"कालका शिमला रेलवे": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारत की शाही रेलगाड़ियाँ}}{{भारतीय रेल}} | {{भारत की शाही रेलगाड़ियाँ}}{{भारतीय रेल}} | ||
[[Category:भारतीय रेल]][[Category:भारत की शाही रेलगाड़ियाँ]][[Category:रेल यातायात]][[Category:यातायात और परिवहन कोश]][[Category:हिमाचल प्रदेश]][[Category: | [[Category:भारतीय रेल]][[Category:भारत की शाही रेलगाड़ियाँ]][[Category:रेल यातायात]][[Category:यातायात और परिवहन कोश]][[Category:हिमाचल प्रदेश]][[Category:विश्व विरासत स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
12:18, 25 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
कालका शिमला रेलवे (अंग्रेज़ी: Kalka–Shimla Railway) भारत में अंग्रेज़ों द्वारा तैयार की गयी एक नैरोगेज वाली पर्वतीय रेलवे है। इसको बनाने में शानदार इंजीनियरिंग कौशल के साथ 20 सालों का एक लम्बा समय लगा। यहाँ के मौसम की स्थितियों और दुर्गम क्षेत्र ने इस लाइन के निर्माण को चुनौतीपूर्ण बना दिया था। यह रेलवे लाइन कालका से शिमला नगरों को आपस में जोड़ती है। जहाँ कालका तलहटी में बसा है, वहीं अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रेणियों में 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 100 किलोमीटर लम्बी इस रेलवे लाइन पर 103 सुरंगे हैं।
इतिहास
ब्रिटिश शासन की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को कालका से जोड़ने के लिए 1896 में दिल्ली अंबाला कंपनी को इस रेलमार्ग के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। समुद्र तल से 656 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालका रेलवे स्टेशन को छोड़ने के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्ते से गुजरते हुए 2,076 मीटर ऊपर स्थित शिमला तक जाती है। 24 जुलाई 2008 को इसे युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया।
दो फीट छह इंच के इस नैरोगेज रेलमार्ग पर 9 नवंबर, 1903 से आज तक रेल यातायात जारी है। कालका-शिमला रेलमार्ग में 103 सुरंगें और 869 पुल बने हुए हैं। इस मार्ग पर 919 घुमाव आते हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है। इस मार्ग में निर्मित सुरंगें व पुल इस लाइन को और अधिक महत्व देते है। सभी सुरंगें 1900 और 1903 के बीच बनी हैं और सबसे लम्बी सुरंग बड़ोग सुरंग है जोकि एक कि.मी. से अधिक लम्बी है। 15 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा की कछुए की रफ़्तार से चलने वाली इस ट्रैन में बैठकर यात्री हिमाचल प्रदेश के प्रारंभिक पर्वतों को करीब से तथा इत्मीनान से निहारने का मौका पा सकते हैं। यह ट्रैन कालका से शिमला के 96 किलोमीटर के सफ़र को 6 से 7 घंटे में तय करती है।[1]
विश्व धरोहर का दर्ज़ा
कालका-शिमला रेल लाइन को आज भी इतने बेहतर तरीके से सहेजकर रखा गया है, जैसे कि यह अपने निर्माण के समय रही थी। इसके इंजीनियरिंग कौशल के साथ-साथ इस लाइन के रेलवे स्टेशन, सिग्नल प्रणाली और इसका पुराना उपनिवेशवादी स्वरूप अब भी बना हुआ है। 8 जुलाई, 2008 को यूनेस्को ने भारत की इस कालका-शिमला पर्वतीय रेलवे को विश्व धरोहर का दर्ज़ा प्रदान किया। शिमला की ठंडी जलवायु और खूबसूरत वादियाँ इससे सटे उत्तर भारत के प्रमुख शहरों के पर्यटकों को हर मौसम में अपनी तरफ आकर्षित करती है। उत्तर रेलवे इस रेलमार्ग पर अनेक रेल सेवाओं का संचालन करती है। इनमे रेल मोटर कार, शिवालिक पैलेस , शिवालिक क्वीन और शिवालिक डीलक्स एक्सप्रेस रेल सेवाएं शामिल है। लोकप्रिय रेल सेवाओं में 'झरोखा' और नव निर्मित 'विस्टाडोम कोच' लगाए गए हैं। इस रेल सेक्शन के सभी स्टेशनों पर निःशुल्क वाई फाई सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
यात्राक्रम
- 0 कि.मी. - कालका
- 6 कि.मी. - टकसाल
- 11 कि.मी. - गुम्मन
- 17 कि.मी. - कोटी
- 27 कि.मी. - सनवारा
- 33 कि.मी. - धर्मपुर
- 39 कि.मी. - कुमारहट्टी
- 43 कि.मी. - बड़ोग
- 47 कि.मी. - सोलन
- 53 कि.मी. - सलोगड़ा
- 59 कि.मी. - कंडाघाट
- 65 कि.मी. - कनोह
- 73 कि.मी. - कैथलीघाट
- 78 कि.मी. - शोघी
- 85 कि.मी. - तारादेवी
- 90 कि.मी. - टोटु (जतोग)
- 93 कि.मी. - समर हिल
- 96 कि.मी. - शिमला
किराया
- प्रथम श्रेणी - 270 रुपये
- जनरल श्रेणी - 70 रुपये
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कालका शिमला रेलवे (हिंदी) erail.in। अभिगमन तिथि: 25 जनवरी, 2020।
संबंधित लेख