"हिन्दू काल गणना": अवतरणों में अंतर
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[[हिन्दू धर्म]] में समय की बहुत ही व्यापक धारणा है। क्षण के हजारवें हिस्से से भी कम से शुरू होने वाली काल गणना [[ब्रह्मा]] के 100 वर्ष पर भी समाप्त नहीं होती। [[हिन्दू]] मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं। | [[हिन्दू धर्म]] में समय की बहुत ही व्यापक धारणा है। क्षण के हजारवें हिस्से से भी कम से शुरू होने वाली काल गणना [[ब्रह्मा]] के 100 वर्ष पर भी समाप्त नहीं होती। [[हिन्दू]] मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं। | ||
==भारतीय काल गणना== | ==भारतीय काल गणना== | ||
विज्ञान के अनुसार विश्व का सबसे छोटा तत्व परमाणु है। हमारे प्राचीन विद्वानों ने भी कालचक्र का वर्णन करते समय काल की सबसे छोटी इकाई के रूप में परमाणु को ही स्वीकारा है। [[वायु पुराण]] में दिए गए विभिन्न काल खंडों के विवरण के अनुसार, दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं से एक त्रुटि, 100 त्रुटियों से एक वेध, तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) बनता है। इसी प्रकार तीन निमेष से एक काष्ठा, 15 काष्ठा से एक लघु, 15 लघु से एक नाडिका, दो नाडिका से एक मुहूर्त, छह नाडिका से एक प्रहर तथा आठ प्रहर का एक दिन और एक रात बनते हैं। [[दिन]] और [[रात्रि]] की गणना साठ घड़ी में भी की जाती है। तदनुसार प्रचलित एक घंटे को ढाई घड़ी के बराबर कहा जा सकता है। एक [[मास]] में 15-15 दिन के दो [[पक्ष]] होते हैं। [[शुक्ल पक्ष]] और [[कृष्ण पक्ष]]। [[सूर्य]] की दिशा की दृष्टि से [[वर्ष]] में भी छह-छह माह के दो [[अयन]] माने गए हैं- [[उत्तरायण]] तथा [[दक्षिणायन]]। [[वैदिक काल]] में वर्ष के 12 महीनों के नाम [[ऋतु|ऋतुओं]] के आधार पर रखे गए थे। बाद में उन नामों को [[नक्षत्र|नक्षत्रों]] के आधार पर परिवर्तित कर दिया गया, जो अब तक यथावत हैं। [[चैत्र]], [[वैशाख]], [[ज्येष्ठ]], [[आषाढ़]], [[श्रावण]], [[भाद्रपद]], [[आश्विन]], [[कार्तिक]], [[मार्गशीर्ष]], [[पौष]], [[माघ]] और [[फाल्गुन]]। इसी प्रकार दिनों के नाम [[ग्रह|ग्रहों]] के नाम पर रखे गए- [[रविवार|रवि]], [[सोमवार|सोम]] (चंद्रमा), [[मंगलवार|मंगल]], [[बुधवार|बुध]], [[गुरुवार|गुरु]], [[शुक्रवार|शुक्र]] और [[शनिवार|शनि]]। इस प्रकार काल खंडों को निश्चित आधार पर निश्चित नाम दिए गए और पल-पल की गणना स्पष्ट की गई। | विज्ञान के अनुसार विश्व का सबसे छोटा तत्व परमाणु है। हमारे प्राचीन विद्वानों ने भी कालचक्र का वर्णन करते समय काल की सबसे छोटी इकाई के रूप में परमाणु को ही स्वीकारा है। [[वायु पुराण]] में दिए गए विभिन्न काल खंडों के विवरण के अनुसार, दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं से एक त्रुटि, 100 त्रुटियों से एक वेध, तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) बनता है। इसी प्रकार तीन निमेष से एक काष्ठा, 15 काष्ठा से एक लघु, 15 लघु से एक नाडिका, दो नाडिका से एक मुहूर्त, छह नाडिका से एक प्रहर तथा आठ प्रहर का एक दिन और एक रात बनते हैं। [[दिन]] और [[रात्रि]] की गणना साठ घड़ी में भी की जाती है। तदनुसार प्रचलित एक घंटे को ढाई घड़ी के बराबर कहा जा सकता है। एक [[मास]] में 15-15 दिन के दो [[पक्ष]] होते हैं। [[शुक्ल पक्ष]] और [[कृष्ण पक्ष]]। [[सूर्य]] की दिशा की दृष्टि से [[वर्ष]] में भी छह-छह माह के दो [[अयन]] माने गए हैं- [[उत्तरायण]] तथा [[दक्षिणायन]]। [[वैदिक काल]] में वर्ष के 12 महीनों के नाम [[ऋतु|ऋतुओं]] के आधार पर रखे गए थे। बाद में उन नामों को [[नक्षत्र|नक्षत्रों]] के आधार पर परिवर्तित कर दिया गया, जो अब तक यथावत हैं। [[चैत्र]], [[वैशाख]], [[ज्येष्ठ]], [[आषाढ़]], [[श्रावण]], [[भाद्रपद]], [[आश्विन]], [[कार्तिक]], [[मार्गशीर्ष]], [[पौष]], [[माघ]] और [[फाल्गुन]]। इसी प्रकार दिनों के नाम [[ग्रह|ग्रहों]] के नाम पर रखे गए- [[रविवार|रवि]], [[सोमवार|सोम]] (चंद्रमा), [[मंगलवार|मंगल]], [[बुधवार|बुध]], [[गुरुवार|गुरु]], [[शुक्रवार|शुक्र]] और [[शनिवार|शनि]]। इस प्रकार काल खंडों को निश्चित आधार पर निश्चित नाम दिए गए और पल-पल की गणना स्पष्ट की गई। | ||
====मानव वर्ष और दिव्य वर्ष==== | ====मानव वर्ष और दिव्य वर्ष==== | ||
काल गणना से संबंधित प्राचीन साहित्य में मानव वर्ष और दिव्य वर्ष में भी अंतर किया गया। मानव वर्ष, मनुष्यों का वर्ष है, जो सामान्यत: 360 दिन का होता है। आवश्यकता के अनुसार उसमें घटत- बढ़त होती रहती है। दिव्य वर्ष देवताओं का वर्ष है। वहां छह मास का दिन और छह मास की रात्रि होती है। मनुष्यों के 360 वर्ष मिलकर देवताओं का एक दिव्य वर्ष होता है। मानव की सामान्य आयु 100 वर्ष मानी गई है और देवताओं की 1000 दिव्य वर्ष। कुछ लोगों को देवताओं के अस्तित्व पर संदेह होता है, मगर भारतीय काल गणना का स्वरूप उनको या उनके जैसी किसी अन्य शक्ति को स्वीकारने के लिए प्रेरित करता है। | काल गणना से संबंधित प्राचीन साहित्य में मानव वर्ष और दिव्य वर्ष में भी अंतर किया गया। मानव वर्ष, मनुष्यों का वर्ष है, जो सामान्यत: 360 दिन का होता है। आवश्यकता के अनुसार उसमें घटत-बढ़त होती रहती है। दिव्य वर्ष देवताओं का वर्ष है। वहां छह मास का दिन और छह मास की रात्रि होती है। मनुष्यों के 360 वर्ष मिलकर देवताओं का एक दिव्य वर्ष होता है। मानव की सामान्य आयु 100 वर्ष मानी गई है और देवताओं की 1000 दिव्य वर्ष। कुछ लोगों को देवताओं के अस्तित्व पर संदेह होता है, मगर भारतीय काल गणना का स्वरूप उनको या उनके जैसी किसी अन्य शक्ति को स्वीकारने के लिए प्रेरित करता है। | ||
====संवत्सर, कल्प, मन्वन्तर==== | ====संवत्सर, कल्प, मन्वन्तर==== | ||
[[भारत]] में सबसे पुराना संवत्सर, सृष्टि-संवत्सर माना गया है। इसका प्रारंभ सृष्टि के निर्माण से हुआ और सृष्टि के अंत के साथ ही इस संवत्सर का भी अंत होगा। यही सृष्टि-संवत्सर, एक [[कल्प]] का [[ब्रह्मा]] का एक दिन माना गया है। सृष्टि संवत्सर की पूरी गणना प्राचीन ग्रंथों में दी हुई है। उसके अनुसार 2005 में सृष्टि और उसके साथ सूर्य को बने 1,96,08,53,105 मानव वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। सृष्टि की कुल आयु 4320000000 वर्ष मानी गई है। इसमें से वर्तमान आयु निकालकर सृष्टि की शेष आयु 2,35,91,46,895 वर्ष है। तदुपरांत महाप्रलय निश्चित है। इसके बाद ब्रह्मा की रात्रि प्रारंभ होगी। यह रात्रि 4320000000 मानव वर्षों की ही होगी, जिसे प्रलय कहा गया है। इसके उपरांत सृष्टि के पुनर्निर्माण के साथ ब्रह्मा का नया दिन शुरू होगा। इस प्रकार ब्रह्मा का एक अहोरात्र 8640000000 मानव वर्षों का होता है। ब्रह्मा को परमेष्ठी मंडल की संज्ञा दी गई है, जिसके चारों और सूर्य चक्कर लगाता है। ब्रह्मा के अहोरात्र को 360 से गुणा करने पर एक ब्राह्म वर्ष बनता है तथा उसे 100 से गुणा करने पर ब्राह्म युग होता है। इसी प्रकार काल गणना का क्रम आगे चलता है। यहां यह दृष्टव्य है कि आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी एक ऐसा केंद्र बिंदु है, जिसके चारों ओर सभी [[आकाशगंगा|आकाशगंगाएं]] चक्कर लगाती हैं। संभवत: इस केंद्र बिंदु को ही | [[भारत]] में सबसे पुराना संवत्सर, सृष्टि-संवत्सर माना गया है। इसका प्रारंभ सृष्टि के निर्माण से हुआ और सृष्टि के अंत के साथ ही इस संवत्सर का भी अंत होगा। यही सृष्टि-संवत्सर, एक [[कल्प]] का [[ब्रह्मा]] का एक दिन माना गया है। सृष्टि संवत्सर की पूरी गणना प्राचीन ग्रंथों में दी हुई है। उसके अनुसार 2005 में सृष्टि और उसके साथ सूर्य को बने 1,96,08,53,105 मानव वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। सृष्टि की कुल आयु 4320000000 वर्ष मानी गई है। इसमें से वर्तमान आयु निकालकर सृष्टि की शेष आयु 2,35,91,46,895 वर्ष है। तदुपरांत महाप्रलय निश्चित है। इसके बाद ब्रह्मा की रात्रि प्रारंभ होगी। यह रात्रि 4320000000 मानव वर्षों की ही होगी, जिसे प्रलय कहा गया है। इसके उपरांत सृष्टि के पुनर्निर्माण के साथ ब्रह्मा का नया दिन शुरू होगा। इस प्रकार ब्रह्मा का एक अहोरात्र 8640000000 मानव वर्षों का होता है। ब्रह्मा को परमेष्ठी मंडल की संज्ञा दी गई है, जिसके चारों और सूर्य चक्कर लगाता है। ब्रह्मा के अहोरात्र को 360 से गुणा करने पर एक ब्राह्म वर्ष बनता है तथा उसे 100 से गुणा करने पर ब्राह्म युग होता है। इसी प्रकार काल गणना का क्रम आगे चलता है। यहां यह दृष्टव्य है कि आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी एक ऐसा केंद्र बिंदु है, जिसके चारों ओर सभी [[आकाशगंगा|आकाशगंगाएं]] चक्कर लगाती हैं। संभवत: इस केंद्र बिंदु को ही परमेष्ठी मंडल या ब्रह्मा की संज्ञा दी गई है। इसी प्रकार देवताओं की आयु का संबंध विभिन्न नक्षत्रों या आकाशगंगाओं की आयु से हो सकता है। | ||
सृष्टि के पूर्वोक्त संपूर्ण जीवन को भी अनेक खंडों में बांटा गया है। इसके अनुसार कुल 15 [[मन्वन्तर]] होते हैं, जिनमें से प्रत्येक मन्वन्तर का अधिपति एक मनु होता है। 14 मन्वन्तरों में से प्रत्येक में 71 चतुर्युगी (कृत युग या [[सतयुग]], [[त्रेता युग]], [[द्वापर युग]] तथा [[कलियुग]]) होती हैं। 15वें मन्वन्तर में केवल छह चतुर्युगी होंगी। चतुर्युगी को महायुग भी कहा गया है।<ref>{{cite web |url=https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/holy-discourse/religious-discourse/-/articleshow/1072823.cms|title=काल गणना की भारतीय पद्धति |accessmonthday=28 जनवरी|accessyear=2018 |last=शर्मा |first= | सृष्टि के पूर्वोक्त संपूर्ण जीवन को भी अनेक खंडों में बांटा गया है। इसके अनुसार कुल 15 [[मन्वन्तर]] होते हैं, जिनमें से प्रत्येक मन्वन्तर का अधिपति एक मनु होता है। 14 मन्वन्तरों में से प्रत्येक में 71 चतुर्युगी (कृत युग या [[सतयुग]], [[त्रेता युग]], [[द्वापर युग]] तथा [[कलियुग]]) होती हैं। 15वें मन्वन्तर में केवल छह चतुर्युगी होंगी। चतुर्युगी को महायुग भी कहा गया है।<ref>{{cite web |url=https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/holy-discourse/religious-discourse/-/articleshow/1072823.cms|title=काल गणना की भारतीय पद्धति |accessmonthday=28 जनवरी|accessyear=2018 |last=शर्मा |first= | ||
प्रो. योगेश चंद्र |authorlink= |format= |publisher=नवभारत टाइम्स|language=हिंदी }}</ref> | प्रो. योगेश चंद्र |authorlink= |format= |publisher=नवभारत टाइम्स|language=हिंदी }}</ref> | ||
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# ब्रह्मा काल : (प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु और शिव का काल) | # ब्रह्मा काल : (प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु और शिव का काल) | ||
# स्वायम्भुव मनु काल : (प्रथम मानव का काल 9057 ईसा पूर्व से प्रारंभ) | # स्वायम्भुव मनु काल : (प्रथम मानव का काल 9057 ईसा पूर्व से प्रारंभ) | ||
# वैवस्वत मनु काल : (6673 ईसा पूर्व से) | # वैवस्वत मनु काल : (6673 ईसा पूर्व से) | ||
# राम का काल : (5114 ईस्वी पूर्व से 3000 ईस्वी पूर्व के बीच) | # राम का काल : (5114 ईस्वी पूर्व से 3000 ईस्वी पूर्व के बीच) | ||
# कृष्ण का काल : (3112 ईस्वी पूर्व से 2000 ईस्वी पूर्व के बीच) | # कृष्ण का काल : (3112 ईस्वी पूर्व से 2000 ईस्वी पूर्व के बीच) | ||
# सिंधु घाटी सभ्यता का काल : (3300-1700 ईस्वी पूर्व के बीच) | # सिंधु घाटी सभ्यता का काल : (3300-1700 ईस्वी पूर्व के बीच) | ||
# हड़प्पा काल : (1700-1300 ईस्वी पूर्व के बीच) | # हड़प्पा काल : (1700-1300 ईस्वी पूर्व के बीच) | ||
# आर्य सभ्यता का काल : (1500-500 ईस्वी पूर्व के बीच) | # आर्य सभ्यता का काल : (1500-500 ईस्वी पूर्व के बीच) | ||
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# औपनिवेशिक काल : (1760-1947 ईस्वी पश्चात) | # औपनिवेशिक काल : (1760-1947 ईस्वी पश्चात) | ||
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==बाहरी कडियाँ== | |||
*[http://vaigyanik-bharat.blogspot.in/2010/06/blog-post_5312.html कालगणना-3 : आदि से अंत तक जानने की अनूठी भारतीय विधि ] | |||
*[http://hindi.webdunia.com/article/sanatan-dharma-history/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%8F-113102600004_1.htm ब्रह्म काल : हिन्दू कालगणना को जानिए] | |||
*[http://physicsandveda.blogspot.in/2014/09/astrology-quantum-physics.html काल गणना- समय की गणना प्राचीन भारत में ] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{काल गणना}} | {{काल गणना}} |
09:46, 2 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
हिन्दू धर्म में समय की बहुत ही व्यापक धारणा है। क्षण के हजारवें हिस्से से भी कम से शुरू होने वाली काल गणना ब्रह्मा के 100 वर्ष पर भी समाप्त नहीं होती। हिन्दू मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं।
भारतीय काल गणना
विज्ञान के अनुसार विश्व का सबसे छोटा तत्व परमाणु है। हमारे प्राचीन विद्वानों ने भी कालचक्र का वर्णन करते समय काल की सबसे छोटी इकाई के रूप में परमाणु को ही स्वीकारा है। वायु पुराण में दिए गए विभिन्न काल खंडों के विवरण के अनुसार, दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं से एक त्रुटि, 100 त्रुटियों से एक वेध, तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) बनता है। इसी प्रकार तीन निमेष से एक काष्ठा, 15 काष्ठा से एक लघु, 15 लघु से एक नाडिका, दो नाडिका से एक मुहूर्त, छह नाडिका से एक प्रहर तथा आठ प्रहर का एक दिन और एक रात बनते हैं। दिन और रात्रि की गणना साठ घड़ी में भी की जाती है। तदनुसार प्रचलित एक घंटे को ढाई घड़ी के बराबर कहा जा सकता है। एक मास में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। सूर्य की दिशा की दृष्टि से वर्ष में भी छह-छह माह के दो अयन माने गए हैं- उत्तरायण तथा दक्षिणायन। वैदिक काल में वर्ष के 12 महीनों के नाम ऋतुओं के आधार पर रखे गए थे। बाद में उन नामों को नक्षत्रों के आधार पर परिवर्तित कर दिया गया, जो अब तक यथावत हैं। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। इसी प्रकार दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर रखे गए- रवि, सोम (चंद्रमा), मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि। इस प्रकार काल खंडों को निश्चित आधार पर निश्चित नाम दिए गए और पल-पल की गणना स्पष्ट की गई।
मानव वर्ष और दिव्य वर्ष
काल गणना से संबंधित प्राचीन साहित्य में मानव वर्ष और दिव्य वर्ष में भी अंतर किया गया। मानव वर्ष, मनुष्यों का वर्ष है, जो सामान्यत: 360 दिन का होता है। आवश्यकता के अनुसार उसमें घटत-बढ़त होती रहती है। दिव्य वर्ष देवताओं का वर्ष है। वहां छह मास का दिन और छह मास की रात्रि होती है। मनुष्यों के 360 वर्ष मिलकर देवताओं का एक दिव्य वर्ष होता है। मानव की सामान्य आयु 100 वर्ष मानी गई है और देवताओं की 1000 दिव्य वर्ष। कुछ लोगों को देवताओं के अस्तित्व पर संदेह होता है, मगर भारतीय काल गणना का स्वरूप उनको या उनके जैसी किसी अन्य शक्ति को स्वीकारने के लिए प्रेरित करता है।
संवत्सर, कल्प, मन्वन्तर
भारत में सबसे पुराना संवत्सर, सृष्टि-संवत्सर माना गया है। इसका प्रारंभ सृष्टि के निर्माण से हुआ और सृष्टि के अंत के साथ ही इस संवत्सर का भी अंत होगा। यही सृष्टि-संवत्सर, एक कल्प का ब्रह्मा का एक दिन माना गया है। सृष्टि संवत्सर की पूरी गणना प्राचीन ग्रंथों में दी हुई है। उसके अनुसार 2005 में सृष्टि और उसके साथ सूर्य को बने 1,96,08,53,105 मानव वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। सृष्टि की कुल आयु 4320000000 वर्ष मानी गई है। इसमें से वर्तमान आयु निकालकर सृष्टि की शेष आयु 2,35,91,46,895 वर्ष है। तदुपरांत महाप्रलय निश्चित है। इसके बाद ब्रह्मा की रात्रि प्रारंभ होगी। यह रात्रि 4320000000 मानव वर्षों की ही होगी, जिसे प्रलय कहा गया है। इसके उपरांत सृष्टि के पुनर्निर्माण के साथ ब्रह्मा का नया दिन शुरू होगा। इस प्रकार ब्रह्मा का एक अहोरात्र 8640000000 मानव वर्षों का होता है। ब्रह्मा को परमेष्ठी मंडल की संज्ञा दी गई है, जिसके चारों और सूर्य चक्कर लगाता है। ब्रह्मा के अहोरात्र को 360 से गुणा करने पर एक ब्राह्म वर्ष बनता है तथा उसे 100 से गुणा करने पर ब्राह्म युग होता है। इसी प्रकार काल गणना का क्रम आगे चलता है। यहां यह दृष्टव्य है कि आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी एक ऐसा केंद्र बिंदु है, जिसके चारों ओर सभी आकाशगंगाएं चक्कर लगाती हैं। संभवत: इस केंद्र बिंदु को ही परमेष्ठी मंडल या ब्रह्मा की संज्ञा दी गई है। इसी प्रकार देवताओं की आयु का संबंध विभिन्न नक्षत्रों या आकाशगंगाओं की आयु से हो सकता है। सृष्टि के पूर्वोक्त संपूर्ण जीवन को भी अनेक खंडों में बांटा गया है। इसके अनुसार कुल 15 मन्वन्तर होते हैं, जिनमें से प्रत्येक मन्वन्तर का अधिपति एक मनु होता है। 14 मन्वन्तरों में से प्रत्येक में 71 चतुर्युगी (कृत युग या सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग तथा कलियुग) होती हैं। 15वें मन्वन्तर में केवल छह चतुर्युगी होंगी। चतुर्युगी को महायुग भी कहा गया है।[1]
ब्रह्म काल
- ब्रह्म काल : (सृष्टि उत्पत्ति से प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति तक)
- ब्रह्मा काल : (प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु और शिव का काल)
- स्वायम्भुव मनु काल : (प्रथम मानव का काल 9057 ईसा पूर्व से प्रारंभ)
- वैवस्वत मनु काल : (6673 ईसा पूर्व से)
- राम का काल : (5114 ईस्वी पूर्व से 3000 ईस्वी पूर्व के बीच)
- कृष्ण का काल : (3112 ईस्वी पूर्व से 2000 ईस्वी पूर्व के बीच)
- सिंधु घाटी सभ्यता का काल : (3300-1700 ईस्वी पूर्व के बीच)
- हड़प्पा काल : (1700-1300 ईस्वी पूर्व के बीच)
- आर्य सभ्यता का काल : (1500-500 ईस्वी पूर्व के बीच)
- बौद्ध काल : (563-320 ईस्वी पूर्व के बीच)
- मौर्य काल : (321 से 184 ईस्वी पूर्व के बीच)
- गुप्तकाल : (240 ईस्वी से 800 ईस्वी तक के बीच)
- मध्यकाल : (600 ईस्वी से 1800 ईस्वी तक)
- औपनिवेशिक काल : (1760-1947 ईस्वी पश्चात)
- आज़ाद भारत का काल : (1947 से प्रारंभ)[2]
सबसे छोटा अंश परमाणु
भारतीय काल गणना में सबसे छोटा अंश परमाणु होता है।
- 1. एक तृसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय अणु।
- 2. एक त्रुटि = 3 तृसरेणु या सेकंड का 1/1687.5 भाग।
- 3. एक वेध = 100 त्रुटि।
- 4. एक लावा = 3 वेध।
- 5. एक निमेष = 3 लावा या पलक झपकना।
- 6. एक क्षण = 3 निमेष।
- 7. एक काष्ठा = 5 क्षण अर्थात 8 सेकंड।
- 8. एक लघु = 15 काष्ठा अर्थात 2 मिनट। आधा लघु अर्थात 1 मिनट।
- 9. पंद्रह लघु = एक नाड़ी, जिसे दंड भी कहते हैं अर्थात लगभग 30 मिनट।
- 10. दो दंड = एक मुहूर्त अर्थात लगभग 1 घंटे से ज्यादा।
- 11. सात मुहूर्त = एक याम या एक चौथाई दिन या रात्रि।
- 12. चार याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि।
- 13. पंद्रह दिवस = एक पक्ष। एक पक्ष में पंद्रह तिथियां होती हैं।
- 14. दो पक्ष = एक माह। (पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष)
- 15. दो माह = एक ॠतु।
- 16. तीन ऋतु = एक अयन
- 17. दो अयन = एक वर्ष।
- 18. एक वर्ष = देवताओं का एक दिन जिसे दिव्य वर्ष कहते हैं।
- 19. 12,000 दिव्य वर्ष = एक महायुग (चारों युगों को मिलाकर एक महायुग)
- 20. 71 महायुग = 1 मन्वंतर (लगभग 30,84,48,000 मानव वर्ष बाद प्रलय काल)
- 21. चौदह मन्वंतर = एक कल्प।
- 22. एक कल्प = ब्रह्मा का एक दिन। (ब्रह्मा का एक दिन बीतने के बाद महाप्रलय होती है और फिर इतनी ही लंबी रात्रि होती है)। इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु 100 वर्ष होती है। उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।
- मन्वंतर की अवधि : विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। एक मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शर्मा, प्रो. योगेश चंद्र। काल गणना की भारतीय पद्धति (हिंदी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2018।
- ↑ हिन्दू इतिहास काल का संक्षिप्त परिचय (हिंदी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2018।
- ↑ ब्रह्म काल : हिन्दू कालगणना को जानिए (हिंदी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2018।
बाहरी कडियाँ
- कालगणना-3 : आदि से अंत तक जानने की अनूठी भारतीय विधि
- ब्रह्म काल : हिन्दू कालगणना को जानिए
- काल गणना- समय की गणना प्राचीन भारत में