"इतिहास सामान्य ज्ञान 53": अवतरणों में अंतर
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{[[मंगोल]] आक्रमणकारी कुतलुग ख़्वाजा ने [[भारत]] पर किसके शासन काल में आक्रमण किया? | {[[मंगोल]] आक्रमणकारी कुतलुग ख़्वाजा ने [[भारत]] पर किसके शासन काल में आक्रमण किया? | ||
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+[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] | +[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] | ||
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||अलाउद्दीन ख़िलजी के समय में हुए [[मंगोल]] आक्रमण का उद्देश्य [[भारत]] की विजय और प्रतिशोध की भावना थी। 1297-98 ई. में मंगोल सेना ने अपने नेता कादर के नेतृत्व में [[पंजाब]] एवं [[लाहौर]] पर आक्रमण किया। [[जालंधर]] के निकट इन आक्रमणकारियों को [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] की सेना ने परास्त कर दिया। मंगोलों का दूसरा आक्रमण सलदी के नेतृत्व में 1298 ई. में सेहबान पर हुआ। इसके बाद वर्ष 1299 में कुतलुग ख़्वाजा के नेतृत्व में [[मंगोल]] सेना के आक्रमण को जफ़र ख़ाँ ने असफल कर दिया। इसी युद्ध के दौरान जफ़र ख़ाँ मारा गया, क्योंकि अलाउद्दीन एवं उलूग ख़ाँ वाली सेना से उसे कोई सहायता नहीं मिल सकी। | ||अलाउद्दीन ख़िलजी के समय में हुए [[मंगोल]] आक्रमण का उद्देश्य [[भारत]] की विजय और प्रतिशोध की भावना थी। 1297-98 ई. में मंगोल सेना ने अपने नेता कादर के नेतृत्व में [[पंजाब]] एवं [[लाहौर]] पर आक्रमण किया। [[जालंधर]] के निकट इन आक्रमणकारियों को [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] की सेना ने परास्त कर दिया। मंगोलों का दूसरा आक्रमण सलदी के नेतृत्व में 1298 ई. में सेहबान पर हुआ। इसके बाद वर्ष 1299 में कुतलुग ख़्वाजा के नेतृत्व में [[मंगोल]] सेना के आक्रमण को जफ़र ख़ाँ ने असफल कर दिया। इसी युद्ध के दौरान जफ़र ख़ाँ मारा गया, क्योंकि अलाउद्दीन एवं उलूग ख़ाँ वाली सेना से उसे कोई सहायता नहीं मिल सकी। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] | ||
{[[बौद्ध धर्म]] की किस शाखा ने [[मंत्र]], हठयोग, तांत्रिक आचारों को प्रधानता दी? | {[[बौद्ध धर्म]] की किस शाखा ने [[मंत्र]], हठयोग, तांत्रिक आचारों को प्रधानता दी? | ||
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-[[हीनयान]] | -[[हीनयान]] | ||
-उपरोक्त में से कोई नहीं | -उपरोक्त में से कोई नहीं | ||
||[[चित्र:Buddhism-Symbol.jpg|right|80px|बौद्ध धर्म का प्रतीक चिह्न]]'वज्रयान' [[संस्कृत]] शब्द, | ||[[चित्र:Buddhism-Symbol.jpg|right|80px|बौद्ध धर्म का प्रतीक चिह्न]]'वज्रयान' [[संस्कृत]] शब्द, अर्थात् हीरा या तड़ित का वाहन है। यह 'तांत्रिक बौद्ध धर्म' भी कहलाता है तथा [[भारत]] व पड़ोसी देशों में, विशेषकर [[तिब्बत]] में [[बौद्ध धर्म]] का महत्त्वपूर्ण विकास समझा जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में [[वज्रयान]] का उल्लेख [[महायान]] के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में [[बौद्ध]] विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है। वज्रयान के अनुसार तांत्रिक दृष्टि से ज्ञान का प्रकाश इस अनुभव से आता है कि विपरीत लगने वाले दो सिद्धांत वास्तव में एक ही हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[वज्रयान]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन 'क्रिप्स मिशन' के साथ [[कांग्रेस]] के आधिकारिक वार्ताकार थे? | {निम्नलिखित में से कौन 'क्रिप्स मिशन' के साथ [[कांग्रेस]] के आधिकारिक वार्ताकार थे? | ||
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+[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] एवं [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]] | +[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] एवं [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]] | ||
-[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] एवं [[रफ़ी अहमद क़िदवई]] | -[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] एवं [[रफ़ी अहमद क़िदवई]] | ||
||[[चित्र:Jawahar-Lal-Nehru.jpg|right|100px|जवाहरलाल नेहरू]]पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण परिवार के थे, जो अपनी प्रशासनिक क्षमताओं तथा विद्वत्ता के लिए विख्यात थे। वे 18वीं शताब्दी के आरंभ में [[इलाहाबाद]] आ गये थे। [[1931]] में [[पिता]] की मृत्यु के बाद जवाहरलाल [[कांग्रेस]] की केंद्रीय परिषद में शामिल हो गए और [[महात्मा गाँधी]] के अंतरंग बन गए। यद्यपि [[1942]] तक गांधीजी ने आधिकारिक रूप से उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था, किंतु [[1930]] के दशक के मध्य में ही देश को गाँधीजी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में [[जवाहरलाल नेहरू]] दिखाई देने लगे थे। | ||[[चित्र:Jawahar-Lal-Nehru.jpg|right|100px|जवाहरलाल नेहरू]]पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण परिवार के थे, जो अपनी प्रशासनिक क्षमताओं तथा विद्वत्ता के लिए विख्यात थे। वे 18वीं शताब्दी के आरंभ में [[इलाहाबाद]] आ गये थे। [[1931]] में [[पिता]] की मृत्यु के बाद जवाहरलाल [[कांग्रेस]] की केंद्रीय परिषद में शामिल हो गए और [[महात्मा गाँधी]] के अंतरंग बन गए। यद्यपि [[1942]] तक गांधीजी ने आधिकारिक रूप से उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था, किंतु [[1930]] के दशक के मध्य में ही देश को गाँधीजी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में [[जवाहरलाल नेहरू]] दिखाई देने लगे थे। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]], [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]] | ||
{'आर्य महिला सभा' की स्थापना किसके द्वारा की गई थी? | {'आर्य महिला सभा' की स्थापना किसके द्वारा की गई थी? | ||
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-[[दुर्गाबाई देशमुख]] | -[[दुर्गाबाई देशमुख]] | ||
-[[पंडिता रमाबाई]] | -[[पंडिता रमाबाई]] | ||
||[[चित्र:Nellie-Sengupta.jpg|right|100px|नेली सेनगुप्ता]]नेली सेनगुप्ता को '[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' में योगदान देने और क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। वे [[महात्मा गाँधी]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' में भाग लेने वाले [[जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता]] की पत्नी थीं। [[नेली सेनगुप्ता]] ने वर्ष [[1933]] की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता भी की। उन्हें [[1940]] और [[1946]] में निर्विरोध 'बंगाल असेम्बली' की सदस्य भी चुना गया था। [[1947]] के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और [[1954]] में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य बनीं। | ||[[चित्र:Nellie-Sengupta.jpg|right|100px|नेली सेनगुप्ता]]नेली सेनगुप्ता को '[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' में योगदान देने और क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। वे [[महात्मा गाँधी]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' में भाग लेने वाले [[जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता]] की पत्नी थीं। [[नेली सेनगुप्ता]] ने वर्ष [[1933]] की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता भी की। उन्हें [[1940]] और [[1946]] में निर्विरोध 'बंगाल असेम्बली' की सदस्य भी चुना गया था। [[1947]] के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और [[1954]] में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य बनीं। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[नेली सेनगुप्ता]] | ||
{निम्नलिखित में से किसने 'विधवा विवाह मंडल' की स्थापना की थी? | {निम्नलिखित में से किसने 'विधवा विवाह मंडल' की स्थापना की थी? | ||
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-[[ | -[[गोपाल कृष्ण गोखले]] | ||
-[[वी. डी. सावरकर]] | |||
+[[एम. जी. रानाडे]] | |||
-[[ | -[[स्वामी सहजानंद सरस्वती]] | ||
||[[चित्र: | ||[[चित्र:M-g-ranade.jpg|right|100px|महादेव गोविन्द रानाडे]]'महादेव गोविन्द रानाडे' [[भारत]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान् और न्यायविद थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। [[प्रार्थना समाज]], [[आर्य समाज]] और [[ब्रह्म समाज]] का [[महादेव गोविन्द रानाडे]] के जीवन पर बहुत प्रभाव था। प्रार्थना समाज के मंच से रानाडे ने [[महाराष्ट्र]] में अंधविश्वास और हानिकारक रूढ़ियों का जमकर विरोध किया था। [[धर्म]] में उनका अंधविश्वास नहीं था। वे मानते थे कि देश काल के अनुसार धार्मिक आचरण बदलते रहते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया। वे '[[बाल विवाह]]' के कट्टर विरोधी और '[[विधवा विवाह]]' के समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने एक समिति 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना भी की थी। महादेव गोविन्द रानाडे 'दकन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में भी प्रमुख थे। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[महादेव गोविन्द रानाडे]] | ||
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश
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