"सियारामशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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'''काव्यग्रन्थ'''- दैनिकी नकुल, जय हिन्द, पाथेय, मृण्मयी तथा आत्मोसर्ग <br />'''उपन्यास'''- अन्तिम आकांक्षा तथा नारी और गोद।
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'''सियारामशरण गुप्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Siyaram Sharan Gupt'', जन्म: 4 सितंबर 1895 - मृत्यु: 29 मार्च 1963) [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार और राष्ट्रकवि [[मैथिलीशरण गुप्त]] के छोटे भाई थे। उन पर गाँधीवाद का विशेष प्रभाव रहा है। इसलिये उनकी रचनाओं में करुणा, सत्य-अहिंसा की मार्मिक अभिव्यक्ति मिलती है। [[हिन्दी  साहित्य]] में उन्हें एक कवि के रुप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई लेकिन एक मूर्धन्य कथाकार के रूप में भी उन्होंने कथा-साहित्य में भी अपना स्थान बनाया।  
'''सियारामशरण गुप्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Siyaram Sharan Gupt'', जन्म: [[4 सितंबर]], [[1895]]; मृत्यु: [[29 मार्च]], [[1963]]) [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध [[साहित्यकार]] और राष्ट्रकवि [[मैथिलीशरण गुप्त]] के छोटे भाई थे। उन पर गाँधीवाद का विशेष प्रभाव रहा है। इसलिये उनकी रचनाओं में करुणा, सत्य-अहिंसा की मार्मिक अभिव्यक्ति मिलती है। [[हिन्दी  साहित्य]] में उन्हें एक कवि के रुप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई लेकिन एक मूर्धन्य कथाकार के रूप में भी उन्होंने [[कथा साहित्य]] में भी अपना स्थान बनाया।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार सियारामशरण गुप्त का जन्म [[भाद्रपद]] [[पूर्णिमा]] सम्वत् 1952 विक्रमी तद्नुसार [[4 सितम्बर]] [[1895]] ई. को सेठ रामचरण कनकने के परिवार में [[मैथिलीशरण गुप्त]] के अनुज रुप में चिरगांव, [[झाँसी]] में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर घर में ही [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] और [[उर्दू भाषा]] सीखी। सन् 1929 ई. में राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] और [[कस्तूरबा गाँधी|कस्तूरबा]] के सम्पर्क में आये। कुछ समय वर्धा आश्रम में भी रहे। सन् 1940 ई. में चिरगांव में ही [[सुभाषचन्द्र बोस|नेताजी सुभाषचन्द्र बोस]] का स्वागत किया। वे सन्त [[विनोबा भावे]] के सम्पर्क में भी आये। उनकी पत्नी तथा पुत्रों का निधन असमय ही हो गया। मूलत- आप दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गये। साहित्य के आप मौन साधक बने रहे।<ref name="शुभ भारत">{{cite web |url=http://shubhbharat.com/index.php?option=com_content&view=article&id=3236:2011-08-05-10-01-30&catid=92:2011-07-20-09-03-19&Itemid=136 |title=सियारामशरण गुप्त |accessmonthday= 7 दिसम्बर|accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=शुभ भारत |language=हिंदी }}</ref>
बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार सियारामशरण गुप्त का जन्म [[भाद्रपद]] [[पूर्णिमा]] सम्वत् 1952 विक्रमी तद्नुसार [[4 सितम्बर]] [[1895]] ई. को सेठ रामचरण कनकने के परिवार में [[मैथिलीशरण गुप्त]] के अनुज रुप में चिरगांव, [[झाँसी]] में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर घर में ही [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] और [[उर्दू भाषा]] सीखी। सन् [[1929]] ई. में राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] और [[कस्तूरबा गाँधी|कस्तूरबा]] के सम्पर्क में आये। कुछ समय वर्धा आश्रम में भी रहे। सन् 1940 ई. में चिरगांव में ही [[सुभाषचन्द्र बोस|नेताजी सुभाषचन्द्र बोस]] का स्वागत किया। वे सन्त [[विनोबा भावे]] के सम्पर्क में भी आये। उनकी पत्नी तथा पुत्रों का निधन असमय ही हो गया। मूलत- आप दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गये। साहित्य के आप मौन साधक बने रहे।<ref name="शुभ भारत">{{cite web |url=http://shubhbharat.com/index.php?option=com_content&view=article&id=3236:2011-08-05-10-01-30&catid=92:2011-07-20-09-03-19&Itemid=136 |title=सियारामशरण गुप्त |accessmonthday= 7 दिसम्बर|accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=शुभ भारत |language=हिंदी }}</ref>
==रचनाएँ==
==रचनाएँ==
'मौर्य विजय' प्रथम रचना सन् 1914 में लिखी। आपकी समस्त रचनाएं पांच खण्डों में संकलित कर प्रकाशित है। 'आर्द्रा, 'दुर्वादल, 'विषाद, 'बापू तथा 'गोपिका इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'गोद, 'नारी, 'अंतिम आकांक्षा (उपन्यास), 'मानुषी (कहानी संग्रह), नाटक, निबंध आदि लगभग 50 ग्रंथ रचे। सहज आकर्षक शैली तथा भाव और भाषा की सरलता इनकी विशेषता है।
'मौर्य विजय' प्रथम रचना सन् [[1914]] में लिखी। आपकी समस्त रचनाएं पांच खण्डों में संकलित कर प्रकाशित है। 'आर्द्रा, 'दुर्वादल, 'विषाद, 'बापू तथा 'गोपिका इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'गोद, 'नारी, 'अंतिम आकांक्षा (उपन्यास), 'मानुषी (कहानी संग्रह), [[नाटक]], [[निबंध]] आदि लगभग 50 ग्रंथ रचे। सहज आकर्षक [[शैली]] तथा भाव और भाषा की सरलता इनकी विशेषता है।
====रचना संग्रह====
====रचना संग्रह====
* खण्ड काव्य-  अनाथ, आर्द्रा, विषाद, दूर्वा दल, बापू, सुनन्दा और गोपिका।
* खण्ड काव्य-  अनाथ, आर्द्रा, विषाद, दूर्वा दल, बापू, सुनन्दा और गोपिका।
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* पद्यानुवाद- ईषोपनिषद, धम्मपद और भगवत गीता
* पद्यानुवाद- ईषोपनिषद, धम्मपद और भगवत गीता
==भाषा और शैली==
==भाषा और शैली==
सियारामशरण गुप्त की भाषा-शैली पर घर के वैष्णव संस्कारों और गांधीवाद का प्रभाव था। गुप्त जी स्वयं शिक्षित कवि थे। मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकला और उनका युगबोध सियारामशरण ने यथावत्‌ अपनाया था। अत: उनके सभी काव्य द्विवेदी युगीन अभिधावादी कलारूप पर ही आधारित हैं। दोनों गुप्त बंधुओं ने हिंदी के नवीन आंदोलन छायावाद से प्रभावित होकर भी अपना इतिवृत्तात्मक अभिघावादी काव्य रूप सुरक्षित रखा है। विचार की दृष्टि से भी सियारामशरण जी ज्येष्ठ बंधु के सदृश गांधीवाद की परदु:खकातरता, राष्ट्रप्रेम, विश्वप्रेम, विश्व शांति, हृदय परिवर्तनवाद, सत्य और अहिंसा से आजीवन प्रभावित रहे। उनके काव्य वस्तुत: गांधीवादी निष्टा के साक्षात्कारक पद्यबद्ध प्रयत्न हैं। [[हिंदी]] में शुद्ध सात्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की रचनाएँ स्मरणीय रहेंगी। उनमें जीवन के श्रृंगार और उग्र पक्षों का चित्रण नहीं हो सका किंतु जीवन के प्रति करुणा का भाव जिस सहज और प्रत्यक्ष विधि पर गुप्त जी में व्यक्त हुआ है उससे उनका हिंदी काव्य में एक विशिष्ट स्थान बन गया है। हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के वह प्रतिनिधि कवि हैं।
सियारामशरण गुप्त की [[भाषा]]-[[शैली]] पर घर के वैष्णव संस्कारों और गांधीवाद का प्रभाव था। गुप्त जी स्वयं शिक्षित कवि थे। मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकला और उनका युगबोध सियारामशरण ने यथावत्‌ अपनाया था। अत: उनके सभी काव्य द्विवेदी युगीन अभिधावादी कलारूप पर ही आधारित हैं। दोनों गुप्त बंधुओं ने हिंदी के नवीन आंदोलन छायावाद से प्रभावित होकर भी अपना इतिवृत्तात्मक अभिघावादी काव्य रूप सुरक्षित रखा है। विचार की दृष्टि से भी सियारामशरण जी ज्येष्ठ बंधु के सदृश गांधीवाद की परदु:खकातरता, राष्ट्रप्रेम, विश्वप्रेम, विश्व शांति, हृदय परिवर्तनवाद, सत्य और अहिंसा से आजीवन प्रभावित रहे। उनके काव्य वस्तुत: गांधीवादी निष्टा के साक्षात्कारक पद्यबद्ध प्रयत्न हैं। [[हिंदी]] में शुद्ध सात्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की रचनाएँ स्मरणीय रहेंगी। उनमें जीवन के श्रृंगार और उग्र पक्षों का चित्रण नहीं हो सका किंतु जीवन के प्रति करुणा का भाव जिस सहज और प्रत्यक्ष विधि पर गुप्त जी में व्यक्त हुआ है उससे उनका हिंदी काव्य में एक विशिष्ट स्थान बन गया है। हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के वह प्रतिनिधि [[कवि]] हैं।
 
==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
दीर्घकालीन हिन्दी सेवाओं के लिए सन् 1962 ई. में "सरस्वती' हीरक जयन्ती में सम्मानित किये गये। आपको सन् 1941 ई. में "सुधाकर पदक' नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा प्रदान किया गया।<ref name="शुभ भारत"/>  
दीर्घकालीन हिन्दी सेवाओं के लिए सन् [[1962]] ई. में "सरस्वती' [[हीरक जयंती|हीरक जयन्ती]] में सम्मानित किये गये। आपको सन् [[1941]] ई. में "सुधाकर पदक' नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा प्रदान किया गया।<ref name="शुभ भारत"/>
==निधन==
==निधन==
सियारामशरण गुप्त का असमय ही [[29 मार्च]] [[1963]] ई. को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।
सियारामशरण गुप्त का असमय ही [[29 मार्च]] [[1963]] ई. को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।


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==बाहरी कड़ियाँ==
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05:45, 4 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

सियारामशरण गुप्त
सियारामशरण गुप्त
सियारामशरण गुप्त
पूरा नाम सियारामशरण गुप्त
जन्म 4 सितम्बर 1895
जन्म भूमि चिरगांव, झाँसी
मृत्यु 29 मार्च 1963
अभिभावक सेठ रामचरण कनकने
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र कथा साहित्य
मुख्य रचनाएँ खण्डकाव्य- अनाथ, आर्द्रा, विषाद, दूर्वा दल, बापू; काव्यग्रन्थ- दैनिकी नकुल, जय हिन्द, पाथेय, मृण्मयी तथा आत्मोसर्ग; उपन्यास- अन्तिम आकांक्षा तथा नारी और गोद।
भाषा हिंदी, गुजराती, अंग्रेज़ी और उर्दू भाषा
पुरस्कार-उपाधि 1941 ई. में "सुधाकर पदक'
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

सियारामशरण गुप्त (अंग्रेज़ी: Siyaram Sharan Gupt, जन्म: 4 सितंबर, 1895; मृत्यु: 29 मार्च, 1963) हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। उन पर गाँधीवाद का विशेष प्रभाव रहा है। इसलिये उनकी रचनाओं में करुणा, सत्य-अहिंसा की मार्मिक अभिव्यक्ति मिलती है। हिन्दी साहित्य में उन्हें एक कवि के रुप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई लेकिन एक मूर्धन्य कथाकार के रूप में भी उन्होंने कथा साहित्य में भी अपना स्थान बनाया।

जीवन परिचय

बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार सियारामशरण गुप्त का जन्म भाद्रपद पूर्णिमा सम्वत् 1952 विक्रमी तद्नुसार 4 सितम्बर 1895 ई. को सेठ रामचरण कनकने के परिवार में मैथिलीशरण गुप्त के अनुज रुप में चिरगांव, झाँसी में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर घर में ही गुजराती, अंग्रेज़ी और उर्दू भाषा सीखी। सन् 1929 ई. में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और कस्तूरबा के सम्पर्क में आये। कुछ समय वर्धा आश्रम में भी रहे। सन् 1940 ई. में चिरगांव में ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का स्वागत किया। वे सन्त विनोबा भावे के सम्पर्क में भी आये। उनकी पत्नी तथा पुत्रों का निधन असमय ही हो गया। मूलत- आप दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गये। साहित्य के आप मौन साधक बने रहे।[1]

रचनाएँ

'मौर्य विजय' प्रथम रचना सन् 1914 में लिखी। आपकी समस्त रचनाएं पांच खण्डों में संकलित कर प्रकाशित है। 'आर्द्रा, 'दुर्वादल, 'विषाद, 'बापू तथा 'गोपिका इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'गोद, 'नारी, 'अंतिम आकांक्षा (उपन्यास), 'मानुषी (कहानी संग्रह), नाटक, निबंध आदि लगभग 50 ग्रंथ रचे। सहज आकर्षक शैली तथा भाव और भाषा की सरलता इनकी विशेषता है।

रचना संग्रह

  • खण्ड काव्य- अनाथ, आर्द्रा, विषाद, दूर्वा दल, बापू, सुनन्दा और गोपिका।
  • कहानी संग्रह- मानुषी--
  • नाटक- पुण्य पर्व
  • अनुवाद- गीता संवाद
  • नाट्य- उन्मुक्त गीत
  • कविता संग्रह- अनुरुपा तथा अमृत पुत्र
  • काव्यग्रन्थ- दैनिकी नकुल, नोआखली में, जय हिन्द, पाथेय, मृण्मयी तथा आत्मोसर्ग।
  • उपन्यास- अन्तिम आकांक्षा तथा नारी और गोद।
  • निबन्ध संग्रह- झूठ-सच।
  • पद्यानुवाद- ईषोपनिषद, धम्मपद और भगवत गीता

भाषा और शैली

सियारामशरण गुप्त की भाषा-शैली पर घर के वैष्णव संस्कारों और गांधीवाद का प्रभाव था। गुप्त जी स्वयं शिक्षित कवि थे। मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकला और उनका युगबोध सियारामशरण ने यथावत्‌ अपनाया था। अत: उनके सभी काव्य द्विवेदी युगीन अभिधावादी कलारूप पर ही आधारित हैं। दोनों गुप्त बंधुओं ने हिंदी के नवीन आंदोलन छायावाद से प्रभावित होकर भी अपना इतिवृत्तात्मक अभिघावादी काव्य रूप सुरक्षित रखा है। विचार की दृष्टि से भी सियारामशरण जी ज्येष्ठ बंधु के सदृश गांधीवाद की परदु:खकातरता, राष्ट्रप्रेम, विश्वप्रेम, विश्व शांति, हृदय परिवर्तनवाद, सत्य और अहिंसा से आजीवन प्रभावित रहे। उनके काव्य वस्तुत: गांधीवादी निष्टा के साक्षात्कारक पद्यबद्ध प्रयत्न हैं। हिंदी में शुद्ध सात्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की रचनाएँ स्मरणीय रहेंगी। उनमें जीवन के श्रृंगार और उग्र पक्षों का चित्रण नहीं हो सका किंतु जीवन के प्रति करुणा का भाव जिस सहज और प्रत्यक्ष विधि पर गुप्त जी में व्यक्त हुआ है उससे उनका हिंदी काव्य में एक विशिष्ट स्थान बन गया है। हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के वह प्रतिनिधि कवि हैं।

सम्मान और पुरस्कार

दीर्घकालीन हिन्दी सेवाओं के लिए सन् 1962 ई. में "सरस्वती' हीरक जयन्ती में सम्मानित किये गये। आपको सन् 1941 ई. में "सुधाकर पदक' नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा प्रदान किया गया।[1]

निधन

सियारामशरण गुप्त का असमय ही 29 मार्च 1963 ई. को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सियारामशरण गुप्त (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) शुभ भारत। अभिगमन तिथि: 7 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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