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आज से हजारों वर्ष पहले से ही दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों, धर्मशास्त्रों, वैधों-हकीमों, ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। आयुर्वेद के ऋषियों ने भी माना है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है।  
'''शहद''' / '''मधु''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Honey'') एक प्राकृतिक मधुर [[पदार्थ]] है जो मधुमक्खियों द्वारा [[फूल|फूलों]] के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है। शहद हर किसी के जीवन में महत्व रखता है। फिर चाहे वह खानपान, चिकित्सा से संबंधित हो या फिर सौंदर्य से। इसमें प्रचुर मात्रा में गुण हैं। आज से हजारों वर्ष पहले से ही दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों, धर्मशास्त्रों, पदार्थवेत्ता-विद्वानों, वैधों-हकीमों ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। [[आयुर्वेद]] के [[ऋषि|ऋषियों]] ने भी माना है कि [[तुलसी]] व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। इसे [[पंजाबी भाषा]] में माख्यों भी कहा जाता है। शहद तो [[देवता|देवताओं]] का भी आहार माना जाता रहा है।
==परिचय==
[[आयुर्वेद]] में शहद को एक खाद्य एवं प्राकृतिक औषधि के रूप में निरूपित किया गया है और शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाये रखने के लिये इसे अमृत भी कहा गया है। शहद न केवल एक औषधि का काम करता है, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों में और सौन्दर्य बढ़ाने में भी विशेष योगदान देता है। शहद मानव को प्रकृति का अनमोल वरदान है। शहद में ख़ास गुण यह है कि वह कभी ख़राब नहीं होता। प्राचीनकाल में मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस से प्राकृतिक रूप से तैयार मधु ही एकमात्र मिष्ठान्न का ज्ञात स्रोत था और यही सभी धार्मिक रीति-रिवाजों, सामाजिक कार्यक्रमों, प्रत्येक धर्म एवं समाज में प्रमुख रूप से प्रयोग में लाया जाता था। आयुर्वेद में इसका काफ़ी प्रयोग हुआ है। शहद में सदा उपयोगी एवं शुध्द बने रहने का गुण विद्यमान है। ज्यों-ज्यों यह पुराना होता जाता है, गुणवत्ता बढ़ती जाती है। 1923 ई. में मिस्त्र के फराओ नूनन खामेन के पिरामिड में रूसी वैज्ञानिक को एक शहद से भरा पात्र मिला। उस समय हैरत में डाल देने वाली बात यह थी कि यह शहद 3300 वर्ष पुराना होने के बावजूद ख़राब नहीं हुआ था। उसके स्वाद और गुण में कोई अंतर नहीं आया था। शहद, पंचामृत में प्रयोग होने वाले पदार्थो में से एक है। प्रत्येक पूजा में पंचामृत अवश्य बनाया जाता है। 
===शहद और मधुमक्खी===
{{Main|शहद और मधुमक्खी}}
मधुमक्खियां प्राकृतिक हलवाई हैं। उनके द्वारा बनाई गई यह मिठाई- ‘शहद’ बाज़ार में मिलने वाली मिठाइयों की तरह न तो बासी होता है और न पेट ख़राब करके रोगों को आमंत्रित ही करता है, वरन् अधिक समय तक रहने पर अधिक गुणकारी हो जाता है। परिश्रम से एकत्रित की हुई हजारों वनस्पतियों का सत्व हमें एक स्थान पर एकत्रित हुए शहद के रूप में मिल जाता है। इसमें जो स्वाभाविक शक्तिवर्ध्दक तथा रोग निरोधक तत्व मिलते हैं, उन्हें आज बोतलों में बंद औषधियों तथा टॉनिकों में पाना संभव ही नहीं होता। आज के वैज्ञानिक युग में भी शहद का बनना मानवी बुद्धि से परे हैं, शहद बनाने का गुण प्रकृति ने केवल मधुमक्खियों को ही प्रदान किया है। शहद को शहद की मक्खियां (''Honey Bee'') बनाती है। इनका जो घर होता है, उस को छत्ता कहते है, इन छत्तों में मधुमक्खियाँ रहती है। मधुमक्खियों के जीवन की 4 अवस्थायें अंडा, लार्वा, प्यूपा, वयस्क मक्खी होती है। ये मधुमक्खियाँ निम्न प्रकार की होती है-
# श्रमिक
# नर
# रानी
रानी मधुमक्खी आकार में सबसे बड़ी होती है। एक छत्ते में एक ही या ज़्यादा होती है। ये अंडे देती है। जिन अण्डों को नर निषेचित करते हैं। यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु छत्ते में रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है। [[Image:honey-bee-farm.jpg|मधुमक्खी पालन|thumb|left]]
==मधुमक्खी पालन==
{{Main|मधुमक्खी पालन}}
जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी नहीं काटती क्योंकि वह शहद निकालते हुए विशेष कपड़े पहनते हैं। जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं। इसी समय में पालनकर्ता उनके स्वभाव को जनता है तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है कि मधुमक्खी को काटने की ज़रूरत पड़े। सर एडमंड हिलेरी स्वयं मधुमक्खी पालक थे। मधुपालन में कोई कठिनाई नहीं है। इसके बारे में थोड़ी जानकारी ही पर्याप्त है।


शहद को शहद की मक्खियां Honey Bee बनाती है। इनका जो घर होता है, उस को छत्ता कहते है, इन छत्तों मे मधुमक्खियाँ रहती है।  मधुमक्खियों के जीवन की 4 अवस्थाये अंडा, लार्वा, प्यूपा, वयस्क मक्खी होती है। ये मधुमक्खियाँ निम्न प्रकार की होती है। 
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1. श्रमिक  2. नर  3. रानी
 
मधु या शहद एक मीठा, चिपचिपाहट वाला अर्ध तरल पदार्थ होता है जो मधुमक्खियों द्वारा पौधों के पुष्पों में उपस्थित मकरन्द के कोशों से निकलने वाले मकरंद जिसे नेक्टर नाम का रस भी कहते है, से तैयार किया जाता है और आहार के रूप में छत्ते की कोठियों मे संग्रह किया जाता है। शहद मैं जो मीठापन होता है वो मुख्यतः ग्लूकोज़ और फ्रक्टोज शुगर के कारण होता है। शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। शहद में ग्लूकोज व अन्य शर्कराएं तथा विटामिन, खनिज और अमीनो अम्ल भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और उतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी के रूप में जाना जाता रहा है। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक जीवाणु भी मर जाते हैं। जब इसको सीधे घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह कार्य करता है और ऐसे में घाव संक्रमण से बचा रहता है।
 
मधुमक्खी के पेट मे एक थैलीनुमा संरचना होती है जो एक वाल्व से जुडी होती है मधुमक्खी फूलों से मकरंद चुस्ती है और इस थैली मे एकत्र करती रहती है और छत्ते मे आकर इस रस को वाल्व के दवारा मधुकोशों मे उगल देती है और मकरंद मे जो पानी होता है वो वाष्पीकरण के द्वारा उड़ जाता है और बाकी पदार्थ रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप शहद मे बदल जाता है।
 
शहद इकठ्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही परिश्रम करना पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियां अपने छत्ते के सभी खानों को महीनों में भर पाती हैं। मधुमक्खी के फूलों पर बैठने से परागण जैसी महत्वपूर्ण क्रिया सम्पन्न हो जाती है और मधुमक्खियों को बदले मे मिला मीठा रस जो की वो अपने और अपने बच्चों के लिए सुरक्षित रखती है को ही मनुष्य और अन्य जीव खाते है। शहद मे बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे - फर्कटोज़ 38.2%, ग्लूकोज़: 31.3%, सकरोज़: 1.3%, माल्टोज़: 7.1%,जल: 17.2%, उच्च शर्कराएं: 1.5%, भस्म: 0.2%, अन्य: 3.2% ।
 
वास्तव मे शहद मधुमक्खियों के बच्चों और उन का भविष्य का संचित आहार है। मनुष्य व जानवरों बंदर और भालू आदि ने शहद को अपने आहार मे शामिल कर लिया है। इसे पंजाबी भाषा मे माख्यों भी कहा जाता है। यह शहद यदि सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन से गुज़ारे तो हमे इस के अंदर परागकण भी दिखते है। शहद के लिए यदि मधुमक्खियाँ गन्ने के रस पर बैठे तो रस से बना शहद सर्दियों मे जम जाता है, उस मे शूगर की मात्रा ज्यादा होगी। मधु एक ऊष्मा व ऊर्जा दायक आहार है तथा दूध के साथ मिलाकर यह सम्पूर्ण आहार बन जाता है। इसमें मुख्यतः अवकारक शर्कराएं, कुछ प्रोटीन, विटामिन तथा लवण उपस्थित होते हैं। शहद सभी आयु के लोगों के लिए श्रेष्ठ आहार माना जाता है और रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है। एक किलोग्राम शहद से लगभग 5500 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। एक किलोग्राम शहद से प्राप्त ऊर्जा के तुल्य दूसरे प्रकार के खाद्य पदार्थो में 65 अण्डों, 13 कि.ग्रा. दूध, 8 कि.ग्रा. प्लम, 19 कि.ग्रा. हरे मटर, 13 कि.ग्रा. सेब व 20 कि.ग्रा. गाजर के बराबर हो सकता है।
 
आजकल चीन से आयातित शहद और मुनाफा कमाने मे अंधी कम्पनीयों के एक घपले को उजागर किया गया है जिसमे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (C.S.E.) के शोध के अनुसार बाजार में बिक रहे बड़ी-बड़ी कम्पनीयों के शहद में प्रतीजैवीक एंटी-बायोटिक्स की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकों से दोगुना तक मिली है। ऐसे शहद को अगर लगातार खाया जाता है तो हमारे शरीर के एंटी बायटिक के प्रति रजीस्ट बनने का खतरा हो जाएगा। और बिना जरूरत के इन प्रतीजैवीक पदार्थों के शरीर मे जाने से जो साइड इफेक्ट्स होंगे वो भी खतरनाक होंगे। इनके दवारा जांचे गए शहद में एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लॉक्सेसिन और ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोरैंमफेनिकल, एंफीसिलीन आदि प्रतिजैविक पदार्थ पाए गए। यह प्रतीजैवीक शहद मे आते कहाँ से है जब मधु पालन के छत्तों मे इनको बीमारी से बचने के लिए इन प्रतिजैविक का प्रयोग किया जाता है तब ये शहद मे आते है ठीक उसी प्रकार जैसे गाय भैंस को बीमार होने पर प्रतिजैविक का कोर्स दिया जाता है तो उनके दूध मे भी प्रतिजैविक का असर आ जाता है इस दूध को पीने वाले के शरीर मे अनायास ही ये एंटीबायोटिक चले जाते है और हानि करते है।
 
जो लोग शहद के लिए मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी क्यों नहीं काटती ?
 
जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं वह शहद निकलते हुए विशेष कपडे पहनते हैं। जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं। इसी समय में शायद पालनकर्ता उनके स्वभाव को जनता है तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है की मधुमक्खी को काटने की जरूरत पड़े।
 
रानी मधुमक्खी क्या होती है? क्या लोगों का कहना सही है कि अगर रानी मधुमक्खी को पकड़ लो तो कोई मधुमक्खी नहीं काटेगी ?
 
उत्तर : रानी मधुमक्खी आकार मे सबसे बड़ी होती है। एक छत्ते मे एक ही या ज्यादा होती है ये अंडे देती है। जिन अण्डों को नर निषेचित करते है। यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु छत्ते मे रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है।
 
शुद्ध शहद कैसा होता है? शुद्ध शहद की पहचान कैसे कर सकते हैं ?
 
उत्तर : शुद्ध शहद को जब धार बना कर छोड़ा जाता है। तो वह सांप की तरह कुंडली बना कर गिरता है जबकि नकली फ़ैल जाता है।
 
मधुमक्खी के एक छत्ते में कितना शहद निकलता है और पूरा भरा हुआ छत्ता कितने दिन में बन जाता है?
 
उत्तर: प्राकृतिक छत्ते का तो पता नही, लेकिन मैंने एक मधुमक्खी पालक से पूछा तो उस ने बताया की यह दो बातों पर निर्भर करता है।
1. फूलों की उपलब्धता पर, वर्ष के सभी महीनों मे फूलों की उपलब्धता एक समान नहीं होती है।
2. मौसम की अनुकूलिता पर, अनुकूल मौसम यानी उस स्थान का जहां मधुमक्खी पाली गयी है।
वैसे उस ने बताया की यहाँ जहां उस ने पाली है वहाँ वह साल मे 3-3 महीनों मे दो बार यील्ड लेता है।
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
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शहद विषय सूची
शहद
शहद
शहद
विवरण शहद अथवा 'मधु' एक प्राकृतिक मधुर पदार्थ है जो मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है।
शहद के घटक रासायनिक विश्लेषण करने पर शहद में बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे- फ्रक्टोज़ 38.2%, ग्लूकोज़: 31.3%, सुकरोज़: 1.3%, माल्टोज़: 7.1%, जल: 17.2%, उच्च शर्कराएं: 1.5%, भस्म: 0.2%, अन्य: 3.2%। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि शहद पौष्टिक तत्वों से युक्त शर्करा और अन्य तत्वों का मिश्रण होता है।
औषधीय गुण शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और ऊतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी (एंटीबैक्टीरियल) के रूप में जाना जाता रहा है। शहद का पीएच मान 3 से 4.8 के बीच होने से जीवाणुरोधी गुण स्वतः ही पाया जाता है।
अन्य जानकारी आयुर्वेद के ऋषियों ने भी माना है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है।

शहद / मधु (अंग्रेज़ी: Honey) एक प्राकृतिक मधुर पदार्थ है जो मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है। शहद हर किसी के जीवन में महत्व रखता है। फिर चाहे वह खानपान, चिकित्सा से संबंधित हो या फिर सौंदर्य से। इसमें प्रचुर मात्रा में गुण हैं। आज से हजारों वर्ष पहले से ही दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों, धर्मशास्त्रों, पदार्थवेत्ता-विद्वानों, वैधों-हकीमों ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। आयुर्वेद के ऋषियों ने भी माना है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। इसे पंजाबी भाषा में माख्यों भी कहा जाता है। शहद तो देवताओं का भी आहार माना जाता रहा है।

परिचय

आयुर्वेद में शहद को एक खाद्य एवं प्राकृतिक औषधि के रूप में निरूपित किया गया है और शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाये रखने के लिये इसे अमृत भी कहा गया है। शहद न केवल एक औषधि का काम करता है, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों में और सौन्दर्य बढ़ाने में भी विशेष योगदान देता है। शहद मानव को प्रकृति का अनमोल वरदान है। शहद में ख़ास गुण यह है कि वह कभी ख़राब नहीं होता। प्राचीनकाल में मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस से प्राकृतिक रूप से तैयार मधु ही एकमात्र मिष्ठान्न का ज्ञात स्रोत था और यही सभी धार्मिक रीति-रिवाजों, सामाजिक कार्यक्रमों, प्रत्येक धर्म एवं समाज में प्रमुख रूप से प्रयोग में लाया जाता था। आयुर्वेद में इसका काफ़ी प्रयोग हुआ है। शहद में सदा उपयोगी एवं शुध्द बने रहने का गुण विद्यमान है। ज्यों-ज्यों यह पुराना होता जाता है, गुणवत्ता बढ़ती जाती है। 1923 ई. में मिस्त्र के फराओ नूनन खामेन के पिरामिड में रूसी वैज्ञानिक को एक शहद से भरा पात्र मिला। उस समय हैरत में डाल देने वाली बात यह थी कि यह शहद 3300 वर्ष पुराना होने के बावजूद ख़राब नहीं हुआ था। उसके स्वाद और गुण में कोई अंतर नहीं आया था। शहद, पंचामृत में प्रयोग होने वाले पदार्थो में से एक है। प्रत्येक पूजा में पंचामृत अवश्य बनाया जाता है।

शहद और मधुमक्खी

मधुमक्खियां प्राकृतिक हलवाई हैं। उनके द्वारा बनाई गई यह मिठाई- ‘शहद’ बाज़ार में मिलने वाली मिठाइयों की तरह न तो बासी होता है और न पेट ख़राब करके रोगों को आमंत्रित ही करता है, वरन् अधिक समय तक रहने पर अधिक गुणकारी हो जाता है। परिश्रम से एकत्रित की हुई हजारों वनस्पतियों का सत्व हमें एक स्थान पर एकत्रित हुए शहद के रूप में मिल जाता है। इसमें जो स्वाभाविक शक्तिवर्ध्दक तथा रोग निरोधक तत्व मिलते हैं, उन्हें आज बोतलों में बंद औषधियों तथा टॉनिकों में पाना संभव ही नहीं होता। आज के वैज्ञानिक युग में भी शहद का बनना मानवी बुद्धि से परे हैं, शहद बनाने का गुण प्रकृति ने केवल मधुमक्खियों को ही प्रदान किया है। शहद को शहद की मक्खियां (Honey Bee) बनाती है। इनका जो घर होता है, उस को छत्ता कहते है, इन छत्तों में मधुमक्खियाँ रहती है। मधुमक्खियों के जीवन की 4 अवस्थायें अंडा, लार्वा, प्यूपा, वयस्क मक्खी होती है। ये मधुमक्खियाँ निम्न प्रकार की होती है-

  1. श्रमिक
  2. नर
  3. रानी

रानी मधुमक्खी आकार में सबसे बड़ी होती है। एक छत्ते में एक ही या ज़्यादा होती है। ये अंडे देती है। जिन अण्डों को नर निषेचित करते हैं। यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु छत्ते में रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है।

मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन

जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी नहीं काटती क्योंकि वह शहद निकालते हुए विशेष कपड़े पहनते हैं। जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं। इसी समय में पालनकर्ता उनके स्वभाव को जनता है तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है कि मधुमक्खी को काटने की ज़रूरत पड़े। सर एडमंड हिलेरी स्वयं मधुमक्खी पालक थे। मधुपालन में कोई कठिनाई नहीं है। इसके बारे में थोड़ी जानकारी ही पर्याप्त है।


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