"पहेली 23 मार्च 2021": अवतरणों में अंतर

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{सहरिया जनजाति के लोग [[भारत]] में मुख्य रूप से कहाँ रहते हैं?
{[[भगतसिंह]], [[राजगुरु]] और [[सुखदेव]] की शहादत के बाद उनकी देह को किस नदी के किनारे जला दिया गया?  
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+[[मध्य प्रदेश]]
-[[व्यास नदी|व्यास]]
-[[आन्ध्र प्रदेश]]
-[[रावी नदी|रावी]]
-[[असम]]
+[[सतलुज नदी|सतलुज]]
-[[राजस्थान]]
-[[झेलम नदी|झेलम]]
||'सहरिया जनजाति' [[मध्य प्रदेश]] के [[भिंडी|भिंड]], [[मुरैना ज़िला|मुरैना]], [[ग्वालियर]] और [[शिवपुरी]] में पायी जाती है। 'सहरिया' शब्द [[पारसी]] के 'सहर' शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- 'जंगल'। इस जाति के लोग मुख्य रूप से जंगल में निवास करते हैं। इन लोगों का [[परिवार]] पितृसत्तात्मक होता है। [[भारत सरकार]] ने भी [[सहरिया जनजाति]] को आदिम जनजाति माना है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सहरिया जनजाति]]
||[[चित्र:Freedom-Fighters.jpg|right|border|80px|सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु]][[भारत]] में '[[शहीद दिवस]]' [[23 मार्च]] को मनाया जाता है। 23 मार्च, [[1931]] की मध्य रात्रि को [[अंग्रेज़]] हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- [[भगतसिंह]], [[सुखदेव]] और [[राजगुरु]] को फाँसी पर लटका दिया था। अदालती आदेश के मुताबिक़ भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को [[24 मार्च]], 1931 को फाँसी लगाई जानी थी, सुबह क़रीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च, 1931 को ही माँ भारती के इन तीनों सपूतों को देर शाम क़रीब सात बजे फाँसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातों रात ले जाकर [[सतलुज नदी]] के किनारे जला दिए गए। अंग्रेज़ी हुकूमत ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और 24 मार्च को होने वाले विद्रोह की वजह से [[23 मार्च]] को ही क्रांतिकारियों को फाँसी दे दी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शहीद दिवस]]
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05:40, 23 मार्च 2021 के समय का अवतरण