"दो लड़के -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Sumitranandan-Pant...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "छः" to "छह") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
|मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977 | |मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977 | ||
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]] | |मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]] | ||
|मुख्य रचनाएँ=वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि | |मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], चिदंबरा, [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत|लोकायतन]], हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि | ||
|यू-ट्यूब लिंक= | |यू-ट्यूब लिंक= | ||
|शीर्षक 1= | |शीर्षक 1= | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
मेरे आँगन में, (टीले पर है मेरा घर) | मेरे आँगन में, (टीले पर है मेरा घर) | ||
दो छोटे-से लड़के आ जाते है अकसर! | दो छोटे-से लड़के आ जाते है अकसर! | ||
नंगे तन, गदबदे, | नंगे तन, गदबदे, साँवले, सहज छबीले, | ||
मिट्टी के मटमैले पुतले, - पर फुर्तीले। | मिट्टी के मटमैले पुतले, - पर फुर्तीले। | ||
जल्दी से टीले के नीचे उधर, उतरकर | जल्दी से टीले के नीचे उधर, उतरकर | ||
वे चुन ले जाते कूड़े से निधियाँ सुन्दर- | वे चुन ले जाते कूड़े से निधियाँ सुन्दर- | ||
सिगरेट के | सिगरेट के ख़ाली डिब्बे, पन्नी चमकीली, | ||
फीतों के टुकड़े, | फीतों के टुकड़े, तस्वीरें नीली पीली | ||
मासिक पत्रों के कवरों की, औ | मासिक पत्रों के कवरों की, औ' बन्दर से | ||
किलकारी भरते हैं, खुश हो-हो अन्दर से। | किलकारी भरते हैं, खुश हो-हो अन्दर से। | ||
दौड़ पार आँगन के फिर हो जाते ओझल | दौड़ पार आँगन के फिर हो जाते ओझल | ||
वे नाटे | वे नाटे छह सात साल के लड़के मांसल | ||
सुन्दर लगती नग्न देह, मोहती नयन-मन, | सुन्दर लगती नग्न देह, मोहती नयन-मन, | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 56: | ||
वह्नि, बाढ, उल्का, झंझा की भीषण भू पर | वह्नि, बाढ, उल्का, झंझा की भीषण भू पर | ||
कैसे रह सकता है कोमल मनुज कलेवर? | कैसे रह सकता है कोमल मनुज कलेवर? | ||
निष्ठुर है जड़ प्रकृति, सहज | निष्ठुर है जड़ प्रकृति, सहज भंगुर जीवित जन, | ||
मानव को चाहिए जहाँ, मनुजोचित साधन! | मानव को चाहिए जहाँ, मनुजोचित साधन! | ||
क्यों न एक हों मानव-मानव सभी परस्पर | क्यों न एक हों मानव-मानव सभी परस्पर |
11:40, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||||||
|
मेरे आँगन में, (टीले पर है मेरा घर) |
संबंधित लेख