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[[त्रिपुरा]]
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! '''त्रिपुरा प्रदेश के ज़िले'''
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[[District::उत्तर त्रिपुरा ज़िला]] '''.'''
[[District::दक्षिण त्रिपुरा ज़िला]] '''.'''
[[District::धलाई ज़िला]] '''.'''
[[District::पश्चिम त्रिपुरा ज़िला]]
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{| class="wikitable"
 
|-
 
!कहावत लोकोक्ति मुहावरे
====================
!अर्थ
 
|-
 
| style="width:30%"|
 
1- टके का सब खेल है।
 
| style="width:70%"|
==हिंदी विश्वकोश पर बने लेखों की सूची==
अर्थ - पैसा सब कुछ करता है।
<poem>
|-
अंग्रेज़ी भाषा
|2- टका सा जवाब देना।
अक्षरअनन्य
|
अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन
अर्थ - साफ़ इंकार करना।
अतिशयोक्ति अलंकार
|-
अनुप्रास अलंकार
|3- टका सा मुँह लेकर रह जाना।
अनूप शर्मा
|
अपभ्रंश भाषा
अर्थ - लज्जित हो जाना।
अमरेश
|-
अमीर ख़ुसरो
|4- टटिया की आड़ में शिकार खेलना।
अमृता प्रीतम
|
अयोध्याप्रसाद खत्री
अर्थ - छिपकर किसी के विरूद्ध कुछ करना, आड़ लेकर काम करना।
अयोध्यासिंह उपाध्याय
|-
अरबिंदो घोष
|5- टट्टू पार होना।
अरबी भाषा
|
अर्जुनदास केडिया
अर्थ - काम निकल जाना।
अर्थालंकार
|-
अलंकार
|6- टाँग अड़ाना।
अली मुहिब खाँ
|
अवधी भाषा
अर्थ - बाधा पैदा करना।
अवहट्ट
|-
अविकारी शब्द
|7- टाँग तले से निकलना।
अश्वघोष
|
अष्टछाप कवि
अर्थ - हार मनवाना।
असमिया भाषा
|-
आंडाल
|8- टाँय-टाँय फिस होना।
आठवीं अनुसूची
|
आदि शंकराचार्य
अर्थ -  काम बिगड़ जाना।
आधुनिक हिंदी
|-
आरमाइक भाषा
|9- टाट उलटना।
आरमाइक लिपि
|
आरसी प्रसाद सिंह
अर्थ - दीवाला निकलना।
आलम
|-
उड़िया भाषा
|10- टेढ़ी खीर।
उत्प्रेक्षा अलंकार
|
उदय प्रकाश
अर्थ - कठिन काम।
उद्धरण चिह्न
|-
उपमा अलंकार
|11- जब तक जीना तब तक सीना।
उपमेयोपमा अलंकार
|
उपवाक्य
अर्थ - जीते-जी कोई न कोई काम करना पड़ता है।
उपसर्ग
|-
उर्दू भाषा
|12- जब तक साँस तब तक आस।
उल्लेख अलंकार
|
उसमान
अर्थ - अंत समय तक उम्मीद बनी रहती है।
कन्नड़ भाषा
|-
कन्नौजी बोली
|13- जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर।
कबीर
|
कलकतिया हिंदी
अर्थ - जबरदस्ती आदमी दबाव डाल कर काम लेता है ।
कलिंग लिपि
|-
कल्हण
|14- जबरा मारे रोने न दे।
कवींद्र
|
कश्मीरी भाषा
अर्थ - जवरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहना पड़ता है।
क़ादिर बख्श
|-
काका हाथरसी सम्मान
|15- ज़बान को लगाम चाहिए।
कारक
|
काल
अर्थ - सोच-समझकर बोलना चाहिए।
कालिदास
|-
कालिदास त्रिवेदी
|16- ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए।
कासिमशाह
|
कुतबन
अर्थ - मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है।
कुमायूँनी बोली
|-
कुमार मणिभट्ट
|17- ज़र का ज़ोर पूरा है, और सब अधूरा है।
कुम्भनदास
|
कुरुख भाषा
अर्थ - धन सबसे बलवान है।
कुलपति मिश्र
|-
कृपाराम
|18- ज़र है तो नर, नहीं तो खंडहर।
कृष्ण (कवि)
|
कृष्णदास
अर्थ - पैसे से ही आदमी का सम्मान है।
केशव
|-
कोंकणी भाषा
|19- जल में रहकर मगर से बैर।
कोष्ठक चिह्न
|
कौरवी बोली
अर्थ - जहाँ रहना हो वहाँ के मुखिया से बैर ठीक नहीं होता ।
क्रिया
|-
क्रियाविशेषण
|20- जस दूल्हा तस बनी बराता।
खड़ी बोली
|
खरोष्ठी
अर्थ - जैसे आप वैसे साथी।
गंग
|-
गंजन
|21- जहं जहं चरण पड़े संतन के, तहं तहं बंटाधार।
गढ़वाली बोली
|
गदाधर भट्ट
अर्थ - अभागा व्यक्ति जहाँ जाता है, बुरा होता है। 
गुजराती भाषा
|-
गुयानी हिंदी
|22- जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी।
गुरुमुखी लिपि
|
गोविंदस्वामी
अर्थ - आकर्षक जगह पर लोग जमा होते हैं।
ग्रन्थ लिपि
|-
घनानन्द
|23- जहाँ चार बासन होगें, वहाँ खटकेगें भी।
चंदबरदाई
|
चतुर्भुजदास
अर्थ - जहाँ कुछ व्यक्ति होते है वहाँ कभी-कभी झगड़ा हो ही जाता है।
चिंतामणि त्रिपाठी
|-
चौपाई
|24- जहाँ चाह वहाँ राह।
छत्तीसगढ़ी बोली
|
छन्द
अर्थ - इच्छा हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है।
छीतस्वामी
|-
छीहल
|25- जहाँ देखे तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात।
जगजीवनदास
|
जमाल
अर्थ - जहाँ कुछ प्राप्ति होती हो, वहाँ लालची आदमी जम जाता है।
जयदेव
|-
जयशंकर प्रसाद
|26- जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि।
टोडरमल
|
डिंगल
अर्थ - कवि अपनी  कल्पना से सब जगह पहुँच जाता है।
डोगरी भाषा
|-
तमिल भाषा
|27- जहाँ फूल वहाँ काँटा।
तमिल लिपि
|
ताजुज़्बेकी हिंदी
अर्थ - अच्छाई के साथ बुराई भी लगी होती है।
तुकाराम
|-
तुलसीदास
|28- जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या वहाँ सवेरा नहीं होता।
तेलुगु एवं कन्नड़ लिपि
|
तेलुगु भाषा
अर्थ - किसी के बिना काम रुकता नहीं है।
तोरु दत्त
|-
तोषनिधि
|29- जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।
त्रिनिदादी हिंदी
|
त्रुटिबोधक चिह्न
अर्थ - दु:ख को भुक्ता भोगी ही जानता है उसे अन्य  कोई नहीं जान सकता है।
दंडी
|-
दक्खिनी हिंदी
|30- जागेगा सो पावेगा,सोवेगा सो खोएगा।
दक्षिण अफ़्रीक़ी हिंदी
|
दलपतराम
अर्थ - लाभ इसमें है कि आदमी सतर्क रहे।
दलपति राय
|-
दशकुमारचरित
|31- जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले।
दूलह
|
दृष्टान्त अलंकार
अर्थ - असरदार आदमी की बात माननी ही पड़ती है।
देव
|-
देवनागरी लिपि
|32- जान मारे बनिया पहचान मारे चोर।
देवनागरी लिपि का विकास
|
देवनागरी लिपि के गुण और दोष
अर्थ - बनिया और चोर जान पहचान वालों को भी ठगते हैं।
दोहा
|-
धर्मदास
|33- जाएं लाख, रहे साख।
धर्मवीर भारती
|
ध्रुवदास
अर्थ - धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए।
नंददास
|-
नरोत्तमदास
|34- जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा।
नवोदित लेखक पुरस्कार
|
नागरीप्रचारिणी सभा
अर्थ - जितना खर्चा करोगे चीज़ उतनी ही अच्छी मिलेगी।
नागार्जुन
|-
नाभादास
|35- जितनी चादर देखो, उतने ही पैर पसारो।
निरर्थक शब्द (व्याकरण)
|
निर्मल वर्मा
अर्थ - आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
नूर मुहम्मद
|-
नेपाली भाषा
|36- जितने मुँह उतनी बातें।
नेपाली हिंदी
|
नेवाज
अर्थ - अनेक प्रकार की अफवाहें।
पंजाबी भाषा
|-
परमानंद दास
|37- जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ।
पश्चिमी पहाड़ी बोली
|
पहलवी भाषा
अर्थ - जितना कठिन परिश्रम उतना ही लाभ होता है।
पहाड़ी बोली
|-
पालि भाषा
|38- जिस तन लगे वही तन जाने।
पुल्लिंग
|
पुष्पदंत
अर्थ - जिसको कष्ट  होता है वही उसका अनुभव कर सकता है।
पुहकर कवि
|-
प्रत्यय
|39- जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना।
प्रश्नवाचक चिह्न
|
प्राकृत भाषा
अर्थ - जो उपकार करे, उसका ही अहित करना।
प्राणचंद चौहान
|-|}
प्रेमचन्द
|40- जिसका काम उसी को साजै।
फणीश्वरनाथ रेणु
|
फ़ारसी भाषा
अर्थ - जो काम जिसका है वही उसे भली प्रकार से कर सकता है।
फिजी हिंदी
|-
बंसीधर
|41- जिसका खाइए उसका गाइए।
बघेली बोली
|
बनारसी दास
अर्थ - जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो।
बलभद्र मिश्र
|-
बांग्ला भाषा
|42- जिसकी जूती उसी के सिर।
बांग्ला लिपि
|
बाणभट्ट
अर्थ - जिसकी करनी उसी को फल मिलता है।
बाल भारत
|-
बालकृष्ण शर्मा नवीन
|43- जिसकी लाठी उसी की भैंस।
बिहारी भाषा
|
बिहारी लाल
अर्थ - शक्ति संपन्न आदमी का रौब चलता है और वह अपना काम बना लेता है।
बीर
|-
बीरबल
|44- जिसके ह‍ाथ डोई, उसका सब कोई।
बुन्देली बोली
|
बेनी
अर्थ - धनी आदमी के सब मित्र हैं।
बैरीसाल
|-
बैसवाड़ी बोली
|45- जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन।
बोडो भाषा
|
ब्रजभाषा
अर्थ - जिसको अफ़सर माने,वहीं योग्य है।
ब्राह्मी लिपि
|-
भक्तिकाल
|46- जी का बैरी जी।
भगवतीचरण वर्मा
|
भट्टोजिदीक्षित
अर्थ - मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु है।
भवभूति
|-
भारत रत्न
|47- जीभ भी जली और स्वाद भी न आया।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
|
भारवि
अर्थ - कष्ट सहकर भी सुख न मिला।
भास
|-
भिखारी दास
|48- जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती
भूपति राज गुरुदत्त सिंह
|
भूषण
अर्थ - थोड़ी सी कठिनाई के कारण कोई काम छोड़ा नहीं जाता।
भोजपुरी भाषा
|-
मंखक
|49- जुठा खाए, मीठे के लालच।
मंझन
|
मंडन
अर्थ - लाभ के लालच में नीच काम करना।
मगही बोली
|-
मणिपुरी भाषा
|50- जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बोओगे वैसा काटोगे।
मतिराम
|
मनोहर
अर्थ - अपनी करनी का फल मिलता है।
मराठी भाषा
|-
मलयालम भाषा
|51-  जैसा मुँह वैसा थप्पड़।
मलूकदास
|
महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
अर्थ - जो जिसके योग्य हो उसको वही मिलता है।
महादेवी वर्मा
|-
महापात्र नरहरि बंदीजन
|52- जैसा राजा वैसी प्रजा।
महावीर प्रसाद द्विवेदी
|
माखन लाल चतुर्वेदी
अर्थ - जैसा मालिक होता है वैसे ही कर्मचारी होते हैं।
मागधी भाषा
|-
माघ कवि
|53- जैसे तेरी कोमरी, वैसे मेरे गीत।
मारवाड़ी बोली
|
मीरां
अर्थ - जैसा दोगे वैसा पाओगे।
मुक्तिबोध गजानन माधव
|-
मुम्बईया हिंदी
|54- जैसे कंता घर रहे वैसे रहे परदेश।
मृच्छकटिकम
|
मैथिली भाषा
अर्थ - निकम्‍मा आदमी घर में रहे या बाहर कोई अंतर नहीं।
मैथिलीशरण गुप्त
|-
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ
|55- जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ।
मॉरिशसी हिंदी
|
मोहन राकेश
अर्थ - सबका एक जैसा होना।
यमक अलंकार
|-
यशपाल
|56- जैसे मियाँ काइ का वैसे सन की दाढ़ी।
योजक चिह्न
|
रंगलाल बनर्जी
अर्थ - ठीक मेल है।
रघुनाथ (कवि)
|-
रघुवीर सहाय
|57- जो गरजते हैं वो बरसते नहीं।
रस
|
रसखान
अर्थ - बहुत डींग हाँकने वाले काम के नहीं होते हैं।
रसलीन
|-
रसिक सुमति
|58- जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से।
रहीम
|
राजभाषा हिंदी
अर्थ - बाप का प्रभाव बेटे पर पड़ता है।
राजशेखर
|-
राजस्थानी भाषा
|59- जो गुड़ खाए सो कान छिदवाए।
राजेश जोशी
|
राम (कवि)
अर्थ - लाभ पाने वाले को कष्ट सहना ही पड़ता है।
रामकुमार वर्मा
|-
रामचन्द्र शुक्ल
|60- जो तोको काँटा बुवे ताहि बोइ तू फूल।
रामधारी सिंह दिनकर
|
रामनरेश त्रिपाठी
अर्थ - बुराई का बदला भी भलाई से दो।
रामविलास शर्मा
|-
राय कृष्णदास
|61- जो बोले सो घी को जाए।
राष्ट्रभाषा हिंदी
|
रूपक अलंकार
अर्थ -  ज्यादा बोलना अच्छा नहीं होता।
रूपसाहि
|-
रेखांकन चिह्न
|62- जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा।
रैदास
|
लाघव चिह्न
अर्थ - जो मन में है वह प्रकट होगा ही।
लालच दास
|-
लालचंद
|63- ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों -त्यों भारी होय
लिंग
|
लिपि
अर्थ - जैसे-जैसे समय बीतता है जिम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं।
लोप चिह्न
|-
वचन (हिंदी)
|64- ज्यों  नकटे को आरसी होत दिखाई क्रोध।
वट्टेळुत्तु लिपि
|
वर्णमाला (व्याकरण)
अर्थ - दोषी को उसका दोष बताया जाए तो क्रुद्ध होता है।
वर्तनी (हिंदी)
|-
विकारी शब्द
|65- जो सुख चौबारे, न बखल न बुखारे।
विद्यालय हिन्दी शिक्षक सम्मान
|
विराम चिह्न
अर्थ - अपना घर दूर से सूझता है।
विरोधाभास अलंकार
|-
विशाखदत्त
|66- जंगल में मंगल होना।
विशेषण
|
विश्व हिंदी दिवस
अर्थ - उजाड़ में चहल-पहल होना।
विष्णु प्रभाकर
|-
विस्मयसूचक चिह्न
|67- जड़ों में मट्ठा ड़ालना / तेल देना / जड़ खोदना / जड़ काटना।
विस्मयादिबोधक
|
व्यंजन (व्याकरण)
अर्थ - समूल नष्ट करना।
व्याकरण
|-
व्यास जी
|68- ज़बान काट कर देना।
शंकरदेव
|
शंभुनाथ मिश्र
अर्थ - वादा करना।
शती
|-
शब्द (व्याकरण)
|69- ज़बान पर चढ़ना।
शलाका सम्मान
|
शारदा लिपि
अर्थ -  याद आना।
शिलांगी हिंदी
|-
शिवसहाय दास
|70- ज़बान पर लगाम न होना।
शूद्रक
|
शेख नबी
अर्थ - बेमतलब बोलते जाना।
शौरसेनी
|_
श्रीधर
|71- ज़मीन आसमान एक करना।
श्रीपति (कवि)
|
श्रीभट्ट
अर्थ - सब उपाय कर डालना।
श्रीलाल शुक्ल
|-
श्रीहर्ष
|72- ज़मीन आसमान का फर्क।
श्लेष अलंकार
|
संज्ञा
अर्थ - बहुत भारी अंतर होना। 
संथाली भाषा
|-
संधि
|73- ज़मीन पर पैर न रखना। 
संवत
|
संस्कृत भाषा
अर्थ - अकड़कर चलना, इतराना।
समुच्यबोधक
|-
सम्बन्धबोधक
|74- ज़मीन में गड़ना।
सरोजिनी नायडू
|
सर्वनाम
अर्थ - लज्जा  से सिर नीचा होना।
सार्थक शब्द (व्याकरण)
|-
साहित्यकार सम्मान
|75- जलती आग में घी डालना।
साहित्यिक कृति सम्मान
|
सिंधी भाषा
अर्थ - और भड़काना।
सिंहली
|-
सिन्धु लिपि
|76- जली-कटी सुनाना।
सुंदर दास
|
सुखदेव मिश्र
अर्थ - बुरा-भला कहना।
सुन्दरदास खण्डेलवाल
|-
सुभद्रा कुमारी चौहान
|77- ज़हर उगलना।
सुमित्रानंदन पंत
|
सूरति मिश्र
अर्थ - कड़वी बातें कहना।
सूरदास
|-
सूरदास मदनमोहन
|78- ज़हर की पुडि़या।
सूरीनामी हिंदी
|
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
अर्थ - झगड़ालू औरत। 
सेनापति
|-
सैय्यद मुबारक़ अली बिलग्रामी
|79- ज़हाज का पंछी।
सोमनाथ माथुर
|
स्त्रीलिंग
अर्थ - जिसका कोई ठिकाना नहीं हो।
स्वयंभू देव
|-
स्वर (व्याकरण)
|80- जान के लाले पड़ना।
स्वामी अग्रदास
|
स्वामी हरिदास
अर्थ - संकट में पड़ना।
हड़प्पा लिपि
|-
हरियाणवी बोली
|81- जान पर खेलना।
हरिवंश राय बच्चन
|
हरिषेण
अर्थ - जान की बाजी लगाना।
हिंदी
|-
हिंदी अकादमी
|82- जान में जान आना।
हिंदी अकादमी की संचालन समिति
|
हिंदी अकादमी के सम्मान और पुरस्कार
अर्थ - चैन, सकून मिलना।
हिंदी अकादमी: योजनाएँ एवं कार्यक्रम
|-
हिंदी का मानकीकरण
|83- जान से हाथ धोना बैठना।
हिंदी की अखिल भारतीयता का इतिहास
|
हिंदी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ
अर्थ - मारा जाना।
हिंदी के अर्थ और नाम
|-
हिंदी दिवस
|84- जान हथेली पर रखना।
हिंदी वर्णमाला (व्याकरण)
|
हिंदी साहित्य
अर्थ - जान की परवाह न करना।
हितहरिवंश
|-
हृदयराम
|85- जामे से बाहर होना।
हॉलैंडी हिंदी
|
</poem>
अर्थ - अत्यधिक क्रुद्ध होना।
=================
|-
पेज - 117
|86- जी का जंजाल।
 
|
* महाभारत का फारसी अनुवाद अकबर के काल में हुआ जिसे 'रज्मनामा' के नाम से जाना गया।
अर्थ - व्यर्थ का झंझट।
* रामचरितमानस को ग्रियर्सन ने 'करोड़ों लोगों की बाइबिल' कहा है।
|-
* कॉबेल ने मुकुंद राम को ' बंगाल का क्रेव' कहा है।
|87- जी खट्टा होना।
* अकबर ने बीरबल को 'कविप्रिय' कहा है।
|
* नरहरि को 'महापात्र' की उपाधि दी गयी थी।
अर्थ - विरक्ति होना।
* मीर सैयद अली व ख्वाजा अब्दुस्समद कोप 'सिरिकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।
|-
* मुहम्मद हुसैन को 'जरींकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।
|88- जी चुराना।
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
|
<references/>
अर्थ - काम करने से कतराना।
 
|-
=====================
|89- जीते जी मक्खी निगलना।
|
अर्थ - जी पर  बन आना।
|-
|90- जी भर आना।
|
अर्थ - दु:खी होना।
|-
|91- जूतियों में दाल बाँटना।
|
अर्थ - लड़ाई- झगड़ा होना।
|-
|92- जूते चाटना।
|
अर्थ -  चापलूसी करना।
|-
|93- जोड़-तोड़ करना।
|
अर्थ -  उपाय करना।
|-
|}
|94- कान गरम करना।
|
अर्थ - पिटाई करना।
|-
|95- कान देना।
|
अर्थ - ध्यान से सुनना।
|-
|96- कान पकड़ना।
|
अर्थ -  गलती मान लेना।
|-
|97- कान पर जूँ तक न रेंगना।
|
अर्थ - कुछ भी परवाह न करना।
|-
|98- कान भरना।
|
अर्थ - चुगली करना।
|-
|99- कान में बात डाल देना।
|
अर्थ -  सुना देना, कह देना।
|-
|100- कान में तेल डालकर बैठना।
|
अर्थ -  सुनकर भी सुनी हुई बात पर ध्यान न देना।
|-
|101- कान में फूँकना।
|
अर्थ - चुपचाप से कह देना।
|-
|102- कान लगाना।
|
अर्थ - ध्यान देकर सुनना।
|-
|103- काफूर होना।
|
अर्थ - गायब हो जाना।
|-
|104- काम आना।
|
अर्थ - शत्रु के हाथों मारा जाना।
|-
|105- काम तमाम करना।
|
अर्थ -  मार डालना। 
|-
|106- काया पलट जाना।
|
अर्थ - बदल कर दूसरा ही रूप हो जाना।
|-
|107- काल कवलित होना।
|
अर्थ -  मर जाना।
|-
|108- काल के गाल में जाना।
|
अर्थ - मर जाना।
|-
|109- काला नाग।
|
अर्थ - खोटा या घातक व्यक्ति ।
|-
|110- काला मुँह करना।
|
अर्थ - बदनामी करना, नाम खराब करना।
|-
|111- काले कोसों।
|
अर्थ - बहुत दूर।
|-
|112- क़िताबी कीड़ा होना।
|
अर्थ - केवल पढ़ने में ही लगे रहना।
|-
|113- किरकिरी हो जाना।
|
अर्थ - विघ्न पड़ना।
|-
|114- किस दर्द या मर्ज़ की दवा।
|
अर्थ - किसी भी काम का न होना।
|-
|115- किस्मत फूटना।
|
अर्थ - बुरे दिन आना।
|-
|116- कीचड़ उछालना।
|
अर्थ - निंदा करना।
|-
|117- कुआँ खोदना।
|
अर्थ - किसी को हानि पहुँचाने की कोशिश करना।
|-
|118- कुएँ में गिरना।
|
अर्थ -  विपत्ति में पड़ जाना।
|-
|119- कुएँ में भाँग पड़ना।
|
अर्थ - सबकी बुद्धि मारी जाना।
|-
|120- कुछ उठा न रखना।
|
अर्थ - कोई कसर या कमी न छोड़ना।
|-
|121- कुत्ते की दुम।
|
अर्थ - जैसा है वैसा ही रहना, बदलाव ना आना।
|-
|122- कुत्ते की मौत मरना।
|
अर्थ -  बुरी तरह मरना। 
|-
|123- कूच कर जाना।
|
अर्थ -  चले जाना।
|-
|124- कूप मंडूक होना।
|
अर्थ -  सीमित ज्ञान या अनुभव वाला होना।
|-
|125- कोई दम भर का मेहमान होना।
|
अर्थ -  मरने के क़रीब होना।
|-
|126- कोढ़ में खाज होना।
|
अर्थ - दु:ख में और दु:ख होना।
|-
|127- कोर दबना।
|
अर्थ - दबाव में होना।
|-
|128- कोल्हू का बैल।
|
अर्थ -  दिन रात काम में लगे रहने वाला।
|-
|129- कौए उड़ाना।
|
अर्थ -  घटिया या छोटे काम करना।
|-
|130- कौड़ी-कौड़ी पर जान देना।
|
अर्थ - कंजूस होना।
|-
|131- कंधे से कंधा छिलना।
|
अर्थ - भारी भीड़ का होना, मेलों में यात्रियों का कंधे से कंधे छिलता है।
|-
|132- ककड़ी-खीरा समझना।
|
अर्थ - किसी व्यक्ति को नगण्य या तुच्छ समझना।
|-
|133- कच्चा चिट्ठा खोलना।
|
अर्थ - सबके सामने सब भेद खोल देना।
|-
|}
228 - देखकर मक्खी  नहीं निगली जाती,
`अर्थ - कहावत - अहित सामने देखकर चुप नहीं रहा जाता।
|}

06:11, 27 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण


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पेज - 117

  • महाभारत का फारसी अनुवाद अकबर के काल में हुआ जिसे 'रज्मनामा' के नाम से जाना गया।
  • रामचरितमानस को ग्रियर्सन ने 'करोड़ों लोगों की बाइबिल' कहा है।
  • कॉबेल ने मुकुंद राम को ' बंगाल का क्रेव' कहा है।
  • अकबर ने बीरबल को 'कविप्रिय' कहा है।
  • नरहरि को 'महापात्र' की उपाधि दी गयी थी।
  • मीर सैयद अली व ख्वाजा अब्दुस्समद कोप 'सिरिकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।
  • मुहम्मद हुसैन को 'जरींकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।

टीका टिप्पणी और संदर्भ


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