"पुनर्भू": अवतरणों में अंतर

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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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*<span>पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 405 | '''डॉ. राजबली पाण्डेय''' |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ </span>  
*<span>पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 405 | '''डॉ. राजबली पाण्डेय''' |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ </span>  
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12:16, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

  • दोबारा विवाह करने वाली स्त्री को पुनर्भू कहा जाता है।
  • अथर्ववेद में पुनर्भू प्रथा का उल्लेख प्राप्त होता है (9.5.28)।
  • इसके अनुसार विधवा पुन: विवाह करती थी तथा विवाह के अवसर पर एक यज्ञ होता था, जिसमें वह प्रतिज्ञा करती थी कि अपने दूसरे पति के साथ मैं दूसरे लोक में पुन: एकत्व प्राप्त करूँगी।
  • धर्मशास्त्र के अनुसार विवाह के लिए कुमारी कन्या ही उत्तम मानी जाती थी।
  • पुनर्भू से उत्पन्न पुत्र को 'औरस' (अपने हृदय से उत्पन्न) न कहकर 'पौनर्भव' (पुनर्भू से उत्पन्न) कहते थे।
  • उसके द्वारा दिया हुआ पिण्ड उतना पुण्यकारक नहीं माना जाता था जितना औरस के द्वारा।
  • उच्च वर्गों में धीरे-धीरे स्त्री का पुनर्भू (पुन: विवाह होना) बंद हो गया।
  • आधुनिक युग में विधवा विवाह के वैध हो जाने से स्त्रियाँ पहले पति के मरने पर दूसरा विवाह कर रही हैं, फिर भी उनके साथ अपमानसूचक 'पुनर्भू' शब्द नहीं लगता। वे पूरी पत्नी और उनसे उत्पन्न सन्तति औरस समझी जाती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 405 | डॉ. राजबली पाण्डेय |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ