"पैरी नदी": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
No edit summary |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''पैरी नदी''' [[महानदी]] की प्रमुख सहायक नदी है। इसका उद्गम [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] के [[रायपुर ज़िला|रायपुर ज़िले]] की गरियाबंद तहसील की वृन्दानकगढ़ जमींदारी में स्थित 500 मीटर ऊँची अत्ररीगढ़ पहाड़ी से हुआ है। | |||
==उद्गम तथा प्रवाह== | |||
अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर करीब 96 कि.मी. बहती हुई राजिम क्षेत्र में [[महानदी]] से मिलती है। पैरी नदी [[धमतरी]] और [[राजिम]] को विभाजित करती है। इसी नदी के तट पर प्रसिद्ध 'राजीवलोचन मंदिर' स्थित है। राजिम में महानदी और सोंढुर नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल भी है। इस नदी की लम्बाई 90 कि.मी. तथा प्रवाह क्षेत्र 3,000 वर्ग मीटर है। | |||
==बंदरगाह के अवशेष== | |||
हाल ही में नदी के किनारे हुई खुदाई में प्राचीन बंदरगाह के अवशेष दिखाई दिये हैं। राजधानी [[रायपुर]] से 65 किलोमीटर दूर गरियाबंद पांडुका की पैरी नदी में ढाई हज़ार [[वर्ष]] पहले यह बंदरगाह था। यहाँ से जहाज़ [[उड़ीसा]] के [[कटक]] से होकर [[बंगाल की खाड़ी]] से [[चीन]] तक जाते थे। उस समय [[छत्तीसगढ़]] में बड़े पैमाने पर कोसा की पैदावर हुआ करती थी। कोसा इसी रास्ते से चीन भेजा जाता था। एक समय में कोसे का इतनी मात्रा में निर्यात होने लगा था कि इसका नाम ही 'रेशम मार्ग' पड़ गया था। इस बंदरगाह की खोज कई मायनों में खास मानी जा रही है। केंद्र सरकार ने नदी के तट की खुदाई की मंजूरी दे दी है। | |||
{{ | पांडुका सिरकट्टी के तट पर अभी नदी के किनारे छह चैनल यानी गोदी के [[अवशेष]] साफ नजर आते हैं। प्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग|पुरातत्त्व विभाग]] के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि नदी के तट पर चट्टानों को काटकर जहाज़ खड़ा करने के लिए गोदी बनाई गई थी। यही गोदी दो साल पूर्व सबसे पहले पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन उप संचालक जी.के. चंदरौल ने सर्वेक्षण के दौरान देखी। उन्होंने कई दिनों तक सर्वे करने के बाद खुलासा किया कि पांडुका सिरकट्टी में पैरी नदी के तट पर ढाई हज़ार साल पहले बंदरगाह था।<ref>{{cite web |url= http://www.bhaskar.com/news/CHH-RAI-MAT-latest-raipur-news-025003-1288473-NOR.html|title= ढाई हजार साल पुराना बंदरगाह मिला गरियाबंद की पैरी नदी में|accessmonthday=12 जून|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दैनिक भास्कर|language= हिन्दी}}</ref> | ||
{{लेख प्रगति | |||
|आधार= | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
|प्रारम्भिक= | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
|माध्यमिक= | <references/> | ||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
}} | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारत की नदियाँ}} | {{भारत की नदियाँ}} | ||
[[Category:छत्तीसगढ़ राज्य की नदियाँ]][[Category:भारत की नदियाँ]][[Category:भूगोल कोश]] | [[Category:छत्तीसगढ़ राज्य की नदियाँ]][[Category:भारत की नदियाँ]][[Category:भूगोल कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
10:09, 12 जून 2015 के समय का अवतरण
पैरी नदी महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। इसका उद्गम छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर ज़िले की गरियाबंद तहसील की वृन्दानकगढ़ जमींदारी में स्थित 500 मीटर ऊँची अत्ररीगढ़ पहाड़ी से हुआ है।
उद्गम तथा प्रवाह
अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर करीब 96 कि.मी. बहती हुई राजिम क्षेत्र में महानदी से मिलती है। पैरी नदी धमतरी और राजिम को विभाजित करती है। इसी नदी के तट पर प्रसिद्ध 'राजीवलोचन मंदिर' स्थित है। राजिम में महानदी और सोंढुर नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल भी है। इस नदी की लम्बाई 90 कि.मी. तथा प्रवाह क्षेत्र 3,000 वर्ग मीटर है।
बंदरगाह के अवशेष
हाल ही में नदी के किनारे हुई खुदाई में प्राचीन बंदरगाह के अवशेष दिखाई दिये हैं। राजधानी रायपुर से 65 किलोमीटर दूर गरियाबंद पांडुका की पैरी नदी में ढाई हज़ार वर्ष पहले यह बंदरगाह था। यहाँ से जहाज़ उड़ीसा के कटक से होकर बंगाल की खाड़ी से चीन तक जाते थे। उस समय छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर कोसा की पैदावर हुआ करती थी। कोसा इसी रास्ते से चीन भेजा जाता था। एक समय में कोसे का इतनी मात्रा में निर्यात होने लगा था कि इसका नाम ही 'रेशम मार्ग' पड़ गया था। इस बंदरगाह की खोज कई मायनों में खास मानी जा रही है। केंद्र सरकार ने नदी के तट की खुदाई की मंजूरी दे दी है।
पांडुका सिरकट्टी के तट पर अभी नदी के किनारे छह चैनल यानी गोदी के अवशेष साफ नजर आते हैं। प्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद पुरातत्त्व विभाग के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि नदी के तट पर चट्टानों को काटकर जहाज़ खड़ा करने के लिए गोदी बनाई गई थी। यही गोदी दो साल पूर्व सबसे पहले पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन उप संचालक जी.के. चंदरौल ने सर्वेक्षण के दौरान देखी। उन्होंने कई दिनों तक सर्वे करने के बाद खुलासा किया कि पांडुका सिरकट्टी में पैरी नदी के तट पर ढाई हज़ार साल पहले बंदरगाह था।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ढाई हजार साल पुराना बंदरगाह मिला गरियाबंद की पैरी नदी में (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 12 जून, 2015।
संबंधित लेख