"वेताल पच्चीसी बीस": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{वेताल पचीसी}}") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " गरीब" to " ग़रीब") |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[वेताल पच्चीसी]] पच्चीस कथाओं से युक्त एक [[लोककथा]] ग्रन्थ संग्रह है। ये कथायें [[राजा विक्रम]] की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। [[वेताल]] प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता। | |||
==बीसवीं कहानी== | |||
चित्रकूट नगर में एक राजा रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते वह रास्ता भूल गया और अकेला रह गया। थक कर वह एक पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि-कन्या दिखाई दी। उसे देखकर राजा उस पर मोहित हो गया। थोड़ी देर में ऋषि स्वयं आ गये। | <poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | ||
[[चित्रकूट]] नगर में एक राजा रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते वह रास्ता भूल गया और अकेला रह गया। थक कर वह एक पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि-कन्या दिखाई दी। उसे देखकर राजा उस पर मोहित हो गया। थोड़ी देर में ऋषि स्वयं आ गये। | |||
''ऋषि ने पूछा:'' तुम यहाँ कैसे आये हो? | ''ऋषि ने पूछा:'' तुम यहाँ कैसे आये हो? | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 24: | ||
इसके बाद दीवान ने सात बरस के बालक की सोने की मूर्ति बनवायी और उसे कीमती गहने पहनाकर नगर-नगर और गाँव-गाँव घुमवाया। यह कहलवा दिया कि जो कोई सात बरस का ब्राह्मण का बालक अपने को बलिदान के लिए देगा और बलिदान के समय उसके माँ-बाप उसके हाथ-पैर पकड़ेंगे, उसी को यह मूर्ति और सौ गाँव मिलेंगे। | इसके बाद दीवान ने सात बरस के बालक की सोने की मूर्ति बनवायी और उसे कीमती गहने पहनाकर नगर-नगर और गाँव-गाँव घुमवाया। यह कहलवा दिया कि जो कोई सात बरस का ब्राह्मण का बालक अपने को बलिदान के लिए देगा और बलिदान के समय उसके माँ-बाप उसके हाथ-पैर पकड़ेंगे, उसी को यह मूर्ति और सौ गाँव मिलेंगे। | ||
यह ख़बर सुनकर एक ब्राह्मण-बालक राजी हो गया, उसने माँ-बाप से कहा, "आपको बहुत-से पुत्र मिल जायेंगे। मेरे शरीर से राजा की भलाई होगी और आपकी | यह ख़बर सुनकर एक ब्राह्मण-बालक राजी हो गया, उसने माँ-बाप से कहा, "आपको बहुत-से पुत्र मिल जायेंगे। मेरे शरीर से राजा की भलाई होगी और आपकी ग़रीबी मिट जायेगी।" | ||
माँ-बाप ने मना किया, पर बालक ने हठ करके उन्हें राजी कर लिया। | माँ-बाप ने मना किया, पर बालक ने हठ करके उन्हें राजी कर लिया। | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 36: | ||
इतना सुनकर वेताल अन्तर्धान हो गया और राजा लौटकर फिर उसे ले आया। रास्ते में वेताल ने फिर कहानी शुरू कर दी। | इतना सुनकर वेताल अन्तर्धान हो गया और राजा लौटकर फिर उसे ले आया। रास्ते में वेताल ने फिर कहानी शुरू कर दी। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= | ;आगे पढ़ने के लिए [[वेताल पच्चीसी इक्कीस]] पर जाएँ | ||
</poem> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{वेताल पचीसी}} | {{वेताल पचीसी}} | ||
[[Category:वेताल पच्चीसी]] | |||
[[Category:वेताल पच्चीसी]] | |||
[[Category:कहानी]] | [[Category:कहानी]] | ||
[[Category:कथा साहित्य]] | [[Category:कथा साहित्य]] | ||
[[Category:कथा साहित्य कोश]] | [[Category:कथा साहित्य कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
09:16, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
वेताल पच्चीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक लोककथा ग्रन्थ संग्रह है। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। वेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।
बीसवीं कहानी
चित्रकूट नगर में एक राजा रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते वह रास्ता भूल गया और अकेला रह गया। थक कर वह एक पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि-कन्या दिखाई दी। उसे देखकर राजा उस पर मोहित हो गया। थोड़ी देर में ऋषि स्वयं आ गये।
ऋषि ने पूछा: तुम यहाँ कैसे आये हो?
राजा ने कहा: मैं शिकार खेलने आया हूँ।
ऋषि बोले: बेटा, तुम क्यों जीवों को मारकर पाप कमाते हो?
राजा ने वादा किया कि मैं अब कभी शिकार नहीं खेलूँगा।
खुश होकर ऋषि ने कहा: तुम्हें जो माँगना हो, माँग लो।
राजा ने ऋषि-कन्या माँगी और ऋषि ने खुश होकर दोनों का विवाह कर दिया। राजा जब उसे लेकर चला तो रास्ते में एक भयंकर राक्षस मिला।
वह बोला: मैं तुम्हारी रानी को खाऊँगा। अगर चाहते हो कि वह बच जाय तो सात दिन के भीतर एक ऐसे ब्राह्मण-पुत्र का बलिदान करो, जो अपनी इच्छा से अपने को दे और उसके माता-पिता उसे मारते समय उसके हाथ-पैर पकड़ें।
डर के मारे राजा ने उसकी बात मान ली। वह अपने नगर को लौटा और अपने दीवान को सब हाल कह सुनाया।
दीवान ने कहा: आप परेशान न हों, मैं उपाय करता हूँ।
इसके बाद दीवान ने सात बरस के बालक की सोने की मूर्ति बनवायी और उसे कीमती गहने पहनाकर नगर-नगर और गाँव-गाँव घुमवाया। यह कहलवा दिया कि जो कोई सात बरस का ब्राह्मण का बालक अपने को बलिदान के लिए देगा और बलिदान के समय उसके माँ-बाप उसके हाथ-पैर पकड़ेंगे, उसी को यह मूर्ति और सौ गाँव मिलेंगे।
यह ख़बर सुनकर एक ब्राह्मण-बालक राजी हो गया, उसने माँ-बाप से कहा, "आपको बहुत-से पुत्र मिल जायेंगे। मेरे शरीर से राजा की भलाई होगी और आपकी ग़रीबी मिट जायेगी।"
माँ-बाप ने मना किया, पर बालक ने हठ करके उन्हें राजी कर लिया।
माँ-बाप बालक को लेकर राजा के पास गये। राजा उन्हें लेकर राक्षस के पास गया। राक्षस के सामने माँ-बाप ने बालक के हाथ-पैर पकड़े और राजा उसे तलवार से मारने को हुआ। उसी समय बालक बड़े ज़ोर से हँस पड़ा।
इतना कहकर वेताल बोला: हे राजन्, यह बताओ कि वह बालक क्यों हँसा?
राजा ने फौरन उत्तर दिया: इसलिए कि डर के समय हर आदमी रक्षा के लिए अपने माँ-बाप को पुकारता है। माता-पिता न हों तो पीड़ितों की मदद राजा करता है। राजा न कर सके तो आदमी देवता को याद करता है। पर यहाँ तो कोई भी बालक के साथ न था। माँ-बाप हाथ पकड़े हुए थे, राजा तलवार लिये खड़ा था और राक्षस भक्षक हो रहा था। ब्राह्मण का लड़का परोपकार के लिए अपना शरीर दे रहा था। इसी हर्ष से और अचरज से वह हँसा।
इतना सुनकर वेताल अन्तर्धान हो गया और राजा लौटकर फिर उसे ले आया। रास्ते में वेताल ने फिर कहानी शुरू कर दी।
- आगे पढ़ने के लिए वेताल पच्चीसी इक्कीस पर जाएँ
|
|
|
|
|