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{{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी
डॉ. टी. बी. कुन्हा (जन्म- [[2 अप्रैल]], 1891 चंदौर गांव [[गोवा]], मृत्यु- [[26 सितंबर]], 1958) गोवा के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे।
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==जीवन परिचय==
|चित्र का नाम=टी. बी. कुन्हा
डॉ. टी. बी. कुन्हा का जन्म 2 अप्रैल, 1891 ई. का गोवा के चंदौर नामक गांव में हुआ था। [[पणजी]] की शिक्षा-व्यवस्था से संतुष्ट न होकर कुन्हा [[पांडिचेरी]] चले गए। वहाँ से बी.ए. पास करने के बाद वे पेरिस गए और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं उन्होंने 1916 से 1926 तक एक निजी फर्म में काम किया। इस बीच डॉ. कुन्हा रोमां रोलां जैसे प्रसिद्ध विचारकों के संपर्क में आए। 1917 की रूसी राज्य-क्रांति का भी टी. बी. कुन्हा के विचारों पर प्रभाव पड़ा। वे अनुभव करने लगे कि पश्चिमी देशों का साम्राज्यवादी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। उन्होंने [[फ्रांस]] के पत्रों में लेख लिखकर लोगों को [[भारत]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] के द्वारा किए जा रहे शोषण से परिचित कराया। ब्रिटिश सरकार ने [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांड के जो समाचार पश्चिमी देशों से छिपा रखे थे उन्हें पूरे विवरण के साथ यूरोप के पत्रों में प्रकाशित कराने का श्रेय डॉ. कुन्हा को ही था।
|पूरा नाम=टी. बी. कुन्हा
==स्थापना==
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1926 में डॉ. कुन्हा भारत आए। उस समय तक [[पुर्तग़ाल]] में सालाजार का शासन स्थापित हो चुका था और गोवा वासियों को और भी दमन का सामना करना पड़ रहा था। डॉ. कुन्हा ने गोवा [[कांग्रेस]] कमेटी की स्थापना की और उसे [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] से सम्बद्ध करा लिया। इस प्रकार गोवा का स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ हुआ। उन्होंने गोवा के दमनकारी शासन के विरोध में अनेक पुस्तिकाएं लिखीं। ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुक़दमा चलाना चाहा तो मुंबइ हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम. सी. छागला ने कुन्हा को निर्दोष साबित कर दिया।
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'''टी. बी. कुन्हा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''T. B. Cunha''; जन्म- [[2 अप्रैल]], [[1891]], [[गोवा]], मृत्यु- [[26 सितंबर]], [[1958]]) [[गोवा]] के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। ये ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर करके गोवा को स्वतंत्र कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। डॉ. टी. बी. कुन्हा जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपार कष्ट सह कर गोवा को [[1961]] में स्वतंत्रता दिलाई। [[आधुनिक भारत]] के यशस्वी सपूत टी. बी. कुन्हा "गोवा के जनक" के रूप में माने जाते हैं। वे एक दूरद्रष्टाराष्ट्रवादी स्वतंत्रता सेनानी थे।
==जन्म तथा शिक्षा==
टी. बी. कुन्हा का जन्म 2 अप्रैल, 1891 ई. को गोवा के चंदौर नामक [[गांव]] में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा [[पणजी]] से प्राप्त की थी, लेकिन यहाँ की शिक्षा-व्यवस्था से संतुष्ट न होकर कुन्हा [[पांडिचेरी]] चले गए। वहाँ से उन्होंने बी. ए. उत्तीर्ण किया और फिर पेरिस चले गए। पेरिस से कुन्हा जी ने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं उन्होंने [[1916]] से [[1926]] तक एक निजी फर्म में काम किया।  
====पत्रों में लेखन कार्य====
इस बीच डॉ. कुन्हा रोमां रोलां जैसे प्रसिद्ध विचारकों के संपर्क में आए। वर्ष [[1917]] की रूसी राज्य-क्रांति का भी टी. बी. कुन्हा के विचारों पर प्रभाव पड़ा। वे अनुभव करने लगे कि पश्चिमी देशों का साम्राज्यवादी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। उन्होंने [[फ्रांस]] के पत्रों में लेख लिखकर लोगों को [[भारत]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] के द्वारा किए जा रहे शोषण से परिचित कराया। ब्रिटिश सरकार ने [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांड के जो समाचार पश्चिमी देशों से छिपा रखे थे, उन्हें पूरे विवरण के साथ [[यूरोप]] के पत्रों में प्रकाशित कराने का श्रेय डॉ. कुन्हा को ही जाता है।
=='गोवा कांग्रेस कमेटी' की स्थापना==
[[वर्ष]] [[1926]] में डॉ. कुन्हा भारत आए। उस समय तक [[पुर्तग़ाल]] में सालाजार का शासन स्थापित हो चुका था और गोवा वासियों को और भी दमन का सामना करना पड़ रहा था। डॉ. कुन्हा ने 'गोवा कांग्रेस कमेटी' की स्थापना की और उसे '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' से सम्बद्ध करा लिया। इस प्रकार गोवा का स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ हुआ। उन्होंने गोवा के दमनकारी शासन के विरोध में अनेक पुस्तिकाएँ लिखीं। ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुक़दमा चलाना चाहा तो मुंबई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम. सी. छागला ने कुन्हा को निर्दोष साबित कर दिया।
==सजा==
==सजा==
[[18 जून]], 1946 को मडगांव में डॉ. [[राम मनोहर लोहिया]] के सार्वजनिक भाषण से गोवा की पुर्तग़ाल से मुक्ति का खुला संघर्ष आरंभ हुआ। [[24 जुलाई]], 1948 को डॉ. कुन्हा गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर सैनिक अदालत में मुक़दमा चला और 8 वर्ष की कैद की सज़ा देकर उन्हें पुर्तग़ाल के एक क़िले में बंद कर दिया गया। 1950 में आम रिहाई के समय यद्यपि उन्हें भी जेल से छोड़ दिया गया पर भारत वे 1953 में ही आ सके। उनके भारत आते ही [[मुंबई]] में ‘गोवा एक्शन कमेटी’ का गठन किया गया। इसके प्रचार का परिणाम था कि 1954 में दादरा और नागर हवेली ज़िलों में पुर्तग़ाल की सत्ता समाप्त हो गई।
[[18 जून]], [[1946]] को मडगांव में [[डॉ. राम मनोहर लोहिया]] के सार्वजनिक भाषण से [[गोवा]] की [[पुर्तग़ाल]] से मुक्ति का खुला संघर्ष आरंभ हुआ। [[24 जुलाई]], [[1948]] को डॉ. कुन्हा गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर सैनिक अदालत में मुक़दमा चला और 8 वर्ष की कैद की सज़ा देकर उन्हें पुर्तग़ाल के एक क़िले में बंद कर दिया गया। [[1950]] में आम रिहाई के समय यद्यपि उन्हें भी जेल से छोड़ दिया गया था, पर भारत वे [[1953]] में ही आ सके। उनके भारत आते ही [[मुंबई]] में ‘गोवा एक्शन कमेटी’ का गठन किया गया। इसके प्रचार का परिणाम था कि [[1954]] में [[दादरा एवं नगर हवेली]] ज़िलों में पुर्तग़ाल की सत्ता समाप्त हो गई।
==सम्मान==
;सम्मान
डॉ. टी. बी. कुन्हा को 1959 में ‘वर्ल्डपीस कौंसिल’ ने अपने स्टॉकहोम के अधिवेशन में मरणोपरांत स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया।
डॉ. टी. बी. कुन्हा को [[1959]] में ‘वर्ल्डपीस कौंसिल’ ने अपने स्टॉकहोम के अधिवेशन में मरणोपरांत स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया था।
==निधन==
====निधन====
डॉ. टी. बी. कुन्हा का निधन [[26 सितंबर]], 1958 को हुआ था।
गोवा की स्वतंत्रता के लिए लगातार संघर्ष करने वाले डॉ. टी. बी. कुन्हा का निधन [[26 सितंबर]], [[1958]] को हुआ।


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05:00, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

टी. बी. कुन्हा
टी. बी. कुन्हा
टी. बी. कुन्हा
पूरा नाम टी. बी. कुन्हा
जन्म 2 अप्रैल, 1891
जन्म भूमि गोवा
मृत्यु 26 सितंबर, 1958
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
जेल यात्रा 24 जुलाई, 1948 को डॉ. कुन्हा को गिरफ्तार किया गया और आठ वर्ष की सजा हुई।
शिक्षा बी.ए. (पांडिचेरी से) और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (पेरिस से)
विशेष योगदान अंग्रेज़ों ने जलियाँवाला बाग़ में घटित हत्याकांड के जो समाचार पश्चिमी देशों से छिपाये, उन्हें पूरे यूरोप के पत्रों में प्रकाशित कराने का श्रेय डॉ. कुन्हा को ही जाता है।
अन्य जानकारी 1953 में भारत वापस आने के बाद टी. बी. कुन्हा ने मुंबई में ‘गोवा एक्शन कमेटी’ का गठन किया। इसके प्रचार से ही 1954 में दादरा एवं नगर हवेली ज़िलों में पुर्तग़ाल की सत्ता समाप्त हो गई।

टी. बी. कुन्हा (अंग्रेज़ी: T. B. Cunha; जन्म- 2 अप्रैल, 1891, गोवा, मृत्यु- 26 सितंबर, 1958) गोवा के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। ये ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर करके गोवा को स्वतंत्र कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। डॉ. टी. बी. कुन्हा जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपार कष्ट सह कर गोवा को 1961 में स्वतंत्रता दिलाई। आधुनिक भारत के यशस्वी सपूत टी. बी. कुन्हा "गोवा के जनक" के रूप में माने जाते हैं। वे एक दूरद्रष्टाराष्ट्रवादी स्वतंत्रता सेनानी थे।

जन्म तथा शिक्षा

टी. बी. कुन्हा का जन्म 2 अप्रैल, 1891 ई. को गोवा के चंदौर नामक गांव में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पणजी से प्राप्त की थी, लेकिन यहाँ की शिक्षा-व्यवस्था से संतुष्ट न होकर कुन्हा पांडिचेरी चले गए। वहाँ से उन्होंने बी. ए. उत्तीर्ण किया और फिर पेरिस चले गए। पेरिस से कुन्हा जी ने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं उन्होंने 1916 से 1926 तक एक निजी फर्म में काम किया।

पत्रों में लेखन कार्य

इस बीच डॉ. कुन्हा रोमां रोलां जैसे प्रसिद्ध विचारकों के संपर्क में आए। वर्ष 1917 की रूसी राज्य-क्रांति का भी टी. बी. कुन्हा के विचारों पर प्रभाव पड़ा। वे अनुभव करने लगे कि पश्चिमी देशों का साम्राज्यवादी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। उन्होंने फ्रांस के पत्रों में लेख लिखकर लोगों को भारत में अंग्रेजों के द्वारा किए जा रहे शोषण से परिचित कराया। ब्रिटिश सरकार ने जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के जो समाचार पश्चिमी देशों से छिपा रखे थे, उन्हें पूरे विवरण के साथ यूरोप के पत्रों में प्रकाशित कराने का श्रेय डॉ. कुन्हा को ही जाता है।

'गोवा कांग्रेस कमेटी' की स्थापना

वर्ष 1926 में डॉ. कुन्हा भारत आए। उस समय तक पुर्तग़ाल में सालाजार का शासन स्थापित हो चुका था और गोवा वासियों को और भी दमन का सामना करना पड़ रहा था। डॉ. कुन्हा ने 'गोवा कांग्रेस कमेटी' की स्थापना की और उसे 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' से सम्बद्ध करा लिया। इस प्रकार गोवा का स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ हुआ। उन्होंने गोवा के दमनकारी शासन के विरोध में अनेक पुस्तिकाएँ लिखीं। ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुक़दमा चलाना चाहा तो मुंबई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम. सी. छागला ने कुन्हा को निर्दोष साबित कर दिया।

सजा

18 जून, 1946 को मडगांव में डॉ. राम मनोहर लोहिया के सार्वजनिक भाषण से गोवा की पुर्तग़ाल से मुक्ति का खुला संघर्ष आरंभ हुआ। 24 जुलाई, 1948 को डॉ. कुन्हा गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर सैनिक अदालत में मुक़दमा चला और 8 वर्ष की कैद की सज़ा देकर उन्हें पुर्तग़ाल के एक क़िले में बंद कर दिया गया। 1950 में आम रिहाई के समय यद्यपि उन्हें भी जेल से छोड़ दिया गया था, पर भारत वे 1953 में ही आ सके। उनके भारत आते ही मुंबई में ‘गोवा एक्शन कमेटी’ का गठन किया गया। इसके प्रचार का परिणाम था कि 1954 में दादरा एवं नगर हवेली ज़िलों में पुर्तग़ाल की सत्ता समाप्त हो गई।

सम्मान

डॉ. टी. बी. कुन्हा को 1959 में ‘वर्ल्डपीस कौंसिल’ ने अपने स्टॉकहोम के अधिवेशन में मरणोपरांत स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया था।

निधन

गोवा की स्वतंत्रता के लिए लगातार संघर्ष करने वाले डॉ. टी. बी. कुन्हा का निधन 26 सितंबर, 1958 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 344 से 345।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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