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'''इंदिरा पर्यावरण भवन''' (''Indira Paryavaran Bhawan'') [[भारत]] की ऐसी पहली और अकेली इमारत है जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक ऊर्जा पर निर्भर है। इस इमारत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ऑफिस के कामकाज को बेहतर ढंग से चलाने के लिए बाहरी ऊर्जा (बिजली) की जरूरत नहीं है। इसकी छत पर देश का सबसे बड़ा सोलर सिस्टम लगा है। तत्कालीन पूर्व [[प्रधानमंत्री]] [[मनमोहन सिंह|डॉ. मनमोहन सिंह]] ने इसका शिलान्यास किया था। यह 7 मंजिला इमारत तकरीबन 32 हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में बनी है। इस इमारत की लागत 209 करोड़ रुपए आई है। पूरी तरह भूकंपरोधी इस इमारत के एक चौथाई हिस्से में पेड़ रोपे गए हैं और विशेष रूप से घास भी उगाई है। | |||
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इंदिरा पर्यावरण भवन की योजना आधुनिक लैंडमार्क भवन के रूप में की गई, जिसमें विपरीत पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए प्राकृतिक क्षेत्रों और वृक्षों के संरक्षण, पर्याप्त प्राकृतिक रोशनी उपलब्ध कराने, परिवेशी तापमान को कम करने के लिए छायादार लैंडस्केप्ड क्षेत्रों, अधिकतम ऊर्जा बचत प्रणाली एवं हरित भवन संकल्पना द्वारा न्यूनतम प्रचालन लागत, अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण द्वारा [[जल]] का पुन: उपयोग सहित, जल आवश्यकताओं का संरक्षण इष्टतमीकरण और शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के लिए भवन को अनुकूल बनाने पर बल देना है। | इंदिरा पर्यावरण भवन की योजना आधुनिक लैंडमार्क भवन के रूप में की गई, जिसमें विपरीत पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए प्राकृतिक क्षेत्रों और वृक्षों के संरक्षण, पर्याप्त प्राकृतिक रोशनी उपलब्ध कराने, परिवेशी तापमान को कम करने के लिए छायादार लैंडस्केप्ड क्षेत्रों, अधिकतम ऊर्जा बचत प्रणाली एवं हरित भवन संकल्पना द्वारा न्यूनतम प्रचालन लागत, अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण द्वारा [[जल]] का पुन: उपयोग सहित, जल आवश्यकताओं का संरक्षण इष्टतमीकरण और शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के लिए भवन को अनुकूल बनाने पर बल देना है। | ||
==महत्त्वपूर्ण तथ्य== | ==महत्त्वपूर्ण तथ्य== | ||
#इंदिरा पर्यावरण भवन में पीक आवर में एनर्जी की मांग 930 किलोवाट है। | |||
#इस इमारत को इस तरह से डिजाइन किया गया है ताकि दिन के प्रकाश का 75 फीसदी इस्तेमाल ऊर्जा खपत में कमी लाने में सहायक हो सके। | |||
#यहां पैदा होने वाली बिजली को एनडीएमसी के स्थानीय ग्रिड में भेजा जाएगा। | |||
#40 फीसदी ऊर्जा की बचत एयरकंडीशन में चील्ड बीम का इस्तेमाल कर बचाया जा रहा है। यह एक अलग तकनीक है जिसमें कूलिंग की प्रक्रिया पारंपरिक तरीके से नहीं करके नए तकनीक से की जाती है। | |||
#इस इमारत के निर्माण में पूरा ग्रीन मटेरियल (राख से बने ईंट, रिसाइकल की गई वस्तुओं से बने सामान) लगा है। | |||
#इसे ऐसे डिजाइन किया गया है कि विकलांग व्यक्ति भी आसानी से पहुंच सके। | |||
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#इस इमारत के आसपास से खासतौर से घास उगाई गई है। खासतौर से बनी ग्रास पेवर ब्लाक्स रोड पर लगाए गए हैं। | |||
#इमारत में पानी का उपयोग भी बेहद कम होता है। कम मात्रा में निकलने वाले पानी को सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट की मदद से रिसाइकल किया जाता है। | |||
#यहां के लैंडस्केपिंग भी इस तरह की गई है, जिससे पानी की खपत को कम किया जा सके। | |||
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परियोजना की अनुमानित कुल लागत 128.63 करोड़ रुपये है। कार्य क्षेत्र में परवर्ती वृद्धि के कारण लक्षित संशोधित लागत 201.49 करोड़ रुपये है। भवन में आरसीसी फ्रेम संरचना के साथ 3 बेसमेंट और ग्राउंड + 6 एवं ग्राउंड + 7 वाले 2 ब्लॉक हैं। कुल प्लाट क्षेत्र 9565.13 वर्ग मीटर, बेसमेंट क्षेत्र 11,826 वर्ग मीटर, सुंदर संरचना क्षेत्र 19,088 वर्ग मीटर और कुल प्लींथ क्षेत्र 30,914 वर्ग मीटर है। | परियोजना की अनुमानित कुल लागत 128.63 करोड़ रुपये है। कार्य क्षेत्र में परवर्ती वृद्धि के कारण लक्षित संशोधित लागत 201.49 करोड़ रुपये है। भवन में आरसीसी फ्रेम संरचना के साथ 3 बेसमेंट और ग्राउंड + 6 एवं ग्राउंड + 7 वाले 2 ब्लॉक हैं। कुल प्लाट क्षेत्र 9565.13 वर्ग मीटर, बेसमेंट क्षेत्र 11,826 वर्ग मीटर, सुंदर संरचना क्षेत्र 19,088 वर्ग मीटर और कुल प्लींथ क्षेत्र 30,914 वर्ग मीटर है। | ||
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11:35, 20 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
इंदिरा पर्यावरण भवन
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विवरण | 'इंदिरा पर्यावरण भवन' भारत की ऐसी पहली और अकेली इमारत है जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक ऊर्जा पर निर्भर है। |
देश | भारत |
क्षेत्र | नई दिल्ली |
शिलान्यास | पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा |
अन्य जानकारी | इस इमारत को इस तरह से डिजाइन किया गया है ताकि दिन के प्रकाश का 75 फीसदी इस्तेमाल ऊर्जा खपत में कमी लाने में सहायक हो सके। |
इंदिरा पर्यावरण भवन (Indira Paryavaran Bhawan) भारत की ऐसी पहली और अकेली इमारत है जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक ऊर्जा पर निर्भर है। इस इमारत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ऑफिस के कामकाज को बेहतर ढंग से चलाने के लिए बाहरी ऊर्जा (बिजली) की जरूरत नहीं है। इसकी छत पर देश का सबसे बड़ा सोलर सिस्टम लगा है। तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसका शिलान्यास किया था। यह 7 मंजिला इमारत तकरीबन 32 हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में बनी है। इस इमारत की लागत 209 करोड़ रुपए आई है। पूरी तरह भूकंपरोधी इस इमारत के एक चौथाई हिस्से में पेड़ रोपे गए हैं और विशेष रूप से घास भी उगाई है।
उद्देश्य
इंदिरा पर्यावरण भवन की योजना आधुनिक लैंडमार्क भवन के रूप में की गई, जिसमें विपरीत पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए प्राकृतिक क्षेत्रों और वृक्षों के संरक्षण, पर्याप्त प्राकृतिक रोशनी उपलब्ध कराने, परिवेशी तापमान को कम करने के लिए छायादार लैंडस्केप्ड क्षेत्रों, अधिकतम ऊर्जा बचत प्रणाली एवं हरित भवन संकल्पना द्वारा न्यूनतम प्रचालन लागत, अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण द्वारा जल का पुन: उपयोग सहित, जल आवश्यकताओं का संरक्षण इष्टतमीकरण और शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के लिए भवन को अनुकूल बनाने पर बल देना है।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- इंदिरा पर्यावरण भवन में पीक आवर में एनर्जी की मांग 930 किलोवाट है।
- इस इमारत को इस तरह से डिजाइन किया गया है ताकि दिन के प्रकाश का 75 फीसदी इस्तेमाल ऊर्जा खपत में कमी लाने में सहायक हो सके।
- यहां पैदा होने वाली बिजली को एनडीएमसी के स्थानीय ग्रिड में भेजा जाएगा।
- 40 फीसदी ऊर्जा की बचत एयरकंडीशन में चील्ड बीम का इस्तेमाल कर बचाया जा रहा है। यह एक अलग तकनीक है जिसमें कूलिंग की प्रक्रिया पारंपरिक तरीके से नहीं करके नए तकनीक से की जाती है।
- इस इमारत के निर्माण में पूरा ग्रीन मटेरियल (राख से बने ईंट, रिसाइकल की गई वस्तुओं से बने सामान) लगा है।
- इसे ऐसे डिजाइन किया गया है कि विकलांग व्यक्ति भी आसानी से पहुंच सके।
- इस इमारत में जूट और बांस का इस्तेमाल भी किया गया है।
- यूपीवीसी की खिड़कियां डबल ग्लास से सील की गई है। कैल्शियम सिलिकेट के बने सीलिंग टाइल्स लगे हैं।
- इस इमारत के आसपास से खासतौर से घास उगाई गई है। खासतौर से बनी ग्रास पेवर ब्लाक्स रोड पर लगाए गए हैं।
- इमारत में पानी का उपयोग भी बेहद कम होता है। कम मात्रा में निकलने वाले पानी को सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट की मदद से रिसाइकल किया जाता है।
- यहां के लैंडस्केपिंग भी इस तरह की गई है, जिससे पानी की खपत को कम किया जा सके।
- इस इमारत को ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट से 5 स्टार रेटिंग मिली है।[1]
क्या है जीरो नेट एनर्जी
जीरो नेट एनर्जी बिल्डिंग या नेट जीरो बिल्डिंग का मतलब यह है कि साल भर के दौरान यहां पर जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होगी वह यहां सोलर सिस्टम के जरिए उत्पादित रिन्युएबल इनर्जी के करीब बराबर होगी। यूरोप के कई देशों में इसे कार्बन फुट प्रिंट कम करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है ताकि वातावरण स्वच्छ रह सके।
लागत
परियोजना की अनुमानित कुल लागत 128.63 करोड़ रुपये है। कार्य क्षेत्र में परवर्ती वृद्धि के कारण लक्षित संशोधित लागत 201.49 करोड़ रुपये है। भवन में आरसीसी फ्रेम संरचना के साथ 3 बेसमेंट और ग्राउंड + 6 एवं ग्राउंड + 7 वाले 2 ब्लॉक हैं। कुल प्लाट क्षेत्र 9565.13 वर्ग मीटर, बेसमेंट क्षेत्र 11,826 वर्ग मीटर, सुंदर संरचना क्षेत्र 19,088 वर्ग मीटर और कुल प्लींथ क्षेत्र 30,914 वर्ग मीटर है।
स्थल आयोजना
- इस नए कार्यालय भवन के निर्माण हेतु 7.4 हेक्टेयर भूमि में से 9565 वर्ग मी. के एक प्लॉट पर निर्माण किया गया।
- यह भूमि क्षेत्रीय योजना के क्षेत्र-डी में आती है। एमपीडी-21 के अनुसार यह समस्त भूमि आवासीय थी और भूमि का यह भाग सरकारी कार्यालय में परिवर्तित किया गया। भूमि के शेष भाग में जीपीआरए का निर्माण प्रस्तावित है।
- यह स्थल पूर्व में एनडीएमसी आवासीय परिसर एवं 15 मी. आरओडब्ल्यू, पश्चिम में 12 मीटर आरओडब्ल्यू, उत्तर में लोधी कॉलोनी एवं 12 मीटर आरओडब्ल्यू तथा दक्षिण में अलीगंज की जीपीआरए कॉलोनी से घिरा हुआ है।
- इस प्लॉट पर अरबिंदो मार्ग एवं लोधी रोड से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- मेट्रो स्टेशन जोरबाग इस स्थान से लगभग 300 मी. दूरी पर स्थित है।
ऊर्जा दक्षता
- ऊर्जा की मांग को कम करने के लिए ऊर्जा संरक्षण बिल्डिंग कोड, 2007 के अनुरूप ऊर्जा दक्ष लाइट फिटिंग।
- परिवर्ती आवृत्ति ड्राईवस के साथ डबल स्किन एयर हैंडलिंग, वाटर कूल्ड चिल्लर्स।
- जियोथर्मल यंत्र द्वारा पार्ट कंडेंसर वाटर हीट रिजेक्शन/यह एचवीएसी प्रणाली के लिए टावरों की कूलिंग के लिए जल संरक्षण में भी सहायता करेगा।
- ऊर्जा खपत, निष्पादन मॉनीटरिंग आदि के इष्टतम उपयोग के लिए एकीकृत भवन प्रबंधन प्रणाली (आईबीएमएस)
- विद्युत उपस्टेशन के लिए हाई इफिशेन्सी कास्ट रेसिन ड्राई ट्रांसफोमर्स/कैपटिव पावर जनरेशन के लिए डीजी सेट।
- रिजनरेटिव लिफ्टस
- चिल्ड बीम्स एएचयू/एफसीयू फेन पावर खपत में लगभग 50 किलोवाट की बचत करते हैं।
- वीएफडी के माध्यम से परिवर्ती चिल्ड वॉटर पम्पिंग प्रणाली
- कूलिंग टावर फेनस एवं एएचयू पर वीएफडी
- सेंसिबल एंड लेटेंट हीट एनर्जी रिकवरी व्हृील के माध्यम से टॉयलेट इगजॉस्ट से स्वच्छ हवा की प्री कूलिंग
- सौर पैनल के माध्यम से पूर्ण गर्म जल उत्पादन
- टी-5 लैम्पस के साथ ऊर्जा दक्ष लाइटिंग फिक्स्चर का उपयोग
- आर्टिफिशियल लाइटिंग के इष्टतम प्रचालन से लक्स लेवर सेंसर का उपयोग
- आईबीएमएस के माध्यम से सभी प्रणालियों के एचवीएसी उपस्कर और मॉनीटरिंग का नियंत्रण
- सोलर पावर्ड एक्सटर्नल लाइटिंग
- संपूर्ण ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए सौर
- फोटोवोल्टेक सेल्स के साथ स्थल नवीनीकरण ऊर्जा प्रणाली।
इंडोर वायु गुणवत्ता
- निम्न वीओसी पेंट्स का उपयोग
- धुम्रपान निषेध क्षेत्र
- धूल नियंत्रण
- ध्वनि नियंत्रण
नवाचार और डिजाइन
- जियोथर्मल हीट रिजेक्शन, जो एचवीएसी प्रणाली हेतु टावरों को ठंडा करने के लिए जल संरक्षण में सहायता करेगा।
- एचवीएसी हेतु चिल्ड बीम प्रणाली
- रिजनरेटिव लिफ्ट
- समस्त ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए उच्च दक्षता सौर पैनल
- जगह और ऊर्जा के उचित प्रयोग हेतु यंत्रीकृत कार पार्किंग
- आर्गेनिक अपशिष्ट के बायो डाइजेशन हेतु निम्न ऊर्जा ईएम प्रौद्योगिकी
- भवन परिसर में ताप प्रवेश को कम करने के लिए सौर निष्क्रिय डिजाइन और 75% से अधिक के इंडोर क्षेत्र में बिजली देना।
- संपर्क
पी. भगत सिंह
परियोजना प्रबंधक
इंदिरा पर्यावरण भवन
अलीगंज, जोरबाग रोड
नई दिल्ली-110003
ईमेल : pmipbcpwd[at]gmail[dot]com
दूरभाष : 011-24645586
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इंदिरा पर्यावरण भवन, देश की पहली नेट जीरो एनर्जी बिल्डिंग (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2018।