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'''सांवलदास-जानकीप्रसाद घराना''' शास्त्रीय नृत्य कला शैली से सम्बंधित है। इस घराने के नाम के साथ विवाद है। इस घराने के कलाकार इसे ही '[[बनारस घराना]]' बताते हैं, जबकि बनारस घराने के कलाकार और पंडित सुखदेव प्रसाद जिन्होंने बनारस घराने की स्थापना की, उनके वंशज [[सितारा देवी]] और जयंतीमाला सांवलदास-जानकीप्रसाद घराने को बनारस घराने की ही एक शाखा बताते हैं। प्रख्यात नृत्यगुरु स्व. पंडित कृष्णकुमार महाराज ने इस घराने का दो पीढ़ियों तक नेतृत्व किया और इसकी लोकप्रियता को कायम रखा, लेकिन उनके निधन के पश्चात् यह घराना समाप्तप्राय | '''सांवलदास-जानकीप्रसाद घराना''' शास्त्रीय नृत्य कला शैली से सम्बंधित है। इस घराने के नाम के साथ विवाद है। इस घराने के कलाकार इसे ही '[[बनारस घराना]]' बताते हैं, जबकि बनारस घराने के कलाकार और पंडित सुखदेव प्रसाद जिन्होंने बनारस घराने की स्थापना की, उनके वंशज [[सितारा देवी]] और जयंतीमाला सांवलदास-जानकीप्रसाद घराने को बनारस घराने की ही एक शाखा बताते हैं। प्रख्यात नृत्यगुरु स्व. पंडित कृष्णकुमार महाराज ने इस घराने का दो पीढ़ियों तक नेतृत्व किया और इसकी लोकप्रियता को कायम रखा, लेकिन उनके निधन के पश्चात् यह घराना समाप्तप्राय सा हो चुका है।<ref>{{cite web |url=http://journalistnishant.blogspot.in/2010/11/blog-post_27.html |title=कत्थक के मूल स्वरूप में परिवर्तन और घरानों की देन|accessmonthday=22 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=journalistnishant.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref> | ||
13:46, 9 मई 2021 के समय का अवतरण
सांवलदास-जानकीप्रसाद घराना शास्त्रीय नृत्य कला शैली से सम्बंधित है। इस घराने के नाम के साथ विवाद है। इस घराने के कलाकार इसे ही 'बनारस घराना' बताते हैं, जबकि बनारस घराने के कलाकार और पंडित सुखदेव प्रसाद जिन्होंने बनारस घराने की स्थापना की, उनके वंशज सितारा देवी और जयंतीमाला सांवलदास-जानकीप्रसाद घराने को बनारस घराने की ही एक शाखा बताते हैं। प्रख्यात नृत्यगुरु स्व. पंडित कृष्णकुमार महाराज ने इस घराने का दो पीढ़ियों तक नेतृत्व किया और इसकी लोकप्रियता को कायम रखा, लेकिन उनके निधन के पश्चात् यह घराना समाप्तप्राय सा हो चुका है।[1]
जानकी प्रसाद जी वाराणसी निवासी थे और सुप्रसिद्ध तबला के वादक पं. राज सहाय जी के भाई थे। इनके समय में राजस्थान के श्री हुक्मराम जी अपने लड़के चुन्नीलाल के साथ घूमते हुए वाराणसी आए। चुन्नीलाल लड़की बनकर कुछ नृत्य किया करते थे। उनकी प्रतिभा देखकर जानकी प्रसाद जी ने उन्हें अपने पास ही रख लिया और 15 सालों तक नृत्य की शिक्षा दी। चुन्नीलाल जी बनारस से लौटने के बाद बीकानेर दरबार में नियुक्त हुए और अपने छोटे भाई दुल्हाराम जी को नृत्य की शिक्षा प्रदान की।
ऐसी मान्यता है की यह घराना राजस्थान के सबसे प्राचीन 'साँवलदास घराने' से सम्बंधित है तथा जानकी प्रसाद जी साँवलदास जी के ही वंशज थे, जो बनारस जा बसे थे।
जानकी प्रसाद घराना शुद्ध नृत्य के बोल, सात्विक भाव और तत्कार पर ही आधारित है। इसमें बोलों की पैरों से निकासी पर विशेष ध्यान दिया जाता है। 'तिगदा दिग दिग' में जहाँ अन्य लोग चार पैर मारते हैं, वहाँ ये लोग 6 पैर लगाते हैं। इस घराने की तत्कार में ऐड़ी का प्रयोग ज़्यादा होता है। उनको सही ढंग से अंग से व पैरों से अदा करना बहुत कठिन है। नृत्य की सही चक्करदार गतें भी इस घराने में सुनने को मिलती हैं। इस घराने में भाव की शुद्धता का भी बहुत ख़याल रखा जाता है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कत्थक के मूल स्वरूप में परिवर्तन और घरानों की देन (हिंदी) journalistnishant.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2016।
- ↑ कत्थक नृत्य के घराने (हिंदी) kathakahekathak.wordpress.com। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2016।