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{[[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]] का प्रथम विभाजन कब हुआ था? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-99,प्रश्न-26
{[[महाभारत]] में [[कीचक वध]] किस पर्व के अंतर्गत आता है?
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+[[1907]]
+[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]]
-[[1908]]
-[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]
-[[1910]]
-[[आदि पर्व महाभारत |आदि पर्व]]
-[[1905]]
-[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]
||[[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]] [[भारत]] का सबसे प्राचीन [[भारत के राजनीतिक दल|राजनीतिक दल]] है। इस दल की वर्तमान अध्यक्ष [[सोनिया गांधी]] है। कांग्रेस दल का युवा संगठन 'भारतीय युवा कांग्रेस' है। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना [[28 दिसम्बर]], [[1885]] ई. में दोपहर बारह बजे [[बम्बई]] में 'गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज' के भवन में की गई थी। इसके संस्थापक '[[ह्यूम, ए. ओ.|ए.ओ. ह्यूम]]' थे और प्रथम अध्यक्ष [[व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी]] बनाये गए थे। 'भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस' में कुल 72 सदस्य थे, जिनमें महत्त्वपूर्ण थे- [[दादाभाई नौरोजी]], [[फ़िरोजशाह मेहता]], दीनशा एदलजी वाचा, काशीनाथा तैलंग, वी. राघवाचार्य, एन.जी. चन्द्रावरकर, एस.सुब्रमण्यम आदि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]]
||[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] में [[अज्ञातवास]] की अवधि में [[विराट नगर]] में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, [[युधिष्ठिर]] द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, [[भीमसेन]] द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा [[कीचक]] और उपकीचकों का वध, [[दुर्योधन]] के गुप्तचरों द्वारा [[पाण्डव|पाण्डवों]] की खोज तथा लौटकर [[कीचक वध]] की जानकारी देना, त्रिगर्तों और [[कौरव|कौरवों]] द्वारा [[मत्स्य]] देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा [[विराट]] की गायों  का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, [[अर्जुन]] द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में  आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा [[उत्तरा]] को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[विराट पर्व महाभारत]], [[कीचक वध]]


{किस अधिनियम में पहली बार [[भारत]] के लिए संघीय संरचना प्रस्तुत की गई? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-102,प्रश्न-19
{[[महाभारत]] युद्ध में कौन-से दिन [[श्रीकृष्ण]] ने [[शस्त्र]] न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?
|type="()"}
|type="()"}
-1909 का अधिनियम
-[[महाभारत युद्ध आठवाँ दिन|आठवें दिन]]
-[[भारत सरकार अधिनियम- 1919|1919 का अधिनियम]]
-[[महाभारत युद्ध दसवाँ दिन|दसवें दिन]]
+[[भारत सरकार अधिनियम- 1935|1935 का अधिनियम]]
-[[महाभारत युद्ध ग्यारहवाँ दिन|ग्यारहवें दिन]]
-1947 का अधिनियम
+[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]]
||[[भारत सरकार अधिनियम- 1935]] के पारित होने से पूर्व इससें 'साइमन आयोग रिपोर्ट', '[[नेहरू रिपोर्ट|नेहरू समिति की रिपोर्ट]]', [[ब्रिटेन]] में सम्पन्न तीन [[गोलमेज सम्मेलन|गोलमेज सम्मेलनों]] में हुये कुछ विचार-विमर्शों से सहायता ली गयी। [[गोलमेज सम्मेलन तृतीय|तीसरे गोलमेज सम्मेलन]] के सम्पन्न होने के बाद कुछ प्रस्ताव 'श्वेत पत्र' नाम से प्रकाशित हुए, जिन पर बहस के लिए ब्रिटेन के दोनों सदनों एवं कुछ भारतीय प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। अन्ततः इस रिपोर्ट के आधार पर [[1935]] ई. का अधिनियम पारित हुआ। 1935 ई. का अधिनियम काफ़ी लम्बा एवं जटिल था। इसे [[3 जुलाई]], [[1936]] को आंशिक रूप से लागू किया गया, किन्तु पूर्णरूप से चुनावों के बाद [[अप्रैल]], [[1937]] में यह लागू हो पाया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[भारत सरकार अधिनियम- 1935]]
||[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] के युद्ध में [[भीष्म]] के [[बाण अस्त्र|बाणों]] से [[अर्जुन]] घायल हो गए। भीष्म की भीषण बाण-वर्षा से [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। वे श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हैं कि वे युद्ध में [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] नहीं उठायेंगे।


{किस अधिवेशन में [[होमरूल लीग आन्दोलन|होमरूल]] समर्थन अपनी राजनीतिक शक्ति का सफलतापूर्ण प्रदर्शन कर सके? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-100,प्रश्न-53
|type="()"}
+[[काँग्रेस]] का [[1916]] का लखनऊ अधिवेशन
-[[1920]] का [[बंबई]] में होने वाला ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन अधिवेशन
-[[1918]] में होने वाला [[उत्तर प्रदेश किसान सभा]]
-[[1938]] में [[नागपुर]] का संयुक्त ए. आई. टी. यू. सी.
||[[होमरूल लीग आन्दोलन]] का उद्देश्य [[ब्रिटिश साम्राज्य]] के अधीन रहते हुए संवैधानिक तरीक़े से स्वशासन को प्राप्त करना था। इस लीग के प्रमुख नेता [[बाल गंगाधर तिलक]] एवं श्रीमती [[एनी बेसेंट]] थीं। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए तिलक ने [[28 अप्रैल]], [[1916]] ई. को बेलगांव में 'होमरूल लीग' की स्थापना की थी। इनके द्वारा स्थापित लीग का प्रभाव [[कर्नाटक]], [[महाराष्ट्र]] ([[बम्बई]] को छोड़कर), मध्य प्रान्त एवं [[बरार]] तक फैला हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[होमरूल लीग आन्दोलन]]
{[[इंडियन एसोसिएशन]] द्वारा [[कलकत्ता]] में आयोजित 'अखिल भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन' (Indian National Conference) कब हुआ था? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-97,प्रश्न-58
|type="()"}
-[[1881]] ई.
-[[1882]] ई.
+[[1883]] ई.
-[[1884]] ई.
{निम्नलिखित में से किसने गाड़ी पर यह मानकर बम फेंका था कि उसमें मुजफ्फरपुर के न्यायाधीश किंग्सफ़ोर्ड बैठे थे? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-98,प्रश्न-8
|type="()"}
-[[लाला लाजपत राय]] और अजीत सिंह
-[[बिपिन चन्द्र पाल]] और [[अरविंद घोष]]
+[[खुदीराम बोस]] और [[प्रफुल्लचंद चाकी]]
-राजनारायण बोस और [[अश्विनी कुमार दत्त]]
||[[खुदीराम बोस]] मात्र 19 साल की उम्र में [[भारत|हिन्दुस्तान]] की आज़ादी के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारी थे। उन दिनों [[कोलकाता]] का चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं को अपमानित और दंडित करने के लिए बहुत बदनाम था। क्रांतिकारियों ने उसे समाप्त करने का काम [[प्रफुल्लचंद चाकी|प्रफुल्ल चाकी]] और खुदीराम बोस को सौंपा। सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति लोगों के आक्रोश को भांपकर उसकी सुरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर [[मुजफ्फरपुर ज़िला|मुजफ्फरपुर]] भेज दिया। पर दोनों क्रांतिकारी भी उसके पीछे-पीछे पहुँच गए। किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का अध्ययन करने के बाद उन्होंने [[30 अप्रैल]], [[1908]] को यूरोपियन क्लब से बाहर निकलते ही किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंक दिया। किन्तु दुर्भाग्य से उस समान आकार-प्रकार की बग्घी में दो यूरोपियन महिलाएँ बैठी थीं, जो कि पिंग्ले कैनेडी नामक एडवोकेट की पत्नी और बेटी थी, वे मारी गईं। क्रांतिकारी किंग्सफोर्ड को मारने में सफलता समझ कर वे घटना स्थल से भाग निकले।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[खुदीराम बोस]], [[प्रफुल्लचंद चाकी]]
{[[चंपारण सत्याग्रह]] के दौरान [[महात्मा गांधी]] के साथ कौन शामिल थे? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-103,प्रश्न-49
|type="()"}
-[[वल्लभ भाई पटेल]] व [[विनोबा भावे]]
-[[जवाहरलाल नेहरू]] व [[राजेन्द्र प्रसाद]]
+[[राजेन्द्र प्रसाद]] व [[अनुग्रह नारायण सिंह]]
-[[महादेव देसाई]] व मणि बेन पटेल
||[[चम्पारन सत्याग्रह]] का प्रारम्भ राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] के द्वारा किया गया था। [[अंग्रेज़]] बाग़ान मालिकों ने चम्पारन के किसानों से एक अनुबन्ध करा लिया था, जिसमें उन्हें नील की खेती करना अनिवार्य था। नील के बाज़ार में गिरावट आने से कारखाने बन्द होने लगे। अंग्रेज़ों ने किसानों की मजबूरी का लाभ उठाकर लगान बढ़ा दिया। इसी के फलस्वरूप विद्रोह प्रारम्भ हो गया। महात्मा गाँधी ने अंग्रेज़ों के इस अत्याचार से चम्पारन के किसानों का उद्धार कराया। इसका परिणाम यह हुआ कि [[बिहार]] वालों के लिए वे देवतुल्य बन गये। यहाँ उनके साथ आन्दोलन में प्रमुख थे- [[राजेन्द्र प्रसाद]], श्री कृष्ण सिंह, [[अनुग्रह नारायण सिंह|अनुग्रह नारायन सिंह]], जनकधारी प्रसाद और ब्रजकिशोर प्रसाद।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[चम्पारन सत्याग्रह]], [[राजेन्द्र प्रसाद]], [[अनुग्रह नारायण सिंह]]
{किस युद्ध में जीतने के उपरांत [[बाबर]] ने ख़ज़ाने का मुंह अमीरों, संगे-संबंधियों आदि के लिए खोल दिए और इस उदारता के लिए उसे 'कलन्दर' की उपाधि दी गई? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-54,प्रश्न-4
|type="()"}
+[[पानीपत का प्रथम युद्ध]] (1526)
-[[खानवा का युद्ध]] (1527)
-चंदेरी का युद्ध (1528)
-[[घाघरा का युद्ध]] (1529)
|| 1526 ई. में [[पानीपत]] के प्रथम युद्ध में [[दिल्ली सल्तनत]] के अंतिम वंश ([[लोदी वंश]]) के सुल्तान [[इब्राहीम लोदी]] की पराजय के साथ ही [[भारत]] में [[मुग़ल वंश]] की स्थापना हो गई। इस वंश का संस्थापक "ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था। बाबर का पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा', 'फ़रग़ना' का शासक था। इस युद्ध में लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, नौकरों एवं सगे सम्बन्धियों में बाँट दिया। सम्भवत: इस बँटवारे में [[हुमायूँ]] को वह [[कोहिनूर हीरा]] प्राप्त हुआ, जिसे [[ग्वालियर]] नरेश ‘राजा विक्रमजीत’ से छीना गया था। इस हीरे की क़ीमत के बारे में यह माना जाता है कि इसके मूल्य द्वारा पूरे संसार का आधे दिन का ख़र्च पूरा किया जा सकता था। भारत विजय के ही उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक [[क़ाबुल]] निवासी को एक-एक [[चाँदी]] का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया था। अपनी इसी उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर’ की उपाधि दी गई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बाबर]], [[पानीपत युद्ध प्रथम]]
{किस मुग़ल शासक ने [[भारत]] की वनस्पति और प्राणी जगत, ऋतुओं और फलों का विशद विवरण अपनी दैनन्दिनी (डायरी) में दिया है? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-54,प्रश्न-18
|type="()"}
-[[अकबर]]
-[[जहाँगीर]]
+[[बाबर]]
-[[औरंगज़ेब]]
||1526 ई. में [[पानीपत]] के प्रथम युद्ध में [[दिल्ली सल्तनत]] के अंतिम वंश ([[लोदी वंश]]) के सुल्तान [[इब्राहीम लोदी]] की पराजय के साथ ही [[भारत]] में [[मुग़ल वंश]] की स्थापना हो गई। इस वंश का संस्थापक "ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था। बाबर का पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा', 'फ़रग़ना' का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्य का वास्तविक अधिकारी बना। पारिवारिक कठिनाईयों के कारण वह मध्य [[एशिया]] के अपने पैतृक राज्य पर शासन नहीं कर सका। उसने केवल 22 वर्ष की आयु में [[काबुल]] पर अधिकार कर [[अफ़ग़ानिस्तान]] में राज्य क़ायम किया था। वह 22 वर्ष तक काबुल का शासक रहा। उस काल में उसने अपने पूर्वजों के राज्य को वापिस पाने की कई बार कोशिश की, पर सफल नहीं हो सका।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बाबर]], [[बाबरनामा]]
{'दीवान-ए-वजीरात-ए-कुल' नामक नये पद की स्थापना किसने की? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-60,प्रश्न-187
|type="()"}
-[[बाबर]]
+[[अकबर]]
-[[हुमायूँ]]
-[[शाहजहाँ]]
||[[अकबर|जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर]] [[भारत]] का महानतम [[मुग़ल]] शंहशाह (शासनकाल 1556 - 1605 ई.) था, जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अपने साम्राज्य की एकता बनाए रखने के लिए अकबर द्वारा ऐसी नीतियाँ अपनाई गईं, जिनसे ग़ैर मुसलमानों की राजभक्ति जीती जा सके। [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में आज अकबर का नाम काफ़ी प्रसिद्ध है। उसने अपने शासनकाल में सभी धर्मों का सम्मान किया था, सभी जाति-वर्गों के लोगों को एक समान माना और उनसे अपने मित्रता के सम्बन्ध स्थापित किये। अकबर ने अपने शासनकाल में सारे भारत को एक साम्राज्य के अंतर्गत लाने का प्रयास किया, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अकबर]]
{भारतीय राष्ट्रीय व्यापार संघ कांग्रेस (Indian National Trade Union Congrerss- INTUC) की स्थापना किसने की? (लुसेंट सामान्य ज्ञान,पृ.सं.-91,प्रश्न-93
|type="()"}
-एन. एम. लोखाण्डे
-[[एन. एम. जोशी]]
-[[महात्मा गाँधी]]
+[[वल्लभभाई पटेल]]
||[[सरदार पटेल]] प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा स्वतंत्र [[भारत]] के प्रथम गृहमंत्री थे। वे 'सरदार पटेल' के उपनाम से प्रसिद्ध हैं। सरदार पटेल भारतीय बैरिस्टर और प्रसिद्ध राजनेता थे। भारत के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के नेताओं में से वे एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन वर्ष वे [[उप प्रधानमंत्री]], गृहमंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद क़रीब पाँच सौ से भी ज़्यादा देसी रियासतों का एकीकरण एक सबसे बड़ी समस्या थी। कुशल कूटनीति और जरूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए सरदार पटेल ने उन अधिकांश रियासतों को [[तिरंगा|तिरंगे]] के तले लाने में सफलता प्राप्त की। इसी उपलब्धि के चलते उन्हें '''लौह पुरुष''' या '''भारत का बिस्मार्क''' की उपाधि से सम्मानित किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सरदार पटेल]]
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12:40, 7 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

2 महाभारत युद्ध में कौन-से दिन श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?

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दसवें दिन
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नौवें दिन