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| कोष्ठागार का अध्यक्ष
| | {| class="bharattable-green" width="100%" |
| कोष्ठागार
| | |- |
| कोठार के अध्यक्ष कोठारी को चाहिए कि वह निम्न दस बातों के सम्बंध में अच्छी जानकारी प्राप्त करे।
| | | valign="top"| |
| # [[सीता कर]]
| | {| width="100%" |
| # [[राष्ट्र कर]]
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| # [[क्रयिक कर]]
| | <quiz display=simple> |
| # [[परिवर्त्तक कर]]
| | {[[महाभारत]] में [[कीचक वध]] किस पर्व के अंतर्गत आता है? |
| # [[प्रामित्यक कर]]
| | |type="()"} |
| # [[आपमित्यक]]
| | +[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] |
| # [[सिंहनिका कर]]
| | -[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] |
| # [[अन्वजात कर]]
| | -[[आदि पर्व महाभारत |आदि पर्व]] |
| # [[व्ययप्रत्यात कर]]
| | -[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] |
| # [[उपस्थान कर]]
| | ||[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] में [[अज्ञातवास]] की अवधि में [[विराट नगर]] में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, [[युधिष्ठिर]] द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, [[भीमसेन]] द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा [[कीचक]] और उपकीचकों का वध, [[दुर्योधन]] के गुप्तचरों द्वारा [[पाण्डव|पाण्डवों]] की खोज तथा लौटकर [[कीचक वध]] की जानकारी देना, त्रिगर्तों और [[कौरव|कौरवों]] द्वारा [[मत्स्य]] देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा [[विराट]] की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, [[अर्जुन]] द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा [[उत्तरा]] को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[विराट पर्व महाभारत]], [[कीचक वध]] |
| सीता कर
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| राजकीय कर के रूप में एकत्र धान्य को सीता कहा जाता है; उसको एकत्र करने वाले अधिकारी को सीताध्यक्ष कहा जाता है। कोष्ठागार के अध्यक्स को चहिए कि वह शुद्ध और पूरा सीता कर लेकर उसको व्यवस्था से रखे।
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| राष्ट्र कर
| | {[[महाभारत]] युद्ध में कौन-से दिन [[श्रीकृष्ण]] ने [[शस्त्र]] न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा? |
| राष्ट्र कर के दस भेद होते हैं-
| | |type="()"} |
| # पिण्ड कर- गांव से वसूल किए जाने वाला नियत राजकीय कर
| | -[[महाभारत युद्ध आठवाँ दिन|आठवें दिन]] |
| # षड्भाग- राजा को दिये जाने वाले अन्न का छठा भाग
| | -[[महाभारत युद्ध दसवाँ दिन|दसवें दिन]] |
| # सेनाभक्त- युद्धकाल में विशेष रूप से निर्धारित कर
| | -[[महाभारत युद्ध ग्यारहवाँ दिन|ग्यारहवें दिन]] |
| # बलि- छठे भाग के अतिरिक्त कर
| | +[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] |
| # [[कर]]- जलाशयों और जंगलों का कर
| | ||[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] के युद्ध में [[भीष्म]] के [[बाण अस्त्र|बाणों]] से [[अर्जुन]] घायल हो गए। भीष्म की भीषण बाण-वर्षा से [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। वे श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हैं कि वे युद्ध में [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] नहीं उठायेंगे। |
| # उत्संग- राजकुमार के जन्मोत्सव पर दी जाने वाली भेंट
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| # पार्श्व- नियत कर के अतिरिक्त कर
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| # पारिहीणिक- गाय बच्छियों के नुकसान पर डंड रूप में प्राप्त धन
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| # औपायनिक-भेंट स्वरूप प्राप्त धन
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| # कौष्ठेयक- राजधन से बने हुए तालाबों तथा बगीचों का कर।
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| क्रयिक कर
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| क्रयिक कर तीन प्रकार का होता है-
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| #धान्यमूलक- धान्य को बेचकर प्राप्त धन
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| # कोशनिर्हार- धन देकर खरीदा हुआ अन्न
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| #प्रयोग-प्रत्यादान- व्याज आदि से प्राप्त धन
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| परिवर्त्तक कर
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| एक अनाज लेकर उसके बदले दूसरा अनाज लेना परिवर्त्तक कहलाता है।
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| प्रामित्यक कर
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| किसी मित्र आदि से सहायता रूप में एसा धन लेना जो फिर लौटाया न जाए।
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| आपमित्यक कर
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| व्याज सहित पुन: लौटा देने के वायदे पर लिया गया अन्न आदि कर। आपमित्यक कर कहलाता है।
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| सिंहनिका कर
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| कूट-पीस कर, छान-बीन कर, सत्तू पीस कर, गन्ना आदि को पेर कर, आटा पीस कर, तिलों का तेल निकाल कर, भेड़ों के बाल काटकर और गुड़, राव, शक्कर आदि पर आजीविका निर्भर करने वाले लोगों से जो कर लिया जाता है, उसे सिंहानिका कर कहते हैं।
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| अन्यजात
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| नष्ट हुए तथा भूले हुए धन नाम अन्यजात है।
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| व्ययप्रत्याय कर
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| व्ययप्रत्याय कर तीन प्रकार का होता है।
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| #विक्षेपशेष– सेना के व्यय से बचा धन
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| # व्यधितशेष- औषधालय के व्यय से बचा हुआ धन
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| # अन्तरारम्भशेष- दुर्ग आदि की मरम्मत से बचा हुआ धन।
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| उपस्थान कर
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| बाट-तराजू कई पसंघा से, तौलने के बाद मुट्ठी-दो-मुट्ठी दिया हुआ अधिक अन्न, तौली या गिनी हुई वस्तु में कोई दूसरी ही वस्तु मिला देना, छीजन के रूप में ली हुई वस्तु, पिछ्ले वर्ष का बकाया और चतुराई से उपार्जित धन उपस्थान कहलाता है।
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| {{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=कौटिलीय अर्थ्शास्त्रम् |लेखक=वाचस्पति गैरोला|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विधाभवन, चौक (बैंक ऑफ़ बड़ौदा भवन के पीछे , वाराणसी 221001, उत्तर प्रदेश|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=157|url=}}
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