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'किसबिन नाच' किसबा जाति द्वारा किया जाने वाला एक पुश्तैनी धंधा था, जिसमें किसबा जाति के पुरुष महिलाओं से विभिन्न त्यौहारों में तवायफों जैसे नचवाने और गँवाने का काम किया करते थे। इस चलन को बंद करने के लिए डॉ. बघेल जी द्वारा समाज सुधार की दृस्टि से 'भारतवंशी जातीय सम्मलेन' का आयोजन मुंगेली में कराया गया। जिसका असर किसबा जाति पर पड़ा और वे सब सामाजिक मुख्य धारा में लौट आये।
'किसबिन नाच' किसबा जाति द्वारा किया जाने वाला एक पुश्तैनी धंधा था, जिसमें किसबा जाति के पुरुष महिलाओं से विभिन्न त्यौहारों में तवायफों जैसे नचवाने और गँवाने का काम किया करते थे। इस चलन को बंद करने के लिए डॉ. बघेल जी द्वारा समाज सुधार की दृस्टि से 'भारतवंशी जातीय सम्मलेन' का आयोजन मुंगेली में कराया गया। जिसका असर किसबा जाति पर पड़ा और वे सब सामाजिक मुख्य धारा में लौट आये।
==राजनितिक सफर==
==राजनीतिक सफर==
सन [[1931]] तक सरकारी पद त्याग कर खूबचंद बघेल ने [[कांग्रेस]] में प्रवेश किया। इसके पूर्व [[अप्रैल]] [[1930]] में रायपुर महाकौशल राजनीतिक परिषद के अधिवेशन में डॉक्टर बघेल ने भी हिस्सा लिया था, सन [[1931]] में डॉक्टर बघेल रायपुर जिला के डिक्टेटर और बाद में राज्य के आठवें डिक्टेटर नियुक्त हुए। जिला डिक्टेटर के पद पर रहते हुए डॉक्टर बघेल सामाजिक सुधार के प्रति भी जागरूक रहें। सन [[1939]] के त्रिपुरी के ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवकों के कमांडर के रूप में कार्य किया। [[1942]] में [[भारत छोड़ो आंदोलन]] के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। डॉक्टर बघेल के साथ उनकी धर्मपत्नी राजकुँवर देवी भी 6 माह के लिए जेल गई। रायपुर तहसील से [[1946]] के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए। इस तरह सन 1946 में डॉक्टर बघेल को तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्हें प्रांतीय शासन ने संसदीय सचिव नियुक्त किया। [[1950]] में [[आचार्य कृपलानी]] के आह्वान पर वे कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हुए। [[1951]] के बाद आम चुनाव में वे विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए। [[1965]] तक विधानसभा के सदस्य रहे। [[1965]] में राज्यसभा के लिए चुने गए और राजनीति से [[1968]] तक जुड़े रहे।
सन [[1931]] तक सरकारी पद त्याग कर खूबचंद बघेल ने [[कांग्रेस]] में प्रवेश किया। इसके पूर्व [[अप्रैल]] [[1930]] में रायपुर महाकौशल राजनीतिक परिषद के अधिवेशन में डॉक्टर बघेल ने भी हिस्सा लिया था, सन [[1931]] में डॉक्टर बघेल रायपुर जिला के डिक्टेटर और बाद में राज्य के आठवें डिक्टेटर नियुक्त हुए। जिला डिक्टेटर के पद पर रहते हुए डॉक्टर बघेल सामाजिक सुधार के प्रति भी जागरूक रहें। सन [[1939]] के त्रिपुरी के ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवकों के कमांडर के रूप में कार्य किया। [[1942]] में [[भारत छोड़ो आंदोलन]] के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। डॉक्टर बघेल के साथ उनकी धर्मपत्नी राजकुँवर देवी भी 6 माह के लिए जेल गई। रायपुर तहसील से [[1946]] के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए। इस तरह सन 1946 में डॉक्टर बघेल को तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्हें प्रांतीय शासन ने संसदीय सचिव नियुक्त किया। [[1950]] में [[आचार्य कृपलानी]] के आह्वान पर वे कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हुए। [[1951]] के बाद आम चुनाव में वे विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए। [[1965]] तक विधानसभा के सदस्य रहे। [[1965]] में राज्यसभा के लिए चुने गए और राजनीति से [[1968]] तक जुड़े रहे।
==रचनाएँ==
==रचनाएँ==

10:19, 28 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

खूबचंद बघेल
खूबचंद बघेल
खूबचंद बघेल
पूरा नाम डॉ. खूबचंद बघेल
जन्म 19 जुलाई, 1900
जन्म भूमि ग्राम पथरी, रायपुर, छत्तीसगढ़
मृत्यु 2 फ़रवरी, 1969
मृत्यु स्थान दिल्ली
अभिभावक पिता- जुड़ावन प्रसाद

माता- केकती बाई

पति/पत्नी राजकुँवर
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ तथा समाज सुधारक
पार्टी काँग्रेस
विद्यालय गवर्नमेंट हाई स्कूल, रायपुर; रॉबर्ट्सन मेडिकल कॉलेज, नागपुर
जेल यात्रा महात्मा गाँधी के आव्हान पर अगस्त 1942 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय योगदान के कारण ढाई साल जेल में रहे।
अन्य जानकारी 1950 में आचार्य कृपलानी के आह्वान पर खूबचंद बघेल 'कृषक मजदूर पार्टी' में शामिल हुए। 1951 के बाद आम चुनाव में वे विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए।

खूबचंद बघेल (अंग्रेज़ी: Khubchand Baghel, जन्म- 19 जुलाई, 1900, रायपुर; मृत्यु- 2 फ़रवरी, 1969, दिल्ली) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के महान नेता और साहित्यकार थे। वह विधायक और राज्य सभा के सांसद भी रहे। डॉ. खूबचंद बघेल का हमेशा से सामाजिक कुरीतियों को देखकर खून खौल उठता था। उन्होंने हमेशा इन बुराइयों को समाज से दूर करने के लिए बहुत सारे प्रयास किये जिसके फलस्वरूप उन्हें अनेकों बार समाज के गुस्से का सामना करना पड़ा। रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए थे। 1946 में उनको तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था।

परिचय

डॉ. खूबचंद बघेल का जन्म 19 जुलाई सन 1900 को रायपुर जिले के ग्राम पथरी में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल से हुई। आगे की पढ़ाई रायपुर के गवर्नमेंट हाई स्कूल से पूर्ण हुई। अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने नागपुर के रॉबर्ट्सन मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।

महात्मा गाँधी के आव्हान पर अगस्त 1942 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय योगदान के कारण ढाई साल जेल में रहे। असहयोग आंदोलन के प्रभाव में आकर उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और आंदोलन में शामिल हो गए। घर वालों के बार-बार बोलने और समझने से उन्होंने पुनः एल.एम.पी. (लेजिस्लेटिव मेडिकल प्रक्टिसनर) नागपुर में दाखिला लिया और साल 1923 में एल.एम.पी. की परीक्षा पास की। बाद में एल.एम.पी. को सरकार द्वारा एम.बी.बी.एस. का दर्जा दिया गया।

विवाह

डॉ. खूबचंद बघेल का विवाह बहुत की काम उम्र में करा दिया गया था, जब वे अपनी प्राथमिक की पढ़ाई कर रहे थे तो सिर्फ 10 वर्ष के उम्र में उनका विवाह उनसे साल में 3 वर्ष छोटी कन्या राजकुँवर से करा दिया गया। उनकी पत्नी राजकुँवर से 3 पुत्रियाँ पार्वती, राधा और सरस्वती का जन्म हुआ। बाद में उन्होंने पुत्र मोह के कारण डॉ. भारत भूषण बघेल को गोद लिया।

सामाजिक कुरीतियों के विरोधी

खूबचंद बघेल का हमेशा से सामाजिक कुरीतियों को देखकर खून खौल उठता था। हमेशा इन बुराइयों को समाज से दूर करने के लिए बहुत सारे प्रयास किये। जिसके फलस्वरूप उन्हें अनेकों बार समाज के गुस्से का सामना करना पड़ा। पूरे देश की तरह छत्तीसगढ़ में छुआछूत, ऊँच- नीच की भावना व्याप्त थी। खूबचंद बघेल ने जब से अपना होश सम्हाला था, तब से उन्हें जातिगत भेद भाव से चिढ़ थी। उन्होंने जातिगत भेद भाव के साथ साथ उपजातिगत भेद भाव को भी दूर करने का काम किया जिसके फलस्वरूप आज के समय में कुर्मी समाज में व्याप्त उपजाति भेदभाव को दूर किया जा सका है। इस भेदभाव को मिटाने के लिए डॉ. बघेल जी स्वयं मनवा कुर्मी के थे, परन्तु उन्होंने अपनी एक पुत्री का विवाह दिल्लीवार कुर्मी समाज में तथा सबसे छोटी बेटी का विवाह पटना के राजेश्वर पटेल जी से करवाया; फलस्वरूप उन्हें समाज के क्रोध के कारण कुर्मी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। परन्तु वे हमेशा से इस उपजाति बंधन को तोड़ने में लगे रहे।

आंदोलन

'पंक्ति तोड़ो आंदोलन' छत्तीसगढ़ में व्याप्त एक कुप्रथा थी। इसमें शादी में समाज के आधार पर पंक्ति निर्धारित होती थी। उसी पंक्ति में बैठकर भोजन करना होता था। अगर कोई कुर्मी समाज का है तो सिर्फ कुर्मी समाज की पंक्ति में बैठकर ही भोजन कर सकता था। अन्य किसी पंक्ति में बैठना उसके लिए अपराध था। इसी कुरीति को तोड़ने के लिए डॉ. खूबचंद बघेल जी ने पंक्ति तोड़ो आंदोलन शुरू किया। जिसका परिणाम आज सबके सामने है। अब सब मिल जुलकर किसी भी पंक्ति में भोजन कर सकते हैं।

'किसबिन नाच' किसबा जाति द्वारा किया जाने वाला एक पुश्तैनी धंधा था, जिसमें किसबा जाति के पुरुष महिलाओं से विभिन्न त्यौहारों में तवायफों जैसे नचवाने और गँवाने का काम किया करते थे। इस चलन को बंद करने के लिए डॉ. बघेल जी द्वारा समाज सुधार की दृस्टि से 'भारतवंशी जातीय सम्मलेन' का आयोजन मुंगेली में कराया गया। जिसका असर किसबा जाति पर पड़ा और वे सब सामाजिक मुख्य धारा में लौट आये।

राजनीतिक सफर

सन 1931 तक सरकारी पद त्याग कर खूबचंद बघेल ने कांग्रेस में प्रवेश किया। इसके पूर्व अप्रैल 1930 में रायपुर महाकौशल राजनीतिक परिषद के अधिवेशन में डॉक्टर बघेल ने भी हिस्सा लिया था, सन 1931 में डॉक्टर बघेल रायपुर जिला के डिक्टेटर और बाद में राज्य के आठवें डिक्टेटर नियुक्त हुए। जिला डिक्टेटर के पद पर रहते हुए डॉक्टर बघेल सामाजिक सुधार के प्रति भी जागरूक रहें। सन 1939 के त्रिपुरी के ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवकों के कमांडर के रूप में कार्य किया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। डॉक्टर बघेल के साथ उनकी धर्मपत्नी राजकुँवर देवी भी 6 माह के लिए जेल गई। रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए। इस तरह सन 1946 में डॉक्टर बघेल को तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्हें प्रांतीय शासन ने संसदीय सचिव नियुक्त किया। 1950 में आचार्य कृपलानी के आह्वान पर वे कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हुए। 1951 के बाद आम चुनाव में वे विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए। 1965 तक विधानसभा के सदस्य रहे। 1965 में राज्यसभा के लिए चुने गए और राजनीति से 1968 तक जुड़े रहे।

रचनाएँ

  1. ऊँच-नींच : छुआछूत और जातिप्रथा को कम करने के लिए इस नाटक को लिखकर मंचन किया गया।
  2. करम-छंडहा : यह नाटक आम आदमी की गाथा और बेबसी को दर्शाता है।
  3. जनरैल सिंह : छत्तीसगढ़ के दब्बूपन को दूर करने का रास्ता बताया गया है।
  4. भारतमाता : 1962 में भारत-चीन युद्ध में इसे लिखकर मंचन कराया गया तथा चंदा इकठ्ठा कर भारत सरकार के पास भिजवाया गया।

मृत्यु

जातिगत भेदभाव, कुरीतियों को मिटाने वाले महान व्यक्ति खूबचंद बघेल का निधन 22 फ़रवरी, 1969 को हुआ। वह संसद के शीतकालीन सत्र के लिए भाग लेने दिल्ली गए हुए थे। वहाँ दिल का दौरा पड़ने से उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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