"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 43 श्लोक 1-14": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद </div>


श्रीशुकदेवजी कहते हैं—काम-क्रोधादि शत्रुओं को पराजित करने वाले [[परीक्षित]]! अब [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] और [[बलराम]] भी स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त हो दंगल के अनुरूप नगाड़े की ध्वनि सुनकर रंगभूमि देखने के लिये चल पड़े । भगवान  श्रीकृष्ण ने रंगभूमि के दरवाजे पर पहुँचकर देखा कि वहाँ महावत की प्रेरणा से कुवलयापीड नाम का हाथी खड़ा है । तब भगवान  श्रीकृष्ण ने अपनी कमर कस ली आयर घुँघराली अलकें अमेट लीं तथा मेघ के समान गम्भीर वाणी से महावत को ललकारा कहा। ‘महावत, ओ महावत! हम दोनों को रास्ता दे दे। हमारे मार्ग से हट जा। अरे, सुनता नहीं ? देर मत कर। नहीं तो मैं हाथी के साथ अभी तुझे यमराज के घर पहुंचाता हूँ’ । भगवान  श्रीकृष्ण ने महावत को जब इस प्रकार धमकाया, तब वह क्रोध से तिलमिला उठा और उसने काल, मृत्यु तथा यमराज के समान अत्यन्त भयंकर कुवलयापीड को अंकुश की मार से क्रुद्ध करके श्रीकृष्ण की ओर बढ़ाया । कुवलयापीड ने भगवान  की ओर झपटकर उन्हें बड़ी तेजी से सूँड़ में लपेट लिया; परन्तु भगवान  सूँड़ से बाहर सरक बाहर सरक आये और उसे एक घूँसा जमाकर उसके पैरों के बीच में जा छिपे । उन्हें अपने सामने न देखकर कुवलयापीड को बड़ा क्रोध हुआ। उसने सूँघकर भगवान  को अपनी सूँड़ से टटोल लिया और पकड़ा भी; परन्तु उन्होंने बलपूर्वक अपने को उससे छुड़ा लिया । इसके बाद भगवान  उस बलवान् हाथी की पूँछ पकड़कर खेल-खेल में ही उसे सौ हाथ तक पीछे घसीट लाये; जैसे गरुड़ साँप को घसीट लाते हैं । जिस प्रकार घूमते हुए बछड़े के साथ बालक घूमता है अथवा स्वयं [[कृष्ण|भगवान  श्रीकृष्ण]] जिस प्रकार बछड़ों से खेलते थे, वैसे ही वे उसकी पूँछ पकड़कर उसे घुमाने और खेलने लगे। जब वह दायें से घूमकर उनको पकड़ना चाहता, तब वे बायें आ जाते और जब वह बायें की ओर घूमता, तब वे दायें घूम जाते । इसके बाद हाथी के सामने आकर उन्होंने उसे एक घूँसा जमाया और वे उसे गिराने के लिये इस प्रकार उसके सामने से भागने लगे, मानो वह अब छू लेता है, तब छू लेता है । भगवान  श्रीकृष्ण ने दौड़ते-दौड़ते एक बार खेल-खेल में ही पृथ्वी पर गिरने का अभिनय किया और झट वहाँ से उठकर भाग खड़े हुए। उस समय वह हाथी क्रोध से जल-भुन रहा था। उसने समझा कि वे गिर पड़े और बड़े जोर से दोनों दाँत धरती पर मारे । जब कुवलयापीड का यह आक्रमण व्यर्थ हो गया, तब वह और भी चिढ़ गया। महावतों की प्रेरणा से वह क्रुद्ध होकर भगवान  श्रीकृष्ण पर टूट पड़ा । भगवान  मधुसूदन ने जब उसे अपनी ओर झपटते देखा, तब उसके पास चले गये और अपने एक ही हाथ से उसकी सूँड़ पकड़कर उसे धरती पर पटक दिया । उसके गिर जाने पर भगवान  ने सिंह के समान खेल-ही-खेल में उसे पैरों से दबाकर उसके दाँत उखाड़ लिये और उन्हीं से हाथी और महावतों का काम तमाम कर दिया ।
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—काम-क्रोधादि शत्रुओं को पराजित करने वाले [[परीक्षित]]! अब [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] और [[बलराम]] भी स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त हो दंगल के अनुरूप नगाड़े की ध्वनि सुनकर रंगभूमि देखने के लिये चल पड़े । भगवान  श्रीकृष्ण ने रंगभूमि के दरवाजे पर पहुँचकर देखा कि वहाँ महावत की प्रेरणा से कुवलयापीड नाम का हाथी खड़ा है । तब भगवान  श्रीकृष्ण ने अपनी कमर कस ली आयर घुँघराली अलकें अमेट लीं तथा मेघ के समान गम्भीर वाणी से महावत को ललकारा कहा। ‘महावत, ओ महावत! हम दोनों को रास्ता दे दे। हमारे मार्ग से हट जा। अरे, सुनता नहीं ? देर मत कर। नहीं तो मैं हाथी के साथ अभी तुझे यमराज के घर पहुंचाता हूँ’ । भगवान  श्रीकृष्ण ने महावत को जब इस प्रकार धमकाया, तब वह क्रोध से तिलमिला उठा और उसने काल, मृत्यु तथा यमराज के समान अत्यन्त भयंकर कुवलयापीड को अंकुश की मार से क्रुद्ध करके श्रीकृष्ण की ओर बढ़ाया । कुवलयापीड ने भगवान  की ओर झपटकर उन्हें बड़ी तेज़ीसे सूँड़ में लपेट लिया; परन्तु भगवान  सूँड़ से बाहर सरक बाहर सरक आये और उसे एक घूँसा जमाकर उसके पैरों के बीच में जा छिपे । उन्हें अपने सामने न देखकर कुवलयापीड को बड़ा क्रोध हुआ। उसने सूँघकर भगवान  को अपनी सूँड़ से टटोल लिया और पकड़ा भी; परन्तु उन्होंने बलपूर्वक अपने को उससे छुड़ा लिया । इसके बाद भगवान  उस बलवान् हाथी की पूँछ पकड़कर खेल-खेल में ही उसे सौ हाथ तक पीछे घसीट लाये; जैसे गरुड़ साँप को घसीट लाते हैं । जिस प्रकार घूमते हुए बछड़े के साथ बालक घूमता है अथवा स्वयं [[कृष्ण|भगवान  श्रीकृष्ण]] जिस प्रकार बछड़ों से खेलते थे, वैसे ही वे उसकी पूँछ पकड़कर उसे घुमाने और खेलने लगे। जब वह दायें से घूमकर उनको पकड़ना चाहता, तब वे बायें आ जाते और जब वह बायें की ओर घूमता, तब वे दायें घूम जाते । इसके बाद हाथी के सामने आकर उन्होंने उसे एक घूँसा जमाया और वे उसे गिराने के लिये इस प्रकार उसके सामने से भागने लगे, मानो वह अब छू लेता है, तब छू लेता है । भगवान  श्रीकृष्ण ने दौड़ते-दौड़ते एक बार खेल-खेल में ही पृथ्वी पर गिरने का अभिनय किया और झट वहाँ से उठकर भाग खड़े हुए। उस समय वह हाथी क्रोध से जल-भुन रहा था। उसने समझा कि वे गिर पड़े और बड़े जोर से दोनों दाँत धरती पर मारे । जब कुवलयापीड का यह आक्रमण व्यर्थ हो गया, तब वह और भी चिढ़ गया। महावतों की प्रेरणा से वह क्रुद्ध होकर भगवान  श्रीकृष्ण पर टूट पड़ा । भगवान  मधुसूदन ने जब उसे अपनी ओर झपटते देखा, तब उसके पास चले गये और अपने एक ही हाथ से उसकी सूँड़ पकड़कर उसे धरती पर पटक दिया । उसके गिर जाने पर भगवान  ने सिंह के समान खेल-ही-खेल में उसे पैरों से दबाकर उसके दाँत उखाड़ लिये और उन्हीं से हाथी और महावतों का काम तमाम कर दिया ।


{{लेख क्रम |पिछला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 42 श्लोक 27-38 |अगला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 43 श्लोक 15-26}}
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08:23, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

दशम स्कन्ध: त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः (43) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—काम-क्रोधादि शत्रुओं को पराजित करने वाले परीक्षित! अब श्रीकृष्ण और बलराम भी स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त हो दंगल के अनुरूप नगाड़े की ध्वनि सुनकर रंगभूमि देखने के लिये चल पड़े । भगवान श्रीकृष्ण ने रंगभूमि के दरवाजे पर पहुँचकर देखा कि वहाँ महावत की प्रेरणा से कुवलयापीड नाम का हाथी खड़ा है । तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कमर कस ली आयर घुँघराली अलकें अमेट लीं तथा मेघ के समान गम्भीर वाणी से महावत को ललकारा कहा। ‘महावत, ओ महावत! हम दोनों को रास्ता दे दे। हमारे मार्ग से हट जा। अरे, सुनता नहीं ? देर मत कर। नहीं तो मैं हाथी के साथ अभी तुझे यमराज के घर पहुंचाता हूँ’ । भगवान श्रीकृष्ण ने महावत को जब इस प्रकार धमकाया, तब वह क्रोध से तिलमिला उठा और उसने काल, मृत्यु तथा यमराज के समान अत्यन्त भयंकर कुवलयापीड को अंकुश की मार से क्रुद्ध करके श्रीकृष्ण की ओर बढ़ाया । कुवलयापीड ने भगवान की ओर झपटकर उन्हें बड़ी तेज़ीसे सूँड़ में लपेट लिया; परन्तु भगवान सूँड़ से बाहर सरक बाहर सरक आये और उसे एक घूँसा जमाकर उसके पैरों के बीच में जा छिपे । उन्हें अपने सामने न देखकर कुवलयापीड को बड़ा क्रोध हुआ। उसने सूँघकर भगवान को अपनी सूँड़ से टटोल लिया और पकड़ा भी; परन्तु उन्होंने बलपूर्वक अपने को उससे छुड़ा लिया । इसके बाद भगवान उस बलवान् हाथी की पूँछ पकड़कर खेल-खेल में ही उसे सौ हाथ तक पीछे घसीट लाये; जैसे गरुड़ साँप को घसीट लाते हैं । जिस प्रकार घूमते हुए बछड़े के साथ बालक घूमता है अथवा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण जिस प्रकार बछड़ों से खेलते थे, वैसे ही वे उसकी पूँछ पकड़कर उसे घुमाने और खेलने लगे। जब वह दायें से घूमकर उनको पकड़ना चाहता, तब वे बायें आ जाते और जब वह बायें की ओर घूमता, तब वे दायें घूम जाते । इसके बाद हाथी के सामने आकर उन्होंने उसे एक घूँसा जमाया और वे उसे गिराने के लिये इस प्रकार उसके सामने से भागने लगे, मानो वह अब छू लेता है, तब छू लेता है । भगवान श्रीकृष्ण ने दौड़ते-दौड़ते एक बार खेल-खेल में ही पृथ्वी पर गिरने का अभिनय किया और झट वहाँ से उठकर भाग खड़े हुए। उस समय वह हाथी क्रोध से जल-भुन रहा था। उसने समझा कि वे गिर पड़े और बड़े जोर से दोनों दाँत धरती पर मारे । जब कुवलयापीड का यह आक्रमण व्यर्थ हो गया, तब वह और भी चिढ़ गया। महावतों की प्रेरणा से वह क्रुद्ध होकर भगवान श्रीकृष्ण पर टूट पड़ा । भगवान मधुसूदन ने जब उसे अपनी ओर झपटते देखा, तब उसके पास चले गये और अपने एक ही हाथ से उसकी सूँड़ पकड़कर उसे धरती पर पटक दिया । उसके गिर जाने पर भगवान ने सिंह के समान खेल-ही-खेल में उसे पैरों से दबाकर उसके दाँत उखाड़ लिये और उन्हीं से हाथी और महावतों का काम तमाम कर दिया ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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