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| ==इतिहास सामान्य ज्ञान==
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| <quiz display=simple>
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| {'समग्र राष्ट्रभाव' के सिद्धान्त को किस राष्ट्रीय नेता ने विकसित किया?
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| +[[दादाभाई नौरोजी]]
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| -[[विपिन चन्द्र पाल]]
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| -[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]
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| -[[बी. आर. अम्बेडकर]]
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| ||[[चित्र:DadaBhai-Naoroji.jpg|right|150px|दादाभाई नौरोजी]]दादाभाई नौरोजी को '''भारतीय राजनीति का पितामह''' कहा जाता है। वह दिग्गज राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद और विचारक भी थे। ब्रिटिश शासन को वे भारतीयों के लिए दैवी वरदान मानते थे। [[1906]] ई. में उनकी अध्यक्षता में प्रथम बार [[कांग्रेस]] के [[कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता|कलकत्ता अधिवेशन]] में स्वराज्य की मांग की गयी। [[दादाभाई नौरोजी]] ने कहा था कि- "हम दया की भीख नहीं मांगते। हम केवल न्याय चाहते हैं। ब्रिटिश नागरिक के समान अधिकारों का जिक्र नहीं करते, हम स्वशासन चाहते है।" अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने भारतीय जनता के तीन मौलिक अधिकारों का वर्णन किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दादाभाई नौरोजी]]
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| {हम्बूराबी के नियम किस सभ्यता के थे?
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| |type="()"}
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| -[[रोम]] की सभ्यता
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| -ग्रीस की सभ्यता
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| +बेबीलोन की सभ्यता
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| -[[चीन]] की सभ्यता
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| {किस ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने '[[साम्प्रदायिक निर्णय]]' दिया था?
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| -स्टैनली बाल्डविन
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| -नैविल चेम्बरलेन
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| +रेम्जे मेकडोनाल्ड
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| -विन्सटन चर्चिल
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| ||'साम्प्रदायिक निर्णय' [[4 अगस्त]], [[1932]] ई. को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्जे मेकडोनाल्ड के द्वारा दिया गया था। साम्प्रदायिकता के आधार पर विशेष प्रतिनिधित्व देने की माँग न केवल [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] वरन् [[सिक्ख]], [[ईसाई]], [[जैन]], [[पारसी]] और जनजातियों की तरफ़ से भी उठाई गई। लगातार तीन '[[गोलमेज सम्मेलन]]' भी हुए, जिनका कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसी स्थिति में [[ब्रिटेन]] के प्रधानमंत्री रेम्जे मेकडोनाल्ड को 'फूट डालो और शासन करो' के सिद्धान्त को कार्यरूप में परिणत करने का उत्तम अवसर प्राप्त हो गया। उसने [[4 अगस्त]], [[1932]] ई. को '[[साम्प्रदायिक निर्णय]]' घोषित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[साम्प्रदायिक निर्णय]]
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| {[[औरंगज़ेब]] ने [[जज़िया]] पुन: किस वर्ष में लगाया?
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| -1675
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| +1679
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| -1681
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| -1682
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| ||'जज़िया कर' एक प्रकार का वैयक्तिक या सामुदायिक कर था, जिसे प्रारंभिक [[इस्लाम|इस्लामी]] शासकों ने अपनी ग़ैर [[मुस्लिम]] प्रजा से वसूल किया। कई बादशाहों ने यह कर समाप्त कर दिया था, जिनमें उल्लेखनीय नाम [[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] का है। जब [[जयसिंह|मिर्ज़ा राजा जयसिंह]] के बाद महाराज [[यशवंतसिंह]] का भी देहांत हो गया, तब [[औरंगज़ेब]] ने निरंकुश होकर सन 1679 में फिर से [[जज़िया कर]] को लगाया। इस अपमानपूर्ण कर का [[हिन्दू|हिन्दुओं]] द्वारा विरोध किया गया। [[मेवाड़]] के वृद्ध [[राणा राजसिंह]] ने इसके विरोध में औरंगज़ेब को उपालंभ देते हुए एक पत्र लिखा था, जिसका उल्लेख [[कर्नल टॉड|टॉड]] कृत "राजस्थान" नामक [[ग्रंथ]] में हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जज़िया]]
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| {[[विदिशा]] के राजा भागभद्र के पास हिन्द-[[यवन]] राजा ने एक दूत भेजा था, उसका नाम क्या था?
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| |type="()"}
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| -[[अगाथोक्लिस]]
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| +एंटियाल्किडस
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| -[[डेमेट्रियस]]
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| -[[मिनांडर]]
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| {निम्नलिखित में से किस प्रस्तर-कालीन स्थल से गर्त निवास का साक्ष्य प्राप्त हुआ है?
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| |type="()"}
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| -[[टेक्कलकोट]]
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| +[[बुर्ज़होम]]
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| -[[संगनकल्लू]]
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| -उटनूर
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| ||'बुर्ज़होम' एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है, जो [[कश्मीर की घाटी]] में [[श्रीनगर]] से लगभग 6 मील (लगभग 9.6 कि.मी.) उत्तर-पूर्व की ओर स्थित है। इस स्थान से नवपाषाण युग की सभ्यता का पता लगा है। इस सभ्यता के लोग गड्ढों (गर्त) में रहते थे और इन गड्ढों को छप्परों से ढँकते थे। ये [[भूरा रंग|भूरे रंग]] के मृद्भाण्डों का प्रयोग करते थे। इनके पत्थर के औजार चिकनी कुल्हाड़ियाँ, मूसल और हड्डी के सूए, सूइयाँ, मत्स्य-भाले और [[गदा शस्त्र|गदा]] होते थे। ये लोग कुत्ते, भेड़ आदि को दफ़नाते भी थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बुर्ज़होम]]
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| {'श्रीनारायण धर्म परिपालन योग आंदोलन' किसके द्वारा चलाया गया था?
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| |type="()"}
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| -[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]
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| +[[केरल]] के एजहावा
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| -किसान सभा
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| -[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी|कम्युनिस्ट पार्टी]]
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| {[[दास प्रथा]] की स्पष्ट अवनति किस [[शताब्दी]] के पश्चात हुई?
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| |type="()"}
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| -तेरहवीं शताब्दी
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| -चौदहवीं शताब्दी
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| -पन्द्रहवीं शताब्दी
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| +सोलहवीं शताब्दी
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| ||'दास प्रथा' [[भारत]] में प्राय: सभी युगों में विद्यमान रही है। यद्यपि चौथी शताब्दी ई.पू. में [[मेगस्थनीज]] ने लिखा था कि, "भारतवर्ष में दास प्रथा नहीं है", तथापि [[कौटिल्य]] के '[[अर्थशास्त्र ग्रन्थ|अर्थशास्त्र]]' तथा [[मौर्य]] सम्राट [[अशोक के अभिलेख|अशोक के अभिलेखों]] में [[प्राचीन भारत]] में [[दास प्रथा]] प्रचलित होने के संकेत उपलब्ध होते हैं। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भी लम्बे समय तक चलने के बाद वर्ष 1843 ई. में इस प्रथा को बन्द करने के लिए एक अधिनियम पारित कर दिया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बुर्ज़होम]]
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| {[[विजयनगर साम्राज्य]] का सबसे प्रसिद्ध राजकीय त्यौहार कौन-सा था?
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| |type="()"}
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| -[[बसंत पंचमी|बसंत]]
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| -[[महानवमी]]
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| +[[रामनवमी]]
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| -[[विनायक चतुर्थी]]
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| ||[[चित्र:Ramayana.jpg|right|80px|रामनवमी]]'रामनवमी' एक ऐसा पर्व है, जिस पर [[चैत्र मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] को प्रतिवर्ष नये [[विक्रम संवत|विक्रम सवंत्सर]] का प्रारंभ होता है। [[रामनवमी]] को [[राम]] के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। राम को भगवान [[विष्णु]] का [[अवतार]] माना जाता है। भगवान विष्णु ने राम के रूप में [[असुर|असुरों]] का संहार करने के लिए [[पृथ्वी]] पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए "मर्यादा पुरुषोत्तम" कहलाए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महानवमी]]
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| {[[लॉर्ड मैकाले|मैकाले]] की शिक्षा व्यवस्था किसके लिए थी?
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| |type="()"}
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| +केवल उच्च वर्गीय भारतीयों के लिए
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| -जन-शिक्षा
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| -महिला शिक्षा
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||लॉर्ड मैकाले का पूरा नाम 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले' था। वह एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी [[कवि]], निबन्धकार, [[इतिहासकार]] तथा राजनीतिज्ञ था। सन 1834 ई. से 1838 ई. तक वह [[भारत]] की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर तथा लॉ कमिशन का प्रधान रहा। 'भारतीय दंड विधान' से सम्बन्धित प्रसिद्ध ग्रंथ 'दी इंडियन पीनल कोड' की लगभग सभी पांडुलिपियाँ उसी ने तैयार की थीं। [[अंग्रेज़ी भाषा]] को [[भारत]] की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा [[विज्ञान]] को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाने में इसका बड़ा हाथ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लॉर्ड मैकाले|मैकाले]]
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| {निम्नांकित में से कौन-सी उदारवादियों की मांग नहीं थी?
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| |type="()"}
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| +[[भारत]] के लिए स्वाधीनता
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| -प्रशासन में अधिकाधिक भारतीयों की भागीदारी
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| -भारतीयों के लिए अधिक नौकरियाँ
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| -कुछ कमियों को दूर करना
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| {[[हैदराबाद|हैदराबाद नगर]] की स्थापना किसने की थी?
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| |type="()"}
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| -[[इब्राहीम क़ुतुबशाह]]
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| +[[मुहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह]]
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| -[[मुहम्मद क़ुतुबशाह]]
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| -[[जमशेद क़ुतुबशाह]]
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| ||[[चित्र:Muhammad-Quli-Qutb-Shah-Portrait.jpg|right|80px|मुहम्म्द क़ुली क़ुतुबशाह]]मुहम्म्द क़ुली क़ुतुबशाह (1580 ई. से 1612 ई.) [[भारतीय इतिहास]] में प्रसिद्ध [[गोलकुंडा]] के [[क़ुतुबशाही वंश]] का पाँचवाँ सुल्तान था। उसका जन्म 1565 ई. में और मृत्यु 1612 ई. में हुई थी। मुहम्म्द क़ुली क़ुतुबशाह एक अच्छा कवि और निर्माणकर्ता था। [[भारत]] के प्रसिद्ध नगरों में से एक [[हैदराबाद]] नगर की स्थापना उसने की थी। दक्कनी [[उर्दू]] में लिखित प्रथम काव्य-संग्रह या 'दीवान' का लेखक भी वही था। उसके इन्हीं दुर्लभ गुणों के कारण उसकी चर्चा आज भी होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मुहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह]]
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| {दक्षिण में 'जब्त व्यवस्था' [[शाहजहाँ]] के शासनकाल के अंतिम वर्षों में किसके द्वारा स्थापित की गयी थी?
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| |type="()"}
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| +[[मुर्शिद कुली ख़ाँ]]
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| -[[शाहजी भोंसले]]
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| -दानिशमन्द ख़ान
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| -दिलेर ख़ान
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| ||'मुर्शिद कुली ख़ाँ' [[बंगाल]] का प्रथम स्वतंत्र सूबेदार था। उसे वर्ष 1717 ई. में [[मुग़ल]] बादशाह [[औरंगज़ेब]] द्वारा इस पद पर नियुक्त किया गया था। बाद के समय में उसकी योग्यता से प्रभावित होकर बादशाह द्वारा उसे [[दीवान]] के भी सारे अधिकार प्रदान कर दिये गए थे। अपनी शासन व्यवस्था के अंतर्गत [[मुर्शिद कुली ख़ाँ]] ने नए भू-राजस्व के जरिए जागीर भूमि के बड़े भाग को 'खालसा भूमि' बना दिया और 'इजारा व्यवस्था' आरंभ की। मुर्शिद कुली ख़ाँ को 'दक्षिण का टोडरमल' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मुर्शिद कुली ख़ाँ]]
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| {[[महात्मा गाँधी]] ने 'हिन्द स्वराज' की रचना की थी, जब वह-
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| |type="()"}
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| -[[इंग्लैण्ड]] से [[भारत]] जहाज़ से सफर कर रहे थे।
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| -जब वह [[साबरमती आश्रम]] में थे।
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| +जहाज़ के जरिये इंग्लैण्ड से [[दक्षिण अफ़्रीका]] जा रहे थे।
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| -जब वह [[चम्पारण सत्याग्रह|चम्पारण आंदोलन]] का नेतृत्व कर रहे थे।
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| {'[[स्यादवाद]]' का सिद्धान्त निम्न में से किससे सम्बन्धित है?
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| |type="()"}
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| -[[बौद्ध धर्म]] से
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| +[[जैन धर्म]] से
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| -[[सांख्य दर्शन]] से
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| -[[वेदान्त|वेदान्त दर्शन]] से
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| ||[[चित्र:Jainism-Symbol.jpg|right|80px|जैन धर्म का प्रतीक चिह्न]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। प्राचीन समय से ही जैन धर्म का प्रचार-प्रसार भारत में होने लगा था। इस धर्म के सातवें [[तीर्थंकर]] [[सुपार्श्वनाथ]] का विहार [[मथुरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। अनेक विहार-स्थल पर कुबेरा देवी द्वारा जो [[स्तूप]] बनाया गया था, वह जैन धर्म के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है। चौदहवें तीर्थंकर [[अनंतनाथ]] का स्मारक तीर्थ भी मथुरा में [[यमुना नदी]] के तट पर था। बाईसवें तीर्थंकर [[नेमिनाथ]] को जैन धर्म में [[कृष्ण]] के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]]
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| </quiz>
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