"हिन्दी सामान्य ज्ञान 30": अवतरणों में अंतर
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{[[हिन्दी]] बोली [[भारत]] में कौन बोलते हैं? | {[[हिन्दी]] बोली [[भारत]] में कौन बोलते हैं? | ||
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-[[मुस्लिम]] | -[[मुस्लिम]] | ||
-[[भारत]] की 30 प्रतिशत जनता | -[[भारत]] की 30 प्रतिशत जनता | ||
||[[चित्र:Hindi-Area.jpg|right|100px]]हिन्दी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय-आर्य भाषा | ||[[चित्र:Hindi-Area.jpg|right|100px]]हिन्दी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय-आर्य भाषा है।सन्[[2001]] की जनगणना के अनुसार लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिन्दी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। मध्यदेशीय भाषा परम्परा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिन्दी का स्थान आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में सर्वोपरि है। [[मध्य काल]] में हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो गया था तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो चुकी थीं। इस काल में [[भाषा]] के तीन रूप निखरकर सामने आए थे- [[ब्रजभाषा]], [[अवधी भाषा|अवधी]] व [[खड़ी बोली]]।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हिन्दी]] | ||
{'मयंक मंजरी' नामक रचना किस विधा की है? | {'मयंक मंजरी' नामक रचना किस विधा की है? | ||
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||'नाटक' [[रंगमंच]] से जुड़ी एक विधा है, जिसे अभिनय करने वाले कलाकारों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नाटक की परम्परा बहुत प्राचीन है। यह अपने जन्म से ही शब्द की कला के साथ-साथ अभिनय की महत्त्वपूर्ण कला भी रहा है। अभिनय रंगमंच पर किया जाता है। रंगमंच पर [[नाटक]] के प्रस्तुतीकरण के लिए लेखक के शब्दों के अतिरिक्त, निर्देशक, अभिनेता, मंच-व्यवस्थापक और दर्शक की भी आवश्यकता होती है। नाटक के शब्दों के साथ जब इन सबका सहयोग घटित होता है, तब नाट्यानुभूति या रंगानुभूति पैदा होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नाटक]] | ||'नाटक' [[रंगमंच]] से जुड़ी एक विधा है, जिसे अभिनय करने वाले कलाकारों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नाटक की परम्परा बहुत प्राचीन है। यह अपने जन्म से ही शब्द की कला के साथ-साथ अभिनय की महत्त्वपूर्ण कला भी रहा है। अभिनय रंगमंच पर किया जाता है। रंगमंच पर [[नाटक]] के प्रस्तुतीकरण के लिए लेखक के शब्दों के अतिरिक्त, निर्देशक, अभिनेता, मंच-व्यवस्थापक और दर्शक की भी आवश्यकता होती है। नाटक के शब्दों के साथ जब इन सबका सहयोग घटित होता है, तब नाट्यानुभूति या रंगानुभूति पैदा होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नाटक]] | ||
{'वीरों का कैसा हो वसंत' कविता की रचना निम्न में से किसने की थी? | {'वीरों का कैसा हो वसंत' [[कविता]] की रचना निम्न में से किसने की थी? | ||
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+[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] | +[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] | ||
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-[[सरोजिनी नायडू]] | -[[सरोजिनी नायडू]] | ||
-[[महादेवी वर्मा]] | -[[महादेवी वर्मा]] | ||
||[[चित्र:Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg|right|100px|सुभद्रा कुमारी चौहान]]सुभद्रा कुमारी चौहान की [[कविता|कविताओं]] में [[भाषा]] का ऐसा ऋजु प्रवाह और | ||[[चित्र:Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg|right|100px|सुभद्रा कुमारी चौहान]] सुभद्रा कुमारी चौहान की [[कविता|कविताओं]] में [[भाषा]] का ऐसा ऋजु प्रवाह और सामंजस्य मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता सुभद्रा कुमारी चौहान के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। आपकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी [[ऊर्जा]] और जोश से भर सकता है। '''वीरों का कैसा हो वसन्त''' उनकी एक और प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की समाधि पर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] | ||
{भाषा विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं? | {भाषा विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं? | ||
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{'गोस्वामी कृष्ण शरण' [[जयशंकर प्रसाद]] के किस [[उपन्यास]] का महत्त्वपूर्ण पात्र है? | {'गोस्वामी कृष्ण शरण' [[जयशंकर प्रसाद]] के किस [[उपन्यास]] का महत्त्वपूर्ण पात्र है? | ||
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+[[कंकाल उपन्यास | +[[कंकाल (उपन्यास)|कंकाल]] | ||
-[[तितली उपन्यास | -[[तितली (उपन्यास)|तितली]] | ||
-[[इरावती | -[[इरावती (उपन्यास)|इरावती]] | ||
-[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]] | -[[कामायनी -जयशंकर प्रसाद|कामायनी]] | ||
||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|90px|जयशंकर प्रसाद]]'कंकाल' [[जयशंकर प्रसाद]] कृत प्रसिद्ध [[उपन्यास]] है, जो [[1929]] में प्रकाशित हुआ था। प्रसाद जी मुख्यत: आदर्श की भूमिका पर कार्य करने वाले रचनाकार रहे हैं, किंतु '[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]' उनकी एक ऐसी कृति है, जिसमें पूर्णत: यथार्थ का आग्रह है। इस दृष्टि से उनका यह उपन्यास विशेष स्थान रखता है। 'कंकाल' में देश की सामाजिक और धार्मिक स्थिति का अंकन है और अधिकांश पात्र इसी पीठिका में चित्रित किये गये हैं। नायक विजय और नायिका तारा के माध्यम से प्रेम और [[विवाह]] जैसे प्रश्नों से लेकर जाति-वर्ण तथा व्यक्ति-समाज जैसी समस्याओं पर लेखक ने विचार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कंकाल उपन्यास | ||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|90px|जयशंकर प्रसाद]]'कंकाल' [[जयशंकर प्रसाद]] कृत प्रसिद्ध [[उपन्यास]] है, जो [[1929]] में प्रकाशित हुआ था। प्रसाद जी मुख्यत: आदर्श की भूमिका पर कार्य करने वाले रचनाकार रहे हैं, किंतु '[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]' उनकी एक ऐसी कृति है, जिसमें पूर्णत: यथार्थ का आग्रह है। इस दृष्टि से उनका यह उपन्यास विशेष स्थान रखता है। 'कंकाल' में देश की सामाजिक और धार्मिक स्थिति का अंकन है और अधिकांश पात्र इसी पीठिका में चित्रित किये गये हैं। नायक विजय और नायिका तारा के माध्यम से प्रेम और [[विवाह]] जैसे प्रश्नों से लेकर जाति-वर्ण तथा व्यक्ति-समाज जैसी समस्याओं पर लेखक ने विचार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कंकाल (उपन्यास)|कंकाल]] | ||
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09:47, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा
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