"नरेंद्र शर्मा": अवतरणों में अंतर
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'''पंडित नरेंद्र शर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narendra Sharma'', जन्म: 28 फ़रवरी, 1913 | {{सूचना बक्सा साहित्यकार | ||
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|चित्र का नाम=पंडित नरेंद्र शर्मा | |||
|पूरा नाम=पंडित नरेंद्र शर्मा | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[28 फ़रवरी]], [[1913]] | |||
|जन्म भूमि=[[खुर्जा]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
|मृत्यु=[[11 फ़रवरी]], [[1989]] | |||
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] | |||
|अभिभावक= | |||
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|पति/पत्नी=श्रीमती सुशीला | |||
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|कर्म भूमि=[[भारत]] | |||
|कर्म-क्षेत्र=[[कवि]], लेखक, सम्पादक | |||
|मुख्य रचनाएँ=प्रवासी के गीत, मिट्टी और फूल, अग्निशस्य, मनोकामिनी, ज्वाला-परचूनी आदि। | |||
|विषय= | |||
|भाषा=[[हिन्दी]] | |||
|विद्यालय=[[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] | |||
|शिक्षा=एम.ए. (शिक्षाशास्त्र और [[अंग्रेज़ी]]) | |||
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|पाठ 1=[[1934]] में [[प्रयाग]] में [[अभ्युदय (साप्ताहिक पत्र)|अभ्युदय]] पत्रिका का संपादन किया। | |||
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|अन्य जानकारी=इन्होंने लगभग 55 फ़िल्मों में 650 गीत एवं 'महाभारत' का पटकथा-लेखन और गीत-रचना की। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी भी रहे। | |||
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'''पंडित नरेंद्र शर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pandit Narendra Sharma'', जन्म: [[28 फ़रवरी]], [[1913]]; मृत्यु: [[11 फ़रवरी]], [[1989]]) [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध [[कवि]], लेखक एवं सम्पादक थे। नरेंद्र शर्मा का जन्म 28 फ़रवरी, 1913 में [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[खुर्जा]] नगर के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से शिक्षाशास्त्र और [[अंग्रेज़ी]] में एम.ए. किया। [[1934]] में [[प्रयाग]] में [[अभ्युदय (साप्ताहिक पत्र)|अभ्युदय]] पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फ़िल्मों में गीत लिखे, [[आकाशवाणी]] से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया। उनके 17 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।<ref>{{cite web |url=http://anubhuti-hindi.org/gauravgram/narendrasharma/index.htm |title=नरेन्द्र शर्मा |accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अनुभूति|language=हिन्दी }}</ref> | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
अल्पायु से ही साहित्यिक रचनायें करते हुए पंडित नरेन्द्र शर्मा ने 21 वर्ष की आयु में पण्डित [[मदन मोहन मालवीय]] द्वारा प्रयाग में स्थापित साप्ताहिक "[[अभ्युदय (साप्ताहिक पत्र)|अभ्युदय]]" से अपनी सम्पादकीय यात्रा आरम्भ की। [[काशी विद्यापीठ]] में [[हिन्दी]] व [[अंग्रेज़ी]] काव्य के प्राध्यापक पद पर रहते हुए [[1940]] में वे ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रशासन विरोधी गतिविधियों के लिये गिरफ़्तार कर लिये गये और [[1943]] में मुक्त होने तक [[वाराणसी]], [[आगरा]] और देवली में विभिन्न कारागारों में [[शचीन्द्रनाथ सान्याल]], सोहनसिंह जोश, [[जयप्रकाश नारायण]] और [[सम्पूर्णानन्द]] जैसे ख्यातिनामों के साथ नज़रबन्द रहे और 19 दिन तक अनशन भी किया। जेल से छूटने पर उन्होंने अनेक फ़िल्मों में गीत लिखे और फिर 1953 से आकाशवाणी से जुड़ गये। इस बीच उनका | अल्पायु से ही साहित्यिक रचनायें करते हुए पंडित नरेन्द्र शर्मा ने 21 वर्ष की आयु में पण्डित [[मदन मोहन मालवीय]] द्वारा प्रयाग में स्थापित साप्ताहिक "[[अभ्युदय (साप्ताहिक पत्र)|अभ्युदय]]" से अपनी सम्पादकीय यात्रा आरम्भ की। [[काशी विद्यापीठ]] में [[हिन्दी]] व [[अंग्रेज़ी]] काव्य के प्राध्यापक पद पर रहते हुए [[1940]] में वे ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रशासन विरोधी गतिविधियों के लिये गिरफ़्तार कर लिये गये और [[1943]] में मुक्त होने तक [[वाराणसी]], [[आगरा]] और देवली में विभिन्न कारागारों में [[शचीन्द्रनाथ सान्याल]], सोहनसिंह जोश, [[जयप्रकाश नारायण]] और [[सम्पूर्णानन्द]] जैसे ख्यातिनामों के साथ नज़रबन्द रहे और 19 दिन तक अनशन भी किया। जेल से छूटने पर उन्होंने अनेक फ़िल्मों में गीत लिखे और फिर 1953 से आकाशवाणी से जुड़ गये। इस बीच उनका लेखन कार्य निर्बाध चलता रहा। [[11 मई]], [[1947]] को [[मुम्बई]] में उनका [[विवाह]] सुशीलाजी से हुआ और [[परिवार]] में तीन पुत्रियों व एक पुत्र का जन्म हुआ।<ref>{{cite web |url=http://pittaudio.blogspot.in/2012/02/hindi-poet-pandit-narendra-sharma.html |title=सादर श्रद्धांजलि - पण्डित नरेन्द्र शर्मा |accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पिट ऑडियो |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==साहित्यिक परिचय== | ==साहित्यिक परिचय== | ||
[[1931]] ई. में पंडित नरेंद्र शर्मा की पहली [[कविता]] 'चांद' में छपी। शीघ्र ही जागरूक, अध्ययनशील और भावुक कवि नरेन्द्र ने उदीयमान नए कवियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। लोकप्रियता में इनका मुकाबला [[हरिवंशराय बच्चन]] से ही हो सकता था। [[1933]] ई. में इनकी पहली कहानी प्रयाग के 'दैनिक भारत' में प्रकाशित हुई। [[1934]] ई. में इन्होंने [[मैथिलीशरण गुप्त]] की काव्यकृति '[[यशोधरा -गुप्त|यशोधरा]]' की समीक्षा भी लिखी। सन् [[1938]] ई. में कविवर [[सुमित्रानंदन पंत]] ने कुंवर सुरेश सिंह के आर्थिक सहयोग से नए सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक स्पंदनों से युक्त 'रूपाभ' नामक पत्र के संपादन करने का निर्णय लिया। इसके संपादन में सहयोग दिया नरेन्द्र शर्मा ने। [[भारतीय संस्कृति]] के प्रमुख ग्रंथ '[[रामायण]]' और '[[महाभारत]]' इनके प्रिय ग्रंथ थे। महाभारत में रुचि होने के कारण ये 'महाभारत' धारावाहिक के निर्माता [[बी. आर. चोपड़ा]] के अंतरंग बन गए। इसलिए जब उन्होंने 'महाभारत' धारावाहिक का निर्माण प्रारंभ किया तो नरेन्द्रजी उनके परामर्शदाता बने। उनके जीवन की अंतिम रचना भी 'महाभारत' का यह दोहा ही है- "शंखनाद ने कर दिया, समारोह का अंत, अंत यही ले जाएगा, कुरुक्षेत्र पर्यन्त"।<ref name="अपनी माटी">{{cite web |url=http://www.apnimaati.com/2013/10/blog-post_5897.html |title=झरोखा: पंडित नरेन्द्र शर्मा |accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अपनी माटी|language=हिन्दी }}</ref> | [[1931]] ई. में पंडित नरेंद्र शर्मा की पहली [[कविता]] 'चांद' में छपी। शीघ्र ही जागरूक, अध्ययनशील और भावुक कवि नरेन्द्र ने उदीयमान नए कवियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। लोकप्रियता में इनका मुकाबला [[हरिवंशराय बच्चन]] से ही हो सकता था। [[1933]] ई. में इनकी पहली कहानी प्रयाग के 'दैनिक भारत' में प्रकाशित हुई। [[1934]] ई. में इन्होंने [[मैथिलीशरण गुप्त]] की काव्यकृति '[[यशोधरा -गुप्त|यशोधरा]]' की समीक्षा भी लिखी। सन् [[1938]] ई. में कविवर [[सुमित्रानंदन पंत]] ने कुंवर सुरेश सिंह के आर्थिक सहयोग से नए सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक स्पंदनों से युक्त 'रूपाभ' नामक पत्र के संपादन करने का निर्णय लिया। इसके संपादन में सहयोग दिया नरेन्द्र शर्मा ने। [[भारतीय संस्कृति]] के प्रमुख ग्रंथ '[[रामायण]]' और '[[महाभारत]]' इनके प्रिय ग्रंथ थे। महाभारत में रुचि होने के कारण ये 'महाभारत' धारावाहिक के निर्माता [[बी. आर. चोपड़ा]] के अंतरंग बन गए। इसलिए जब उन्होंने 'महाभारत' धारावाहिक का निर्माण प्रारंभ किया तो नरेन्द्रजी उनके परामर्शदाता बने। उनके जीवन की अंतिम रचना भी 'महाभारत' का यह दोहा ही है- "शंखनाद ने कर दिया, समारोह का अंत, अंत यही ले जाएगा, कुरुक्षेत्र पर्यन्त"।<ref name="अपनी माटी">{{cite web |url=http://www.apnimaati.com/2013/10/blog-post_5897.html |title=झरोखा: पंडित नरेन्द्र शर्मा |accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अपनी माटी|language=हिन्दी }}</ref> | ||
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|+नरेन्द्र शर्मा की प्रमुख कृतियाँ | |+नरेन्द्र शर्मा की प्रमुख कृतियाँ | ||
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* आधुनिक कवि | * आधुनिक कवि | ||
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* ज्वाला-परचूनी (कहानी-संग्रह, [[1942]] में 'कड़वी-मीठी बात' नाम से प्रकाशित) | * ज्वाला-परचूनी (कहानी-संग्रह, [[1942]] में 'कड़वी-मीठी बात' नाम से प्रकाशित) | ||
* मोहनदास कर्मचंद गांधी:एक प्रेरक जीवनी | * मोहनदास कर्मचंद गांधी:एक प्रेरक जीवनी | ||
* सांस्कृतिक | * सांस्कृतिक संक्रांति और संभावना (भाषण) | ||
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लगभग 55 फ़िल्मों में 650 गीत एवं 'महाभारत' का पटकथा-लेखन और गीत- | लगभग 55 फ़िल्मों में 650 गीत एवं 'महाभारत' का पटकथा-लेखन और गीत-रचना की। | ||
==दिलीप कुमार को दिया नाम== | |||
पंडित नरेंद्र शर्मा उन्नीसवीं सदी के चौथे दशक में ही [[मुंबई]] आ गए थे। बॉम्बे टॉकीज की अधिष्ठार्थी [[देविका रानी]] ने युसुफ़ ख़ान नाम वाले किसी पठान युवा को अपनी फ़िल्म ‘ज्वार-भाटा’ का नायक बनाने की बात जब सोची तो उन्होंने पंडित नरेश शर्मा से पूछा, ′इस युवक को किस फ़िल्मी नाम के साथ परदे पर उतारा जाए।′ पंडित नरेंद्र शर्मा ने उन्हें शायद ‘वासुदेव’ के साथ ‘दिलीप कुमार’ नाम सुझाया। देविका रानी को दिलीप कुमार नाम जंच गया और इस तरह युसुफ़ मियां [[दिलीप कुमार]] के नाम से ‘ज्वार-भाटा’ फ़िल्म के नायक बनकर रुपहले परदे पर आए। चालीस के दशक में उनका गीत ‘नैया को खेवैया के किया हमने हवाले’ ′ज्वारा भाटा′ के साथ ख़ासा लोकप्रिय हुआ था।<ref>{{cite web |url=http://iptanama.blogspot.in/2013/07/blog-post_16.html |title=वह शाम आज भी साथ है |accessmonthday=24 जनवरी|accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इप्टानामा |language= हिन्दी}}</ref> | |||
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[[11 फ़रवरी]], [[1989]] ई. को हृदय-गति रुक जाने से पंडित नरेन्द्र शर्मा का निधन हो गया। | [[11 फ़रवरी]], [[1989]] ई. को [[हृदय]]-गति रुक जाने से पंडित नरेन्द्र शर्मा का निधन [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] में हो गया। | ||
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*[http://www.srijangatha.com/Shesh-vishesh-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-13Apr-2014 सिने-संगीत इंद्र का घोड़ा है : पं. नरेंद्र शर्मा] | *[http://www.srijangatha.com/Shesh-vishesh-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-13Apr-2014 सिने-संगीत इंद्र का घोड़ा है : पं. नरेंद्र शर्मा] | ||
*[http://www.dadinani.com/capture-memories/read-contributions/dada-nana-stories/150-pnadit-narendra-sharma-by-lavanya-shah पडिंत नरेन्द्र शर्मा by Lavanya Shah] | |||
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नरेंद्र शर्मा
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पूरा नाम | पंडित नरेंद्र शर्मा |
जन्म | 28 फ़रवरी, 1913 |
जन्म भूमि | खुर्जा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 11 फ़रवरी, 1989 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | श्रीमती सुशीला |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कवि, लेखक, सम्पादक |
मुख्य रचनाएँ | प्रवासी के गीत, मिट्टी और फूल, अग्निशस्य, मनोकामिनी, ज्वाला-परचूनी आदि। |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
शिक्षा | एम.ए. (शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी) |
नागरिकता | भारतीय |
सम्पादन | 1934 में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। |
अन्य जानकारी | इन्होंने लगभग 55 फ़िल्मों में 650 गीत एवं 'महाभारत' का पटकथा-लेखन और गीत-रचना की। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी भी रहे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
पंडित नरेंद्र शर्मा (अंग्रेज़ी: Pandit Narendra Sharma, जन्म: 28 फ़रवरी, 1913; मृत्यु: 11 फ़रवरी, 1989) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं सम्पादक थे। नरेंद्र शर्मा का जन्म 28 फ़रवरी, 1913 में उत्तर प्रदेश राज्य के खुर्जा नगर के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी में एम.ए. किया। 1934 में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फ़िल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया। उनके 17 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।[1]
जीवन परिचय
अल्पायु से ही साहित्यिक रचनायें करते हुए पंडित नरेन्द्र शर्मा ने 21 वर्ष की आयु में पण्डित मदन मोहन मालवीय द्वारा प्रयाग में स्थापित साप्ताहिक "अभ्युदय" से अपनी सम्पादकीय यात्रा आरम्भ की। काशी विद्यापीठ में हिन्दी व अंग्रेज़ी काव्य के प्राध्यापक पद पर रहते हुए 1940 में वे ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रशासन विरोधी गतिविधियों के लिये गिरफ़्तार कर लिये गये और 1943 में मुक्त होने तक वाराणसी, आगरा और देवली में विभिन्न कारागारों में शचीन्द्रनाथ सान्याल, सोहनसिंह जोश, जयप्रकाश नारायण और सम्पूर्णानन्द जैसे ख्यातिनामों के साथ नज़रबन्द रहे और 19 दिन तक अनशन भी किया। जेल से छूटने पर उन्होंने अनेक फ़िल्मों में गीत लिखे और फिर 1953 से आकाशवाणी से जुड़ गये। इस बीच उनका लेखन कार्य निर्बाध चलता रहा। 11 मई, 1947 को मुम्बई में उनका विवाह सुशीलाजी से हुआ और परिवार में तीन पुत्रियों व एक पुत्र का जन्म हुआ।[2]
साहित्यिक परिचय
1931 ई. में पंडित नरेंद्र शर्मा की पहली कविता 'चांद' में छपी। शीघ्र ही जागरूक, अध्ययनशील और भावुक कवि नरेन्द्र ने उदीयमान नए कवियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। लोकप्रियता में इनका मुकाबला हरिवंशराय बच्चन से ही हो सकता था। 1933 ई. में इनकी पहली कहानी प्रयाग के 'दैनिक भारत' में प्रकाशित हुई। 1934 ई. में इन्होंने मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकृति 'यशोधरा' की समीक्षा भी लिखी। सन् 1938 ई. में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने कुंवर सुरेश सिंह के आर्थिक सहयोग से नए सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक स्पंदनों से युक्त 'रूपाभ' नामक पत्र के संपादन करने का निर्णय लिया। इसके संपादन में सहयोग दिया नरेन्द्र शर्मा ने। भारतीय संस्कृति के प्रमुख ग्रंथ 'रामायण' और 'महाभारत' इनके प्रिय ग्रंथ थे। महाभारत में रुचि होने के कारण ये 'महाभारत' धारावाहिक के निर्माता बी. आर. चोपड़ा के अंतरंग बन गए। इसलिए जब उन्होंने 'महाभारत' धारावाहिक का निर्माण प्रारंभ किया तो नरेन्द्रजी उनके परामर्शदाता बने। उनके जीवन की अंतिम रचना भी 'महाभारत' का यह दोहा ही है- "शंखनाद ने कर दिया, समारोह का अंत, अंत यही ले जाएगा, कुरुक्षेत्र पर्यन्त"।[3]
प्रमुख कृतियाँ
नरेन्द्र शर्मा जी ने हिन्दी साहित्य की 23 पुस्तकें लिखकर श्रीवृद्धि की है। जिनमें प्रमुख हैं:-
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लगभग 55 फ़िल्मों में 650 गीत एवं 'महाभारत' का पटकथा-लेखन और गीत-रचना की।
दिलीप कुमार को दिया नाम
पंडित नरेंद्र शर्मा उन्नीसवीं सदी के चौथे दशक में ही मुंबई आ गए थे। बॉम्बे टॉकीज की अधिष्ठार्थी देविका रानी ने युसुफ़ ख़ान नाम वाले किसी पठान युवा को अपनी फ़िल्म ‘ज्वार-भाटा’ का नायक बनाने की बात जब सोची तो उन्होंने पंडित नरेश शर्मा से पूछा, ′इस युवक को किस फ़िल्मी नाम के साथ परदे पर उतारा जाए।′ पंडित नरेंद्र शर्मा ने उन्हें शायद ‘वासुदेव’ के साथ ‘दिलीप कुमार’ नाम सुझाया। देविका रानी को दिलीप कुमार नाम जंच गया और इस तरह युसुफ़ मियां दिलीप कुमार के नाम से ‘ज्वार-भाटा’ फ़िल्म के नायक बनकर रुपहले परदे पर आए। चालीस के दशक में उनका गीत ‘नैया को खेवैया के किया हमने हवाले’ ′ज्वारा भाटा′ के साथ ख़ासा लोकप्रिय हुआ था।[4]
निधन
11 फ़रवरी, 1989 ई. को हृदय-गति रुक जाने से पंडित नरेन्द्र शर्मा का निधन मुम्बई, महाराष्ट्र में हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नरेन्द्र शर्मा (हिन्दी) अनुभूति। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।
- ↑ सादर श्रद्धांजलि - पण्डित नरेन्द्र शर्मा (हिन्दी) पिट ऑडियो। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।
- ↑ झरोखा: पंडित नरेन्द्र शर्मा (हिन्दी) अपनी माटी। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।
- ↑ वह शाम आज भी साथ है (हिन्दी) इप्टानामा। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।