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'''तबरी''' अथवा '''टबरी''' (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान [[अरब]] इतिहासकार और [[इस्लाम धर्म]] शास्त्री था।
'''तबरी''' अथवा '''टबरी''' (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान् [[अरब]] इतिहासकार और [[इस्लाम धर्म]] शास्त्री था।
*सम्भवत: 838-839 ई. में तबरिस्तान क्षेत्र के आमुल नामक स्थान पर उसका जन्म हुआ था।
*सम्भवत: 838-839 ई. में तबरिस्तान क्षेत्र के आमुल नामक स्थान पर उसका जन्म हुआ था।
*संपन्न परिवार में जन्म, कुशाग्रबुद्धि और मेघावी होने के कारण बचपन से ही वह अत्यन्त होनहार दिखाई पड़ता था।
*संपन्न परिवार में जन्म, कुशाग्रबुद्धि और मेघावी होने के कारण बचपन से ही वह अत्यन्त होनहार दिखाई पड़ता था।
*कहते हैं कि सात वर्ष की अवस्था में ही संपूर्ण [[क़ुरान]] तबरी को कंठस्थ हो गया।
*कहते हैं कि सात वर्ष की अवस्था में ही संपूर्ण [[क़ुरान]] तबरी को कंठस्थ हो गया।
*अपने नगर में रहकर तो तबरी ने बहुमूल्य शिक्षा पाई ही, उस समय के इस्लाम जगत के अन्य सभी प्रसिद्ध विद्याकेंद्रों में भी वह गया और अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से विद्या ग्रहण की।
*अपने नगर में रहकर तो तबरी ने बहुमूल्य शिक्षा पाई ही, उस समय के इस्लाम जगत् के अन्य सभी प्रसिद्ध विद्याकेंद्रों में भी वह गया और अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से विद्या ग्रहण की।
*[[बसरा]], [[बगदाद]], कूफ और [[मिस्र]] की उसने अनेक बार यात्राएँ की थीं।
*[[बसरा]], [[बगदाद]], कूफ और [[मिस्र]] की उसने अनेक बार यात्राएँ की थीं।
*दूसरी बार मिस्र जाते हुए सीरिया में उसने हदीस का अध्यन किया और शीघ्र ही उन क्षेत्रों में वह एक प्रकाण्ड के रूप में गिना जाने लगा।
*दूसरी बार मिस्र जाते हुए सीरिया में उसने हदीस का अध्यन किया और शीघ्र ही उन क्षेत्रों में वह एक प्रकाण्ड के रूप में गिना जाने लगा।
*तबरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि, वह विद्वान होने के साथ-साथ अत्यंत चरित्रवान् भी था।
*तबरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि, वह विद्वान् होने के साथ-साथ अत्यंत चरित्रवान् भी था।
*राज्य की ओर से अर्थिक लाभ वाले कई सम्मानजनक पदों को स्वीकृत करने के लिये उससे आग्रह किए गए, किंतु किसी भी प्रलोभन में न पड़कर उसने पढ़ने-पढ़ाने और साहित्यिक सेवा में ही अपना जीवन बिताया।
*राज्य की ओर से अर्थिक लाभ वाले कई सम्मानजनक पदों को स्वीकृत करने के लिये उससे आग्रह किए गए, किंतु किसी भी प्रलोभन में न पड़कर उसने पढ़ने-पढ़ाने और साहित्यिक सेवा में ही अपना जीवन बिताया।
*यद्यपि कोई भी विषय, [[इतिहास]], क़ुरान का पाठ और उसकी व्याख्या, काव्य-रचना, व्याकरण और शब्दकोष, नीतिशास्त्र, गणित और भैषज्य जैसे विष्य उससे अछूते नहीं रहे, लेकिन फिर भी तबरी मुख्यत: इतिहास और इस्लामी धर्मशास्त्र के ज्ञाता और लेखक के रूप में ही सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
*यद्यपि कोई भी विषय, [[इतिहास]], क़ुरान का पाठ और उसकी व्याख्या, काव्य-रचना, व्याकरण और शब्दकोष, नीतिशास्त्र, गणित और भैषज्य जैसे विष्य उससे अछूते नहीं रहे, लेकिन फिर भी तबरी मुख्यत: इतिहास और इस्लामी धर्मशास्त्र के ज्ञाता और लेखक के रूप में ही सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
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05:03, 7 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

तबरी अथवा टबरी (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान् अरब इतिहासकार और इस्लाम धर्म शास्त्री था।

  • सम्भवत: 838-839 ई. में तबरिस्तान क्षेत्र के आमुल नामक स्थान पर उसका जन्म हुआ था।
  • संपन्न परिवार में जन्म, कुशाग्रबुद्धि और मेघावी होने के कारण बचपन से ही वह अत्यन्त होनहार दिखाई पड़ता था।
  • कहते हैं कि सात वर्ष की अवस्था में ही संपूर्ण क़ुरान तबरी को कंठस्थ हो गया।
  • अपने नगर में रहकर तो तबरी ने बहुमूल्य शिक्षा पाई ही, उस समय के इस्लाम जगत् के अन्य सभी प्रसिद्ध विद्याकेंद्रों में भी वह गया और अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से विद्या ग्रहण की।
  • बसरा, बगदाद, कूफ और मिस्र की उसने अनेक बार यात्राएँ की थीं।
  • दूसरी बार मिस्र जाते हुए सीरिया में उसने हदीस का अध्यन किया और शीघ्र ही उन क्षेत्रों में वह एक प्रकाण्ड के रूप में गिना जाने लगा।
  • तबरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि, वह विद्वान् होने के साथ-साथ अत्यंत चरित्रवान् भी था।
  • राज्य की ओर से अर्थिक लाभ वाले कई सम्मानजनक पदों को स्वीकृत करने के लिये उससे आग्रह किए गए, किंतु किसी भी प्रलोभन में न पड़कर उसने पढ़ने-पढ़ाने और साहित्यिक सेवा में ही अपना जीवन बिताया।
  • यद्यपि कोई भी विषय, इतिहास, क़ुरान का पाठ और उसकी व्याख्या, काव्य-रचना, व्याकरण और शब्दकोष, नीतिशास्त्र, गणित और भैषज्य जैसे विष्य उससे अछूते नहीं रहे, लेकिन फिर भी तबरी मुख्यत: इतिहास और इस्लामी धर्मशास्त्र के ज्ञाता और लेखक के रूप में ही सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
  • उसकी प्रमुख रचना 'तारीख़ अल रसूल वल-मुलूक' नामक विश्व का इतिहास है, जो 30 हज़ार काग़ज़ की तख्तियों पर लिखा गया है।
  • अनुश्रुतियों, दंत-कथाओं और बूढे लोगों से सुनी हुई कहानियों के आधार पर लिखे गए अरब इतिहास के इस महोदधि को छान सकना किसी भी एक व्यक्ति के लिये दुष्कर कार्य है।
  • तबरी के जीवनकाल के थोड़े ही समय पश्चात्‌ फ़ारसी में उसका अनुवाद हुआ था और उस अनुवाद का पुन: तुर्की भाषा में भी अनुवाद हुआ।
  • इस तारीख़ के अतिरिक्त उसने 'जामी अल‌-बयान की तफसीर अल-क़ुरान' पर एक टीका भी लिखी थी, जिसे संक्षेप में 'तफसीर' कहा जाता है।
  • लगभग 75 वर्षों की अवस्था तक साहित्यसर्जन करते हुए तबरी ने 923 ई. में शरीर त्याग दिया था।


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