"कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 417": अवतरणों में अंतर
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+[[विनता]] का पुत्र होने के कारण | +[[विनता]] का पुत्र होने के कारण | ||
||[[चित्र:Garuda.jpg|right|border|100px|गरुड़]]'गरुड़' [[हिन्दू धर्म]] के अनुसार पक्षियों के राजा और [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के वाहन हैं। ये [[कश्यप|कश्यप ऋषि]] और [[विनता]] के पुत्र तथा [[अरुण देवता|अरुण]] के भ्राता हैं। [[लंका]] के राजा [[रावण]] के पुत्र [[इन्द्रजित]] ने जब युद्ध में [[राम]] और [[लक्ष्मण]] को नागपाश से बाँध लिया, तब [[गरुड़]] ने ही उन्हें इस बंधन से मुक्त किया था। [[काकभुशुंडी]] नामक एक कौए ने गरुड़ को [[श्रीराम]] कथा सुनाई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गरुड़]] | |||
{निम्न में से किसे 'वैश्रवण' के नाम से जाना जाता था? | {निम्न में से किसे 'वैश्रवण' के नाम से जाना जाता था? | ||
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-[[हनुमान]] | -[[हनुमान]] | ||
-[[रावण]] | -[[रावण]] | ||
||[[चित्र:Kubera-The-God-Of-Wealth-Mathura-Museum-45.jpg|right|border|80px|कुबेर]]'कुबेर' [[पुलस्त्य|महर्षि पुलस्त्य]] के पुत्र [[विश्रवा|महामुनि विश्रवा]] के पुत्र थे। विश्रवा की पत्नी इलविला के गर्भ से [[कुबेर]] का जन्म हुआ था, जबकि उनकी दूसरी पत्नी [[कैकसी]] के गर्भ से [[रावण]], [[कुम्भकर्ण]], [[विभीषण]] और [[शूर्पणखा]] का जन्म हुआ था। इस प्रकार कुबेर रावण का भाई था। श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेर अपनी सत्तर [[योजन]] विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजते हैं। इनके पुत्र [[नलकूबर]] और मणिग्रीव [[कृष्ण|भगवान श्री कृष्णचन्द्र]] द्वारा [[नारद]] के [[शाप]] से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुबेर]] | |||
{कौन-सा [[संस्कृत]] [[नाटक]] [[राम|श्रीराम]] की गाथा से नहीं जुड़ा? | {कौन-सा [[संस्कृत]] [[नाटक]] [[राम|श्रीराम]] की गाथा से नहीं जुड़ा? | ||
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-आश्रय चूड़ामणि | -आश्रय चूड़ामणि | ||
-जानकीराघव | -जानकीराघव | ||
-प्रसन्नराघव | -[[प्रसन्नराघव]] | ||
+[[अभिज्ञानशाकुंतलम]] | +[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्|अभिज्ञानशाकुंतलम]] | ||
||[[चित्र:Abhigyan-Shakuntalam.jpg|right|border|80px|अभिज्ञान शाकुन्तलम्]]'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' न केवल [[संस्कृत साहित्य]] का, अपितु विश्व साहित्य का सर्वोत्कृष्ट [[नाटक]] है। यह [[कालिदास]] की अन्तिम रचना है। इसके सात अंकों में [[दुष्यन्त]] और [[शकुन्तला]] की प्रणय-कथा का वर्णन है। इसका कथानक [[महाभारत]] के [[आदि पर्व महाभारत|आदि पर्व]] के 'शकुन्तलोपाख्यान' से लिया गया है। [[कण्व]] के माध्यम से एक पिता का पुत्री को दिया गया उपदेश आज इतने वर्षों के बाद भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना उस समय में था। भारतीय आलोचकों ने ’काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला’ कहकर इस नाटक की प्रशंसा की है। भारतीय आलोचकों के समान ही विदेशी आलोचकों ने भी इस नाटक की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]] | |||
{[[जैन धर्म]] के प्रथम [[तीर्थंकर]] कौन थे? | {[[जैन धर्म]] के प्रथम [[तीर्थंकर]] कौन थे? | ||
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-[[संभवनाथ]] | -[[संभवनाथ]] | ||
+[[ऋषभदेव]] | +[[ऋषभदेव]] | ||
||[[चित्र:Rishabhanatha.jpg|right|border|80px|ऋषभदेव]]'ऋषभदेव' [[जैन धर्म]] के प्रथम [[तीर्थंकर]] हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है- 'जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से [[मोक्ष]] तक के तीर्थ की रचना करें। ऋषभदेव को 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं। [[ऋषभदेव]] महाराज नाभि के पुत्र थे। महाराज नाभि ने सन्तान-प्राप्ति के लिये [[यज्ञ]] किया। तप: पूत ऋत्विजों ने श्रुति के मन्त्रों से यज्ञ-पुरुष की स्तुति की। श्रीनारायण प्रकट हुए। विप्रों ने नरेश को उनके सौन्दर्य, ऐश्वर्य, शक्तिघन के समान ही पुत्र हो, यह प्रार्थना की। महाराज नाभि की महारानी की गोद में स्वयं वही परमतत्त्व प्रकट हुआ।{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋषभदेव]] | |||
{महर्षियों के उस समुदाय को क्या कहते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे [[ब्रह्मा]] के रोम से उत्पन्न हुए थे? | {महर्षियों के उस समुदाय को क्या कहते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे [[ब्रह्मा]] के रोम से उत्पन्न हुए थे? | ||
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+[[बालखिल्य]] | +[[बालखिल्य]] | ||
-पंचाग्निसेवी | -पंचाग्निसेवी | ||
||'बालखिल्य' नाम के मुनियों का आकार [[अंगूठा|अंगूठे]] के बराबर माना जाता है। [[दक्ष]] तथा क्रिया से उत्पन्न पुत्री 'सन्नति' से [[क्रतु|क्रतु ऋषि]] ने [[विवाह]] रचाया था। इसी दम्पत्ति से साठ हज़ार '[[बालखिल्य]]' नाम के पुत्र हुए थे। इन [[मुनि|मुनियों]] ने [[कश्यप]] के पुत्र-कामना [[यज्ञ]] में भाग लिया था। इसी समय [[इन्द्र]] ने बालखिल्य मुनियों का उपहास किया। इससे रुष्ठ होकर बालखिल्य मुनियों ने एक दूसरे इन्द्र की उत्पत्ति की कामना की। बालखिल्य मुनियों के वरदान से ही महर्षि कश्यप के यहाँ [[गरुड़]] का जन्म हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बालखिल्य]] | |||
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05:33, 8 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
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