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| <quiz display=simple>
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| {[[रामायण]] कालीन [[सरयू नदी]] को वर्तमान में क्या कहते हैं?(पृ.सं.-12
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| -[[यमुना नदी|यमुना]]
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| +[[घाघरा नदी|घाघरा]]
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| -[[गोमती नदी|गोमती]]
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| -[[गंगा नदी|गंगा]]
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| ||[[चित्र:Karnali-River-2.jpg|right|90px|घाघरा नदी]][[श्रीराम]] की जन्म-भूमि [[अयोध्या]] [[उत्तर प्रदेश]] में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है। नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। '[[रामायण]]' के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में [[जल]] समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम [[उत्तर प्रदेश]] के [[बहराइच ज़िला|बहराइच ज़िले]] से हुआ है। [[बहराइच]] से निकलकर यह नदी [[गोंडा ज़िला|गोंडा]] से होती हुई [[अयोध्या]] तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में 'पसका' नामक [[तीर्थ स्थान]] पर [[घाघरा नदी]] से मिलती थी। अयोध्या तक ये नदी 'सरयू' के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी 'घाघरा' के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरयू नदी]], [[घाघरा नदी]]
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| {[[समुद्र]] में रहने वाली उस [[नाग]] माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए [[हनुमान]] को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?(पृ.सं.-12
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| |type="()"}
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| -त्रिजटा
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| -[[मंथरा]]
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| -बलंधरा
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| +सुरसा
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| {[[राजा दशरथ]] ने पुत्रोत्पत्ति हेतु जो [[यज्ञ]] किया था, उसका नाम क्या था?(पृ.सं.-13
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| |type="()"}
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| -[[राजसूय यज्ञ|राजसूय]]
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| +पुत्रेष्टि
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| -[[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||[[पुराण|पुराणों]] और [[रामायण]] में वर्णित [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु वंशी]] [[राजा दशरथ]] महाराज [[अज राजा|अज]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम इन्दुमती था। इन्होंने [[देवता|देवताओं]] की ओर से कई बार [[असुर|असुरों]] को पराजित किया था। [[वैवस्वत मनु]] के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये, जिनमें से [[राजा दशरथ]] भी एक थे। राजा दशरथ [[वेद|वेदों]] के मर्मज्ञ, धर्मप्राण, दयालु, रणकुशल, और प्रजापालक थे। उनके राज्य में प्रजा कष्टरहित, सत्यनिष्ठ एवं ईश्वर भक्त थी। उनके राज्य में किसी के भी मन में दूसरे के प्रति द्वेषभाव नहीं था। राजा दशरथ [[राम]], [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]], [[लक्ष्मण]] और [[शत्रुघ्न]] के [[पिता]] थे। इनकी 'शांता' नाम की एक पुत्री भी थी, जिसे इनके मित्र राजा रोमपाद ने गोद लिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरयू नदी]], [[राजा दशरथ]]
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| {[[जनक|राजा जनक]] के [[पुरोहित]] का नाम क्या था?(पृ.सं.-13
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| |type="()"}
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| -सीरध्वज
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| -[[वशिष्ठ]]
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| +शतानंद
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| -[[याज्ञवल्क्य]]
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| {[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] की तपस्या जिस [[अप्सरा]] ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?(पृ.सं.-13
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| |type="()"}
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| -[[उर्वशी]]
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| -[[रम्भा]]
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| -घृताची
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| +[[मेनका]]
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| {[[जनक|राजा जनक]] के छोटे भाई का क्या नाम था?(पृ.सं.-13
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| |type="()"}
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| -कुशनाभ
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| -[[कुश]]
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| +कुशध्वज
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| -सीरध्वज
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| {[[शत्रुघ्न]] के [[पुरोहित]] का क्या नाम था?(पृ.सं.-13
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| |type="()"}
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| -शतानीक
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| -उपमन्यु
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| -[[आरुणि]]
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| +कांचन
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| {किस [[देवता]] का एक नाम 'सर्पमाली' है?(पृ.सं.-16
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| |type="()"}
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| -[[विष्णु]]
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| -[[इन्द्र]]
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| -[[वरुण देवता|वरुण]]
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| +[[शिव]]
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| ||[[चित्र:Nageshwar-Mahadev-Gujarat-1.jpg|right|100px|नंगेश्वर महादेव, द्वारका]]'[[शिव]]' [[हिन्दू धर्म]] [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। भगवान [[शिव]] का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं। [[पार्वती|माता पार्वती]] की सखियों में [[विजया]] आदि प्रसिद्ध हैं। यद्यपि शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि [[काशी]] और [[कैलास पर्वत|कैलास]], ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं। भगवान शिव [[देवता|देवताओं]] के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक [[असुर|असुरों]]- [[अंधक (दैत्य)|अन्धक]], [[दुन्दुभी दैत्य|दुन्दुभी]], महिष, त्रिपुर, [[रावण]], निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया। [[कुबेर]] आदि लोकपालों को उनकी कृपा से [[यक्ष|यक्षों]] का स्वामित्व प्राप्त हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिव]]
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| {किस [[ऋषि]] को 'समुद्रचुलुक' कहा जाता है?(पृ.सं.-16
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| |type="()"}
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| -[[भारद्वाज]]
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| +[[अगस्त्य]]
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| -[[याज्ञवल्क्य]]
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| -[[वाल्मीकि]]
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| ||ब्रह्मतेज के मूर्तिमान स्वरूप महामुनि [[अगस्त्य]] का पावन चरित्र अत्यन्त उदात्त तथा दिव्य है। [[वेद|वेदों]] में इनका वर्णन कई स्थानों पर आया है। [[ऋग्वेद]] का कथन है कि 'मित्र' तथा '[[वरुण देवता|वरुण]]' नामक [[देवता|देवताओं]] का अमोघ तेज एक दिव्य यज्ञिय कलश में पुंजीभूत हुआ और उसी कलश के मध्य भाग से दिव्य तेज:सम्पन्न [[अगस्त्य|महर्षि अगस्त्य]] का प्रादुर्भाव हुआ। महर्षि अगस्त्य महातेजा तथा महातपा [[ऋषि]] थे। समुद्रस्थ राक्षसों के अत्याचार से घबराकर देवता लोग इनकी शरण में गये और अपना दु:ख कह सुनाया। फल यह हुआ कि अगस्त्य सारा [[समुद्र]] पी गये, जिससे सभी राक्षसों का विनाश हो गया। सारा समुद्र पी जाने से ही इन्हें 'समुद्रचुलुक' भी कहा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अगस्त्य]]
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| {पूर्वजन्म में [[रावण]] का नाम क्या था?(पृ.सं.-16
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| |type="()"}
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| +बलंधर
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| -भस्मासुर
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| -प्रतापभानु
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| -[[अघासुर]]
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| {[[निमि|राजा निमि]] की राजधानी का नाम क्या था?(पृ.सं.-16
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| |type="()"}
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| +[[वैजयंत]]
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| -[[कुशस्थली, द्वारका|कुशस्थली]]
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| -[[अहिच्छत्र]]
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| -[[चित्रकूट]]
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| ||राजा निमि महाराज [[इक्ष्वाकु]] के पुत्र थे और [[महर्षि गौतम]] के [[आश्रम]] के समीप [[वैजयन्त]] नामक नगर बसाकर वहाँ का राज्य करते थे। एक बार [[निमि]] ने एक सहस्त्र वर्षीय [[यज्ञ]] करने के लिये [[वसिष्ठ]] को वरण किया। लेकिन उस समय वसिष्ठ जी [[इन्द्र]] का यज्ञ कर रहे थे। राजा निमि क्षण भंगुर शरीर विचार करके [[गौतम ऋषि|गौतम]] आदि अन्य होताओं को पुनः वरण करके यज्ञ करने लगे, जब वसिष्ठ को पता चला कि निमि दूसरों से यज्ञ करा रहे हैं तो इन्होंने शाप दे दिया कि ये शरीर से रहित हो जायें। लोभ-वश वसिष्ठ ने शाप दिया है, ऐसा जानकर [[निमि]] ने भी वसिष्ठ को देह से रहित होने का श्राप दे दिया। परिणामस्वरूप दोनों ही जलकर भस्म हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निमि|राजा निमि]], [[वैजयंत]]
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| {किस [[देवता]] का एक नाम 'स्थाणु' है?(पृ.सं.-16
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| |type="()"}
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| -[[विष्णु]]
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| -[[गणेश]]
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| -[[इन्द्र]]
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| +[[शिव]]
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| ||[[चित्र:Statue-Shiva-Bangalore.jpg|right|100px|शिव की मूर्ति, बैंगलूर]]भगवान [[शिव]] [[हिन्दू धर्म]] के प्रमुख [[देवता|देवताओं]] में से हैं। [[वेद]] में इनका नाम [[रुद्र]] है। शिव व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं। इनकी अर्ध्दांगिनी (शक्ति) का नाम [[पार्वती]] और इनके पुत्र '[[स्कन्द]]' और '[[गणेश]]' हैं। शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी [[पूजा]] '[[शिवलिंग|लिंग]]' के रूप में होती है। भगवान शिव सौम्य एवं रौद्र रूप दोनों के लिए जाने जाते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के वे अधिपति हैं। त्रिदेवों में भगवान [[शिव]] संहार के [[देवता]] माने जाते हैं। शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन उनका लय और प्रलय दोनों पर समान अधिकार है। इनके अन्य [[भक्त|भक्तों]] में '[[त्रिहारिणी]]' भी थे और शिव त्रिहारिणी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिव]]
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| {[[रामायण]] के सबसे छोटे कांड का क्या नाम है?(पृ.सं.-18
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| |type="()"}
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| -[[बाल काण्ड वा. रा.|बालकांड]]
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| +[[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्यकांड]]
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| -[[सुन्दर काण्ड वा. रा.|सुन्दरकांड]]
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| -[[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तरकांड]]
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| {[[लंका]] का राजा [[रावण]] किस [[वाद्य यंत्र|वाद्य]] को बजाने में निपुण था?
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| |type="()"}
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| -[[सितार]]
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| -[[सारंगी]]
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| +[[वीणा]]
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| -[[बाँसुरी]]
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| ||[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|right|120px|रामलीला में रावण]]'रावण' [[रामायण]] का एक विशेष पात्र है। वह स्वर्ण नगरी [[लंका]] का राजा था। [[रावण]] अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिस कारण उसका एक अन्य नाम 'दशानन' अर्थात 'दस मुख वाला' भी था। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः [[रावण]] को बुरा कहा गया है। रावण को चारों [[वेद|वेदों]] का ज्ञाता कहा गया है। [[संगीत]] के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती थी। [[वीणा]] बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक [[वाद्य यंत्र|वाद्य]] भी बनाया था, जो आज के 'बेला' या '[[वायलिन]]' का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है। इस वाद्य को 'रावणहत्था' कहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रावण]]
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| {निम्न में से कौन '[[कवितावली]]' के रचनाकार हैं?
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| |type="()"}
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| +[[तुलसीदास]]
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| -[[चैतन्य महाप्रभु]]
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| -[[सूरदास]]
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| -[[कबीरदास]]
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| ||[[चित्र:Tulsidas.jpg|right|100px|तुलसीदास]][[हिन्दी साहित्य]] के आकाश के परम [[नक्षत्र]] [[गोस्वामी तुलसीदास]] [[भक्तिकाल]] की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि [[कवि]] थे। वे एक [[कवि]], [[भक्त]] तथा समाज सुधारक इन तीनो रूपों में मान्य है। युवावस्था में जब इनका परिचय [[राम]] भक्त साधुओं से हुआ, तब इन्हें ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिला। तुलसीदास साधुओं के साथ भ्रमण करते रहे और इस प्रकार समाज की तत्कालीन स्थिति से इनका सीधा संपर्क हुआ। इसी दीर्घकालीन अनुभव और अध्ययन का परिणाम तुलसी की अमूल्य कृतियाँ हैं, जो उस समय के भारतीय समाज के लिए तो उन्नायक सिद्ध हुई ही, आज भी जीवन को मर्यादित करने के लिए उतनी ही उपयोगी हैं। [[तुलसीदास]] द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 39 बताई जाती है। इनमें '[[रामचरितमानस]]', '[[कवितावली]]', '[[विनयपत्रिका]]', '[[दोहावली -तुलसीदास|दोहावली]]', '[[गीतावली -तुलसीदास|गीतावली]]', '[[जानकीमंगल]]', '[[हनुमान चालीसा]]', '[[बरवै रामायण]]' आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तुलसीदास]]
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| </quiz>
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