"श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ": अवतरणों में अंतर
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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से पृथक् एक संस्था श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के नाम से भूतपूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री श्री पी.वी.नरसिंह राव की अध्यक्षता में [[20 जनवरी]], [[1987]] को पंजीकृत की गयी। [[1989]] में डॉ. मण्डन मिश्र विद्यापीठ के प्रथम कुलपति नियुक्त हुए। [[1 नवम्बर]],[[1991]] से मानित विश्वविद्यालय के रूप में इस विद्यापीठ ने कार्य करना प्रारम्भ किया। | विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से पृथक् एक संस्था श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के नाम से भूतपूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री श्री पी.वी.नरसिंह राव की अध्यक्षता में [[20 जनवरी]], [[1987]] को पंजीकृत की गयी। [[1989]] में डॉ. मण्डन मिश्र विद्यापीठ के प्रथम कुलपति नियुक्त हुए। [[1 नवम्बर]],[[1991]] से मानित विश्वविद्यालय के रूप में इस विद्यापीठ ने कार्य करना प्रारम्भ किया। | ||
=== उद्देश्य === | === उद्देश्य === | ||
श्री लाल बहादुर शास्त्री | श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं - | ||
#शास्त्रीय परम्परा को सुरक्षित बनाए रखना। | #शास्त्रीय परम्परा को सुरक्षित बनाए रखना। | ||
#शास्त्रों का अनुवाद कार्य करना। | #शास्त्रों का अनुवाद कार्य करना। |
12:25, 11 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ
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विवरण | दिल्ली में स्थित मानित संस्कृत विश्वविद्यालय है। |
स्थापना | 8 अक्तूबर, 1962 |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | श्री लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इन्दिरा गाँधी, प्रधानमंत्री, भारत सरकार, विजयदशमी, नई दिल्ली |
अन्य जानकारी | इस संस्कृत विद्यापीठ को प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने अन्तर्राष्ट्रीय संस्था बनाने की घोषणा की। |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
अद्यतन | 05:28, 22 जनवरी 2018 (IST) |
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (अंग्रेज़ी: Shri Lal Bahadur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapeetha) भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित एक मानित विश्वविद्यालय है।
विश्वविद्यालय की स्थापना
अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन ने 8 अक्तूबर, 1962 को विजयदशमी के दिन दिल्ली में संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की, जिसमें डॉ. मण्डन मिश्र को विद्यापीठ का विशेष कार्य अधिकारी व निदेशक नियुक्त किया गया। सम्मेलन में लिये गए निर्णय के अनुसार अखिल भारतीय संस्कृत विद्यापीठ नाम से एक पृथक् संस्था स्थापित की गई। इसके संस्थापक अध्यक्ष प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री थे। विद्यापीठ के विकास में श्री लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने इस विद्यापीठ को अन्तर्राष्ट्रीय संस्था बनाने की घोषणा की।[1]
लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात् भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने विद्यापीठ की अध्यक्षता स्वीकार की। उन्होंने घोषणा की कि 2 अक्तूबर, 1966 से विद्यापीठ को श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के नाम से जाना जाएगा। 1 अप्रैल,1967 को विद्यापीठ का अधिग्रहण भारत सरकार ने किया और 21 दिसम्बर, 1970 को श्री लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली (एक पंजीकृत स्वायत्त संस्था शिक्षामंत्रालय भारत सरकार) का अंग बन गया तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ नाम से कार्य करने लगा।
भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त
विद्यापीठ के कार्य तथा इसके बहुमुखी विकास से प्रभावित होकर मार्च, 1983 में भारत सरकार ने इसको मानित विश्वविद्यालय का स्तर देने का प्रस्ताव रखा। अंतः आवश्यक परीक्षण एवं अन्य औपचारिकताओं के पश्चात् भारत सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर नवम्बर, 1987 में विद्यापीठ को मानित विश्वविद्यालय का स्तर प्रदान किया।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से पृथक् एक संस्था श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के नाम से भूतपूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री श्री पी.वी.नरसिंह राव की अध्यक्षता में 20 जनवरी, 1987 को पंजीकृत की गयी। 1989 में डॉ. मण्डन मिश्र विद्यापीठ के प्रथम कुलपति नियुक्त हुए। 1 नवम्बर,1991 से मानित विश्वविद्यालय के रूप में इस विद्यापीठ ने कार्य करना प्रारम्भ किया।
उद्देश्य
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
- शास्त्रीय परम्परा को सुरक्षित बनाए रखना।
- शास्त्रों का अनुवाद कार्य करना।
- आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समस्याओं के लिए शास्त्रों का औचित्य स्थापित करना।
- अध्यापकों के लिए आधुनिक एवं शास्त्रीय ज्ञान में गहन अध्ययनार्थ साधन उपलब्ध कराना।
- इन सभी क्षेत्रों में प्रवीणता प्राप्त करना, जिससे विद्यापीठ अपना विशिष्ट स्थान बना सके।[2]
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