"इतिहास सामान्य ज्ञान 53": अवतरणों में अंतर

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{प्रसिद्ध [[विजय विट्ठल मंदिर]], जिसके 56 तक्षित स्तंभ संगीतमय स्वर निकालते हैं, कहाँ अवस्थित है?
|type="()"}
-[[बेलूर]]
-भद्राचलम
+[[हम्पी]]
-[[श्रीरंगम]]
||[[चित्र:Hampi-3.jpg|right|150px|हम्पी के अवशेष]]'हम्पी' मध्यकालीन [[हिन्दू]] राज्य [[विजयनगर साम्राज्य]] की राजधानी था। [[तुंगभद्रा नदी]] के तट पर स्थित इस नगर के अब केवल खंडहर ही शेष हैं। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में [[हम्पी]] में एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती थी। [[भारत]] के [[कर्नाटक]] राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा [[विश्व विरासत स्थल|विश्व विरासत स्थलों]] की सूची में शामिल है। यहाँ [[कृष्णदेवराय]] के शासनकाल में बनाया गया प्रसिद्ध हज़ाराराम मन्दिर हिन्दू मन्दिरों की [[वास्तुकला]] के पूर्णतम नमूनों में से एक है। मन्दिर की दीवारों पर [[रामायण]] के सभी प्रमुख दृश्य बड़ी सुन्दरता से उकेरे गये हैं। विट्ठल स्वामी मन्दिर भी विजयनगर शैली का एक सुन्दर नमूना है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हम्पी]]
{निम्नलिखित में से कौन-सा एक युग्म सही सुमेलित है?
|type="()"}
+[[चिश्ती सम्प्रदाय|चिश्ती]] - [[हमीदुद्दीन नागौरी]]
-[[नक्शबंदिया|नक्शबंदी]] - [[अब्द अल- क़ादिर अल-जिलानी]]
-[[सुहरावर्दी]] - क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
-[[कादिरी सिलसिला|कादिरी]] - ख़्वाजा बाकी बिल्लाह
||[[चित्र:Khwaja-Garib-Nawaz-Dargah.jpg|right|100px| ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह, अजमेर]]चिश्ती सम्प्रदाय [[भारत]] का सबसे प्राचीन सिलसिला है। यह 'बा-शर सिलसिला' की एक शाखा था। भारत में यह सम्प्रदाय सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इनके आध्यात्मिक केन्द्र भारत, [[पाकिस्तान]] और [[बांग्लादेश]] में फैले हुए हैं। ख़्वाजा अबू ईसहाक़ सामी चिश्ती (मृत्यु 940 ई.) या उनके शिष्य ख़्वाजा अबू अहमद अब्दाल चिश्त (874-965 ई.) का नाम इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक के रूप में लिया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चिश्ती सम्प्रदाय]]
{[[मंगोल]] आक्रमणकारी कुतलुग ख़्वाजा ने [[भारत]] पर किसके शासन काल में आक्रमण किया?
{[[मंगोल]] आक्रमणकारी कुतलुग ख़्वाजा ने [[भारत]] पर किसके शासन काल में आक्रमण किया?
|type="()"}
|type="()"}
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+[[अलाउद्दीन ख़िलजी]]
+[[अलाउद्दीन ख़िलजी]]
-[[इल्तुतमिश]]
-[[इल्तुतमिश]]
||अलाउद्दीन ख़िलजी के समय में हुए [[मंगोल]] आक्रमण का उद्देश्य [[भारत]] की विजय और प्रतिशोध की भावना थी। 1297-98 ई. में मंगोल सेना ने अपने नेता कादर के नेतृत्व में [[पंजाब]] एवं [[लाहौर]] पर आक्रमण किया। [[जालंधर]] के निकट इन आक्रमणकारियों को [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] की सेना ने परास्त कर दिया। मंगोलों का दूसरा आक्रमण सलदी के नेतृत्व में 1298 ई. में सेहबान पर हुआ। इसके बाद वर्ष 1299 में कुतलुग ख़्वाजा के नेतृत्व में [[मंगोल]] सेना के आक्रमण को जफ़र ख़ाँ ने असफल कर दिया। इसी युद्ध के दौरान जफ़र ख़ाँ मारा गया, क्योंकि अलाउद्दीन एवं उलूग ख़ाँ वाली सेना से उसे कोई सहायता नहीं मिल सकी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अलाउद्दीन ख़िलजी]]
||अलाउद्दीन ख़िलजी के समय में हुए [[मंगोल]] आक्रमण का उद्देश्य [[भारत]] की विजय और प्रतिशोध की भावना थी। 1297-98 ई. में मंगोल सेना ने अपने नेता कादर के नेतृत्व में [[पंजाब]] एवं [[लाहौर]] पर आक्रमण किया। [[जालंधर]] के निकट इन आक्रमणकारियों को [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] की सेना ने परास्त कर दिया। मंगोलों का दूसरा आक्रमण सलदी के नेतृत्व में 1298 ई. में सेहबान पर हुआ। इसके बाद वर्ष 1299 में कुतलुग ख़्वाजा के नेतृत्व में [[मंगोल]] सेना के आक्रमण को जफ़र ख़ाँ ने असफल कर दिया। इसी युद्ध के दौरान जफ़र ख़ाँ मारा गया, क्योंकि अलाउद्दीन एवं उलूग ख़ाँ वाली सेना से उसे कोई सहायता नहीं मिल सकी। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[अलाउद्दीन ख़िलजी]]


{[[बौद्ध धर्म]] की किस शाखा ने [[मंत्र]], हठयोग, तांत्रिक आचारों को प्रधानता दी?
{[[बौद्ध धर्म]] की किस शाखा ने [[मंत्र]], हठयोग, तांत्रिक आचारों को प्रधानता दी?
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-[[हीनयान]]
-[[हीनयान]]
-उपरोक्त में से कोई नहीं
-उपरोक्त में से कोई नहीं
||[[चित्र:Buddhism-Symbol.jpg|right|80px|बौद्ध धर्म का प्रतीक चिह्न]]'वज्रयान' [[संस्कृत]] शब्द, अर्थात हीरा या तड़ित का वाहन है। यह 'तांत्रिक बौद्ध धर्म' भी कहलाता है तथा [[भारत]] व पड़ोसी देशों में, विशेषकर [[तिब्बत]] में [[बौद्ध धर्म]] का महत्त्वपूर्ण विकास समझा जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में [[वज्रयान]] का उल्लेख [[महायान]] के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में [[बौद्ध]] विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है। वज्रयान के अनुसार तांत्रिक दृष्टि से ज्ञान का प्रकाश इस अनुभव से आता है कि विपरीत लगने वाले दो सिद्धांत वास्तव में एक ही हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वज्रयान]]
||[[चित्र:Buddhism-Symbol.jpg|right|80px|बौद्ध धर्म का प्रतीक चिह्न]]'वज्रयान' [[संस्कृत]] शब्द, अर्थात् हीरा या तड़ित का वाहन है। यह 'तांत्रिक बौद्ध धर्म' भी कहलाता है तथा [[भारत]] व पड़ोसी देशों में, विशेषकर [[तिब्बत]] में [[बौद्ध धर्म]] का महत्त्वपूर्ण विकास समझा जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में [[वज्रयान]] का उल्लेख [[महायान]] के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में [[बौद्ध]] विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है। वज्रयान के अनुसार तांत्रिक दृष्टि से ज्ञान का प्रकाश इस अनुभव से आता है कि विपरीत लगने वाले दो सिद्धांत वास्तव में एक ही हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[वज्रयान]]
 
{'मद्रास महाजन सभा' अस्तित्व में कब आयी?
|type="()"}
-[[1882]]
-[[1883]]
+[[1884]]
-[[1885]]
 
{सन [[1942]] के '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के उपरान्त राष्ट्रीय सरकार की स्थापना कहाँ नहीं हुई थी?
|type="()"}
+[[तामलुक]]
-[[सतारा]]
-[[मुंगेर]]
-तलचर
||[[चित्र:Gandhi-Ji-Statue.jpg|right|90px|गाँधीजी की प्रतिमा]]तामलुक पूर्वी [[मिदनापुर ज़िला]], [[पश्चिम बंगाल]] का मुख्‍यालय है। यह कलकत्‍ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है, यहाँ से यह लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। [[महात्मा गाँधी]] ने अपनी कई गतिविधियाँ यहाँ से संचालित की थीं। '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के समय संयुक्त प्रांत में [[बलिया]] एवं [[बस्ती ज़िला|बस्ती]], [[बम्बई]] में [[सतारा]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में [[मिदनापुर ज़िला|मिदनापुर]] एवं [[बिहार]] के कुछ भागों में अस्थायी सरकारों की स्थापना की गयी थी। इन स्वाशासित समानान्तर सरकारों में सर्वाधिक लम्बे समय तक सरकार सतारा में थी। बंगाल के मिदनापुर ज़िले में तामलुक अथवा [[ताम्रलिप्ति]] में गठिन राष्ट्रीय सरकार [[1944]] ई. तक चलती रही।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तामलुक]]
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा एक औजार पुरापाषाण संस्कृति से संबंधित नहीं है?
|type="()"}
-[[कुल्हाड़ी]]
-गँड़ासा
-विदारणी
+सेल्ट


{निम्नलिखित में से कौन 'क्रिप्स मिशन' के साथ [[कांग्रेस]] के आधिकारिक वार्ताकार थे?
{निम्नलिखित में से कौन 'क्रिप्स मिशन' के साथ [[कांग्रेस]] के आधिकारिक वार्ताकार थे?
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+[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] एवं [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]]
+[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] एवं [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]]
-[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] एवं [[रफ़ी अहमद क़िदवई]]
-[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] एवं [[रफ़ी अहमद क़िदवई]]
||[[चित्र:Jawahar-Lal-Nehru.jpg|right|100px|जवाहरलाल नेहरू]]पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण परिवार के थे, जो अपनी प्रशासनिक क्षमताओं तथा विद्वत्ता के लिए विख्यात थे। वे 18वीं शताब्दी के आरंभ में [[इलाहाबाद]] आ गये थे। [[1931]] में [[पिता]] की मृत्यु के बाद जवाहरलाल [[कांग्रेस]] की केंद्रीय परिषद में शामिल हो गए और [[महात्मा गाँधी]] के अंतरंग बन गए। यद्यपि [[1942]] तक गांधीजी ने आधिकारिक रूप से उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था, किंतु [[1930]] के दशक के मध्य में ही देश को गाँधीजी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में [[जवाहरलाल नेहरू]] दिखाई देने लगे थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]], [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]]
||[[चित्र:Jawahar-Lal-Nehru.jpg|right|100px|जवाहरलाल नेहरू]]पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण परिवार के थे, जो अपनी प्रशासनिक क्षमताओं तथा विद्वत्ता के लिए विख्यात थे। वे 18वीं शताब्दी के आरंभ में [[इलाहाबाद]] आ गये थे। [[1931]] में [[पिता]] की मृत्यु के बाद जवाहरलाल [[कांग्रेस]] की केंद्रीय परिषद में शामिल हो गए और [[महात्मा गाँधी]] के अंतरंग बन गए। यद्यपि [[1942]] तक गांधीजी ने आधिकारिक रूप से उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था, किंतु [[1930]] के दशक के मध्य में ही देश को गाँधीजी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में [[जवाहरलाल नेहरू]] दिखाई देने लगे थे। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]], [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]]


{'आर्य महिला सभा' की स्थापना किसके द्वारा की गई थी?
{'आर्य महिला सभा' की स्थापना किसके द्वारा की गई थी?
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-[[दुर्गाबाई देशमुख]]
-[[दुर्गाबाई देशमुख]]
-[[पंडिता रमाबाई]]
-[[पंडिता रमाबाई]]
||[[चित्र:Nellie-Sengupta.jpg|right|100px|नेली सेनगुप्ता]]नेली सेनगुप्ता को '[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' में योगदान देने और क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। वे [[महात्मा गाँधी]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' में भाग लेने वाले [[जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता]] की पत्नी थीं। [[नेली सेनगुप्ता]] ने वर्ष [[1933]] की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता भी की। उन्हें [[1940]] और [[1946]] में निर्विरोध 'बंगाल असेम्बली' की सदस्य भी चुना गया था। [[1947]] के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और [[1954]] में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य बनीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नेली सेनगुप्ता]]
||[[चित्र:Nellie-Sengupta.jpg|right|100px|नेली सेनगुप्ता]]नेली सेनगुप्ता को '[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' में योगदान देने और क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। वे [[महात्मा गाँधी]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' में भाग लेने वाले [[जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता]] की पत्नी थीं। [[नेली सेनगुप्ता]] ने वर्ष [[1933]] की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता भी की। उन्हें [[1940]] और [[1946]] में निर्विरोध 'बंगाल असेम्बली' की सदस्य भी चुना गया था। [[1947]] के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और [[1954]] में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य बनीं। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[नेली सेनगुप्ता]]


{निम्नलिखित में से किसने 'विधवा विवाह मंडल' की स्थापना की थी?
{निम्नलिखित में से किसने 'विधवा विवाह मंडल' की स्थापना की थी?
|type="()"}
|type="()"}
-[[बाल गंगाधर तिलक]]
-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
+[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
-[[वी. डी. सावरकर]]
-[[महादेव गोविंद रानाडे]]
+[[एम. जी. रानाडे]]
-[[विनायक दामोदर सावरकर]]
-[[स्वामी सहजानंद सरस्वती]]
||[[चित्र:Gopal-Krishna-Gokhle.jpg|right|80px|गोपाल कृष्ण गोखले]]गोपाल कृष्ण गोखले अपने समय के अद्वितीय संसदविद और राष्ट्रसेवी थे। यह एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक भी थे। न्यायमूर्ति [[महादेव गोविन्द रानाडे]] के संपर्क में आने से [[गोपाल कृष्ण गोखले]] सार्वजनिक कार्यों में बढ़-चढ़कर रुचि लेने लगे थे। उन दिनों [[पूना]] की 'सार्वजनिक सभा' एक प्रमुख राजनीतिक संस्था थी। गोखले ने उसके मंत्री के रूप में कार्य किया। इससे उनके सार्वजनिक कार्यों का भी विस्तार हुआ। [[कांग्रेस]] की स्थापना के बाद वे उस संस्था से जुड़ गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
||[[चित्र:M-g-ranade.jpg|right|100px|महादेव गोविन्द रानाडे]]'महादेव गोविन्द रानाडे' [[भारत]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान् और न्यायविद थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। [[प्रार्थना समाज]], [[आर्य समाज]] और [[ब्रह्म समाज]] का [[महादेव गोविन्द रानाडे]] के जीवन पर बहुत प्रभाव था। प्रार्थना समाज के मंच से रानाडे ने [[महाराष्ट्र]] में अंधविश्वास और हानिकारक रूढ़ियों का जमकर विरोध किया था। [[धर्म]] में उनका अंधविश्वास नहीं था। वे मानते थे कि देश काल के अनुसार धार्मिक आचरण बदलते रहते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया। वे '[[बाल विवाह]]' के कट्टर विरोधी और '[[विधवा विवाह]]' के समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने एक समिति 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना भी की थी। महादेव गोविन्द रानाडे 'दकन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में भी प्रमुख थे। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[महादेव गोविन्द रानाडे]]
 
{निम्न में से 'स्ट्रेची आयोग' किससे संबंधित था?
|type="()"}
-[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]]
+[[अकाल]]
-शिक्षा
-स्थानीय स्वायत शासन
||[[चित्र:Dry-Field.jpg|right|120px|अकाल में सूखा खेत]]'अकाल' से अभिप्राय है कि ऐसा समय जिसमें अनाज आदि खाने की वस्तुओं की बहुत अधिक कमी हो जाये और वे बड़ी कठिनाई से प्राप्त हों। अकाल का सबसे बड़ा कारण होता है- [[वर्षा]] का न होना, जिस कारण अन्न आदि खाद्य वस्तुओं की पैदावार नहीं हो पाती और सूखे की समस्या उत्पन्न हो जाती है। [[अकाल]] [[भारत]] के आर्थिक जीवन की एक दुखद विशेषता रहा। [[मेगस्थनीज़]] ने लिखा है कि भारत में अकाल नहीं पड़ता, लेकिन यह कथन बाद के [[इतिहास]] में सही नहीं सिद्ध होता। सच तो यह है कि भारत जैसे देश में मुख्यत: [[कृषि|खेती]] ही जीवन-यापन का साधन है और वह मुख्यत: अनिश्चित मानसूनी वर्षा पर निर्भर रहती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकाल]]
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा एक जोड़ा सही सुमेलित है?
|type="()"}
+[[सुल्तान महमूद]] – [[सोमनाथ मंदिर|सोमनाथ]] पर आक्रमण
-[[मोहम्मद गौरी]] – [[सिन्ध]] की विजय
-[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] – [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में विद्रोह
-[[मोहम्मद बिन तुग़लक़]] – [[चंगेज़ ख़ाँ]] का आक्रमण
||[[चित्र:Sultan-Mahmud-Ghaznawi.jpg|right|90px|महमूद ग़ज़नवी]]'सुल्तान महमूद' या '[[महमूद ग़ज़नवी]]' यमीनी वंश का तुर्क सरदार और [[ग़ज़नी]] के शासक [[सुबुक्तगीन]] का पुत्र था। महमूद बचपन से [[भारत]] की अपार समृद्धि और धन-दौलत के विषय में सुनता रहा था। उसके [[पिता]] ने एक बार [[हिन्दुशाही वंश|हिन्दुशाही]] राजा [[जयपाल]] के राज्य को लूट कर प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त की थी। [[सुल्तान महमूद]] भारत की दौलत को लूटकर मालामाल होने के स्वप्न देखा करता था। उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया और यहाँ की अपार सम्पत्ति को वह लूटकर ग़ज़नी ले गया। उसका सबसे बड़ा आक्रमण 1026 ई. में [[काठियावाड़]] के [[सोमनाथ मंदिर]] पर था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महमूद ग़ज़नवी]]
 
{[[भारत]] में '[[दास प्रथा]]' का उन्मूलन किसके द्वारा हुआ?
|type="()"}
-1829 के अधिनियम द्वारा
-1833 के अधिनियम द्वारा
+1843 के अधिनियम द्वारा
-1858 के अधिनियम द्वारा
||[[चित्र:Slavery-Aboliti.jpg|right|100px|दास प्रथा]]'दास प्रथा' [[भारत]] में प्राय: सभी युगों में विद्यमान रही है। यद्यपि चौथी शताब्दी ई. पू. में [[मेगस्थनीज]] ने लिखा था कि "भारतवर्ष में [[दास प्रथा]] नहीं है, तथापि [[कौटिल्य]] के '[[अर्थशास्त्र]]' तथा [[मौर्य]] सम्राट [[अशोक]] के [[अभिलेख|अभिलेखों]] में [[प्राचीन भारत]] में दास प्रथा प्रचलित होने के संकेत उपलब्ध होते हैं। यह प्रथा [[भारत]] में ब्रिटिश शासन स्थापित हो जाने के उपरान्त भी यथेष्ट दिनों तक चलती रही। वर्ष 1843 ई. में इसे बन्द करने के लिए एक अधिनियम पारित कर दिया गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दास प्रथा]]
 
{[[विजयनगर साम्राज्य]] में सामाजिक एवं धार्मिक विषयों पर निर्णय कौन देते थे?
|type="()"}
-समयाचार्य अथवा देशरि
+कबलकार अथवा अरसुकवलकार
-धर्मोपंच अथवा धर्मदेश
-पर्षोकाण अथवा ध्रुवराज
||[[चित्र:Hampi-5.jpg|right|120px|हम्पी के अवशेष]]विजयनगर के शासकों ने स्वायत्त ग्राम-प्रशासन की [[चोल साम्राज्य|चोल]] परम्परा को बनाये रखा था, लेकिन वंशागत नायक होने की परम्परा ने उस स्वतंत्रता को सीमित अवश्य कर दिया। प्रान्तों के गवर्नर पहले राजकुमार हुआ करते थे। बाद में [[विजयनगर साम्राज्य]] के शासक वंशों और सामंतों में से भी इस पद पर नियुक्तियाँ होने लगीं। प्रान्तीय प्रशासक काफ़ी सीमा तक स्वतंत्र होते थे। वे अपना दरबार लगाते थे। अपने अधिकारी नियुक्त करते थे और अपनी सेना भी रखते थे। साम्राज्य में 'कबलकार' नाम का एक अधिकारी भी हुआ करता था, जो प्राय: सामाजिक एवं धार्मिक विषयों पर निर्णय देता था। इसे 'अरसुकवलकार' के नाम से भी जाना जाता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विजयनगर साम्राज्य]]
 
{'[[भक्ति आंदोलन]]' से संबंधित [[मराठा]] [[संत|संतों]] का सही कालानुक्रम कौन-सा है?
|type="()"}
-[[नामदेव]], [[तुकाराम]], [[एकनाथ]], [[समर्थ रामदास|रामदास]]
-रामदेव, एकनाथ, तुकाराम, नामदेव
+[[नामदेव]], [[एकनाथ]], [[तुकाराम]], [[समर्थ रामदास|रामदास]]
-रामदास, तुकाराम, एकनाथ, नामदेव
||[[चित्र:Sant-Namdev.jpg|right|80px|संत नामदेव]]नामदेव [[मध्यकालीन भारत]] के प्रमुख संत कवि थे, जिन्होंने [[मराठी भाषा]] में अपनी रचनाएँ लिखीं। यह कहा जाता है कि [[नामदेव]] अपनी युवावस्था में ख़ूनी लुटेरों के गिरोह के सदस्य थे, लेकिन एक दिन जब उन्होंने एक महिला का करुण विलाप सुना, जिसके पति की उन्होंने हत्या कर दी थी, तो उन्हें गहरा पश्चाताप हुआ। कहते है कि अपने इस घृणित कार्य के पश्चातापस्वरूप वह आत्महत्या करने ही वाले थे कि उन्हें भगवान [[विष्णु]] ने प्रकट होकर बचा लिया। इसके बाद नामदेव [[भक्ति]] की ओर मुड़ गए और वाराकरी के प्रमुख प्रतिपादक बने।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नामदेव]], [[एकनाथ]], [[तुकाराम]], [[समर्थ रामदास|रामदास]]
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{{Review-G}}

10:41, 4 जून 2023 के समय का अवतरण

सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान


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1 मंगोल आक्रमणकारी कुतलुग ख़्वाजा ने भारत पर किसके शासन काल में आक्रमण किया?

बलबन
ग़यासुद्दीन तुग़लक़
अलाउद्दीन ख़िलजी
इल्तुतमिश

2 बौद्ध धर्म की किस शाखा ने मंत्र, हठयोग, तांत्रिक आचारों को प्रधानता दी?

महायान
वज्रयान
हीनयान
उपरोक्त में से कोई नहीं

4 'आर्य महिला सभा' की स्थापना किसके द्वारा की गई थी?

राजकुमारी अमृत कौर
नेली सेनगुप्ता
दुर्गाबाई देशमुख
पंडिता रमाबाई

5 निम्नलिखित में से किसने 'विधवा विवाह मंडल' की स्थापना की थी?

गोपाल कृष्ण गोखले
वी. डी. सावरकर
एम. जी. रानाडे
स्वामी सहजानंद सरस्वती

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