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08:36, 23 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
धनंजय कीर
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पूरा नाम | धनंजय कीर |
जन्म | 23 अप्रॅल, 1913 |
जन्म भूमि | ज़िला रत्नीगिरी, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 12 मई, 1984 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | पिता- विट्ठल माता- देवकी |
पति/पत्नी | सुधा |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखन |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, 1971 |
प्रसिद्धि | साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | भीमराव आम्बेडकर |
अन्य जानकारी | धनंजय कीर ने पहली जीवनी सावरकर की लिखी जो कि 1950 में छपी। सावरकवादियों में इस जीवनी को अहम स्थान हासिल है। आगे चलकर उन्होंने भीमराव आम्बेडकर की प्रसिद्ध जीवनी लिखी। |
धनंजय कीर (अंग्रेज़ी: Dhananjay Keer, जन्म- 23 अप्रॅल, 1913; मृत्यु- 12 मई, 1984) भारतीय साहित्यकार थे। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा उन्हें सन 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वह महाराष्ट्र राज्य से थे। बाबा साहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर भारतीय इतिहास की धारा को मोड़कर रख देने वाले महानायक थे। ऐसे महापुरुष पर अनेकों किताबों का लिखा जाना स्वाभाविक है। इन किताबों में एक पुस्तक ऐसी है जो अपने आप में ही इतिहास बन चुकी है। यह पुस्तक बाबा साहब की जीवनी है, जिसके लेखक थे धनंजय कीर। शायद ही कोई अंबेडकरप्रेमी होगा, जिसने इस किताब को न पढ़ा हो। जिन्होंने इसे नहीं पढ़ा, उन्होंने भी इसका नाम तो सुना ही होगा।
परिचय
धनंजय कीर का जन्म 23 अप्रैल, 1923 को महाराष्ट्र के रत्नीगिरी जिले में हुआ था। यह भी एक अद्भुत संयोग है कि बाबा साहब का परिवार भी मूल रूप से रत्नागिरी जिले के आंबडबे गांव का ही रहने वाला था। धनंजय कीर के पिता का नाम विट्ठल और माता का नाम देवकी था। धनंजय उनका साहित्यिक नाम था। 1935 में उन्होंने मेट्रिक परीक्षा पास की। 1938 और 1962 के बीच उन्होंने बंबई महानगर पालिका के शिक्षा विभाग में नौकरी की। 1940 में उनका विवाह सुधा से हुआ।
लेखन कार्य
धनंजय कीर ने पहली जीवनी सावरकर की लिखी जो कि 1950 में छपी। सावरकवादियों में इस जीवनी को अहम स्थान हासिल है। आगे चलकर उन्होंने बाबा साहब की प्रसिद्ध जीवनी लिखी। इस जीवनी को लिखने के दौरान धनंजय कीर ने बाबा साहब से भी मुलाकात की और उनका इंटरव्यू लिया। धनंजय कीर ने जब यह जीवनी पूरी कर ली तो उन्होंने इसे बाबा साहब को भेजा। इस जीवनी के हिंदी संस्करण का अनुवाद करने वाले गजानन सुर्वे लिखते हैं, ‘चरित ग्रंथ समाप्त होने पर उसकी प्रति आंबेडकर को पढ़ने के लिए देकर उनसे कुछ प्रशंसोद्गार सुने हैं।’
सुर्वे लिखते हैं, नौकरी करना धनंजय कीर का अंतिम ध्येय नहीं था, बल्कि महामानवों का चरित रेखांकित करना उनका सर्वोच्च ध्येय था। विशेष बात यह है कि अपनी ध्येय पूर्ति के लिए ही उन्होंने त्यागपत्र दिया और दिसंबर 1962 को सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद मुंबई के माहिम में दो छोटे कमरों में कीर परिवार आकर रहने लगा, जहां साधारण आर्थिक स्थिति के बावजूद धनंजय कीर लगातार अमर जीवनियों की रचना करते रहे। हिंदी के प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने इस जीवनी के हिंदी अऩुवाद के प्राक्कथन में लिखा था, अतिश्योक्ति न होगी यदि कहें कि आज भी इस जीवनी का स्थान लेने वाली कोई और कृति नहीं है।’
आत्मकथा
बाबा साहब के अलावा धनंजय कीर ने बाल गंगाधर तिलक, ज्योतिबा फुले, राजर्षि शाहू महाराज और महात्मा गांधी की जीवनियां भी लिखी। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी है जो कि मराठी में ‘कृतज्ञ मी कृतार्थ मी’ नाम से छपी है।
पुरस्कार व सम्मान
भारत सरकार ने धनंजय कीर को 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। सन 1980 में उन्हें शिवाजी विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
महान जीवनी लेखक धनंजय कीर का निधन 12 मई, 1984 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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