"हिंगोट युद्ध": अवतरणों में अंतर

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==रोचक तथ्य==
==रोचक तथ्य==
* यह एक प्राचीन लेकिन खतरनाक परंपरा है जो तुर्रा और कलंगी समूहों के द्वारा खेली जाती है। इसमें जलते हुए हिंगोट एक-दूसरे के ऊपर फेंके जाते हैं और अंत में यह छद्म लड़ाई बिना हार-जीत के ख़त्म हो जाती है।  
* यह एक प्राचीन लेकिन खतरनाक परंपरा है जो तुर्रा और कलंगी समूहों के द्वारा खेली जाती है। इसमें जलते हुए हिंगोट एक-दूसरे के ऊपर फेंके जाते हैं और अंत में यह छद्म लड़ाई बिना हार-जीत के ख़त्म हो जाती है।  
* हिंगोट एक किस्म का मजबूत खोल वाला फल होता है जिसको सुखा कर बारूद भर कर सील कर दिया जाता है और जब इसको जलाया जाता है और हाथों से दूसरे समूह पर फेंका जाता है जो बहुत तेजी से रॉकेट के तरह जा कर लगता है। समूहों के पास बचने के लिए ढाल भी होती है लेकिन इस हिंगोट युद्ध में कई लोग घायल भी हो जाते हैं।  
* हिंगोट एक किस्म का मजबूत खोल वाला फल होता है जिसको सुखा कर बारूद भर कर सील कर दिया जाता है और जब इसको जलाया जाता है और हाथों से दूसरे समूह पर फेंका जाता है जो बहुत तेज़ीसे रॉकेट के तरह जा कर लगता है। समूहों के पास बचने के लिए ढाल भी होती है लेकिन इस हिंगोट युद्ध में कई लोग घायल भी हो जाते हैं।  
* हर योद्धा के पास हिंगोट से भरा हुआ एक थैला होता है और सिर पर पगड़ी होती है। यही थैला निशाना बनाया जाता है जिसमें अगर जलता हुआ हिंगोट गिर जाए तो थैले के सारे हिंगोट तेजी से जलते हुए हर दिशा में जाते हैं। इससे दर्शकों को भी खतरा पैदा हो सकता है।
* हर योद्धा के पास हिंगोट से भरा हुआ एक थैला होता है और सिर पर पगड़ी होती है। यही थैला निशाना बनाया जाता है जिसमें अगर जलता हुआ हिंगोट गिर जाए तो थैले के सारे हिंगोट तेज़ीसे जलते हुए हर दिशा में जाते हैं। इससे दर्शकों को भी खतरा पैदा हो सकता है।
* इसे देखने के लिए दूूर-दूर से लोग आते हैं। यहां दर्शकों के लिए खासतौर पर एक सेफ्टी जोन भी बनाया जाता है। जाली भी लगाई जाती है लेकिन यदि यहां हिंगोट यु्द्ध देखने जा रहे हैं तो स्वयं की सेफ्टी का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। हरसंभव यह कोशिश करें कि बच्चों को न ले जाएं और समूहों में ही जाएं। अपनी आंखों को सुरक्षित रखे और एक निश्चित और सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए इसे देखेंं। हिंगोट युद्ध दूर से देखने में ज्यादा आनंद आता है।  
* इसे देखने के लिए दूूर-दूर से लोग आते हैं। यहां दर्शकों के लिए खासतौर पर एक सेफ्टी जोन भी बनाया जाता है। जाली भी लगाई जाती है लेकिन यदि यहां हिंगोट यु्द्ध देखने जा रहे हैं तो स्वयं की सेफ्टी का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। हरसंभव यह कोशिश करें कि बच्चों को न ले जाएं और समूहों में ही जाएं। अपनी आंखों को सुरक्षित रखे और एक निश्चित और सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए इसे देखेंं। हिंगोट युद्ध दूर से देखने में ज्यादा आनंद आता है।  
* गौतमपुरा जाने की लिए इंदौर से यशवंत सागर, हातोद (25 किलोमीटर) होते हुए देपालपुर (42 किलोमीटर) तक जाएं। यहां से गौतमपुरा तक जा सकते हैं। यहां ले जाने के लिए बसें भी चलती हैं और अपनी कार या बाइक से भी जा सकते हैं। खाने-पीने का सामान साथ ले जा सकते है। यहां धूल से बचने के लिए मुंह पर बांधने के लिए कपड़ा भी साथ ले जाएं।
* गौतमपुरा जाने की लिए इंदौर से यशवंत सागर, हातोद (25 किलोमीटर) होते हुए देपालपुर (42 किलोमीटर) तक जाएं। यहां से गौतमपुरा तक जा सकते हैं। यहां ले जाने के लिए बसें भी चलती हैं और अपनी कार या बाइक से भी जा सकते हैं। खाने-पीने का सामान साथ ले जा सकते है। यहां धूल से बचने के लिए मुंह पर बांधने के लिए कपड़ा भी साथ ले जाएं।

08:20, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

हिंगोट युद्ध का एक दृश्य

हिंगोट युद्ध (अंग्रेज़ी:Hingot Yuddh) मध्य प्रदेश के इन्दौर के आसपास के क्षेत्रों में दीपावली के बाद खेला जाने वाला पारंपरिक 'युद्ध' है। इस युद्ध में प्रयोग होने वाला 'हथियार' हिंगोट है जो हिंगोट फल के खोल में बारूद, कंकड़-पत्त्थर भरकर बनाया जाता है। इस युद्ध में किसी दल की हार-जीत नहीं होती किन्तु सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं।

रोचक तथ्य

  • यह एक प्राचीन लेकिन खतरनाक परंपरा है जो तुर्रा और कलंगी समूहों के द्वारा खेली जाती है। इसमें जलते हुए हिंगोट एक-दूसरे के ऊपर फेंके जाते हैं और अंत में यह छद्म लड़ाई बिना हार-जीत के ख़त्म हो जाती है।
  • हिंगोट एक किस्म का मजबूत खोल वाला फल होता है जिसको सुखा कर बारूद भर कर सील कर दिया जाता है और जब इसको जलाया जाता है और हाथों से दूसरे समूह पर फेंका जाता है जो बहुत तेज़ीसे रॉकेट के तरह जा कर लगता है। समूहों के पास बचने के लिए ढाल भी होती है लेकिन इस हिंगोट युद्ध में कई लोग घायल भी हो जाते हैं।
  • हर योद्धा के पास हिंगोट से भरा हुआ एक थैला होता है और सिर पर पगड़ी होती है। यही थैला निशाना बनाया जाता है जिसमें अगर जलता हुआ हिंगोट गिर जाए तो थैले के सारे हिंगोट तेज़ीसे जलते हुए हर दिशा में जाते हैं। इससे दर्शकों को भी खतरा पैदा हो सकता है।
  • इसे देखने के लिए दूूर-दूर से लोग आते हैं। यहां दर्शकों के लिए खासतौर पर एक सेफ्टी जोन भी बनाया जाता है। जाली भी लगाई जाती है लेकिन यदि यहां हिंगोट यु्द्ध देखने जा रहे हैं तो स्वयं की सेफ्टी का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। हरसंभव यह कोशिश करें कि बच्चों को न ले जाएं और समूहों में ही जाएं। अपनी आंखों को सुरक्षित रखे और एक निश्चित और सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए इसे देखेंं। हिंगोट युद्ध दूर से देखने में ज्यादा आनंद आता है।
  • गौतमपुरा जाने की लिए इंदौर से यशवंत सागर, हातोद (25 किलोमीटर) होते हुए देपालपुर (42 किलोमीटर) तक जाएं। यहां से गौतमपुरा तक जा सकते हैं। यहां ले जाने के लिए बसें भी चलती हैं और अपनी कार या बाइक से भी जा सकते हैं। खाने-पीने का सामान साथ ले जा सकते है। यहां धूल से बचने के लिए मुंह पर बांधने के लिए कपड़ा भी साथ ले जाएं।
  • इंदौर से लगभग 56 किलोमीटर की दूरी पर है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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