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'''सर छोटूराम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sir Chhoturam'', जन्म- [[24 नवम्बर]], [[1881]], [[रोहतक]]; मृत्यु- [[9 जनवरी]], [[1945]], [[लाहौर]]) [[भारत]] के स्वाधीनता सेनानी तथा राजनेता थे। गरीबों के बंधु के रूप में वह 'रहबर ए आज़म' कहे जाते थे। सर चौधरी छोटूराम शारीरिक रूप से छोटे कद के व्यक्ति थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का कद बहुत बड़ा था। वे दीन दु:खियों और गरीबों के बंधु, [[अंग्रेज़]] हुकूमत के लिये 'सर' तो किसानों के लिये मसीहा थे। चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन [[परिवार]] में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे, फिर स्कूल के रजिस्टर में भी जाने-अंजाने इनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया।
'''सर छोटूराम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sir Chhoturam'', जन्म- [[24 नवम्बर]], [[1881]], [[रोहतक]]; मृत्यु- [[9 जनवरी]], [[1945]], [[लाहौर]]) [[भारत]] के स्वाधीनता सेनानी तथा राजनेता थे। ग़रीबों के बंधु के रूप में वह 'रहबर ए आज़म' कहे जाते थे। सर चौधरी छोटूराम शारीरिक रूप से छोटे कद के व्यक्ति थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का कद बहुत बड़ा था। वे दीन दु:खियों और ग़रीबों के बंधु, [[अंग्रेज़]] हुकूमत के लिये 'सर' तो किसानों के लिये मसीहा थे। चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन [[परिवार]] में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे, फिर स्कूल के रजिस्टर में भी जाने-अंजाने इनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया।
==परिचय==
==परिचय==
{{main|छोटूराम का परिचय}}
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सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर, 1881 में झज्जर, [[हरियाणा]] के एक छोटे से [[गांव]] गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण [[परिवार]] में हुआ था। झज्जर उस समय रोहतक ज़िला, [[पंजाब]] का ही अंग था। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में वे सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे। स्कूल के रजिस्टर में भी उनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्नद के पास 10 एकड़ बंजर ज़मीन थी। छोटूराम जी के [[पिता]] सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे।
सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर, 1881 में झज्जर, [[हरियाणा]] के एक छोटे से [[गांव]] गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण [[परिवार]] में हुआ था। [[झज्जर]] उस समय [[रोहतक ज़िला]], [[पंजाब]] का ही अंग था। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में वे सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे। स्कूल के रजिस्टर में भी उनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्नद के पास 10 एकड़ बंजर ज़मीन थी। छोटूराम जी के [[पिता]] सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे।
==सामाजिक कार्य==
==सामाजिक कार्य==
{{main|छोटूराम के सामाजिक कार्य}}
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चौधरी छोटूराम ने राष्ट्र के [[स्वाधीनता संग्राम]] में डटकर भाग लिया। [[1916]] में पहली बार [[रोहतक]] में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया और छोटूराम रोहतक कांग्रेस कमेटी के प्रथम प्रधान बने। सारे ज़िले में चौधरी छोटूराम का आह्वान [[अंग्रेज़]] हुकूमत को कंपकपा देता था। चौधरी साहब के लेखों और कार्य को अंग्रेज़ों ने बहुत भयानक करार दिया। फलस्वरूप रोहतक के डिप्टी कमिश्नर ने तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार से चौधरी छोटूराम को देश-निकाले की सिफारिश कर दी। पंजाब सरकार ने अंग्रेज़ हुकमरानों को बताया कि चौधरी छोटूराम अपने आप में एक क्रांति हैं, उनका देश निकाला गदर मचा देगा, [[रक्त]] की नदियां बह जायेंगी। किसानों का एक-एक बच्चा चौधरी छोटूराम हो जायेगा। अंग्रेज़ों के हाथ कांप गए और कमिश्नर की सिफारिश को रद्द कर दिया गया।
चौधरी छोटूराम ने राष्ट्र के [[स्वाधीनता संग्राम]] में डटकर भाग लिया। [[1916]] में पहली बार [[रोहतक]] में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया और छोटूराम रोहतक कांग्रेस कमेटी के प्रथम प्रधान बने। सारे ज़िले में चौधरी छोटूराम का आह्वान [[अंग्रेज़]] हुकूमत को कंपकपा देता था। चौधरी साहब के लेखों और कार्य को अंग्रेज़ों ने बहुत भयानक करार दिया। फलस्वरूप रोहतक के डिप्टी कमिश्नर ने तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार से चौधरी छोटूराम को देश-निकाले की सिफारिश कर दी। पंजाब सरकार ने अंग्रेज़ हुकमरानों को बताया कि चौधरी छोटूराम अपने आप में एक क्रांति हैं, उनका देश निकाला गदर मचा देगा, [[रक्त]] की नदियां बह जायेंगी। किसानों का एक-एक बच्चा चौधरी छोटूराम हो जायेगा। अंग्रेज़ों के हाथ कांप गए और कमिश्नर की सिफारिश को रद्द कर दिया गया।
==राजनीतिक गतिविधियाँ==
==राजनीतिक गतिविधियाँ==
सन [[1925]] में राजस्थान में [[पुष्कर]] के पवित्र स्थान पर चौधरी छोटूराम ने एक ऐतिहासिक जलसे का आयोजन किया। सन [[1934]] में राजस्थान के सीकर शहर में किराया कानून के विरोध में एक अभूतपूर्व रैली का आयोजन किया गया, जिसमें 10,000 [[जाट]] किसान शामिल हुए। यहां पर जनेऊ और देसी घी दान किया गया, [[दयानन्द सरस्वती|महर्षि दयानन्द]] के [[सत्यार्थ प्रकाश]] के श्लोकों का उच्चारण किया गया। इस रैली से चौधरी छोटूराम [[भारत]] की राजनीति के स्तम्भ बन गए। [[पंजाब]] में [[रौलट एक्ट]] के विरुद्ध आन्दोलन को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप देश की राजनीति में एक अजीबोगरीब मोड़ आ गया। एक तरफ [[महात्मा गाँधी]] का असहयोग आंदोलन था तो दूसरी ओर प्रांतीय स्तर पर चौधरी छोटूराम और चौधरी लालचंद आदि जाट नेताओं ने अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ सहयोग की नीति अपना ली थी। पंजाब में मांटेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार लागू हो गए थे, सर फ़जले हुसैन ने खेतिहर किसानों की एक पार्टी 'जमींदारा पार्टी' खड़ी कर दी। छोटूराम व उनके साथियों ने सर फ़जले हुसैन के साथ गठबंधन कर लिया और सर सिकंदर हयात ख़ान के साथ मिलकर 'यूनियनिस्ट पार्टी' का गठन किया। तब से [[हरियाणा]] में दो परस्पर विरोधी आंदोलन चलते रहे। चौधरी छोटूराम का टकराव एक ओर [[कांग्रेस]] से था तथा दूसरी ओर शहरी [[हिन्दू]] नेताओं व साहूकारों से होता था।
{{main|छोटूराम की राजनीतिक गतिविधियाँ}}
 
सन [[1925]] में राजस्थान में [[पुष्कर]] के पवित्र स्थान पर चौधरी छोटूराम ने एक ऐतिहासिक जलसे का आयोजन किया। सन [[1934]] में [[राजस्थान]] के [[सीकर]] शहर में किराया कानून के विरोध में एक अभूतपूर्व रैली का आयोजन किया गया, जिसमें 10,000 [[जाट]] किसान शामिल हुए। यहां पर जनेऊ और देसी घी दान किया गया, [[दयानन्द सरस्वती|महर्षि दयानन्द]] के [[सत्यार्थ प्रकाश]] के [[श्लोक|श्लोकों]] का उच्चारण किया गया। इस रैली से चौधरी छोटूराम [[भारत]] की राजनीति के स्तम्भ बन गए। [[पंजाब]] में [[रौलट एक्ट]] के विरुद्ध आन्दोलन को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप देश की राजनीति में एक अजीबोगरीब मोड़ आ गया।
चौधरी छोटूराम की 'जमींदारा पार्टी' किसान, मजदूर, [[मुस्लिम]], [[सिक्ख]] और शोषित लोगों की पार्टी थी। लेकिन यह पार्टी अंग्रेज़ों से टक्कर लेने को तैयार नहीं थी। हिंदू सभा व दूसरे शहरी हिन्दुओं की पार्टियों से चौधरी छोटूराम का मतभेद था। [[भारत सरकार अधिनियम- 1919|भारत सरकार अधिनियम, 1919]] के तहत [[1920]] में आम चुनाव कराए गए। इसका कांग्रेस ने बहिष्कार किया और छोटूराम व लालसिंह जमींदारा पार्टी से विजयी हुए। उधर [[1930]] में कांग्रेस ने एक और जाट नेता [[चौधरी देवीलाल]] को चौधरी छोटूराम की पार्टी के विरोध में स्थापित किया। [[भारत सरकार अधिनियम- 1935|भारत सरकार अधिनियम, 1935]] के तहत सीमित लोकतंत्र के चुनाव [[1937]] में हुए। इसमें 175 सीटों में से यूनियनिस्ट पार्टी को 99, कांग्रेस को केवल 18, खालसा नेशनलिस्ट को 13 और हिन्दू महासभा को केवल 12 सीटें मिली थीं। हरियाणा देहाती सीट से केवल एक प्रत्याशी चौधरी दुनीचंद ही कांग्रेस से जीत पाये थे। चौधरी छोटूराम के कद का अंदाजा इस चुनाव से अंग्रेज़ों, कांग्रेसियों और सभी विरोधियों को हो गया था।
==लेखन कार्य==
चौधरी छोटूराम की लेखनी जब लिखती थी तो आग उगलती थी। 'ठग बाजार की सैर' और 'बेचारा किसान' के लेखों में से 17 लेख जाट गजट में छपे। 1937 में सिकन्दर हयात ख़ान पंजाब के राजनेता बने और झज्जर के ये जुझारू नेता चौधरी छोटूराम विकास व राजस्व मंत्री बने और गरीब किसान के मसीहा बन गए। चौधरी छोटूराम ने अनेक समाज सुधारक कानूनों के जरिए किसानों को शोषण से निज़ात दिलवाई।
====साहूकार पंजीकरण एक्ट, 1938====
यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था। इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पायेगा। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया।
==योगदान==
==योगदान==
{{main|छोटूराम के महत्त्वपूर्ण योगदान}}
;गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, 1938
;गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, 1938
यह कानून [[9 सितंबर]], [[1938]] को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें [[8 जून]], [[1901]] के बाद कुर्की से बेची हुई थीं तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वह सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस कानून के तहत केवल एक सादे [[काग़ज़]] पर ज़िलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुना धन साहूकार प्राप्त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।
यह कानून [[9 सितंबर]], [[1938]] को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें [[8 जून]], [[1901]] के बाद कुर्की से बेची हुई थीं तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वह सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस क़ानून के तहत केवल एक सादे [[काग़ज़]] पर ज़िलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस क़ानून में अगर मूल राशि का दोगुना धन साहूकार प्राप्त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।
;कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम, 1938
यह अधिनियम [[5 मई]], [[1939]] से प्रभावी माना गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था। अनेक कटौतियों का सामना किसानों को करना पड़ता था। आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं। इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना। आढ़तियों के शोषण से किसानों को निजात इसी अधिनियम ने दिलवाई।
;व्यवसाय श्रमिक अधिनियम, 1940
यह अधिनियम [[11 जून]], [[1940]] को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्ताह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान व व्यवसायिक संस्थान [[रविवार]] को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी। इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी।
;कर्जा माफी अधिनियम, 1934
यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने [[8 अप्रैल]], [[1935]] में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा। इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी बोर्ड बनाए गए, जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी। इस कानून के तहत अपीलकर्ता के संदर्भ में एक दंतकथा बहुत प्रचलित हुई थी कि लाहौर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सर शादीलाल से एक अपीलकर्ता ने कहा कि मैं बहुत गरीब आदमी हूं, मेरा घर और बैल कुर्की से माफ किया जाएँ। तब न्यायाधीश सर शादीलाल ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि एक छोटूराम नाम का आदमी है, वही ऐसे कानून बनाता है, उसके पास जाओ और कानून बनवा कर लाओ। अपीलकर्ता चौधरी छोटूराम के पास आया और यह टिप्पणी सुनाई। छोटूराम ने कानून में ऐसा संशोधन करवाया कि उस अदालत की सुनवाई पर ही प्रतिबंध लगा दिया और इस तरह चौधरी साहब ने इस व्यंग्य का इस तरह जबरदस्त उत्तर दिया।
 
सन [[1942]] में सर सिकन्दर ख़ान का देहांत हो गया और खिज्र हयात ख़ान तीवाना ने [[पंजाब]] की राजसत्ता संभाली। उधर [[मुहम्मद अली जिन्ना]] ने [[1944]] में [[लाहौर]] में सर खिज्र हयात पर दबाव डाला कि चौधरी छोटूराम का दबदबा कम किया जाए और पंजाब की यूनियनिस्ट सरकार का लेबल हटाकर इसे [[मुस्लिम लीग]] का नाम दिया जाए। क्योंकि सर छोटूराम अब्दुल कलाम आज़ाद की नीतियों के समर्थक थे, मुहम्मद अली जिन्ना और चौधरी छोटूराम सीधे टकराव की स्थिति में आ गए। अब तो चौधरी छोटूराम की पार्टी के सामने मुस्लिम लीग और [[कांग्रेस]] दोनों ही चुनौती बन गई थीं। लेकिन पहले और दूसरे महायुद्ध में चौधरी छोटूराम द्वारा कांग्रेस के विरोध के बावजूद सैनिकों की भर्ती से [[अंग्रेज़]] बड़े खुश थे। अंग्रेज़ों ने [[हरियाणा]] के इलाके की वफादारियों से खुश होकर हरियाणा निवासियों को वचन दिया कि भाखड़ा पर बांध बनाकर [[सतलुज नदी]] का पानी हरियाणा को दिया जाएगा। सर छोटूराम ने ही [[भाखड़ा नांगल परियोजना|भाखड़ा बांध]] का प्रस्ताव रखा था। सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा का था। झज्जर के महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
सन [[1924]] से [[1945]] तक [[पंजाब]] की राजनीति के अकेले सूर्य चौधरी छोटूराम का [[9 जनवरी]], [[1945]] को देहावसान हो गया और एक क्रांतिकारी युग का यह सूर्य डूब गया।
सन [[1924]] से [[1945]] तक [[पंजाब]] की राजनीति के अकेले सूर्य चौधरी छोटूराम का [[9 जनवरी]], [[1945]] को देहावसान हो गया और एक क्रांतिकारी युग का यह सूर्य डूब गया।
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<references />
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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09:16, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

छोटूराम
छोटूराम
छोटूराम
पूरा नाम राय रिछपाल (मूल नाम)
जन्म 24 नवम्बर, 1881
जन्म भूमि रोहतक
मृत्यु 9 जनवरी, 1945
मृत्यु स्थान लाहौर
अभिभावक पिता- सुखीराम
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी तथा राजनीतिज्ञ
पार्टी यूनियनिस्ट पार्टी
विशेष चौधरी छोटूराम की लेखनी आग उगलती थी। 'ठग बाजार की सैर' और 'बेचारा किसान' के लेखों में से 17 लेख 'जाट गजट' में छपे थे।
अन्य जानकारी अगस्त, 1920 में छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी थी, क्योंकि वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे। उनका विचार था कि इस आंदोलन से किसानों का हित नहीं होगा। उनका मत था कि आज़ादी की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ी जाये।
छोटूराम विषय सूची

सर छोटूराम (अंग्रेज़ी: Sir Chhoturam, जन्म- 24 नवम्बर, 1881, रोहतक; मृत्यु- 9 जनवरी, 1945, लाहौर) भारत के स्वाधीनता सेनानी तथा राजनेता थे। ग़रीबों के बंधु के रूप में वह 'रहबर ए आज़म' कहे जाते थे। सर चौधरी छोटूराम शारीरिक रूप से छोटे कद के व्यक्ति थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का कद बहुत बड़ा था। वे दीन दु:खियों और ग़रीबों के बंधु, अंग्रेज़ हुकूमत के लिये 'सर' तो किसानों के लिये मसीहा थे। चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन परिवार में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे, फिर स्कूल के रजिस्टर में भी जाने-अंजाने इनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया।

परिचय

सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर, 1881 में झज्जर, हरियाणा के एक छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। झज्जर उस समय रोहतक ज़िला, पंजाब का ही अंग था। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में वे सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे। स्कूल के रजिस्टर में भी उनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्नद के पास 10 एकड़ बंजर ज़मीन थी। छोटूराम जी के पिता सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे।

सामाजिक कार्य

सन 1905 में छोटूराम जी ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं सन 1907 तक अंग्रेज़ी के 'हिन्दुस्तान' समाचार पत्र का संपादन किया। यहां से छोटूराम आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए। झज्जर ज़िले में जन्मा यह जुझारू युवा छात्र सन 1911 में आगरा के जाट छात्रावास का अधीक्षक बना। 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री प्राप्ते की। यहां रहकर छोटूराम ने मेरठ और आगरा डिवीजन की सामाजिक दशा का गहन अध्ययन किया। 1912 में आपने चौधरी लालचंद के साथ वकालत आरंभ कर दी और उसी साल जाट सभा का गठन किया।

स्वाधीनता संग्राम में सक्रियता

चौधरी छोटूराम ने राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में डटकर भाग लिया। 1916 में पहली बार रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया और छोटूराम रोहतक कांग्रेस कमेटी के प्रथम प्रधान बने। सारे ज़िले में चौधरी छोटूराम का आह्वान अंग्रेज़ हुकूमत को कंपकपा देता था। चौधरी साहब के लेखों और कार्य को अंग्रेज़ों ने बहुत भयानक करार दिया। फलस्वरूप रोहतक के डिप्टी कमिश्नर ने तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार से चौधरी छोटूराम को देश-निकाले की सिफारिश कर दी। पंजाब सरकार ने अंग्रेज़ हुकमरानों को बताया कि चौधरी छोटूराम अपने आप में एक क्रांति हैं, उनका देश निकाला गदर मचा देगा, रक्त की नदियां बह जायेंगी। किसानों का एक-एक बच्चा चौधरी छोटूराम हो जायेगा। अंग्रेज़ों के हाथ कांप गए और कमिश्नर की सिफारिश को रद्द कर दिया गया।

राजनीतिक गतिविधियाँ

सन 1925 में राजस्थान में पुष्कर के पवित्र स्थान पर चौधरी छोटूराम ने एक ऐतिहासिक जलसे का आयोजन किया। सन 1934 में राजस्थान के सीकर शहर में किराया कानून के विरोध में एक अभूतपूर्व रैली का आयोजन किया गया, जिसमें 10,000 जाट किसान शामिल हुए। यहां पर जनेऊ और देसी घी दान किया गया, महर्षि दयानन्द के सत्यार्थ प्रकाश के श्लोकों का उच्चारण किया गया। इस रैली से चौधरी छोटूराम भारत की राजनीति के स्तम्भ बन गए। पंजाब में रौलट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप देश की राजनीति में एक अजीबोगरीब मोड़ आ गया।

योगदान

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, 1938

यह कानून 9 सितंबर, 1938 को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून, 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थीं तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वह सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस क़ानून के तहत केवल एक सादे काग़ज़ पर ज़िलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस क़ानून में अगर मूल राशि का दोगुना धन साहूकार प्राप्त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।

मृत्यु

सन 1924 से 1945 तक पंजाब की राजनीति के अकेले सूर्य चौधरी छोटूराम का 9 जनवरी, 1945 को देहावसान हो गया और एक क्रांतिकारी युग का यह सूर्य डूब गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छोटूराम विषय सूची


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