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-[[रामानंद]]
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-[[नन्ददास]]
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||'भक्तमाल' [[नाभादास]] का प्रसिद्ध [[हिन्दी]] ग्रंथ है। '[[भक्तमाल]]' [[संवत]] 1642 के बाद बना और संवत 1769 में प्रियादास जी ने उसकी [[टीका]] लिखी। इस ग्रंथ में 200 भक्तों के चमत्कारपूर्ण चरित्र 316 [[छप्पय|छप्पयों]] में लिखे गए हैं। इन चरित्रों में पूर्ण जीवनवृत्त नहीं है, केवल [[भक्ति]] की महिमासूचक बातें दी गई हैं। इनका उद्देश्य भक्तों के प्रति जनता में पूज्यबुद्धि का प्रचार जान पड़ता है। यह उद्देश्य बहुत अंशों में सिद्ध भी हुआ। [[नाभादास]] ने अपने 'भक्तमाल' में दो [[छप्पय|छप्पयों]] में [[कबीर]] के विषय में कुछ सूचनाएँ दी हैं। प्रथम छप्पय में कबीरदास की वाणी की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है, जैसे- उनके द्वारा स्थापित भक्ति की विशिष्टता, [[योग]], [[यज्ञ]], व्रत और दान की तुच्छता।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भक्तमाल]]
||'भक्तमाल' [[नाभादास]] का प्रसिद्ध [[हिन्दी]] ग्रंथ है। '[[भक्तमाल]]' [[संवत]] 1642 के बाद बना और संवत 1769 में प्रियादास जी ने उसकी [[टीका]] लिखी। इस ग्रंथ में 200 भक्तों के चमत्कारपूर्ण चरित्र 316 [[छप्पय|छप्पयों]] में लिखे गए हैं। इन चरित्रों में पूर्ण जीवनवृत्त नहीं है, केवल [[भक्ति]] की महिमासूचक बातें दी गई हैं। इनका उद्देश्य भक्तों के प्रति जनता में पूज्यबुद्धि का प्रचार जान पड़ता है। यह उद्देश्य बहुत अंशों में सिद्ध भी हुआ। [[नाभादास]] ने अपने 'भक्तमाल' में दो [[छप्पय|छप्पयों]] में [[कबीर]] के विषय में कुछ सूचनाएँ दी हैं। प्रथम छप्पय में कबीरदास की वाणी की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है, जैसे- उनके द्वारा स्थापित भक्ति की विशिष्टता, [[योग]], [[यज्ञ]], व्रत और दान की तुच्छता।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भक्तमाल]], [[नाभादास]]
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