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17वीं शताब्दी में मुग़लकालीन शासकों के बुन्देला क्षेत्र में लगातार आक्रमण के कारण बुन्देला [[छत्रसाल|राजा छत्रसाल]] ने सन 1732 ई. में [[मराठा|मराठों]] से सहायता माँगी। 1734 ई. में छत्रसाल के निधन के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहाई भाग मराठों को दे दिया गया। मराठों ने इस शहर का विकास किया और इसके लिए [[ओरछा]] से लोगों को लाकर यहाँ बसाया। सन 1806 ई. में मराठा शक्ति के निर्बल होने पर ब्रिटिश राज तथा मराठों के मध्य एक समझौता हुआ, जिससे मराठों ने ब्रिटिश साम्राज्य का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। 1817 ई. में मराठों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सारे अधिकार ब्रिटिश [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] को दे दिए।
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====ब्रिटिश साम्राज्य में विलेय====
====ब्रिटिश साम्राज्य में विलेय====
सन [[1857]] ई. में झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। तत्कालीन [[अंग्रेज़]] [[गवर्नर-जनरल]] ने झाँसी को पूरी तरह से अपने अधिकार में ले लिया। गंगाधर राव की विधवा [[रानी लक्ष्मीबाई]] ने इसका विरोध किया और कहा कि "राजा गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी माना जाये।" परन्तु ब्रिटिश राज ने इसे मानने से इंकार कर दिया। इन्हीं परिस्थितियों के चलते झाँसी में सन [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 ई. का संग्राम]] हुआ, जो कि [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के लिये नींव का पत्थर सिद्ध हुआ। [[जून]] 1857 ई. में 12वीं पैदल सेना के सैनिकों ने झाँसी पर कब्जा कर लिया और क़िले में मौजूद ब्रिटिश अधिकारियों को मार डाला। ब्रिटिश साम्राज्य से जंग के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं सैन्य संचालन किया। किन्तु रानी की मृत्यु के बाद 1858 ई. में झाँसी को पुन: ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। बाद में झाँसी के अधिकार [[ग्वालियर]] के राजा को दे दिये गए। सन [[1886]] ई. में झाँसी को यूनाइटेड प्रोविंस में जोड़ा गया, जो देश की आज़ादी के बाद [[1956]] में [[उत्तर प्रदेश]] बना।
सन [[1857]] ई. में झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। तत्कालीन [[अंग्रेज़]] [[गवर्नर-जनरल]] ने झाँसी को पूरी तरह से अपने अधिकार में ले लिया। गंगाधर राव की विधवा [[रानी लक्ष्मीबाई]] ने इसका विरोध किया और कहा कि "राजा गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी माना जाये।" परन्तु ब्रिटिश राज ने इसे मानने से इंकार कर दिया। इन्हीं परिस्थितियों के चलते झाँसी में सन [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 ई. का संग्राम]] हुआ, जो कि [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के लिये नींव का पत्थर सिद्ध हुआ। [[जून]] 1857 ई. में 12वीं पैदल सेना के सैनिकों ने झाँसी पर क़ब्ज़ा कर लिया और क़िले में मौजूद ब्रिटिश अधिकारियों को मार डाला। ब्रिटिश साम्राज्य से जंग के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं सैन्य संचालन किया। किन्तु रानी की मृत्यु के बाद 1858 ई. में झाँसी को पुन: ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। बाद में झाँसी के अधिकार [[ग्वालियर]] के राजा को दे दिये गए। सन [[1886]] ई. में झाँसी को यूनाइटेड प्रोविंस में जोड़ा गया, जो देश की आज़ादी के बाद [[1956]] में [[उत्तर प्रदेश]] बना।
==पर्यटन==
==पर्यटन==
[[चित्र:Jhansi-Fort-1.jpg|thumb|250px|[[झाँसी का क़िला]] ([[1882]] ई.)]]
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रानी लक्ष्मीबाई के इस महल की दीवारों और छतों को अनेक [[रंग|रंगों]] और चित्रकारियों से सजाया गया है। वर्तमान में क़िले को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहाँ नौवीं से बारहवीं [[शताब्दी]] की प्राचीन मूर्तियों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है।   
रानी लक्ष्मीबाई के इस महल की दीवारों और छतों को अनेक [[रंग|रंगों]] और चित्रकारियों से सजाया गया है। वर्तमान में क़िले को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहाँ नौवीं से बारहवीं [[शताब्दी]] की प्राचीन मूर्तियों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है।   
====झाँसी संग्रहालय====
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झाँसी के क़िले में स्थित यह संग्रहालय [[इतिहास]] में रूचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसंद स्थान है। यह [[संग्रहालय]] केवल झाँसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण [[बुन्देलखण्ड]] की झलक प्रस्तुत करता है। संग्रहालय में प्रदर्शित सामग्री [[चंदेल वंश]] के राजाओं के जीवन और समय को सजीवता से प्रस्तुत करते हैं। संग्रहालय में हथियारों, शस्त्रों और गोला बारूद का प्रदर्शन भी किया गया है, जिसका उपयोग ब्रिटिश सेना ने [[1857]] ई. के [[स्वतंत्रता संग्राम 1857|स्वतंत्रता संग्राम]] को दबाने के लिए किया था।   
झाँसी के क़िले में स्थित यह संग्रहालय [[इतिहास]] में रुचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसंद स्थान है। यह [[संग्रहालय]] केवल झाँसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण [[बुन्देलखण्ड]] की झलक प्रस्तुत करता है। संग्रहालय में प्रदर्शित सामग्री [[चंदेल वंश]] के राजाओं के जीवन और समय को सजीवता से प्रस्तुत करते हैं। संग्रहालय में हथियारों, शस्त्रों और गोला बारूद का प्रदर्शन भी किया गया है, जिसका उपयोग ब्रिटिश सेना ने [[1857]] ई. के [[स्वतंत्रता संग्राम 1857|स्वतंत्रता संग्राम]] को दबाने के लिए किया था।   
====गणेश मंदिर====
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भगवान [[गणेश]] को समर्पित इस मंदिर में महाराज गंगाधर राव और वीरांगना लक्ष्मीबाई का [[विवाह]] हुआ था। झाँसी के नज़दीकी पर्यटन स्थलों में ओरछा, बरूआ सागर, [[शिवपुरी]], दतिया, [[ग्वालियर]], [[खजुराहो]], [[महोबा]], टोड़ी फतेहपुर, आदि भी दर्शनीय स्थल हैं।
भगवान [[गणेश]] को समर्पित इस मंदिर में महाराज गंगाधर राव और वीरांगना लक्ष्मीबाई का [[विवाह]] हुआ था। झाँसी के नज़दीकी पर्यटन स्थलों में ओरछा, बरूआ सागर, [[शिवपुरी]], दतिया, [[ग्वालियर]], [[खजुराहो]], [[महोबा]], टोड़ी फतेहपुर, आदि भी दर्शनीय स्थल हैं।

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झाँसी
झाँसी क़िला
झाँसी क़िला
विवरण 'झाँसी' उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक प्रसिद्ध शहरों में से एक है। यह शहर भारतीय इतिहास में काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला झाँसी
स्थापना ओरछा नरेश वीरसिंह बुन्देला
हवाई अड्डा ग्वालियर
रेलवे स्टेशन झाँसी
क्या देखें झाँसी का क़िला, बरुआ सागर, रानी महल, झाँसी संग्रहालय, गणेश मंदिर आदि।
एस.टी.डी. कोड 0510
संबंधित लेख रानी लक्ष्मीबाई, झाँसी का क़िला, वीरसिंह बुन्देला, छत्रसाल पिन 284001-2-3-4
वाहन पंजीकरण संख्या UP-93
अन्य जानकारी झाँसी के क़िले में स्थित संग्रहालय इतिहास में रुचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसंद स्थान है। क़िला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है।

झाँसी एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। 'भारतीय इतिहास' में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत की वीरांगनाओं में से एक झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के लिए भी यह शहर जाना जाता है। झाँसी उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। यह एक प्रमुख रेल एवं सड़क केन्द्र है और साथ ही झाँसी ज़िले का प्रशासनिक केन्द्र भी है। झाँसी शहर पत्थर निर्मित क़िले के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ है। यह क़िला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है।

इतिहास

9वीं शताब्दी में झॉसी का राज्य खजुराहो के राजपूत चन्देल वंश के राजाओं के अन्तर्गत आया। कृत्रिम जलाशय एवं पहाड़ी क्षेत्र के वास्तुशिल्पिय खण्डहर शायद इसी काल के हैं। चन्देल वंश के बाद उनके सेवक खंगार ने इस क्षेत्र का कार्यभार सम्भाला। क़िले के समीप स्थित करार का क़िला इसी वंश के राजाओं ने बनवाया था। 14वीं शताब्दी के निकट बुन्देलों ने विन्ध्याचंल क्षेत्र से नीचे मैदानी भागों में आना प्रारम्भ किया। वे धीरे-धीरे सारे मैदानी क्षेत्र में फैल गए, जिसे आज बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है। झाँसी के क़िले का निर्माण 1613 ई. में ओरछा शासक वीरसिंह बुन्देला ने करवाया था। किवदंती है कि राजा वीरसिंह बुन्देला ने दूर से पहाड़ी पर एक छाया देखी, जिसे बुन्देली भाषा में 'झाँई सी' बोला गया। इसी शब्द के अपभ्रंश से शहर का नाम झाँसी पड़ा।

मराठों द्वारा विकास

17वीं शताब्दी में मुग़लकालीन शासकों के बुन्देला क्षेत्र में लगातार आक्रमण के कारण बुन्देला राजा छत्रसाल ने सन 1732 ई. में मराठों से सहायता माँगी। 1734 ई. में छत्रसाल के निधन के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहाई भाग मराठों को दे दिया गया। मराठों ने इस शहर का विकास किया और इसके लिए ओरछा से लोगों को लाकर यहाँ बसाया। सन 1806 ई. में मराठा शक्ति के निर्बल होने पर ब्रिटिश राज तथा मराठों के मध्य एक समझौता हुआ, जिससे मराठों ने ब्रिटिश साम्राज्य का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। 1817 ई. में मराठों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सारे अधिकार ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिए।

ब्रिटिश साम्राज्य में विलेय

सन 1857 ई. में झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। तत्कालीन अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल ने झाँसी को पूरी तरह से अपने अधिकार में ले लिया। गंगाधर राव की विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कहा कि "राजा गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी माना जाये।" परन्तु ब्रिटिश राज ने इसे मानने से इंकार कर दिया। इन्हीं परिस्थितियों के चलते झाँसी में सन 1857 ई. का संग्राम हुआ, जो कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिये नींव का पत्थर सिद्ध हुआ। जून 1857 ई. में 12वीं पैदल सेना के सैनिकों ने झाँसी पर क़ब्ज़ा कर लिया और क़िले में मौजूद ब्रिटिश अधिकारियों को मार डाला। ब्रिटिश साम्राज्य से जंग के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं सैन्य संचालन किया। किन्तु रानी की मृत्यु के बाद 1858 ई. में झाँसी को पुन: ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। बाद में झाँसी के अधिकार ग्वालियर के राजा को दे दिये गए। सन 1886 ई. में झाँसी को यूनाइटेड प्रोविंस में जोड़ा गया, जो देश की आज़ादी के बाद 1956 में उत्तर प्रदेश बना।

पर्यटन

झाँसी का क़िला (1882 ई.)

झाँसी क़िला

झाँसी का क़िला उत्तर प्रदेश ही नहीं, भारत के सबसे बेहतरीन क़िलों में से एक है। ओरछा के राजा वीरसिंह देव ने यह क़िला 1613 ई. में बनवाया था। क़िला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। क़िले में प्रवेश के लिए दस दरवाज़े हैं। क़िले में रानी झाँसी गार्डन, शिव मंदिर और ग़ुलाम गौस ख़ान, मोती बाई व ख़ुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है।

रानी महल

रानी लक्ष्मीबाई के इस महल की दीवारों और छतों को अनेक रंगों और चित्रकारियों से सजाया गया है। वर्तमान में क़िले को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहाँ नौवीं से बारहवीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है।

झाँसी संग्रहालय

झाँसी के क़िले में स्थित यह संग्रहालय इतिहास में रुचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसंद स्थान है। यह संग्रहालय केवल झाँसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड की झलक प्रस्तुत करता है। संग्रहालय में प्रदर्शित सामग्री चंदेल वंश के राजाओं के जीवन और समय को सजीवता से प्रस्तुत करते हैं। संग्रहालय में हथियारों, शस्त्रों और गोला बारूद का प्रदर्शन भी किया गया है, जिसका उपयोग ब्रिटिश सेना ने 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए किया था।

गणेश मंदिर

भगवान गणेश को समर्पित इस मंदिर में महाराज गंगाधर राव और वीरांगना लक्ष्मीबाई का विवाह हुआ था। झाँसी के नज़दीकी पर्यटन स्थलों में ओरछा, बरूआ सागर, शिवपुरी, दतिया, ग्वालियर, खजुराहो, महोबा, टोड़ी फतेहपुर, आदि भी दर्शनीय स्थल हैं।

बरुआ सागर

बरुआ सागर झाँसी का एक प्रसिद्ध शहर है। इसे बरुआ सागर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहाँ बरुआ सागर नाम की एक भव्य झील स्थित है, जो झाँसी से 25 कि.मी. दूर बेतवा नदी के किनारे स्थित है। राजा उदित सिंह द्वारा निर्मित इस शहर में कई सुन्दर स्थान है, जो बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

कृषि और उद्योग

झाँसी शहर में एक कृषि बाज़ार है और यहाँ स्टील रोलिंग मिल होने के साथ विनिर्माण कार्य भी होता है।

शिक्षा

झाँसी के राजाओं की समाधियां

झाँसी बुन्देलखण्ड क्षेत्र का प्रमुख शिक्षा केंद्र है। यहाँ विद्यालय तथा अध्ययन केंद्र सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा चलाए जाते हैं। 'बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय', जिसकी स्थापना 1975 में की गई थी, विज्ञान, कला एवं व्यावसायिक शिक्षा की उपाधि प्रदान करता है। झाँसी शहर और आसपास के अधिकांश विद्यालय बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हैं। झाँसी के प्रमुख शिक्षा संस्थान इस प्रकार हैं-

  1. पं. दीनदयाल उपाध्याय विद्यापीठ, बालाजी मार्ग, झाँसी
  2. रघुराज सिंह पब्लिक स्कूल, पठोरिया, दतिया गेट
  3. मारग्रेट लीस्क मेमोरियल इंग्लिश स्कूल एण्ड कॉलेज
  4. राजकीय इण्टर कॉलेज
  5. श्री गुरु नानक ख़ालसा इंटर कॉलेज, झाँसी
  6. रानी लक्ष्मीबाई पब्लिक स्कूल
  7. ज्ञान स्थली पब्लिक स्कूल
  8. हेलेन मेगडोनियल मेमोरियल कन्या इन्टर‍ कॉलेज
  9. लोकमान्य तिलक कन्या इन्टर कॉलेज
  10. राज्य विद्युत परिषद इंटर कॉलेज
  11. श्री गुरु हरकिशन डिग्री कॉलेज, झाँसी
  12. श्री एम एल पांडे एग्लो वैदिक जूनियर हाईस्कूल, खाती बाबा, झाँसी
  13. भानी देवी गोयल सरस्वती विध्या मंदिर, झाँसी
  14. बिपिन बिहारी इंटर कॉलेज
  15. क्राइस्ट दि किंग कॉलेज
  16. लक्ष्मी व्यायाम मंदिर
  17. आर्य कन्या इंटर कॉलेज
  18. बुंदेलखंड इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट

परिवहन

वायु मार्ग

झाँसी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्वालियर निकटतम एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुम्बई, वाराणसी, बैंगलोर आदि शहरों से हवाई उड़ान के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग

झाँसी का रलवे स्टेशन भारत के तमाम प्रमुख शहरों अनेकों रेलगाड़ियों से जुड़ा है।

सड़क मार्ग

झाँसी में राष्ट्रीय राजमार्ग 25 और 26 से अनेक शहरों से पहुँचा जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बसें झाँसी पहुँचने के लिए अपनी सुविधा मुहैया कराती हैं।

जनसंख्या

झाँसी ज़िले की कुल जनसंख्या (2001 की गणना के अनुसार) कुल 17,46,715 है। नगर की जनसंख्या 3,83,248 है।


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संबंधित लेख

भारत के नगरउत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल