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{[[चोल वंश|चोल]] काल में 'उर', 'सभा' और 'महासभा' में किसका स्वरूप 'लघुगणतंत्रात्मक' था?
{712 ई. में [[मुहम्मद बिन कासिम]] द्वारा [[सिंध]] पर किये गये आक्रमण के समय उसे किस स्थानीय सम्प्रदाय का सहयोग मिला?
|type="()"}
-सभा
+उर
-महासभा
-नगरम
 
{किस मंदिर को [[द्रविड़]]-[[चोल]] कला शैली का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है?
|type="()"}
+बृहदेश्वर मंदिर
-चोलेश्वर मंदिर
-कोरंगनाथ मंदिर
-उपर्युक्त सभी
 
{[[चोल]] शासक किस [[धर्म]] के अनुयायी थे?
|type="()"}
-[[वैष्णव धर्म|वैष्णव]]
+[[शैव धर्म|शैव]]
-[[जैन धर्म|जैन]]
-[[बौद्ध धर्म|बौद्ध]]
||[[भारत]] के धार्मिक सम्प्रदायों में शैवमत प्रमुख हैं। [[वैष्णव]], [[शाक्त]] आदि सम्प्रदायों के अनुयायियों से इसके मानने वालों की सख्या अधिक है। [[शिव]] त्रिमूर्ति में से तीसरे हैं, जिनका विशिष्ट कार्य संहार करना है। शैव, वह धार्मिक सम्प्रदाय हैं, जो शिव को ही ईश्वर मानकर आराधना करता है। शिव का शाब्दिक अर्थ है- 'शुभ', 'कल्याण', 'मंगल', 'श्रेयस्कर' आदि। यद्यपि शिव का कार्य संहार करना है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शैव धर्म|शैव]]
 
{712 में [[सिंध]] पर अरबों के आक्रमण के समय वहाँ का शासक कौन था?
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-दाहिरयाह
+[[दाहिर]]
-चच
-राय साहसी
 
{712 में [[मुहम्मद बिन कासिम]] द्वारा [[सिंध]] पर किये आक्रमण के समय उसे किस स्थानीय सम्प्रदाय का सहयोग मिला?
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-[[जैन|जैनियों]] का  
-[[जैन|जैनियों]] का  
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-[[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] का  
-[[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] का  
-[[इस्लाम]] के अनुयायियों का  
-[[इस्लाम]] के अनुयायियों का  
||[[चित्र:Buddhism-Symbol.jpg|बौद्ध धर्म का प्रतीक|100px|right]][[बौद्ध धर्म]] [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] है। इसके संस्थापक [[महात्मा बुद्ध]], शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। बुद्ध राजा [[शुद्धोदन]] के पुत्र थे और इनका जन्म [[लुंबिनी]] नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बौद्ध]]
||'मुहम्मद बिन क़ासिम' एक नवयुवक [[अरब]] सेनापति था। उसे ईराक के प्रान्तपति [[अलहज्जाज]] ने, जो [[मुहम्मद बिन क़ासिम]] का चाचा और श्वसुर भी था, [[सिन्ध प्रांत|सिन्ध]] के शासक [[दाहिर]] को दण्ड देने के लिए भेजा था। नेऊन पाकिस्तान में वर्तमान हैदराबाद के दक्षिण में स्थित चराक के समीप स्थित था। देवल के बाद मुहम्मद क़ासिम नेऊन की विजय के लिए आगे बढ़ा। दाहिर ने नेऊन की रक्षा का दायित्व एक [[पुरोहित]] को सौंप कर अपने बेटे जयसिंह को ब्राह्मणाबाद बुला लिया। नेऊन में बौद्धों की संख्या अधिक थी। उन्होंने मुहम्मद बिन क़ासिम का स्वागत किया। इस प्रकार बिना युद्ध किए ही मीर क़ासिम का नेऊन दुर्ग पर अधिकार हो गया। - अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बौद्ध]]
 
{सर्वप्रथम [[भारत]] में '[[जज़िया कर]]' लगाने का श्रेय [[मुहम्मद बिन कासिम]] को दिया जाता है। उसने किस वर्ग को इस कर से पूर्णतः मुक्त रखा था?
|type="()"}
-[[मुसलमान|मुसलमानों]] को  
-[[बौद्ध|बौद्धों]] को
+[[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को
-निम्न जाति के लोगों को
||पश्चिम में [[अफ़ग़ानिस्तान]] का गोर देश, [[पंजाब]] जिसमें [[कुरुक्षेत्र]] सम्मिलित है, गोंडा-बस्ती जनपद, [[प्रयाग]] के दक्षिण व आसपास का प्रदेश, [[पश्चिम बंगाल]], ये पाँचों प्रदेश किसी न किसी समय पर गौड़ कहे जाते रहे हैं। इन्हीं पाँचों प्रदेशों के नाम पर सम्भवत: सामूहिक नाम 'पंच गौड़' पड़ा। आदि गौड़ों का उद्गम कुरुक्षेत्र है। इस प्रदेश के [[ब्राह्मण]] विशेषत: गौड़ कहलाये। [[कश्मीर]] और पंजाब के ब्राह्मण सारस्वत, [[कन्नौज]] के आस-पास के ब्राह्मण कान्यकुब्ज, [[मिथिला]] के ब्राह्मण मैथिल तथा उत्कल के ब्राह्मण उत्कल कहलाये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ब्राह्मण]]


{[[गुर्जर प्रतिहार वंश]] की तीन शाखाओं- 'भृगुकच्छ नन्दीपुर शाखा', 'माहय्यपुर मेदंतक शाखा' तथा 'उज्जैयिनी शाखा' में उज्जैयिनी शाखा के गुर्जर-प्रतिहारों के वंश का संस्थापक कौन था?
{[[गुर्जर प्रतिहार वंश]] की तीन शाखाओं- 'भृगुकच्छ नन्दीपुर शाखा', 'माहय्यपुर मेदंतक शाखा' तथा 'उज्जैयिनी शाखा' में उज्जैयिनी शाखा के गुर्जर-प्रतिहारों के वंश का संस्थापक कौन था?
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-[[मिहिरभोज]]
-[[मिहिरभोज]]
-[[नागभट्ट द्वितीय]]  
-[[नागभट्ट द्वितीय]]  
||[[गुर्जर प्रतिहार वंश]] का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष 'हरिशचन्द्र' था। हरिशचन्द्र की दो पत्नियाँ थीं- एक [[ब्राह्मण]] थी और दूसरी क्षत्रिय। उसके विषय में [[ग्वालियर]] अभिलेख से जानकारी मिलती है, जिसके अनुसर उसने [[अरब|अरबों]] को [[सिंध]] से आगे नहीं बढ़ने दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नागभट्ट प्रथम|नागभट्ट]]
||'नागभट्ट प्रथम' [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष था। इसे 'हरिशचन्द्र' के नाम से भी जाना जाता था। उसकी दो पत्नियाँ थीं- एक [[ब्राह्मण]] थी और दूसरी [[क्षत्रिय]]। उसके विषय में [[ग्वालियर]] [[अभिलेख]] से जानकारी मिलती है, जिसके अनुसार उसने [[अरब|अरबों]] को [[सिंध]] से आगे नहीं बढ़ने दिया। - अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[नागभट्ट प्रथम|नागभट्ट]]
 
{सर्वप्रथम [[भारत]] में '[[जज़िया कर]]' लगाने का श्रेय [[मुहम्मद बिन कासिम]] को दिया जाता है। उसने किस वर्ग को इस कर से पूर्णतः मुक्त रखा था?
|type="()"}
-[[मुस्लिम]]
-[[बौद्ध]]
+[[ब्राह्मण]]
-निम्न जाति के लोग
 
{712 ई. में [[सिंध]] पर अरबों के आक्रमण के समय वहाँ का शासक कौन था?
|type="()"}
-दाहिरयाह
+[[दाहिर]]
-चच
-राय साहसी


{किस विदेशी यात्री ने [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] को 'अल-गजुर' एवं इस वंश के शासकों को 'बौरा' कहकर पुकारा?  
{किस विदेशी यात्री ने [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] को 'अल-गजुर' एवं इस वंश के शासकों को 'बौरा' कहकर पुकारा?  
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+[[अलमसूदी]]  
+[[अलमसूदी]]  
-[[अलबरूनी]]  
-[[अलबरूनी]]  
-उपर्युक्त में से कोई नहीं  
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
 
||[[चित्र:Al-Masudi.jpg|right|80px|border|अलमसूदी]]'अलमसूदी' [[अरब]] का एक विद्वान् और प्रमुख भूगोलवेत्ता था। 915-916 ई. में वह [[भारत]] की यात्रा करने वाला [[बग़दाद]] का [[विदेशी यात्री]] था। [[अलमसूदी]] का जन्म नवीं शताब्दी के अंतिम चरण में बग़दाद में हुआ था। सम्भवत: [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] के शासक [[महिपाल]] (910-940 ई.) के शासन काल के दौरान ही अलमसूदी [[गुजरात]] आया था। उसने गुर्जर प्रतिहारों को 'अलगुर्जर' एवं राजा को 'बौरा' कहा था। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अलमसूदी]]
{[[पाल वंश]] के किस शासक ने [[विक्रमशिला विश्वविद्यालय]] की स्थापना की थी?
|type="()"}
+धर्मपाल
-[[देवपाल]]
-महिपाल
-नारायणपाल
 
{दक्षिण से उत्तर [[भारत]] की राजनीति में हस्तक्षेप करने वाली दक्षिण की पहली शक्ति कौन थे?
|type="()"}
-[[चोल]]
-[[चालुक्य वंश|चालुक्य]]
+[[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]]
-[[पांड्य राजवंश|पांड्य]]
||राष्ट्रकूट शासकों के संरक्षण में [[ब्राह्मण]] एवं [[जैन धर्म]] का अधिक विकास हुआ। ब्राह्मण धर्म सर्वाधिक प्रचलित था। प्रारम्भिक [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] शासक ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे तथा [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की आराधना करते थे। राष्ट्रकूट शासक अपनी शासकीय मुद्राओं पर [[गरुड़]], शिव अथवा विष्णु के आयुधों का प्रयोग करते थे। ब्राह्मण धर्म की तुलना में [[जैन धर्म]] का अधिक प्रचार-प्रसार हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]]
 
 
{'गीत गोविन्द' ग्रंथ के लेखक 'जयदेव' किस शासक के दरबारी कवि थे?
|type="()"}
+[[लक्ष्मण सेन]]
-[[बल्लाल सेन]]
-सामंत सेन
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
||[[बल्लाल सेन]] का उत्तराधिकारी [[लक्ष्मण सेन]] 1178 ई. में राजगद्दी पर बैठा। उसका शासन सम्पूर्ण [[बंगाल]] पर विस्तृत था। कुछ समय तक उसकी राज्य सीमा दक्षिण-पूर्व में [[उड़ीसा]] और पश्चिम में [[वाराणसी]], [[इलाहाबाद]] तक थी। जीवन के अन्तिम समय में बल्लाल सेन ने संन्यास ले लिया था। उसे [[बंगाल]] के [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] और कायस्थों में 'कुलीन प्रथा' का प्रवर्तक माना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लक्ष्मण सेन]]
 
{[[सोमनाथ]] के मंदिर पर 1025 में [[महमूद ग़ज़नवी]] के आक्रमण के समय [[गुजरात]] का शासक कौन था?
|type="()"}
-भीम द्वितीय
-मूलराज द्वितीय
+भीमसेन प्रथम
-मूलराज प्रथम
 
{किस [[पुराण]] में [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को गम्भीर अपराध के लिए मृत्युदण्ड से वर्जित कर देश से निकालने तथा विशिष्ट चिन्हों से दागने की व्यवस्था थी?
|type="()"}
+[[मत्स्य पुराण]]
-[[स्कंद पुराण]]
-[[वराह पुराण]]
-उपर्युक्त सभी
||[[चित्र:Cover-Matsya-Purana.jpg|100px|right]]भगवान मत्स्य [[मनु]] को बताते हैं कि प्रलय काल में मेरे सींग में अपनी नौका को बांधकर सुरक्षित ले जाना और सृष्टि की रचना करना। वे भगवान के '[[मत्स्य अवतार]]' को पहचान कर उनकी स्तुति करते हैं। मनु प्रलय काल में मत्स्य भगवान द्वारा अपनी सुरक्षा करते हैं। फिर [[ब्रह्मा]] द्वारा मानसी सृष्टि होती है। किन्तु अपनी उस सृष्टि का कोई परिणाम न देखकर [[दक्ष]] प्रजापति मैथुनी-सृष्टि से सृष्टि का विकास करते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मत्स्य पुराण]]
 
{[[ग़ज़नी]] का वह प्रथम शासक कौन था, जो ख़लीफ़ाओं से 'सुल्तान' की उपाधि ग्रहण कर सुल्तान कहलाने वाला प्रथम शासक बना?
|type="()"}
-सुबुक्तगीन
+[[महमूद ग़ज़नवी]]
-[[मुहम्मद ग़ोरी]]
-अलप्तगीन
||महमूद ग़ज़नवी 'यमीनी वंश' के तुर्क सरदार [[ग़ज़नी]] के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। उसका जन्म सं. 1028 वि. (ई. 971) में हुआ,  27 वर्ष की आयु में सं. 1055 (ई. 998) में वह शासनाध्यक्ष बना था। महमूद बचपन से [[भारत]] की अपार समृद्धि और धन-दौलत के विषय में सुनता रहा था। उसके पिता ने एक बार [[हिन्दू]] शाही राजा जयपाल के राज्य को लूट कर प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त की थी। महमूद भारत की दौलत को लूटकर मालामाल होने के स्वप्न देखा करता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महमूद ग़ज़नवी ]]
 
{[[महमूद ग़ज़नवी]] के [[भारत]] पर आक्रण का उद्देश्य क्या था?
|type="()"}
-[[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] का प्रचार।
-[[ग़ज़नी]] साम्राज्य का विस्तार।
-मूर्तियों को तोड़ना एवं मंदिरों को लूटना।
+मध्य [[एशिया]] में एक बड़े साम्राज्य की स्थापना के लिए धन प्राप्त करना।
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{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
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{{प्रचार}}
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सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
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इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश

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1 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध पर किये गये आक्रमण के समय उसे किस स्थानीय सम्प्रदाय का सहयोग मिला?

जैनियों का
बौद्धों का
ब्राह्मणों का
इस्लाम के अनुयायियों का

2 गुर्जर प्रतिहार वंश की तीन शाखाओं- 'भृगुकच्छ नन्दीपुर शाखा', 'माहय्यपुर मेदंतक शाखा' तथा 'उज्जैयिनी शाखा' में उज्जैयिनी शाखा के गुर्जर-प्रतिहारों के वंश का संस्थापक कौन था?

हरिश्चन्द्र
नागभट्ट
मिहिरभोज
नागभट्ट द्वितीय

3 सर्वप्रथम भारत में 'जज़िया कर' लगाने का श्रेय मुहम्मद बिन कासिम को दिया जाता है। उसने किस वर्ग को इस कर से पूर्णतः मुक्त रखा था?

मुस्लिम
बौद्ध
ब्राह्मण
निम्न जाति के लोग

4 712 ई. में सिंध पर अरबों के आक्रमण के समय वहाँ का शासक कौन था?

दाहिरयाह
दाहिर
चच
राय साहसी

5 किस विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार वंश को 'अल-गजुर' एवं इस वंश के शासकों को 'बौरा' कहकर पुकारा?

सुलेमान
अलमसूदी
अलबरूनी
उपर्युक्त में से कोई नहीं

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