"कौशांबी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "यहां" to "यहाँ")
छो (Text replacement - "छः" to "छह")
 
(8 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 20 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''कौशाम्बी / Kaushambi'''<br />
[[चित्र:Buddha1.jpg|thumb|बुद्ध|250px]]
'''कौशांबी''', [[बुद्ध]] काल की परम प्रसिद्ध नगरी, जो [[वत्स महाजनपद|वत्स देश]] की राजधानी थी। इसका अभिज्ञान, तहसील मंझनपुर [[इलाहाबाद ज़िला|ज़िला इलाहाबाद]] में [[प्रयाग]] से 24 मील पर स्थित [[कोसम]] नाम के ग्राम से किया गया है। यह नगरी [[यमुना नदी]] पर बसी हुई थी।
==पौराणिक संदर्भ==
{{tocright}}
[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[हस्तिनापुर]] नरेश निचक्षु ने, जो [[परीक्षित]] का वंशज ([[युधिष्ठर]] से सातवीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के [[गंगा]] द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी में बनाई थी—'''अधिसीमकृष्णपुत्रो निचक्षुर्भविता नृपः यो गंगयाऽपह्नते हस्तिनापुरे कौशंव्यां निवत्स्यति'''। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा [[उदयन]] था। इस नगरी का उल्लेख [[महाभारत]] में नहीं है, फिर भी इसका अस्तित्व ईसा से कई शतियों पूर्व था। [[गौतम बुद्ध]] के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य के मध्याह्नाकल में थी। जातक कथाओं तथा [[बौद्ध साहित्य]] में कौशांबी का वर्णन अनेक बार आया है। [[कालिदास]], [[भास]] और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से सम्बन्धित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।
==बुद्ध से सम्बन्ध==
{{मुख्य|बुद्ध}}
उदयन के समय में [[गौतमबुद्ध]] कौशांबी में अक्सर आते-जाते रहते थे। उनके सम्बन्ध के कारण कौशांबी के अनेक स्थान सैकड़ों वर्षों तक प्रसिद्ध रहे। [[बुद्धचरित]] 21,33 के अनुसार कौशांबी में, बुद्ध ने धनवान, घोषिल, कुब्जोत्तरा तथा अन्य महिलाओं तथा पुरुषों को दीक्षित किया था। यहाँ के विख्यात श्रेष्ठी घोषित (सम्भवतः बुद्धचरित का घोषिल) ने '[[घोषिताराम]]' नाम का एक सुन्दर उद्यान बुद्ध के निवास के लिए बनवाया था। घोषित का भवन नगर के दक्षिण-पूर्वी कोने में था। घोषिताराम के निकट ही [[अशोक]] का बनवाया हुआ 150 हाथ ऊँचा स्तूप था। इसी विहारवन के दक्षिण-पूर्व में एक भवन था जिसके एक भाग में आचार्य [[वसुबंधु]] रहते थे। इन्होंने '''विज्ञप्ति मात्रता सिद्धि''' नामक ग्रंथ की रचना की थी। इसी वन के पूर्व में वह मकान था जहाँ [[आर्य]] असंग ने अपने ग्रंथ '''योगाचारभूमि''' की रचना की थी।


[[बौद्ध]] भूमि के रूप में प्रसिद्ध कौशाम्बी [[उत्तर प्रदेश]] राज्य का एक ज़िला है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला मंदिर, [[दुर्गा]] देवी मंदिर, प्रभाषगिरी और [[राम]] मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। [[इलाहाबाद]] के दक्षिण-पश्चिम से 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कौशाम्बी को पहले कौशाम के नाम से जाना जाता था। यह बौद्ध व [[जैन|जैनों]] का पुराना केन्द्र है। पहले यह जगह [[सोलह महाजनपद|वत्स महाजनपद]] के राजा उदयन की राजधानी थी। माना जाता है कि [[बुद्ध]] छठें व नौवें वर्ष यहाँ घूमने के लिए आए थे।
==ऐतिहासिक तथ्य==
कौशांबी से एक कोस उत्तर-पश्चिम में एक छोटी पहाड़ी थी, जिसकी प्लक्ष नामक गुहा में बुद्ध कई बार आए थे। यहीं श्वभ्र नामक प्राकृतिक कुण्ड था। [[जैन धर्म|जैन]] ग्रंथों में भी कौशांबी का उल्लेख है। आवश्यक सूत्र की एक कथा में जैन भिक्षुणी चंदना का उल्लेख है, जो भिक्षुणी बनने से पूर्व कौशांबी के एक व्यापारी धनावह के हाथों बेच दी गई थी। इसी सूत्र में कौशांबी नरेश शतानीक का भी उल्लेख है। इसकी रानी मृगावती [[विदेह]] की राजकुमारी थी। [[मौर्य काल]] में [[पाटलिपुत्र]] का गौरव अधिक बढ़ जाने से कौशांबी समृद्धिविहीन हो गई। फिर भी [[अशोक]] ने यहाँ प्रस्तर स्तम्भ पर अपनी धर्मलिपियाँ—संवत 1 से 6 तक उत्कीर्ण करवायीं। इसी स्तम्भ पर एक अन्य धर्मलिपि भी अंकित है, जिससे बौद्ध संघ के प्रति अनास्था दिखाने वाले भिक्षुओं के लिए दण्ड नियत किया गया है। इसी स्तम्भ पर अशोक की रानी और तीवर की माता [[कारुवाकी]] का भी एक लेख है।
==कौशांबी का पतन==
[[गुप्त राजवंश|गुप्तकाल]] में अन्य बौद्ध केन्द्रों की भाँति ही कौशांबी का महत्त्व भी बहुत कम हो गया। गुप्तसंवत 139=459 ई. का एक लेख प्रस्तर मूर्ति पर अंकित है, जो [[स्कन्दगुप्त]] के समय का है और महाराज भीमवर्मन से सम्बन्धित है। चीनी यात्री युवानच्वांग की [[भारत]] यात्रा के समय (360-645 ई.) कौशांबी खण्डहरों की नगरी बन चुकी थी। कन्नौजाधिप [[हर्षवर्धन|हर्ष]] के प्रसिद्ध नाटक '''रत्नावली''' की मुख्य घटनास्थली कौशांबी ही है। जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प में भी शतानीक के पुत्र [[उदयन]] का उल्लेख है और उसे वत्सनरेश कहा गया है।
==पुरातत्त्व==
[[कालिंदी नदी|कालिंदी]] के तट पर स्थित कौशांबी के अनेक वनों का भी उल्लेख है। चंदनवाला ने [[महावीर]] के सम्मानार्थ छह मास का उपवास कौशांबी में किया था। भगवान पद्मप्रभु ने यहीं पर [[जैन धर्म]] दीक्षा ली थी। नगरी में अनेक विशाल छाया वाले कौशंब वृक्ष थे-'''यत्य सिनिद्धछाया कोसंवतरुत्रोमहापभागा दीसंति'''। हाल ही में प्रयाग विश्वविद्यालय की पुरातत्त्व परिषद ने कोसम की खुदाई द्वारा अनेक प्राचीन स्थलों को प्रकाश में लाकर उनका अभिज्ञान किया है। इस सम्बन्ध में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य घोषिताराम की खोज है। जैसा ऊपर लिखा जा चुका है घोषिताराम, कौशांबी में [[बुद्ध]] का सर्वप्रथम निवासस्थान था। इसका अभिज्ञान कुछ अभिलेखों की सहायता से किया गया है। इन अभिलेखों से कौशांबी का [[कोसम]] से अभिज्ञान भी, जिसके विषय में पहले विद्वानों में काफ़ी मतभेद था, निश्चित रूप से प्रमाणित हो गया है। ज़िला [[इलाहाबाद]] के [[कड़ा]] नामक स्थान से एक [[अभिलेख]] प्राप्त हुआ था, जिसमें इस स्थान को कौशांबी मण्डल के अंतर्गत बताया गया है।


[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
==पर्यटन स्थल==
[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]]  
यहाँ स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, प्रभाषगिरी और राम मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
 
 
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
==संबंधित लेख==
{{उत्तर प्रदेश के नगर}}
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]] [[Category:उत्तर प्रदेश के नगर]] [[Category:भारत के नगर]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]  
[[Category:ऐतिहासिक स्थल]] [[Category:पर्यटन कोश]]  
__INDEX__
__INDEX__

10:16, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

बुद्ध

कौशांबी, बुद्ध काल की परम प्रसिद्ध नगरी, जो वत्स देश की राजधानी थी। इसका अभिज्ञान, तहसील मंझनपुर ज़िला इलाहाबाद में प्रयाग से 24 मील पर स्थित कोसम नाम के ग्राम से किया गया है। यह नगरी यमुना नदी पर बसी हुई थी।

पौराणिक संदर्भ

पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठर से सातवीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी में बनाई थी—अधिसीमकृष्णपुत्रो निचक्षुर्भविता नृपः यो गंगयाऽपह्नते हस्तिनापुरे कौशंव्यां निवत्स्यति। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। इस नगरी का उल्लेख महाभारत में नहीं है, फिर भी इसका अस्तित्व ईसा से कई शतियों पूर्व था। गौतम बुद्ध के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य के मध्याह्नाकल में थी। जातक कथाओं तथा बौद्ध साहित्य में कौशांबी का वर्णन अनेक बार आया है। कालिदास, भास और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से सम्बन्धित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।

बुद्ध से सम्बन्ध

उदयन के समय में गौतमबुद्ध कौशांबी में अक्सर आते-जाते रहते थे। उनके सम्बन्ध के कारण कौशांबी के अनेक स्थान सैकड़ों वर्षों तक प्रसिद्ध रहे। बुद्धचरित 21,33 के अनुसार कौशांबी में, बुद्ध ने धनवान, घोषिल, कुब्जोत्तरा तथा अन्य महिलाओं तथा पुरुषों को दीक्षित किया था। यहाँ के विख्यात श्रेष्ठी घोषित (सम्भवतः बुद्धचरित का घोषिल) ने 'घोषिताराम' नाम का एक सुन्दर उद्यान बुद्ध के निवास के लिए बनवाया था। घोषित का भवन नगर के दक्षिण-पूर्वी कोने में था। घोषिताराम के निकट ही अशोक का बनवाया हुआ 150 हाथ ऊँचा स्तूप था। इसी विहारवन के दक्षिण-पूर्व में एक भवन था जिसके एक भाग में आचार्य वसुबंधु रहते थे। इन्होंने विज्ञप्ति मात्रता सिद्धि नामक ग्रंथ की रचना की थी। इसी वन के पूर्व में वह मकान था जहाँ आर्य असंग ने अपने ग्रंथ योगाचारभूमि की रचना की थी।

ऐतिहासिक तथ्य

कौशांबी से एक कोस उत्तर-पश्चिम में एक छोटी पहाड़ी थी, जिसकी प्लक्ष नामक गुहा में बुद्ध कई बार आए थे। यहीं श्वभ्र नामक प्राकृतिक कुण्ड था। जैन ग्रंथों में भी कौशांबी का उल्लेख है। आवश्यक सूत्र की एक कथा में जैन भिक्षुणी चंदना का उल्लेख है, जो भिक्षुणी बनने से पूर्व कौशांबी के एक व्यापारी धनावह के हाथों बेच दी गई थी। इसी सूत्र में कौशांबी नरेश शतानीक का भी उल्लेख है। इसकी रानी मृगावती विदेह की राजकुमारी थी। मौर्य काल में पाटलिपुत्र का गौरव अधिक बढ़ जाने से कौशांबी समृद्धिविहीन हो गई। फिर भी अशोक ने यहाँ प्रस्तर स्तम्भ पर अपनी धर्मलिपियाँ—संवत 1 से 6 तक उत्कीर्ण करवायीं। इसी स्तम्भ पर एक अन्य धर्मलिपि भी अंकित है, जिससे बौद्ध संघ के प्रति अनास्था दिखाने वाले भिक्षुओं के लिए दण्ड नियत किया गया है। इसी स्तम्भ पर अशोक की रानी और तीवर की माता कारुवाकी का भी एक लेख है।

कौशांबी का पतन

गुप्तकाल में अन्य बौद्ध केन्द्रों की भाँति ही कौशांबी का महत्त्व भी बहुत कम हो गया। गुप्तसंवत 139=459 ई. का एक लेख प्रस्तर मूर्ति पर अंकित है, जो स्कन्दगुप्त के समय का है और महाराज भीमवर्मन से सम्बन्धित है। चीनी यात्री युवानच्वांग की भारत यात्रा के समय (360-645 ई.) कौशांबी खण्डहरों की नगरी बन चुकी थी। कन्नौजाधिप हर्ष के प्रसिद्ध नाटक रत्नावली की मुख्य घटनास्थली कौशांबी ही है। जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प में भी शतानीक के पुत्र उदयन का उल्लेख है और उसे वत्सनरेश कहा गया है।

पुरातत्त्व

कालिंदी के तट पर स्थित कौशांबी के अनेक वनों का भी उल्लेख है। चंदनवाला ने महावीर के सम्मानार्थ छह मास का उपवास कौशांबी में किया था। भगवान पद्मप्रभु ने यहीं पर जैन धर्म दीक्षा ली थी। नगरी में अनेक विशाल छाया वाले कौशंब वृक्ष थे-यत्य सिनिद्धछाया कोसंवतरुत्रोमहापभागा दीसंति। हाल ही में प्रयाग विश्वविद्यालय की पुरातत्त्व परिषद ने कोसम की खुदाई द्वारा अनेक प्राचीन स्थलों को प्रकाश में लाकर उनका अभिज्ञान किया है। इस सम्बन्ध में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य घोषिताराम की खोज है। जैसा ऊपर लिखा जा चुका है घोषिताराम, कौशांबी में बुद्ध का सर्वप्रथम निवासस्थान था। इसका अभिज्ञान कुछ अभिलेखों की सहायता से किया गया है। इन अभिलेखों से कौशांबी का कोसम से अभिज्ञान भी, जिसके विषय में पहले विद्वानों में काफ़ी मतभेद था, निश्चित रूप से प्रमाणित हो गया है। ज़िला इलाहाबाद के कड़ा नामक स्थान से एक अभिलेख प्राप्त हुआ था, जिसमें इस स्थान को कौशांबी मण्डल के अंतर्गत बताया गया है।

पर्यटन स्थल

यहाँ स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, प्रभाषगिरी और राम मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख