटी, Great Society), नार्मल एंजल (दि ग्रेट इल्यूजन, The Geart Illusion), बेलॉक (दि सरवाइल स्टेट, The servile State), मिस फॉलेट (दि न्यू स्टेटे The New State)।
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| {फॉसीवाद का जन्म कहाँ हुआ था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -[[ब्रिटेन]]
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| +[[इटली]]
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| -[[जर्मनी]]
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| -[[रूस]]
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| ||फॉसीवाद का जन्म प्रथम विश्व युद्ध के दौरान [[इटली]] में हुआ जब मुसोलिनी के नेतृत्य में वर्ष [[1915]] में मिलान में पहले 'फासियो' की स्थापना की गई।
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| {[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के कुल कितने मुख्य अंग हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -7
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| -5
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| +6
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| -8
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| ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं।
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| {लोक प्रशासन में 'लोक' शब्द का तात्पर्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| +जनता
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| -समाज
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| -कार्यपालिका
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| -सरकार
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| ||लोक प्रशासन में 'लोक' शब्द 'सार्वजनिकता' का सूचक है तथा यह आम जनता के लिए प्रशासन के द्वार खोलता है अर्थात जो प्रशासन आम लोगों के लिए हो, वह लोक प्रशासन है।
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| {[[राज्य]] के सावयविक होने पर किस वर्ष वर्ग का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| +आदर्शवादियों
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| -समाजवादियों
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| -सम्विदावादियों
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| -धर्मतांत्रियों
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| ||राज्य के सावयविक होने पर आदर्शवादियों का विश्वास था। आदर्शवाद के समर्थक कांट, हेगल, वोसांकी आदि।
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| {'द्वितत्त्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन किया गया था- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -मैस्लो
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| -मैकग्रेगर
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| -आर. लिकर्ट
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| +हर्जबर्ग
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| ||'द्वितत्त्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने किया था। हर्जबर्ग के अनुसार, कर्मचारी उपलब्ध अनुरक्षक तत्त्वों के प्रति संतुष्ट रहते हैं और उनमें किसी तरह की वृद्धि से प्रेरित नहीं होते जबकि कमी से हतोत्साहित होते हैं।
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| {निम्न में से किस देश को स्वतंत्र नियामकीय आयोग की जन्मस्थली माना जा सकता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-110
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| |type="()"}
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| -[[ब्रिटेन]]
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| +[[संयुक्त राज्य अमेरिका]]
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| -[[फ्राँस]]
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||'स्वतंत्र नियामकीय आयोगों' का आविर्भाव [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में हुआ। इन्हें 'सरकार की शीर्षकविहीन चौथी शाखा' भी कहा कहा गया है।
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| {किसने कहा कि "निश्चित भू-भाग राज्य का आवश्यक तत्त्व नहीं है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -बेंथम
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| +सीले
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| -विलेन
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| -लीकॉक
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| ||राजनीतिक वैज्ञानिक सीले के अनुसार, "निश्चित भू-भाग या निश्चित प्रदेश राज्य का आवश्यक अंग नहीं हैं।" इसी प्रकार का विचार लियोन डिग्विट (Leon Degvit) तथा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के विद्वान हॉल द्वारा भी व्यक्त किया गया है। इनके अनुसार क्षेत्र या निश्चित भू-भाग राज्य का अनिवार्य तत्त्व नहीं है। वर्तमान समय में राज्य के निम्नलिखित अनिवार्य तत्त्व माने जाते हैं- 1.जनसंख्या, 2.निश्चित प्रदेश, 3.सरकार, 4.संप्रभुता।
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| {निम्नलिखित में से कौन 'आत्मरक्षा के अधिकार' को व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार मानता है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -[[प्लेटो]]
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| -बेंथम
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| +हॉब्स
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| -बर्क
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| ||हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक दशा में मनुष्यों के कोई मान्यता प्राप्त अधिकार नहीं होते किंतु तब भी एक प्राकृतिक क़ानून अवश्य विद्यमान रहता है। यह प्राकृतिक क़ानून वास्तव में 'आत्मरक्षा के नियम' हैं, जो इस प्रकार हैं- 1. मनुष्य अपने ऊपर उपकार करने वाले लोगों पर उपकार करें। 2.मनुष्य दूसरे मनुष्यों से किए समझौतों का पालन करें। 3.मनुष्य सामूहिक रूप से अपनी प्राकृतिक स्वतंत्रता का त्याग करने को तैयार रहें। 4.प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य शांति स्थापना होना चाहिए। हॉब्स के अनुसार, ये नियम ही व्यक्ति को राज्य या कॉमनवैल्थ की स्थापना की प्रेरणा देते हैं।
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| {भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप निम्न में से कौन-सा है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-93 प्रश्न-1
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| |type="()"}
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| -गणतंत्रीय, संघीय, अध्यक्षात्मक
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| -गणतंत्रीय, एकात्मक, संसदीय
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| +गणतंत्रीय, संघीय संसदीय
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| -गणतंत्रीय, एकात्मक, अध्यक्षात्मक
| |
| ||भारतीय राजनीति व्यवस्था का स्वरूप गणतंत्रीय, संघीय, संसदीय है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1.संघात्मक संविधान के अंतर्गत मुख्यता दो प्रकार की सरकारों की स्थापना की जा सकती है- संसदीय तथा अध्यक्षात्मक। 2. [[भारतीय संविधान]] ने संसदीय सरकार की स्थापना की है। 3. 'गणतंत्र' (लोकतंत्र) शब्द इस बात का परिचायक है कि [[भारत]] की [[भारत सरकार|सरकार]] की शक्ति का स्त्रोत भारत की जनता है। 4.एक संघात्मक संविधान में सामान्यतया अग्रलिखित आवश्यक तत्त्व पाए जाते हैं- (क) शक्तियों का विभाजन, (ख) संविधान की सर्वोपरिता, (ग) लिखित संविधान, (घ) संविधान संशोधन की कठिन प्रक्रिया, (ड़) न्याय-पालिका की प्रधिकार। 5.संघात्मक संविधान के उपर्युक्त वर्णित सभी आवश्यक तत्त्व भारतीय संविधान में विद्यमान हैं।
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| {राजनैतिक सिद्धांत जो नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन में न्यूनतम हस्तक्षेप करे उसे क्या कहते हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-32 प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -लेससफेयर
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| -युटलीटेरियनिज़म
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| +व्यक्तिवाद
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| -इंटरप्रेन्योरशिप
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| ||व्यक्तिवाद राज्य को एक बुराई मानता है। पर यह बुराई मनुष्य की स्वार्थपरता और लुटेरेपन के कारण आवश्यक हो गयी है। व्यक्तिवाद का निर्देशक सिद्धांत है, 'व्यक्ति को अधिक-से-अधिक स्वंतत्रता मिले और [[राज्य]] कम-से-कम हस्तक्षेप करे'।
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| {अध्यक्षात्मक शासन का सैद्धांतिक आधार है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-3
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| |type="()"}
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| -शक्तियों का संतुलन
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| +शक्तियों का पृथक्करण
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| -शक्तियों का एकीकरण
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||अध्यक्षात्मक शासन का सैद्धान्तिक आधार शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत है जो शासन के विभिन्न अंगों में शक्तियों के संबंधित है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का अर्थ यह है कि शासन की शक्तियां, दायित्व एवं नियंत्रण किसी एक व्यक्ति या संस्था के हाथों में केंद्रित न रहें बल्कि वे शासन की विभिन्न शाखाओं में बंटे हों और ये शाखाएं एक दूसरे से स्वाधीन हों।
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| {इनमें से कौन [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] का प्रमुख अंग नहीं हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-10
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| |type="()"} | |
| -सेक्युरिटी काउंसिल | |
| -ट्रस्टीशिप काउंसिल
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| +[[यूनेस्को]]
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| -सेक्रेटेरिएट
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| ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं।
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| {लोक प्रशासन पर न्यायालय के नियंत्रण की दशा कौन-सी है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-11
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| -अधिकार क्षेत्र का अभाव
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| -विवेक का अनुचित प्रयोग
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| -प्रक्रिया संबंधी त्रुटि
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| +उपर्युक्त सभी
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| ||लोक प्रशासन पर न्यायालय निम्नलिखित दशाओं में हस्त्क्षेप कर नियंत्रण कर सकते हैं- 1. अधिकारों या सत्ता का दुरुपयोग, 2. अधिकार क्षेत्र का अभाव, 3. वैधानिक त्रुटि, 4. तथ्य शोधन या जांच में दोष और 5. प्रक्रिया सम्बंधी दोष।
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