"कृश्न चन्दर": अवतरणों में अंतर
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==परिचय== | ==परिचय== | ||
कृश्न चंदर का जन्म गुजरांवाला, पाकिस्तान में हुआ था. पूत के पांव पालने में ही दिख गए थे. स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही अपने मास्टर पर व्यंग्य लिखकर उन्होंने [[पिता]] की मार और कसम खाई कि अब ऐसा नहीं करना है. पर ऐसा नहीं हो पाया. पढ़ाई के बाद [[आकाशवाणी]] में नौकरी तो लगी पर जी नहीं. [[1939]] में शाया (प्रकाशित) होने वाले कहानी-संग्रह ‘नज़ारे’ की भूमिका में कुछ यूं लिखा- "उस कृश्न चंदर की याद में, जिसे गुज़िश्ता नवम्बर की एक थकी और उदास शाम को ख़ुद इन हाथों ने गला घोंटकर हमेशा के लिए मौत के घाट उतार दिया"।<ref name="pp">{{cite web |url=https://satyagrah.scroll.in/article/126114/krishan-chander-writer-profile |title=कृश्न चन्दर|accessmonthday=23 जुलाई|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=satyagrah.scroll.in |language=हिंदी}}</ref> | कृश्न चंदर का जन्म गुजरांवाला, पाकिस्तान में हुआ था. पूत के पांव पालने में ही दिख गए थे. स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही अपने मास्टर पर व्यंग्य लिखकर उन्होंने [[पिता]] की मार और कसम खाई कि अब ऐसा नहीं करना है. पर ऐसा नहीं हो पाया. पढ़ाई के बाद [[आकाशवाणी]] में नौकरी तो लगी पर जी नहीं. [[1939]] में शाया (प्रकाशित) होने वाले कहानी-संग्रह ‘नज़ारे’ की भूमिका में कुछ यूं लिखा- "उस कृश्न चंदर की याद में, जिसे गुज़िश्ता नवम्बर की एक थकी और उदास शाम को ख़ुद इन हाथों ने गला घोंटकर हमेशा के लिए मौत के घाट उतार दिया"।<ref name="pp">{{cite web |url=https://satyagrah.scroll.in/article/126114/krishan-chander-writer-profile |title=कृश्न चन्दर|accessmonthday=23 जुलाई|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=satyagrah.scroll.in |language=हिंदी}}</ref> | ||
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ख़ुशक़िस्मती कहिये वे ‘मरे’ नहीं, बस नीमजां (अधमरा) हुए और जल्द नौकरी छोड़ होशमंद कहलाए। इस दौरान कृश्न चंदर ने कुछ [[नाटक]], कहानियां और [[उपन्यास]] लिखे। ‘शिकस्त’ इस कड़ी में सबसे ऊपर रखा जा सकता है जिसने उन्हें मुख्तलिफ़ स्टाइल का क़िस्सागो के तौर पर मशहूर कर दिया। वैसे कृश्न चंदर का अदबी सफ़र ‘जेहलम पर नाव में’ से शुरू होता है। इसमें किरदार दो औरतों- एक ख़ूबसूरत और एक बदसूरत- के साथ नाव में जेहलम नदी पार रहा है। कृश्न चंदर [[कहानी]] में कुंठा दिखाते वक़्त भी ईमानदार थे। वे लिखते हैं- ‘वह (ख़ूबसूरत लड़की) किसी बिछड़े प्रेमी की याद में रो रही थी। मैंने चाहा कि मैं [[गुलाब]] की नर्म नाज़ुक पंखुड़ियों से उसके आंसू पोंछ डालूं और उससे पूछूं, “बता हे सुंदरी! तुझे क्या ग़म है?” इसके बजाय मैंने उस बदसूरत औरत की निगाहें अपने चेहरे पर जमी हुई देखीं। | ख़ुशक़िस्मती कहिये वे ‘मरे’ नहीं, बस नीमजां (अधमरा) हुए और जल्द नौकरी छोड़ होशमंद कहलाए। इस दौरान कृश्न चंदर ने कुछ [[नाटक]], कहानियां और [[उपन्यास]] लिखे। ‘शिकस्त’ इस कड़ी में सबसे ऊपर रखा जा सकता है जिसने उन्हें मुख्तलिफ़ स्टाइल का क़िस्सागो के तौर पर मशहूर कर दिया। वैसे कृश्न चंदर का अदबी सफ़र ‘जेहलम पर नाव में’ से शुरू होता है। इसमें किरदार दो औरतों- एक ख़ूबसूरत और एक बदसूरत- के साथ नाव में जेहलम नदी पार रहा है। कृश्न चंदर [[कहानी]] में कुंठा दिखाते वक़्त भी ईमानदार थे। वे लिखते हैं- ‘वह (ख़ूबसूरत लड़की) किसी बिछड़े प्रेमी की याद में रो रही थी। मैंने चाहा कि मैं [[गुलाब]] की नर्म नाज़ुक पंखुड़ियों से उसके आंसू पोंछ डालूं और उससे पूछूं, “बता हे सुंदरी! तुझे क्या ग़म है?” इसके बजाय मैंने उस बदसूरत औरत की निगाहें अपने चेहरे पर जमी हुई देखीं। | ||
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12:42, 23 जुलाई 2021 के समय का अवतरण
कृश्न चन्दर
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पूरा नाम | कृश्न चन्दर |
जन्म | 23 नवंबर 1914 |
जन्म भूमि | वजीराबाद, गुजराँवाला (अब पाकिस्तान में) |
मृत्यु | 8 मार्च, 1977 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी तथा उर्दू के कथाकार |
मुख्य रचनाएँ | 'पूरे चाँद की रात', 'एक गधे की आत्मकथा', 'प्यासी धरती प्यासे लोग', 'यादों के चिनार', 'मिट्टी के सनम', 'रेत का महल', 'काग़ज़ की नाव', 'चांदी का घाव दिल' आदि। |
भाषा | हिन्दी, |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण (1969) सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान से सम्मानित। |
प्रसिद्धि | कथाकार |
नागरिकता | भारतीय |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
कृश्न चन्दर या 'कृष्ण चन्दर' (अंग्रेज़ी: Krishan Chander, जन्म- 23 नवम्बर, 1914; मृत्यु- 8 मार्च, 1977) हिन्दी के प्रमुख यशस्वी कथाकार थे। वे हिन्दी और उर्दू के कहानीकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1969 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। उन्होंने मुख्यतः उर्दू में लिखा, किन्तु भारत की स्वतंत्रता के बाद मुख्यतः हिन्दी में लिखा।
परिचय
कृश्न चंदर का जन्म गुजरांवाला, पाकिस्तान में हुआ था. पूत के पांव पालने में ही दिख गए थे. स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही अपने मास्टर पर व्यंग्य लिखकर उन्होंने पिता की मार और कसम खाई कि अब ऐसा नहीं करना है. पर ऐसा नहीं हो पाया. पढ़ाई के बाद आकाशवाणी में नौकरी तो लगी पर जी नहीं. 1939 में शाया (प्रकाशित) होने वाले कहानी-संग्रह ‘नज़ारे’ की भूमिका में कुछ यूं लिखा- "उस कृश्न चंदर की याद में, जिसे गुज़िश्ता नवम्बर की एक थकी और उदास शाम को ख़ुद इन हाथों ने गला घोंटकर हमेशा के लिए मौत के घाट उतार दिया"।[1]
लेखन कार्य
ख़ुशक़िस्मती कहिये वे ‘मरे’ नहीं, बस नीमजां (अधमरा) हुए और जल्द नौकरी छोड़ होशमंद कहलाए। इस दौरान कृश्न चंदर ने कुछ नाटक, कहानियां और उपन्यास लिखे। ‘शिकस्त’ इस कड़ी में सबसे ऊपर रखा जा सकता है जिसने उन्हें मुख्तलिफ़ स्टाइल का क़िस्सागो के तौर पर मशहूर कर दिया। वैसे कृश्न चंदर का अदबी सफ़र ‘जेहलम पर नाव में’ से शुरू होता है। इसमें किरदार दो औरतों- एक ख़ूबसूरत और एक बदसूरत- के साथ नाव में जेहलम नदी पार रहा है। कृश्न चंदर कहानी में कुंठा दिखाते वक़्त भी ईमानदार थे। वे लिखते हैं- ‘वह (ख़ूबसूरत लड़की) किसी बिछड़े प्रेमी की याद में रो रही थी। मैंने चाहा कि मैं गुलाब की नर्म नाज़ुक पंखुड़ियों से उसके आंसू पोंछ डालूं और उससे पूछूं, “बता हे सुंदरी! तुझे क्या ग़म है?” इसके बजाय मैंने उस बदसूरत औरत की निगाहें अपने चेहरे पर जमी हुई देखीं।
रचनाएँ
कृश्न चंदर की रचनाएँ हैं[1]-
- उपन्यास- एक गधे की आत्मकथा, एक वाइलिन समुन्दर के किनारे, एक गधा नेफ़ा में, तूफ़ान की कलीआं, कारनीवाल, एक गधे की वापसी, ग़द्दार, सपनों का कैदी, सफेद फूल, पिआस, यादों के चिनार, मिट्टी के सनम, रेत का महल, काग़ज़ की नाव, चांदी का घाव दिल, दौलत और दुनीआ, पिआसी धरती पिआसे लोक, पराजय।
- कहानी संग्रह- नज्जारे, ज़िंदगी के मोड़ पर, टूटे हुए तारे, अन्नदाता, तीन गुंडे, समुन्दर दूर है, अजंता से आगे, हम वहशी हैं, मैं इंतजार करूंगा, दिल किसी का दोस्त्त नहीं, किताब का कफन, तलिस्मे खिआल, जामुन का पेड़।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1
कृश्न चन्दर (हिंदी) satyagrah.scroll.in। अभिगमन तिथि: 23 जुलाई, 2021। सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
अमान्य टैग है; "pp" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
संबंधित लेख
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