"प्रियप्रवास प्रथम सर्ग": अवतरणों में अंतर
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तरु-शिखा पर थी अब राजती। | तरु-शिखा पर थी अब राजती। | ||
कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा॥1॥ | कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा॥1॥ | ||
विपिन बीच विहंगम वृंद का। | विपिन बीच विहंगम वृंद का। | ||
कलनिनाद विवर्द्धित था हुआ। | कलनिनाद विवर्द्धित था हुआ। | ||
ध्वनिमयी-विविधा विहगावली। | ध्वनिमयी-विविधा विहगावली। | ||
उड़ रही नभ-मंडल मध्य थी॥2॥ | उड़ रही नभ-मंडल मध्य थी॥2॥ | ||
धिक और हुई नभ-लालिमा। | |||
दश-दिशा अनुरंजित हो गई। | दश-दिशा अनुरंजित हो गई। | ||
सकल-पादप-पुंज हरीतिमा। | सकल-पादप-पुंज हरीतिमा। | ||
अरुणिमा विनिमज्जित सी हुई॥3॥ | अरुणिमा विनिमज्जित सी हुई॥3॥ | ||
झलकने पुलिनों पर भी लगी। | झलकने पुलिनों पर भी लगी। | ||
गगन के तल की यह लालिमा। | गगन के तल की यह लालिमा। | ||
सरि सरोवर के जल में पड़ी। | सरि सरोवर के जल में पड़ी। | ||
अरुणता अति ही रमणीय थी॥4॥ | |||
अचल के शिखरों पर जा चढ़ी। | अचल के शिखरों पर जा चढ़ी। | ||
किरण पादप-शीश-विहारिणी। | किरण पादप-शीश-विहारिणी। | ||
तरणि-बिम्ब तिरोहित हो चला। | तरणि-बिम्ब तिरोहित हो चला। | ||
गगन-मंडल मध्य शनैः शनैः॥5॥ | गगन-मंडल मध्य शनैः शनैः॥5॥ | ||
ध्वनि-मयी कर के गिरि-कंदरा। | ध्वनि-मयी कर के गिरि-कंदरा। | ||
कलित कानन केलि निकुंज को। | कलित कानन केलि निकुंज को। | ||
बज उठी मुरली इस काल ही। | बज उठी मुरली इस काल ही। | ||
तरणिजा तट राजित कुंज में॥6॥ | तरणिजा तट राजित कुंज में॥6॥ | ||
कणित मंजु-विषाण हुए कई। | कणित मंजु-विषाण हुए कई। | ||
रणित शृंग हुए बहु साथ ही। | रणित शृंग हुए बहु साथ ही। | ||
फिर समाहित-प्रान्तर-भाग में। | फिर समाहित-प्रान्तर-भाग में। | ||
सुन पड़ा स्वर धावित-धेनु का॥7॥ | सुन पड़ा स्वर धावित-धेनु का॥7॥ | ||
निमिष में वन-व्यापित-वीथिका। | निमिष में वन-व्यापित-वीथिका। | ||
विविध-धेनु-विभूषित हो गई। | विविध-धेनु-विभूषित हो गई। | ||
धवल-धूसर-वत्स-समूह भी। | धवल-धूसर-वत्स-समूह भी। | ||
विलसता जिनके दल साथ था॥8॥ | विलसता जिनके दल साथ था॥8॥ | ||
जब हुए समवेत शनैः शनैः। | जब हुए समवेत शनैः शनैः। | ||
सकल गोप सधेनु समंडली। | सकल गोप सधेनु समंडली। | ||
तब चले ब्रज-भूषण को लिये। | तब चले ब्रज-भूषण को लिये। | ||
अति अलंकृत-गोकुल-ग्राम को॥9॥ | अति अलंकृत-गोकुल-ग्राम को॥9॥ | ||
गगन मंडल में रज छा गई। | गगन मंडल में रज छा गई। | ||
दश-दिशा बहु शब्द-मयी हुई। | दश-दिशा बहु शब्द-मयी हुई। | ||
विशद-गोकुल के प्रति-गेह में। | विशद-गोकुल के प्रति-गेह में। | ||
बह चला वर-स्रोत विनोद का॥10॥ | बह चला वर-स्रोत विनोद का॥10॥ | ||
सकल वासर आकुल से रहे। | सकल वासर आकुल से रहे। | ||
अखिल-मानव गोकुल-ग्राम के। | अखिल-मानव गोकुल-ग्राम के। | ||
अब दिनांत विलोकित ही बढ़ी। | अब दिनांत विलोकित ही बढ़ी। | ||
ब्रज-विभूषण-दर्शन-लालसा॥11॥ | ब्रज-विभूषण-दर्शन-लालसा॥11॥ | ||
सुन पड़ा स्वर ज्यों कल-वेणु का। | सुन पड़ा स्वर ज्यों कल-वेणु का। | ||
सकल-ग्राम समुत्सुक हो उठा। | सकल-ग्राम समुत्सुक हो उठा। | ||
हृदय-यंत्र निनादित हो गया। | हृदय-यंत्र निनादित हो गया। | ||
तुरत ही अनियंत्रित भाव से॥12॥ | तुरत ही अनियंत्रित भाव से॥12॥ | ||
बहु युवा युवती गृह-बालिका। | बहु युवा युवती गृह-बालिका। | ||
विपुल-बालक वृद्ध | विपुल-बालक वृद्ध वयस्क भी। | ||
विवश से निकले निज गेह से। | विवश से निकले निज गेह से। | ||
स्वदृग का दुख-मोचन के लिए॥13॥ | स्वदृग का दुख-मोचन के लिए॥13॥ | ||
इधर गोकुल से जनता कढ़ी। | इधर गोकुल से जनता कढ़ी। | ||
उमगती पगती अति मोद में। | उमगती पगती अति मोद में। | ||
उधर आ पहुँची बलबीर की। | उधर आ पहुँची बलबीर की। | ||
विपुल-धेनु-विमंडित मंडली॥14॥ | विपुल-धेनु-विमंडित मंडली॥14॥ | ||
ककुभ-शोभित गोरज बीच से। | ककुभ-शोभित गोरज बीच से। | ||
निकलते ब्रज-बल्लभ यों लसे। | निकलते ब्रज-बल्लभ यों लसे। | ||
कदन ज्यों करके दिशि कालिमा। | कदन ज्यों करके दिशि कालिमा। | ||
विलसता नभ में नलिनीश है॥15॥ | विलसता नभ में नलिनीश है॥15॥ | ||
अतसि पुष्प अलंकृतकारिणी। | अतसि पुष्प अलंकृतकारिणी। | ||
शरद नील-सरोरुह रंजिनी। | शरद नील-सरोरुह रंजिनी। | ||
नवल-सुंदर-श्याम-शरीर की। | नवल-सुंदर-श्याम-शरीर की। | ||
सजल-नीरद सी कल-कांति थी॥16॥ | सजल-नीरद सी कल-कांति थी॥16॥ | ||
अति-समुत्तम अंग समूह था। | अति-समुत्तम अंग समूह था। | ||
मुकुर-मंजुल औ मनभावना। | मुकुर-मंजुल औ मनभावना। | ||
सतत थी जिसमें सुकुमारता। | सतत थी जिसमें सुकुमारता। | ||
सरसता प्रतिबिंबित हो रही॥17॥ | सरसता प्रतिबिंबित हो रही॥17॥ | ||
बिलसता कटि में पट पीत था। | बिलसता कटि में पट पीत था। | ||
रुचिर वस्त्र विभूषित गात था। | रुचिर वस्त्र विभूषित गात था। | ||
लस रही उर में बनमाल थी। | लस रही उर में बनमाल थी। | ||
कल-दुकूल-अलंकृत स्कंध था॥18॥ | कल-दुकूल-अलंकृत स्कंध था॥18॥ | ||
मकर-केतन के कल-केतु से। | मकर-केतन के कल-केतु से। | ||
लसित थे वर-कुंडल कान में। | लसित थे वर-कुंडल कान में। | ||
घिर रही जिनकी सब ओर थी। | घिर रही जिनकी सब ओर थी। | ||
विविध-भावमयी अलकावली॥19॥ | विविध-भावमयी अलकावली॥19॥ | ||
मुकुट मस्तक था शिखि-पक्ष का। | मुकुट मस्तक था शिखि-पक्ष का। | ||
मधुरिमामय था बहु मंजु था। | मधुरिमामय था बहु मंजु था। | ||
असित रत्न समान सुरंजिता। | असित रत्न समान सुरंजिता। | ||
सतत थी जिसकी वर चंद्रिका॥20॥ | सतत थी जिसकी वर चंद्रिका॥20॥ | ||
विशद उज्ज्वल उन्नत भाल में। | विशद उज्ज्वल उन्नत भाल में। | ||
विलसती कल केसर-खौर थी। | विलसती कल केसर-खौर थी। | ||
असित - पंकज के दल में यथा। | असित - पंकज के दल में यथा। | ||
रज – सुरंजित पीत - सरोज की॥21॥ | रज – सुरंजित पीत - सरोज की॥21॥ | ||
मधुरता - मय था मृदु - बोलना। | मधुरता - मय था मृदु - बोलना। | ||
अमृत – सिंचित सी मुस्कान थी। | अमृत – सिंचित सी मुस्कान थी। | ||
समद थी जन – मानस मोहती। | समद थी जन – मानस मोहती। | ||
कमल – लोचन की कमनीयता॥22॥ | कमल – लोचन की कमनीयता॥22॥ | ||
सबल-जानु विलम्बित बाहु थी। | |||
सबल-जानु | |||
अति – सुपुष्ट – समुन्नत वक्ष था। | अति – सुपुष्ट – समुन्नत वक्ष था। | ||
वय-किशोर-कला लसितांग था। | वय-किशोर-कला लसितांग था। | ||
मुख प्रफुल्लित पद्म समान था॥23॥ | मुख प्रफुल्लित पद्म समान था॥23॥ | ||
सरस – राग – समूह सहेलिका। | सरस – राग – समूह सहेलिका। | ||
सहचरी मन मोहन - मंत्र की। | सहचरी मन मोहन - मंत्र की। | ||
रसिकता – जननी कल - नादिनी। | रसिकता – जननी कल - नादिनी। | ||
मुरलि थी कर में मधुवर्षिणी॥24॥ | मुरलि थी कर में मधुवर्षिणी॥24॥ | ||
छलकती मुख की छवि-पुंजता। | छलकती मुख की छवि-पुंजता। | ||
छिटकती क्षिति छू तन की घटा। | छिटकती क्षिति छू तन की घटा। | ||
बगरती बर दीप्ति दिगंत में। | बगरती बर दीप्ति दिगंत में। | ||
क्षितिज में क्षणदा-कर कांति सी॥25॥ | क्षितिज में क्षणदा-कर कांति सी॥25॥ | ||
मुदित गोकुल की जन-मंडली। | मुदित गोकुल की जन-मंडली। | ||
जब ब्रजाधिप सम्मुख जा पड़ी। | जब ब्रजाधिप सम्मुख जा पड़ी। | ||
निरखने मुख की छवि यों लगी। | निरखने मुख की छवि यों लगी। | ||
तृषित-चातक ज्यों घन की घटा॥26॥ | तृषित-चातक ज्यों घन की घटा॥26॥ | ||
पलक लोचन की पड़ती न थी। | पलक लोचन की पड़ती न थी। | ||
हिल नहीं सकता तन-लोम था। | हिल नहीं सकता तन-लोम था। | ||
छवि-रता बनिता सब यों बनी। | छवि-रता बनिता सब यों बनी। | ||
उपल निर्मित पुत्तलिका यथा॥27॥ | उपल निर्मित पुत्तलिका यथा॥27॥ | ||
उछलते शिशु थे अति हर्ष से। | उछलते शिशु थे अति हर्ष से। | ||
युवक थे रस की निधि लूटते। | युवक थे रस की निधि लूटते। | ||
जरठ को फल लोचन का मिला। | जरठ को फल लोचन का मिला। | ||
निरख के सुषमा सुखमूल की॥28॥ | निरख के सुषमा सुखमूल की॥28॥ | ||
बहु – विनोदित थीं ब्रज – बालिका। | बहु – विनोदित थीं ब्रज – बालिका। | ||
तरुणियाँ सब थीं तृण तोड़तीं। | तरुणियाँ सब थीं तृण तोड़तीं। | ||
बलि गईं बहु बार वयोवती। | बलि गईं बहु बार वयोवती। | ||
छवि विभूति विलोक ब्रजेन्दु की॥29॥ | छवि विभूति विलोक ब्रजेन्दु की॥29॥ | ||
मुरलिका कर - पंकज में लसी। | मुरलिका कर - पंकज में लसी। | ||
जब अचानक थी बजती कभी। | जब अचानक थी बजती कभी। | ||
तब सुधारस मंजु - प्रवाह में। | तब सुधारस मंजु - प्रवाह में। | ||
जन - समागम था अवगाहता॥30॥ | जन - समागम था अवगाहता॥30॥ | ||
ढिग सुसोभित श्रीबलराम थे। | ढिग सुसोभित श्रीबलराम थे। | ||
निकट गोप – कुमार – समूह था। | निकट गोप – कुमार – समूह था। | ||
विविध गातवती गरिमामयी। | विविध गातवती गरिमामयी। | ||
सुरभि थीं सब ओर विराजती॥31॥ | सुरभि थीं सब ओर विराजती॥31॥ | ||
बज रहे बहु - शृंग - विषाण थे। | बज रहे बहु - शृंग - विषाण थे। | ||
क्वणित हो उठता वर-वेणु था। | क्वणित हो उठता वर-वेणु था। | ||
सरस – राग - समूह अलाप से। | सरस – राग - समूह अलाप से। | ||
रसवती - बन थी मुदिता – दिशा॥32॥ | रसवती - बन थी मुदिता – दिशा॥32॥ | ||
विविध – भाव – विमुग्ध बनी हुई। | विविध – भाव – विमुग्ध बनी हुई। | ||
मुदित थी बहु दर्शक - मंडली। | मुदित थी बहु दर्शक - मंडली। | ||
अति मनोहर थी बनती कभी। | अति मनोहर थी बनती कभी। | ||
बज किसी कटि की कलकिंकिणी॥33॥ | बज किसी कटि की कलकिंकिणी॥33॥ | ||
इधर था इस भाँति समा बँधा। | इधर था इस भाँति समा बँधा। | ||
उधर व्योम हुआ कुछ और ही। | उधर व्योम हुआ कुछ और ही। | ||
अब न था उसमें रवि राजता। | अब न था उसमें रवि राजता। | ||
किरण भी न सुशोभित थी कहीं॥34॥ | किरण भी न सुशोभित थी कहीं॥34॥ | ||
अरुणिमा – जगती – तल – रंजिनी। | अरुणिमा – जगती – तल – रंजिनी। | ||
वहन थी करती अब कालिमा। | वहन थी करती अब कालिमा। | ||
मलिन थी नव – राग-मयी – दिशा। | मलिन थी नव – राग-मयी – दिशा। | ||
अवनि थी तमसावृत हो रही॥35॥ | अवनि थी तमसावृत हो रही॥35॥ | ||
तिमिर की यह भूतल - व्यापिनी। | तिमिर की यह भूतल - व्यापिनी। | ||
तरल – धार विकास – विरोधिनी। | तरल – धार विकास – विरोधिनी। | ||
जन – समूह – विलोचन के लिए। | जन – समूह – विलोचन के लिए। | ||
बन गई प्रति – मूर्ति विराम की॥36॥ | बन गई प्रति – मूर्ति विराम की॥36॥ | ||
द्युतिमयी उतनी अब थी नहीं। | द्युतिमयी उतनी अब थी नहीं। | ||
नयन की अति दिव्य कनीनिका। | नयन की अति दिव्य कनीनिका। | ||
अब नहीं वह थी अवलोकती। | अब नहीं वह थी अवलोकती। | ||
मधुमयी छवि श्री घनश्याम की॥37॥ | मधुमयी छवि श्री घनश्याम की॥37॥ | ||
यह अभावुकता तम – पुंज की। | यह अभावुकता तम – पुंज की। | ||
सह सकी न नभस्थल तारका। | सह सकी न नभस्थल तारका। | ||
वह विकाश – विवर्द्धन के लिए। | वह विकाश – विवर्द्धन के लिए। | ||
निकलने नभ मंडल में लगी॥38॥ | निकलने नभ मंडल में लगी॥38॥ | ||
तदपि दर्शक - लोचन - लालसा। | तदपि दर्शक - लोचन - लालसा। | ||
फलवती न हुई तिलमात्र भी। | फलवती न हुई तिलमात्र भी। | ||
यह विलोक विलोचन दीनता। | यह विलोक विलोचन दीनता। | ||
सकुचने सरसीरुह भी लगे॥39॥ | सकुचने सरसीरुह भी लगे॥39॥ | ||
खग – समूह न था अब बोलता। | खग – समूह न था अब बोलता। | ||
विटप थे बहुत नीरव हो गए। | विटप थे बहुत नीरव हो गए। | ||
मधुर मंजुल मत्त अलाप के। | मधुर मंजुल मत्त अलाप के। | ||
अब न यंत्र बने तरु - वृंद थे॥40॥ | अब न यंत्र बने तरु - वृंद थे॥40॥ | ||
विगह औ विटपी – कुल मौनता। | विगह औ विटपी – कुल मौनता। | ||
प्रकट थी करती इस मर्म को। | प्रकट थी करती इस मर्म को। | ||
श्रवण को वह नीरव थे बने। | श्रवण को वह नीरव थे बने। | ||
करुण अंतिम – वादन वेणु का॥41॥ | करुण अंतिम – वादन वेणु का॥41॥ | ||
विहग – नीरवता – उपरांत ही। | विहग – नीरवता – उपरांत ही। | ||
रुक गया स्वर शृंग विषाण का। | रुक गया स्वर शृंग विषाण का। | ||
कल – अलाप समापित हो गया। | कल – अलाप समापित हो गया। | ||
पर रही बजती वर – वंशिका॥42॥ | पर रही बजती वर – वंशिका॥42॥ | ||
विविध - मर्म्मभरी करुणामयी। | विविध - मर्म्मभरी करुणामयी। | ||
ध्वनि वियोग - विराग - विवोधिनी। | ध्वनि वियोग - विराग - विवोधिनी। | ||
कुछ घड़ी रह व्याप्त दिगंत में। | कुछ घड़ी रह व्याप्त दिगंत में। | ||
फिर समीरण में वह भी मिली॥43॥ | फिर समीरण में वह भी मिली॥43॥ | ||
ब्रज – धरा – जन जीवन - यंत्रिका। | ब्रज – धरा – जन जीवन - यंत्रिका। | ||
विटप – वेलि – विनोदित-कारिणी। | विटप – वेलि – विनोदित-कारिणी। | ||
मुरलिका जन – मानस-मोहिनी। | मुरलिका जन – मानस-मोहिनी। | ||
अहह नीरवता निहिता हुई॥44॥ | अहह नीरवता निहिता हुई॥44॥ | ||
प्रथम ही तम की करतूत से। | प्रथम ही तम की करतूत से। | ||
छवि न लोचन थे अवलोकते। | छवि न लोचन थे अवलोकते। | ||
अब निनाद रुके कल – वेणु का। | अब निनाद रुके कल – वेणु का। | ||
श्रवण पान न था करता सुधा॥45॥ | श्रवण पान न था करता सुधा॥45॥ | ||
इसलिए रसना - जन - वृंद की। | इसलिए रसना - जन - वृंद की। | ||
सरस - भाव समुत्सुकता पगी। | सरस - भाव समुत्सुकता पगी। | ||
ग्रथन गौरव से करने लगी। | ग्रथन गौरव से करने लगी। | ||
ब्रज-विभूषण की गुण-मालिका॥46॥ | ब्रज-विभूषण की गुण-मालिका॥46॥ | ||
जब दशा यह थी जन – यूथ की। | जब दशा यह थी जन – यूथ की। | ||
जलज – लोचन थे तब जा रहे। | जलज – लोचन थे तब जा रहे। | ||
सहित गोगण गोप - समूह के। | सहित गोगण गोप - समूह के। | ||
अवनि – गौरव – गोकुल ग्राम में॥47॥ | अवनि – गौरव – गोकुल ग्राम में॥47॥ | ||
कुछ घड़ी यह कांत क्रिया हुई। | कुछ घड़ी यह कांत क्रिया हुई। | ||
फिर हुआ इसका अवसान भी। | फिर हुआ इसका अवसान भी। | ||
प्रथम थी बहु धूम मची जहाँ। | प्रथम थी बहु धूम मची जहाँ। | ||
अब वहाँ बढ़ता सुनसान था॥48॥ | अब वहाँ बढ़ता सुनसान था॥48॥ | ||
कर विदूरित लोचन लालसा। | कर विदूरित लोचन लालसा। | ||
स्वर प्रसूत सुधा श्रुति को पिला। | स्वर प्रसूत सुधा श्रुति को पिला। | ||
गुण – मयी रसनेन्द्रिय को बना। | गुण – मयी रसनेन्द्रिय को बना। | ||
गृह गये अब दर्शक-वृंद भी॥49॥ | गृह गये अब दर्शक-वृंद भी॥49॥ | ||
प्रथम थी स्वर की लहरी जहाँ। | प्रथम थी स्वर की लहरी जहाँ। | ||
पवन में अधिकाधिक गूँजती। | पवन में अधिकाधिक गूँजती। | ||
कल अलाप सुप्लावित था जहाँ। | कल अलाप सुप्लावित था जहाँ। | ||
अब वहाँ पर नीरवता हुई॥50॥ | अब वहाँ पर नीरवता हुई॥50॥ | ||
विशद - चित्रपटी ब्रजभूमि की। | विशद - चित्रपटी ब्रजभूमि की। | ||
रहित आज हुई वर चित्र से। | रहित आज हुई वर चित्र से। | ||
छवि यहाँ पर अंकित जो हुई। | छवि यहाँ पर अंकित जो हुई। | ||
अहह लोप हुई सब - काल को॥51॥ | अहह लोप हुई सब - काल को॥51॥ | ||
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09:07, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
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दिवस का अवसान समीप था। |
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