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'''उप'''-प्राप्त करना, उपभोग करना, ग्रहण करना-न च लोकानुपाश्नुते-[[महाभारत]], क्रियाफलमुपाश्नुते<ref>-[[मनुस्मृति]] 6/82</ref>, वि-पूर्ण रूप से भरना, व्याप्त होना, स्थान ग्रहण करना- प्रतापस्तस्य भानोश्च युगपद् व्यानशे दिशः<ref>-रघु. 4/15, भट्टि. 9/4, 14/96</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=129-130|url=|ISBN=}}</ref> | '''उप'''-प्राप्त करना, उपभोग करना, ग्रहण करना-न च लोकानुपाश्नुते-[[महाभारत]], क्रियाफलमुपाश्नुते<ref>-[[मनुस्मृति]] 6/82</ref>, वि-पूर्ण रूप से भरना, व्याप्त होना, स्थान ग्रहण करना- प्रतापस्तस्य भानोश्च युगपद् व्यानशे दिशः<ref>-रघु. 4/15, भट्टि. 9/4, 14/96</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=129-130|url=|ISBN=}}</ref> | ||
'''अश् 2''' (क्रया.पर.) [अश्नातिअशित] | |||
1. खाना, उपभोग करना-निवेद्य गुरवेऽनीश्यात्<ref>-[[मनुस्मृति]] 1/51, अश्नीमहि वयं भिक्षाम्-भर्तृ. 3/117</ref> | |||
2. स्वाद लेना, रस लेना-यद्ददाति यदश्नाति तदेव धनिनों धनम्<ref>-हि. 1/164-65</ref>, अश्नन्ति दिव्यान् दिवि देवभोगान्<ref>-भग. 9/20</ref>, प्रत्यक्षं फलमश्नन्ति कर्मणाम्-महा. (प्रे.-आशयति) खिलाना, भोजन कराना, खिलवाना, पिलवाना (कर्म. के साथ)-देवान्<ref>-सिद्धा.</ref>, '''प्र'''-1. पीना,–न प्राश्नोतोदकमपि-महा., 2. खाना, निगलना-प्राश्नन्नथ सुरामिषम्<ref>-भट्टि. 17/3, 1/13, 15/29</ref>, '''सम्'''-1. खाना,-नक्तं चान्नं 2. स्वाद लेना, अनुभव लेना, रस लेना।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=130|url=|ISBN=}}</ref> | |||
07:42, 23 मई 2024 के समय का अवतरण
अश् 1 (स्वादिगण आराण्यक) अश्नुते, अतिश-अष्ट]
1. व्याप्त होना, पूरी तरह से भरना, प्रविष्ट होना-खं प्रावृषेण्यैरिव चानशेस्ब्दै[1]
2. पहुँचना, आना या आना, उपस्थित होना, प्राप्त करना
3. प्राप्त करना, ग्रहण करना, आनंद लेना, अनुभव प्राप्त करना-अत्युत्कटैः पापपुण्यैरिहैव फलमश्नुते[2], न वेदफलमश्नुते[3], फलं दृशोरानशिरे महिष्यः[4]
उप-प्राप्त करना, उपभोग करना, ग्रहण करना-न च लोकानुपाश्नुते-महाभारत, क्रियाफलमुपाश्नुते[5], वि-पूर्ण रूप से भरना, व्याप्त होना, स्थान ग्रहण करना- प्रतापस्तस्य भानोश्च युगपद् व्यानशे दिशः[6][7]
अश् 2 (क्रया.पर.) [अश्नातिअशित]
1. खाना, उपभोग करना-निवेद्य गुरवेऽनीश्यात्[8]
2. स्वाद लेना, रस लेना-यद्ददाति यदश्नाति तदेव धनिनों धनम्[9], अश्नन्ति दिव्यान् दिवि देवभोगान्[10], प्रत्यक्षं फलमश्नन्ति कर्मणाम्-महा. (प्रे.-आशयति) खिलाना, भोजन कराना, खिलवाना, पिलवाना (कर्म. के साथ)-देवान्[11], प्र-1. पीना,–न प्राश्नोतोदकमपि-महा., 2. खाना, निगलना-प्राश्नन्नथ सुरामिषम्[12], सम्-1. खाना,-नक्तं चान्नं 2. स्वाद लेना, अनुभव लेना, रस लेना।[13]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ -भट्टि. 2/30 कि. 12/21
- ↑ -हि. 1/80, रघु. 9/9
- ↑ -मनुस्मृति 1/109
- ↑ - नै. 1/43
- ↑ -मनुस्मृति 6/82
- ↑ -रघु. 4/15, भट्टि. 9/4, 14/96
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 129-130 |
- ↑ -मनुस्मृति 1/51, अश्नीमहि वयं भिक्षाम्-भर्तृ. 3/117
- ↑ -हि. 1/164-65
- ↑ -भग. 9/20
- ↑ -सिद्धा.
- ↑ -भट्टि. 17/3, 1/13, 15/29
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 130 |
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