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सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश), पाँच ज्ञानेद्री (कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं। | सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश), पाँच ज्ञानेद्री (कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं। | ||
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10:07, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
18
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विवरण | इस लेख में संख्या 18 (अठारह) संख्या के महत्त्व को बताया गया है |
हिंदी | अठारह |
अंग्रेज़ी | Eighteen |
रोमन | XVIII |
महत्त्व | महाभारत युद्ध- 18 दिन
पुराणों की संख्या- 18 |
संबंधित लेख | अंक 7, 786 |
इस लेख में संख्या 18 (अठारह) संख्या के महत्त्व को बताया गया है
महाभारत में 18 का महत्त्व
- महाभारत का युद्ध कुल 18 दिनों तक हुआ था।
- कौरवों (11 अक्षौहिणी) और पांडवों (7 अक्षौहिणी) की सेना भी कुल 18 अक्षौहिणी थी।
- महाभारत में कुल 18 पर्व हैं (आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराटपर्व , उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, अश्वमेधिक पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व, मौसल पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, स्वर्गारोहण पर्व तथा आश्रमवासिक पर्व)।
- महाभारत युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 हैं (धृतराष्ट्र, दुर्योधन, दु:शासन, कर्ण, शकुनी, भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, कृतवर्मा, श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी एवं विदुर)
- महाभारत के युद्ध के पश्चात् कौरवों की तरफ से तीन और पांडवों की तरफ से 15 यानि कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे।
- महाभारत को पुराणों के जितना सम्मान दिया जाता है और पुराणों की संख्या भी 18 है।
गीता में 18 का महत्त्व
- श्रीमद्भागवत गीता के अध्यायों की संख्या अठारह है।
- श्रीमद् भागवत में कुल श्लोकों की संख्या अठारह हज़ार है।
अठारह सिद्धियाँ
अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, सिद्धि, ईशित्व या वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, सृष्टि, पराकायप्रवेश, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, संहारकरणसामर्थ्य, भावना, अमरता, सर्वन्याय - ये अट्ठारह सिद्धियाँ मानी जाती हैं।
अठारह तत्त्व
सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश), पाँच ज्ञानेद्री (कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं।
अठारह विद्याएँ
छह वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्यायशास्त्र, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद और गंधर्व वेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं।
काल के अठारह भेद
एक संवत्सर, पाँच ऋतुएँ और बारह महीने - ये सब मिलकर काल के अठारह भेदों को बताते हैं।
देवी के अठारह स्वरूप
राधा, कात्यायनी, काली, तारा, कूष्मांडा, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री, छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, पार्वती, सिद्धिदात्री, भगवती, जगदम्बा के ये अठारह स्वरूप माने जाते हैं।
अठारह भुजा
विष्णु, शिव, ब्रह्मा, इन्द्र आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुई भगवती दुर्गा अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख