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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[हिन्दी भाषा]] की [[लिपि]] '[[भारतीय संविधान]]' में किसे स्वीकार किया गया है?
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| -[[ब्राह्मी लिपि]]
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| +[[देवनागरी लिपि]]
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| -[[गुरुमुखी लिपि]]
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| -चन्द्र लिपि
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| ||[[चित्र:Devnagari.jpg|right|100px|देवनागरी लिपि]]देवनागरी [[भारत]] में सर्वाधिक प्रचलित [[लिपि]] है, जिसमें [[संस्कृत]], [[हिन्दी]] और [[मराठी भाषा|मराठी]] भाषाएँ लिखी जाती हैं। इस शब्द का सबसे पहला उल्लेख 453 ई. में [[जैन]] ग्रंथों में मिलता है। भाषा विज्ञान की शब्दावली में यह 'अक्षरात्मक' लिपि कहलाती है। [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] के लिखित और उच्चरित रूप में कोई अंतर नहीं पड़ता है। प्रत्येक ध्वनि संकेत यथावत लिखा जाता है। [[संस्कृत]], [[पालि भाषा|पालि]], [[हिन्दी]], [[मराठी]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[कश्मीरी भाषा|कश्मीरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]], [[गढ़वाली भाषा|गढ़वाली]], [[बोडो भाषा|बोडो]], [[मगही भाषा|मगही]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[संथाली भाषा|संथाली]] आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसे '[[नागरी लिपि]]' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवनागरी लिपि]]
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| {'[[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]]' के संस्थापक कौन थे?
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| +[[श्यामसुन्दर दास|बाबू श्यामसुन्दर दास]]
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| -[[रामचंद्र शुक्ल]]
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| -नंददुलारे वाजपेयी
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| -[[विष्णु शर्मा]]
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| ||[[चित्र:Dr. Shyam Sunder Das.jpg|right|100px|श्यामसुन्दर दास]]श्यामसुन्दर दास जी की प्रारम्भ से ही [[हिन्दी]] के प्रति अनन्य निष्ठा थी। उन्होंने '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]' की स्थापना [[16 जुलाई]], सन [[1893]] ई. को अपने विद्यार्थी काल में ही दो सहयोगियों रामनारायण मिश्र और [[ठाकुर शिव कुमार सिंह]] की सहायता से की थी। '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' में आने के पूर्व इन्होंने [[हिन्दी साहित्य]] की सर्वतोमुखी समृद्धि के लिए न्यायालयों में हिन्दी प्रवेश का आन्दोलन ([[1900]] ई.), हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज ([[1899]] ई.), '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती पत्रिका]]' का सम्पादन ([[1900]] ई.), प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन और सभा-भवन का निर्माण ([[1902]] ई.), आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना ([[1903]] ई.) तथा शिक्षास्तर के अनुरूप पाठ्य पुस्तकों का निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्यामसुन्दर दास]]
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| {'अशुभ बेला' रचना किसकी है?
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| -भगवानदास मोरवाल
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| -[[मैत्रेयी पुष्पा]]
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| +समरेश मजूमदार
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| -विवेकी राय
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| {'[[भक्ति आंदोलन]]' का सूत्रपात [[उत्तर भारत]] से न होकर [[दक्षिण भारत]] में हुआ, इसका मूल कारण क्या है?
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| |type="()"}
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| -दक्षिण भारत में [[मुस्लिम]] शासकों ने आक्रमण किए थे।
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| -यह भाग पूर्णत: निरापद था।
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| +[[दक्षिण भारत]] व्यापारिक केंद्र था, जिससे धर्मावलम्बी वहाँ आकर बसे।
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| -[[भारत]] के इस क्षेत्र में [[हिन्दू]] अधिक थे।
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| ||[[चित्र:Kabirdas.jpg|right|80px|कबीरदास]][[मध्य काल]] में '[[भक्ति आन्दोलन]]' की शुरुआत सर्वप्रथम [[दक्षिण भारत]] के अलवार [[भक्त|भक्तों]] द्वारा की गई। दक्षिण भारत से [[उत्तर भारत]] में बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में [[रामानन्द]] द्वारा यह आन्दोलन लाया गया। 'भक्ति आन्दोलन' का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था- "[[हिन्दू धर्म]] एवं समाज में सुधार तथा [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना। 14वीं एवं 15वीं शताब्दी में 'भक्ति आन्दोलन' का नेतृत्व [[कबीरदास]] के हाथों में था। इस समय [[रामानन्द]], [[नामदेव]], [[कबीर]], [[नानक देव, गुरु|नानक]], [[दादू दयाल|दादू]], [[रविदास]], [[तुलसीदास]] एवं [[चैतन्य महाप्रभु]] जैसे लोगों के हाथ में इस आन्दोलन की बागडोर थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भक्ति आंदोलन]]
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| {'[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]]' को फैंटसी किस विद्वान ने कहा है?
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| |type="()"}
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| -डॉ. नगेन्द्र
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| +[[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]
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| -[[बालकृष्ण शर्मा नवीन]]
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| -[[सुमित्रानंदन पंत]]
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| ||[[चित्र:Gajanan-Madhav-Muktibodh.jpg|right|80px|गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की प्रसिद्धि प्रगतिशील [[कवि]] के रूप में है। मुक्तिबोध [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व थे। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']] कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी आलोचना उनके कवि व्यक्तित्व से ही नि:सृत और परिभाषित होती है। [[उज्जैन]] में मुक्तिबोध ने 'मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ' की बुनियाद डाली थी। इसकी विशिष्ट सभाओं में भाग लेने के लिए वह बाहर से [[रामविलास शर्मा|डॉ. रामविलास शर्मा]], [[अमृतराय]] आदि साहित्यिक विचारकों को भी बुलाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]
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| {[[कुमाँऊनी भाषा]] किस प्रान्त में बोली जाती है?
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| |type="()"}
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| +[[उत्तराखंड]]
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| -[[बिहार]]
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| -[[उत्तर प्रदेश]]
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| -[[शिमला]]
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| ||[[चित्र:Nani-Lake-Nanital-2.jpg|right|100px|नैनी झील, उत्तराखंड]]'उत्तराखंड' [[भारत]] के उत्तर में स्थित एक राज्य है। वर्ष [[2000]] और [[2006]] के बीच यह '[[उत्तरांचल]]' के नाम से जाना जाता था। [[9 नवम्बर]], 2000 को [[उत्तराखंड]] भारत गणराज्य के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य का निर्माण कई वर्ष के आन्दोलन के पश्चात हुआ। यहाँ [[कुमाऊँनी भाषा]] मुख्य रूप से बोली जाती है। इसका प्रमुख क्षेत्र [[कुमायूँ]] होने के कारण ही इसे '[[कुमाँऊनी भाषा|कुमाँऊनी]]' कहा जाता है। 'कुमाँऊनी' की उपबोलियाँ तथा स्थानीय रूप, बहुत विकसित हो गये हैं, जिनमें प्रधान खसपरजिया, कुमयाँ या कुमैताँ, फल्दकोटिया, पछाई, चौगरखिया, गंगोला, दानपुरिया, सीराली, सोरियाली, अस्कोटी, जोहारी, रउचोभैंसी तथा भोटिआ हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तराखंड]]
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| {[[कबीर]] को 'वाणी का डिक्टेटर' किसने कहा है?
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| |type="()"}
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| +[[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]]
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| -[[आचार्य रामचंद्र शुक्ल]]
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| -[[ मैथिलीशरण गुप्त]]
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| -[[नामवर सिंह]]
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| ||[[चित्र:Hazari Prasad Dwivedi.JPG|right|100px|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]]हज़ारी प्रसाद द्विवेदी [[हिन्दी]] के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से एक थे। वे उच्चकोटि के निबन्धकार, उपन्यासकार, आलोचक, चिन्तक तथा शोधकर्ता थे। 'हिन्दी साहित्य की भूमिका' [[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] के सिद्धान्तों की बुनियादी पुस्तक है, जिसमें [[साहित्य]] को एक अविच्छिन्न परम्परा तथा उसमें प्रतिफलित क्रिया-प्रतिक्रियाओं के रूप में देखा गया है। अपने फक्कड़ व्यक्तित्व, घर फूँक मस्ती और क्रान्तिकारी विचारधारा के कारण [[कबीर]] ने उन्हें विशेष रूप से आकृष्ट किया। भाषा भावों की संवाहक होती है और कबीर की भाषा वही है। वे अपनी बात को साफ एवं दो टूक शब्दों में कहने के हिमायती थे। इसीलिए हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें "वाणी का डिटेक्टर" कहा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]]
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| {'ठेले पर हिमालय' रचना किस विद्या की है?
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| |type="()"}
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| -[[आलोचना (साहित्य)|आलोचना]]
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| -[[कहानी]]
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| +[[निबन्ध]]
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| -संस्मरण
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| ||'निबन्ध' गद्य लेखन की एक विशेष विधा है। किसी भी विषय पर यदि कुछ लिखना हो या फिर कुछ कहना हो, तब निबन्ध का ही सहारा लिया जाता है। [[निबन्ध]] के पर्याय रूप में संदर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। इसे [[अंग्रेज़ी भाषा]] के 'कम्पोज़ीशन' और 'एस्से' के अर्थ में स्वीकार किया जाता है। प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार [[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी|आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]] के अनुसार [[संस्कृत]] में भी निबन्ध का [[साहित्य]] है। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] के निबन्धों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। प्राय: उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। आजकल के निबन्ध संस्कृत निबन्धों से बिल्कुल उलट हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निबन्ध]]
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| {'किन्नरों के देश में' रचना किसकी है?
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| |type="()"}
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| -[[जयशंकर प्रसाद]]
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| -[[कृष्णा सोबती]]
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| +[[राहुल सांकृत्यायन]]
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| -[[अमृता प्रीतम]]
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| ||[[चित्र:Rahul Sankrityayan.JPG|right|80px|राहुल सांकृत्यायन]]राहुल सांकृत्यायन को 'हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक' माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। [[राहुल सांकृत्यायन]] ने [[हिन्दी साहित्य]] के अतिरिक्त [[धर्म]], [[दर्शन]], लोक-साहित्य, यात्रा-साहित्य, जीवनी, राजनीति, [[इतिहास]], [[संस्कृत]] के ग्रन्थों की [[टीका]] और अनुवाद, कोश, तिब्बती भाषा एवं बालपोथी सम्पादन आदि विषयों पर पूरे अधिकार के साथ लिखा है। [[हिन्दी भाषा]] और [[साहित्य]] के क्षेत्र में राहुल जी ने 'अपभ्रंश काव्य साहित्य', 'दक्खिनी हिन्दी साहित्य' आदि हिन्दी की कहानियाँ प्रस्तुत कर लुप्त प्राय निधि का उद्धार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राहुल सांकृत्यायन]]
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| {'अश्क' किस साहित्यकार का उपनाम है?
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| |type="()"}
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| +[[उपेन्द्रनाथ अश्क|उपेन्द्रनाथ]]
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| -[[प्रेमचन्द]]
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| -[[अम्बिकादत्त व्यास|अम्बिकादत्त]]
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| -[[भगवतीचरण वर्मा|भगवतीचरण]]
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| ||[[चित्र:Upendranath-Ashk.jpg|right|90px|उपेन्द्रनाथ अश्क]]'उपेन्द्रनाथ अश्क' प्रसिद्ध [[उपन्यासकार]], निबन्धकार, लेखक, कहानीकार थे। अश्क जी ने आदर्शोन्मुख, कल्पनाप्रधान अथवा कोरी रोमानी रचनाएँ कीं। [[उर्दू]] के सफल लेखक [[उपेन्द्रनाथ अश्क]] ने उपन्यास सम्राट [[मुंशी प्रेमचंद]] की सलाह पर [[हिन्दी]] में लिखना आरम्भ किया था। [[1933]] में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी। अश्क जी ने इससे पहले भी बहुत कुछ लिखा था। उर्दू में 'नव-रत्न' और 'औरत की फ़ितरत' उनके दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। प्रथम हिन्दी संग्रह 'जुदाई की शाम का गीत' ([[1933]]) की अधिकांश कहानियाँ उर्दू में छप चुकी थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उपेन्द्रनाथ अश्क]]
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| {[[हिन्दी]] बोली [[भारत]] में कौन बोलते हैं? | | {[[हिन्दी]] बोली [[भारत]] में कौन बोलते हैं? |
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| -[[मुस्लिम]] | | -[[मुस्लिम]] |
| -[[भारत]] की 30 प्रतिशत जनता | | -[[भारत]] की 30 प्रतिशत जनता |
| ||[[चित्र:Hindi-Area.jpg|right|100px]]हिन्दी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय-आर्य भाषा है। सन [[2001]] की जनगणना के अनुसार लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिन्दी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। मध्यदेशीय भाषा परम्परा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिन्दी का स्थान आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में सर्वोपरी है। [[मध्य काल]] में हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो गया था तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो चुकी थीं। इस काल में [[भाषा]] के तीन रूप निखरकर सामने आए थे- [[ब्रजभाषा]], [[अवधी भाषा|अवधी]] व [[खड़ी बोली]]।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हिन्दी]] | | ||[[चित्र:Hindi-Area.jpg|right|100px]]हिन्दी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय-आर्य भाषा है।सन्[[2001]] की जनगणना के अनुसार लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिन्दी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। मध्यदेशीय भाषा परम्परा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिन्दी का स्थान आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में सर्वोपरि है। [[मध्य काल]] में हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो गया था तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो चुकी थीं। इस काल में [[भाषा]] के तीन रूप निखरकर सामने आए थे- [[ब्रजभाषा]], [[अवधी भाषा|अवधी]] व [[खड़ी बोली]]।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हिन्दी]] |
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| {'मयंक मंजरी' नामक रचना किस विधा की है? | | {'मयंक मंजरी' नामक रचना किस विधा की है? |
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| ||'नाटक' [[रंगमंच]] से जुड़ी एक विधा है, जिसे अभिनय करने वाले कलाकारों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नाटक की परम्परा बहुत प्राचीन है। यह अपने जन्म से ही शब्द की कला के साथ-साथ अभिनय की महत्त्वपूर्ण कला भी रहा है। अभिनय रंगमंच पर किया जाता है। रंगमंच पर [[नाटक]] के प्रस्तुतीकरण के लिए लेखक के शब्दों के अतिरिक्त, निर्देशक, अभिनेता, मंच-व्यवस्थापक और दर्शक की भी आवश्यकता होती है। नाटक के शब्दों के साथ जब इन सबका सहयोग घटित होता है, तब नाट्यानुभूति या रंगानुभूति पैदा होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नाटक]] | | ||'नाटक' [[रंगमंच]] से जुड़ी एक विधा है, जिसे अभिनय करने वाले कलाकारों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नाटक की परम्परा बहुत प्राचीन है। यह अपने जन्म से ही शब्द की कला के साथ-साथ अभिनय की महत्त्वपूर्ण कला भी रहा है। अभिनय रंगमंच पर किया जाता है। रंगमंच पर [[नाटक]] के प्रस्तुतीकरण के लिए लेखक के शब्दों के अतिरिक्त, निर्देशक, अभिनेता, मंच-व्यवस्थापक और दर्शक की भी आवश्यकता होती है। नाटक के शब्दों के साथ जब इन सबका सहयोग घटित होता है, तब नाट्यानुभूति या रंगानुभूति पैदा होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नाटक]] |
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| {'वीरों का कैसा हो वसंत' कविता की रचना निम्न में से किसने की थी? | | {'वीरों का कैसा हो वसंत' [[कविता]] की रचना निम्न में से किसने की थी? |
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| +[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] | | +[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] |
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| -[[सरोजिनी नायडू]] | | -[[सरोजिनी नायडू]] |
| -[[महादेवी वर्मा]] | | -[[महादेवी वर्मा]] |
| ||[[चित्र:Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg|right|100px|सुभद्रा कुमारी चौहान]]सुभद्रा कुमारी चौहान की [[कविता|कविताओं]] में [[भाषा]] का ऐसा ऋजु प्रवाह और सामजस्य मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता [[सुभद्रा कुमारी चौहान]] के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। आपकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी [[ऊर्जा]] और जोश से भर सकता है। '''वीरों का कैसा हो वसन्त''' उनकी एक ओर प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की समाधि पर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] | | ||[[चित्र:Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg|right|100px|सुभद्रा कुमारी चौहान]] सुभद्रा कुमारी चौहान की [[कविता|कविताओं]] में [[भाषा]] का ऐसा ऋजु प्रवाह और सामंजस्य मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता सुभद्रा कुमारी चौहान के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। आपकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी [[ऊर्जा]] और जोश से भर सकता है। '''वीरों का कैसा हो वसन्त''' उनकी एक और प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की समाधि पर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] |
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| {भाषा विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं? | | {भाषा विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं? |
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| {'गोस्वामी कृष्ण शरण' [[जयशंकर प्रसाद]] के किस [[उपन्यास]] का महत्त्वपूर्ण पात्र है? | | {'गोस्वामी कृष्ण शरण' [[जयशंकर प्रसाद]] के किस [[उपन्यास]] का महत्त्वपूर्ण पात्र है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]] | | +[[कंकाल (उपन्यास)|कंकाल]] |
| -[[तितली उपन्यास -प्रसाद|तितली]] | | -[[तितली (उपन्यास)|तितली]] |
| -[[इरावती -प्रसाद|इरावती]] | | -[[इरावती (उपन्यास)|इरावती]] |
| -[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]] | | -[[कामायनी -जयशंकर प्रसाद|कामायनी]] |
| ||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|90px|जयशंकर प्रसाद]]'कंकाल' [[जयशंकर प्रसाद]] कृत प्रसिद्ध [[उपन्यास]] है, जो [[1929]] में प्रकाशित हुआ था। प्रसाद जी मुख्यत: आदर्श की भूमिका पर कार्य करने वाले रचनाकार रहे हैं, किंतु '[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]' उनकी एक ऐसी कृति है, जिसमें पूर्णत: यथार्थ का आग्रह है। इस दृष्टि से उनका यह उपन्यास विशेष स्थान रखता है। 'कंकाल' में देश की सामाजिक और धार्मिक स्थिति का अंकन है और अधिकांश पात्र इसी पीठिका में चित्रित किये गये हैं। नायक विजय और नायिका तारा के माध्यम से प्रेम और [[विवाह]] जैसे प्रश्नों से लेकर जाति-वर्ण तथा व्यक्ति-समाज जैसी समस्याओं पर लेखक ने विचार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]] | | ||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|90px|जयशंकर प्रसाद]]'कंकाल' [[जयशंकर प्रसाद]] कृत प्रसिद्ध [[उपन्यास]] है, जो [[1929]] में प्रकाशित हुआ था। प्रसाद जी मुख्यत: आदर्श की भूमिका पर कार्य करने वाले रचनाकार रहे हैं, किंतु '[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]' उनकी एक ऐसी कृति है, जिसमें पूर्णत: यथार्थ का आग्रह है। इस दृष्टि से उनका यह उपन्यास विशेष स्थान रखता है। 'कंकाल' में देश की सामाजिक और धार्मिक स्थिति का अंकन है और अधिकांश पात्र इसी पीठिका में चित्रित किये गये हैं। नायक विजय और नायिका तारा के माध्यम से प्रेम और [[विवाह]] जैसे प्रश्नों से लेकर जाति-वर्ण तथा व्यक्ति-समाज जैसी समस्याओं पर लेखक ने विचार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कंकाल (उपन्यास)|कंकाल]] |
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| {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} |
| [[Category:सामान्य ज्ञान]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान]] |
| [[Category:हिन्दी भाषा]]
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| [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] |
| | [[Category:हिन्दी सामान्य ज्ञान]] |
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