"इतिहास सामान्य ज्ञान 58": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:The-World-Peace-Pagoda-Lumbini.jpg|right|90px|विश्व शांति स्तूप, लुम्बनी]] [[शाक्य गणराज्य]] की राजधानी [[कपिलवस्तु]] के निकट [[उत्तर प्रदेश]] के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और [[नेपाल]]-[[भारत]] सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर '[[रुमिनोदेई]]' नामक ग्राम ही '[[लुम्बनी|लुम्बनीग्राम]]' है, जो [[गौतम बुद्ध]] के जन्म स्थान के रूप में जगत् प्रसिद्ध है। नौतनवाँ स्टेशन से यह स्थान दस मील दूर है। बुद्ध की माता मायादेवी कपिलवस्तु से [[कोलिय गणराज्य]] की राजधानी [[देवदह]] जाते समय लुम्बनीग्राम में एक [[साल वृक्ष]] के नीचे ठहरी थीं। उसी समय [[बुद्ध]] का जन्म हुआ था। रुम्मिनदेई से प्राप्त [[अभिलेख]] से ज्ञात होता है कि [[सम्राट अशोक]] अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद यहाँ आया था। उसने यहाँ [[पूजा]] की, क्योंकि यह शाक्यमुनि की पावन जन्म स्थली है। | ||[[चित्र:The-World-Peace-Pagoda-Lumbini.jpg|right|90px|विश्व शांति स्तूप, लुम्बनी]] [[शाक्य गणराज्य]] की राजधानी [[कपिलवस्तु]] के निकट [[उत्तर प्रदेश]] के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और [[नेपाल]]-[[भारत]] सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर '[[रुमिनोदेई]]' नामक ग्राम ही '[[लुम्बनी|लुम्बनीग्राम]]' है, जो [[गौतम बुद्ध]] के जन्म स्थान के रूप में जगत् प्रसिद्ध है। नौतनवाँ स्टेशन से यह स्थान दस मील दूर है। बुद्ध की माता मायादेवी कपिलवस्तु से [[कोलिय गणराज्य]] की राजधानी [[देवदह]] जाते समय लुम्बनीग्राम में एक [[साल वृक्ष]] के नीचे ठहरी थीं। उसी समय [[बुद्ध]] का जन्म हुआ था। रुम्मिनदेई से प्राप्त [[अभिलेख]] से ज्ञात होता है कि [[सम्राट अशोक]] अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद यहाँ आया था। उसने यहाँ [[पूजा]] की, क्योंकि यह शाक्यमुनि की पावन जन्म स्थली है। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[लुम्बनी]], [[देवदह]], [[रुम्मिनदेई]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन [[सम्राट अशोक]] के [[पिता]] थे? | {निम्नलिखित में से कौन [[सम्राट अशोक]] के [[पिता]] थे? | ||
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||[[चित्र:Bindusara-Coin.png|right|100px|बिन्दुसार कालीन सिक्का]]'बिन्दुसार' [[मौर्य]] सम्राट [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] का पुत्र था, जो 297-98 ईसा पूर्व में शासक बना और उसने 272 ईसा पूर्व तक राजकाज किया। [[बिन्दुसार]] को 'अमित्रघात' भी कहा जाता है। [[यूनानी]] इतिहासकार उसे 'अमित्रोचेट्स' के नाम से पुकारते हैं। बिन्दुसार ने अपने [[पिता]] द्वारा जीते गए क्षेत्रों को पूर्ण रूप से अक्षुण्ण रखा था। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र [[अशोक]] [[मौर्य साम्राज्य]] का स्वामी बना था। बिन्दुसार को यूनानियों ने 'अमित्रोचेट्स' कहा, जो संभवत: [[संस्कृत]] शब्द 'अमित्रघट' से लिया गया है, जिसका अर्थ है- 'शत्रुनाशक'। यह उपाधि सम्भवत: दक्षिण में उनके सफल सैनिक अभियानों के लिये दी गई होगी, क्योंकि [[उत्तर भारत]] पर तो उनके पिता [[चंद्रगुप्त मौर्य]] ने पहले ही विजय प्राप्त कर ली थी। | ||[[चित्र:Bindusara-Coin.png|right|100px|बिन्दुसार कालीन सिक्का]]'बिन्दुसार' [[मौर्य]] सम्राट [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] का पुत्र था, जो 297-98 ईसा पूर्व में शासक बना और उसने 272 ईसा पूर्व तक राजकाज किया। [[बिन्दुसार]] को 'अमित्रघात' भी कहा जाता है। [[यूनानी]] इतिहासकार उसे 'अमित्रोचेट्स' के नाम से पुकारते हैं। बिन्दुसार ने अपने [[पिता]] द्वारा जीते गए क्षेत्रों को पूर्ण रूप से अक्षुण्ण रखा था। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र [[अशोक]] [[मौर्य साम्राज्य]] का स्वामी बना था। बिन्दुसार को यूनानियों ने 'अमित्रोचेट्स' कहा, जो संभवत: [[संस्कृत]] शब्द 'अमित्रघट' से लिया गया है, जिसका अर्थ है- 'शत्रुनाशक'। यह उपाधि सम्भवत: दक्षिण में उनके सफल सैनिक अभियानों के लिये दी गई होगी, क्योंकि [[उत्तर भारत]] पर तो उनके पिता [[चंद्रगुप्त मौर्य]] ने पहले ही विजय प्राप्त कर ली थी। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[बिन्दुसार]], [[अशोक]], [[चंद्रगुप्त मौर्य]] | ||
{"आपका कोई भी काम महत्त्वहीन हो सकता है, पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।" यह कथन किस महापुरुष का है? | {"आपका कोई भी काम महत्त्वहीन हो सकता है, पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।" यह कथन किस महापुरुष का है? | ||
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-[[सरदार पटेल]] | -[[सरदार पटेल]] | ||
-[[भगत सिंह]] | -[[भगत सिंह]] | ||
||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]]महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]]' का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। '[[साबरमती आश्रम]]' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से [[महात्मा गाँधी]] आजीवन जुड़े रहे, इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली थी। [[जुलाई]], [[1891]] में जब गाँधीजी [[भारत]] लौटे, तो उनकी अनुपस्थिति में उनकी [[माता]] का देहान्त हो चुका था और उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि बैरिस्टर की डिग्री से अच्छे पेशेवर जीवन की गारंटी नहीं मिल सकती। वकालत के पेशे में पहले ही काफ़ी भीड़ हो चुकी थी और गाँधीजी उनमें अपनी जगह बनाने के मामले में बहुत संकोची थे। बंबई न्यायालय में पहली ही बहस में वह नाकाम रहे थे। यहाँ तक की '[[मुम्बई उच्च न्यायालय|बंबई उच्च न्यायालय]]' में अल्पकालिक शिक्षक के पद के लिए भी उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था। | ||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]]महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]]' का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। '[[साबरमती आश्रम]]' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से [[महात्मा गाँधी]] आजीवन जुड़े रहे, इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली थी। [[जुलाई]], [[1891]] में जब गाँधीजी [[भारत]] लौटे, तो उनकी अनुपस्थिति में उनकी [[माता]] का देहान्त हो चुका था और उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि बैरिस्टर की डिग्री से अच्छे पेशेवर जीवन की गारंटी नहीं मिल सकती। वकालत के पेशे में पहले ही काफ़ी भीड़ हो चुकी थी और गाँधीजी उनमें अपनी जगह बनाने के मामले में बहुत संकोची थे। बंबई न्यायालय में पहली ही बहस में वह नाकाम रहे थे। यहाँ तक की '[[मुम्बई उच्च न्यायालय|बंबई उच्च न्यायालय]]' में अल्पकालिक शिक्षक के पद के लिए भी उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[महात्मा गाँधी]] | ||
{सन [[1917]] से [[1924]] तक [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में किसने सेवाएँ प्रदान की थीं? | {सन [[1917]] से [[1924]] तक [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में किसने सेवाएँ प्रदान की थीं? | ||
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-[[बाल गंगाधर तिलक]] | -[[बाल गंगाधर तिलक]] | ||
-[[गणेशशंकर विद्यार्थी]] | -[[गणेशशंकर विद्यार्थी]] | ||
||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|80px|सरदार पटेल]]'सरदार पटेल' प्रसिद्ध भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' प्रमुख के नेताओं में से एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन [[वर्ष]] वह [[उपप्रधानमंत्री]], गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। [[1917]] से [[1924]] तक [[सरदार पटेल]] ने [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में सेवाएँ प्रदान कीं और [[1924]] से [[1928]] तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। [[1918]] में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी [[वर्षा]] से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद [[बम्बई]] सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने [[गुजरात]] के [[कैरा|कैरा ज़िले]] में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई। | ||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|80px|सरदार पटेल]]'सरदार पटेल' प्रसिद्ध भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' प्रमुख के नेताओं में से एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन [[वर्ष]] वह [[उपप्रधानमंत्री]], गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। [[1917]] से [[1924]] तक [[सरदार पटेल]] ने [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में सेवाएँ प्रदान कीं और [[1924]] से [[1928]] तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। [[1918]] में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी [[वर्षा]] से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद [[बम्बई]] सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने [[गुजरात]] के [[कैरा|कैरा ज़िले]] में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[सरदार पटेल|वल्लभ भाई पटेल]] | ||
{[[दिल्ली]] की राजगद्दी पर [[अफ़ग़ान]] शासकों के शासन का निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही कालानुक्रम है? | {[[दिल्ली]] की राजगद्दी पर [[अफ़ग़ान]] शासकों के शासन का निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही कालानुक्रम है? | ||
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+[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | +[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||'बहलोल लोदी' [[दिल्ली]] में प्रथम [[अफ़ग़ान]] राज्य का संस्थापक था। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के '[[गिलजाई|गिलजाई कबीले]]' की महत्त्वपूर्ण शाखा 'शाहूखेल' में पैदा हुआ था। [[19 अप्रैल]], 1451 को [[बहलोल लोदी]] 'बहलोल शाह ग़ाज़ी' की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। चूँकि वह लोदी कबीले का अग्रगामी था, इसलिए उसके द्वारा स्थापित वंश को '[[लोदी वंश]]' कहा जाता है। बहलोल अपने सरदारों को 'मसनद-ए-अली' कहकर पुकारता था। उसका राजत्व सिद्धान्त समानता पर आधारित था। वह [[अफ़ग़ान]] सरदारों को अपने समकक्ष मानता था। अपने सरदारों के खड़े रहने पर वह खुद भी खड़ा रहता था। बहलोल लोदी ने 'बहलोली सिक्के' का प्रचलन करवाया, जो [[अकबर]] के समय तक [[उत्तर भारत]] में विनिमय का प्रमुख साधन बना रहा। | ||'बहलोल लोदी' [[दिल्ली]] में प्रथम [[अफ़ग़ान]] राज्य का संस्थापक था। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के '[[गिलजाई|गिलजाई कबीले]]' की महत्त्वपूर्ण शाखा 'शाहूखेल' में पैदा हुआ था। [[19 अप्रैल]], 1451 को [[बहलोल लोदी]] 'बहलोल शाह ग़ाज़ी' की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। चूँकि वह लोदी कबीले का अग्रगामी था, इसलिए उसके द्वारा स्थापित वंश को '[[लोदी वंश]]' कहा जाता है। बहलोल अपने सरदारों को 'मसनद-ए-अली' कहकर पुकारता था। उसका राजत्व सिद्धान्त समानता पर आधारित था। वह [[अफ़ग़ान]] सरदारों को अपने समकक्ष मानता था। अपने सरदारों के खड़े रहने पर वह खुद भी खड़ा रहता था। बहलोल लोदी ने 'बहलोली सिक्के' का प्रचलन करवाया, जो [[अकबर]] के समय तक [[उत्तर भारत]] में विनिमय का प्रमुख साधन बना रहा। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | ||
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश
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