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| ==ताजमहल पर कविता== | | <noinclude>{| width="51%" align="left" cellpadding="5" cellspacing="5" |
| कैमरा लेकर ताजमहल जाइए, इस रचना के अनुसार फ़ोटो खींचिए, ट्रांस्पेरैंसीज़ बनवाइए, स्लाइड प्रोजैक्टर पर सबको दिखाइए, साथ में नाटकीय कौशल से कविता सुनाइए। ये सब न करें तो इतना कीजिए, कल्पना में आनंद लीजिए।
| | |-</noinclude> |
| <div style="height: 400px; overflow:auto; overflow-x: hidden; border:thin solid #aaa; width:520px">
| | | style="background:transparent;"| |
| {| class="bharattable-pink" width="510px" | | {| style="background:transparent; width:100%" |
| |+'''संगमरमर का संगीत''' | | |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|[[भारतकोश:कॅलण्डर|आज का दिन - {{LOCALDAY}} {{LOCALMONTHNAME}} {{LOCALYEAR}}]]<font style="color:#003366;font-size:13px;">(भारतीय समयानुसार)</font> |
| |-valign="top"
| | |- |
| | class="bgjeevni2"|
| | {{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}} |
| ;पात्र- स्वर-1, स्वर-2, गायक, महिला, गाइड, अनुकूल ध्वनि एवं संगीत | | <center>[[चित्र:Calendar icon.jpg|link=|]] <big>[[भारतकोश:कॅलण्डर|भारतकोश कॅलण्डर]]</big> [[चित्र:Calendar icon.jpg|link=|]]</center> |
| <poem>'''स्वर- (1)''' यमुना की सांवली लहरें
| | {{Project:कलैण्डर/{{LOCALDAY}} {{LOCALMONTHNAME}}}} |
| [[वृन्दावन]] निधिवन के
| | ====आज का इतिहास==== |
| कुंज लता गुंजों को पार कर
| | * 1805- गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली ने एक आदेश के तहत दिल्ली के मुग़ल बादशाह के लिए एक स्थायी प्रावधान की व्यवस्था की। |
| जब बढ़ती हैं, आगे
| | * 1990 - उत्तरी एवं दक्षिणी यमन के विलय के साथ संयुक्त यमन गणराज्य का अभ्युदय। |
| रास रचाती हुई
| | * 2003 - अल्जीरिया में आये विनाशकारी भूकम्प में दो हज़ार से भी अधिक लोग मारे गये। |
| [[बाँसुरी]] गुंजाती हुई
| | * 2008 - संयुक्त राष्ट्र संघ की 47 सदस्यीय मानवाधिकार समिति में पाकिस्तान को शामिल किया गया। |
| [[गाय|गायों]]-सी रंभाती हुई
| | ---- |
| और आगे
| | {{Cache-message}} |
| तो यकायक ठिठक जाते हैं
| | |}<noinclude>[[Category:आज के दिन के साँचे]]</noinclude> |
| लहरों के पांव
| | __NOEDITSECTION__ |
| बढ़ते हैं संभल- संभल।</poem>
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| (पानी में ताजमहल के लहराते बिम्ब। हालांकि समझ में नहीं आ रहा कि ताजमहल ही है।)
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| <poem>किसने खिलाए ये [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] कमल?
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| किसने बिखराया है
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| धारा पर पारा
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| इतना सारा!</poem>
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| (पानी में ताजमहल का स्पष्ट बिम्ब, फिर स्थित ताज।)
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| <poem>'''स्वर- (2)''' तुम तो अपने दामन में
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| प्यार को समेट कर लाई हो लहरो।
| |
| समा लो अपने अंदर मेरा भी अक्स।
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| मैं भी तो वहीं हूँ
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| मुजस्सम प्यार
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| तुम्हारी धार का कगार।</poem>
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| (ताज की दीवारों के दृश्य)
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| <poem>'''स्वर-(1)''' बाँसुरी की गूंज में
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| घुल जाते हैं
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| प्यार के सितार के स्वर
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| और बजने लगते हैं
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| दिल के दमामे। </poem>
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| (गुम्बद का आंतरिक स्वरूप)
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| <poem>नाद गूँज उठता है
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| आकाश तक। </poem>
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| (क़ब्रों के विविध कोण)
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| ;'''गायक'''- (मसनवी शैली में गायन) | |
| <poem>यादगारे उल्फ़ते शाहे जहां
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| रोज़- ए- मुमताज़ फ़िरदौस आशियाँ
| |
| फ़न्ने तामीरान की तकमील ताज
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| दर्दो- अहसासात की तश्कील ताज।</poem>
| |
| (ताज के बाहर सड़क पर विदेशी महिला और भारतीय गाइड) | |
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| <poem>'''गाइड-''' ऐक्सक्यूज़ मी मैडम!
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| नीड अ गाइड?
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| '''महिला-''' नो, थैंक्स। </poem>
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| (सीढ़ियों से चढ़कर ताज का चबूतरा)
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| <poem>'''गाइड-''' हां तो हज़रात!
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| ताज की कहानी इतनी लम्बी है
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| सुनाना शुरू करूं
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| तो हो जाएगी रात
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| लेकिन दास्तान ख़तम नहीं होगी।
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| पांच सदियों पुरानी ये कहानी,
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| हुज़ूर आगे आ जाइए,
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| आज भी ज़िंदा है।
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| ज़माना गौर से सुन रहा है
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| पर जी नहीं भरता है। </poem>
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| (ताजमहल के विभिन्न शॉट्स, कमैण्ट्री के अनुसार)
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| <poem>ख़ुदा मालूम
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| इसके मरमरी ज़िस्म में
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| क्या- क्या है
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| पर इतना कहूँगा
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| कि चित्रकार की नज़र है
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| शायर का दिल है
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| बहारों का नग़मा है।
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| ताज क्या है
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| क़ुदरत की हथेली में
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| खिला हुआ इक फूल है वक़्त के रुख़सार पर
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| ठहरा हुआ आंसू है हुज़ूर
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| हुस्नो-जमाल का जलवा है
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| इतना ख़ूबसूरत इतना नाज़ुक
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| इतना मुक़म्मल
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| इतना पाकीज़ा है हुज़ूर
| |
| कि बाज़-वक़्त डर लगता
| |
| छूने में
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| कि मैला न हो जाए।</poem>
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| '''दर्शक-''' गाइड हैं कि शायर हैं?
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| <poem>'''गाइड-''' हुज़ूर आप कुछ भी कहें | |
| शायरी तो इनसानी हाथों ने की है
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| इसे बनाकर
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| जनाबेआली।
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| गोया बनाने वालों ने
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| संगमरमर में इक हसीन
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| ख़्वाब लिख डाला है।</poem>
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| (ताजमहल के विभिन्न शॉट्स, कथ्य से मेल खाते हुए।)
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| <poem>तामीर का यानी निर्माण का
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| काम शुरू हुआ
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| सोलह सौ बत्तीस में
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| और सजावट को
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| आख़िरी चमक दी गई
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| सोलह सौ तिरपन में
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| इस तरह कुल जमा
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| बाईस साल लगे
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| और चौबीस हज़ार लोगों के
| |
| अड़तालीस हज़ार हाथ
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| इसे बनाते रहे।
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| शुरू के पांच साल तो लग गए
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| ज़मीन को यक़सार करने में
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| टीलों को काटने में
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| गड्ढों को भरने में।
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| फिर सिलसिला शुरू हुआ
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| सामान के आमद का
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| ऊँटों का, हाथियों का
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| घोड़ों का, ख़च्चरों का।
| |
| मुसल्सल सिलसिला हुज़ूर!
| |
| तराई के पेड़ों से
| |
| संदल, आबनूस, देवदार
| |
| शीशम और साल लाया गया
| |
| चारकोह मकराना से
| |
| सफ़ेद संगमरमर मंगवाया गया।
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| [[उदयपुर]] से काला पत्थर | |
| बड़ौदा से बुंदकीदार-खुरदरा
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| कांगड़ा से सुरमई
| |
| आंध्रा के कड़प्पा से चितकबरा
| |
| बग़दाद से अक़ीक़
| |
| तब्दकमाल से फ़ीरोज़ा
| |
| दरिया- ए- शोर से मूँगा
| |
| लंका से लाजोर्द
| |
| यमन से लालयमनी
| |
| दरिया-ए-नील से लहसीना,
| |
| और न जाने कहाँ-कहाँ से,
| |
| पतूनिया, तवाई, मूसा, मीना।
| |
| अजूबा, नख़ूद, रखाम, गोरी
| |
| पंखनी, गोडा, याक़ूत, बिल्लौरी।
| |
| खट्टू, नीलम, जमर्रुद, गार
| |
| हीरा, संख, मरवारीद, जदबार।
| |
| पुखराज है, बादल है, गोडा है
| |
| इतने पत्थर हैं कि
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| गिनती भी थक जाए
| |
| गिनाते-गिनाते,
| |
| ज़माना गुज़र जाए बताते-बताते।</poem>
| |
| (फ़व्वारों के पास पार्क)
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| <poem>
| |
| और देखिए
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| यहीं कहीं
| |
| बताशे और बारीक़ रेत के
| |
| टीले लगे होंगे
| |
| ईंटों की भट्टियाँ खुदी होंगी
| |
| मसाले के लिए
| |
| गुड़ की भेलियां, उड़द की दाल
| |
| और पटसन से
| |
| मैदान अट गया होगा जनाब।
| |
| अब तो यहाँ
| |
| नज़र के लिए नज़ारे हैं
| |
| नहर है, फ़व्वारे हैं।
| |
| लेकिन सोचिए
| |
| वो भी क्या नज़ारा होगा।</poem>
| |
| (एरियल शॉट्स ताज और पास की बस्ती / सूर्यास्त और धुएं की पृष्ठभूमि में ताज के शॉट्स।)
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| <poem>जब सूरज के आने और जाने की
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| परवाह किए बिना
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| मेमारों, संगतराशों, फ़नकारों ने
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| इसे बनवाया होगा।
| |
| इधर ढेर सारा धुआँ निकलता होगा
| |
| भट्टियों की चिमनियों से।
| |
| उधर ताजगंज की
| |
| मज़दूर झोंपड़ियों के
| |
| हज़ारों चूल्हों से
| |
| थोड़ा- सा धुआं उठता होगा।
| |
| इधर ईंटें, उधर रोटियों पकती होंगी
| |
| इधर कीलें तो उधर
| |
| ज़िंदगी ठुकती होंगी।</poem>
| |
| (सामान्य चाल से ताजमहल की परिक्रमा के बदलते हुए दृश्य।)
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| <poem>एक दिलचस्प वाक़्या सुनिए जनाब
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| चलते-चलते सुनिए
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| सुनाता हूं जनाब।
| |
| एक बार एक ख़ास मेमार
| |
| यानी इंजीनियर
| |
| तीन महीने की छुट्टी पर गया।
| |
| गया गया तो ऐसा गया
| |
| कि नहीं लौटा छः महीने तक
| |
| तलाशी हुई, मुनादी फिरी
| |
| लेकिन कोई ख़बर नहीं मिली
| |
| पूरा साल बीता तो
| |
| खुद-ब-खुद लौट आए मियाँ,
| |
| बोले- ख़ता माफ़ हो शाहे जहाँ।
| |
| ख़ाकसार के एक साल तक
| |
| ग़ायब रहने की
| |
| मस्लेहात ये थी कि
| |
| बुनियाद पर
| |
| जाड़ा, गरमी, बरसात
| |
| तीनों मौसम गुज़र जाएं
| |
| ताकि बुनियाद मज़बूत हो।
| |
| मैं अगर यहीं रहता
| |
| तो आपकी उतावली के आगे
| |
| ये सब कैसे कहता।</poem>
| |
| (कमैण्ट्री के अनुसार ताज के शॉट्स)
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| <poem>
| |
| ख़ैर साहब,
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| मैं भी भटक जाता हूँ
| |
| क़िस्सों में अटक जाता हूँ
| |
| ताज का कुल रक़बा बयालीस एकड़ है
| |
| सदर दरवाज़े की चौड़ाई साढ़े दस फिट
| |
| ऊँचाई अस्सी फिट है
| |
| कमरे की छत के ऊपर
| |
| भूल- भुलैया है
| |
| चार कमरे, बाईस बुर्जियाँ
| |
| चार छोटे गुम्बद हैं
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| और संगमरमर के चबूरते के
| |
| चारों कोनों पे जो
| |
| चार मीनारें हैं
| |
| हुज़ूर क्या ख़ूबसूरत ऊँचाइयां हैं
| |
| एक सौ बासठ फिट छः इंच।</poem>
| |
| | |
| (ताज की दीवारों पर लिखावट)
| |
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| <poem>सजावट के लिए
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| आयतों और सूरतों को
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| 'ख़त्ते-सुल्स' में तरशवाया गया है।
| |
| 'ख़त्ते-सुल्स' यानि
| |
| लिखावट का एक तरीक़ा
| |
| ख़िंचावट और बांकपन ऐसा
| |
| लिखावट में कि
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| हुस्न में इज़ाफ़ा हो।</poem>
| |
| | |
| <poem>तराशे हुए गुलदस्ते
| |
| और बेलबूटे
| |
| दीवारों को सजा रहे हैं,
| |
| मज़ार की ओर झुके हुए
| |
| मुस्कुराते फूल खिलती हुई कलियाँ
| |
| और तरोताज़ा पत्ते
| |
| महसूस यूँ होता है जैसे
| |
| लगातार कोर्निश बजा रहे हैं।</poem>
| |
| | |
| <poem>ये जो देख रहे हैं
| |
| संगमरमर की जाली,
| |
| पहले यहाँ
| |
| सोने की थी जनाबेआली!
| |
| चालीस हज़ार तोले की थी
| |
| लेकिन हटा ली।
| |
| मौजूदा जाली को ही देखिए
| |
| ग़ैरमामूली फूल-पत्ते और सुराहियाँ
| |
| गुलबूटे और प्यालियाँ
| |
| जाली के आर-पार हैं,
| |
| जो पसीना बहा है
| |
| इस कमाने फ़न के लिए
| |
| देखने वाले उस पर निसार हैं।</poem>
| |
| (ताज की जाली / गुम्बद / क़ब्र / कलस / मस्जिद- मेहमान-खाने के विभिन्न दृश्य।)
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| <poem>जाली के बीचों-बीच
| |
| मुमताज की क़ब्र है
| |
| पहलू में ही शाहजहां की
| |
| दोनों मिलकर अकेले में
| |
| बातें करते होंगे
| |
| जाने कहाँ-कहाँ की।</poem>
| |
| | |
| <poem>एक शायर ने लिखा है-
| |
| 'ताजमहल से पूछ के देखो
| |
| कैसी थी मुमताज महल
| |
| शाहजहां का लहजा बनकर
| |
| पत्थर-पत्थर बोलेगा'।
| |
| बोलते हैं हुज़ूर ये पत्थर
| |
| ये गुम्बद, ये कलस
| |
| ये मीनारें, ये गुल बूटे
| |
| सब मिलकर बोलते हैं।
| |
| मग़रिब की तरफ़ देख मुन्नी
| |
| मस्जिद है
| |
| मशरिक़ में इसके जवाब में
| |
| मेहमानख़ाना है।
| |
| शाहजहाँ यही पे अपने
| |
| मेहमानों को लाता होगा
| |
| और मेरी तरह
| |
| इसकी ख़ूबियाँ बताता होगा</poem>
| |
| (गुम्बद / चाँद का क़ायदा / लट्टू / सुराही / चाँद)
| |
| | |
| <poem>ख़ैर,
| |
| अब देखिए ताज का ये गुम्बद
| |
| बज़ाहिर छोटा नज़र आता है
| |
| लेकिन काफ़ी बलंद है
| |
| बलंदी है साढ़े तीस फिट
| |
| चाँद का क़ायदा साढ़े आठ फिट
| |
| लट्टू का क़तर साढ़े चार फिट
| |
| लट्टू की सुराही साढ़े चार फिट
| |
| सुराही पर का लट्टू पौने पाँच फिट
| |
| कलस का वज़न बत्तीस मन है
| |
| और कलस के चाँद पर
| |
| लिखा हुआ है
| |
| क़लम-ए- तय्यबा-</poem>
| |
| | |
| ;'''गायक-''' (अजान के स्वर)
| |
| <poem>ला इलाह- इल्लल्लाह
| |
| मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह।</poem>
| |
| (सीढ़ियाँ उतरकर दीवार के सहारे-सहारे के दृश्य)
| |
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| <poem>'''गाइड-''' ये तो बलंदी देखी | |
| गहराई में जाएं तो हुज़ूर
| |
| वहाँ पानी है
| |
| हाँ जनाब ताज की बुनियाद में
| |
| चालीस कुएँ हैं।
| |
| कुओं में तीन हज़ार छः सौ
| |
| लट्ठे उतारे गए।
| |
| ऐसे लट्ठे जो जितना पानी में रहें
| |
| और ज़्यादा मज़बूत बनें।
| |
| दरअसल यही तो ताज के
| |
| अहसास की भी बुनियाद है,
| |
| जिसमें दिल की
| |
| गीली हलचल है
| |
| और प्यार की फरियाद है।</poem>
| |
| (ताज का बारीक़ काम)
| |
| <poem>बहुत प्यार से बनाया है ताज को
| |
| मेमारों फ़नकारों ने
| |
| शिल्पकला का ऐसा नमूना
| |
| कि जिस हिस्से को
| |
| जितने ग़ौर से देखने जाइए
| |
| उसमें छिपी नज़ाकतें
| |
| ख़ुद-ब-ख़ुद
| |
| जल्वा दिखाने दिखाने लगेंगी,
| |
| महीन डालियों के पेचोख़म
| |
| नाज़ुक फूलों की पंखुरियाँ
| |
| आपसे बतियाने लगेंगी।</poem>
| |
| (दीवारों पर लिखावट)
| |
| <poem>
| |
| और ये आड़े-तिरछे ख़ुतूत
| |
| इनको इस तरह मिलाया है कि
| |
| जोड़ दिखाई नहीं देता
| |
| और दाँतों तले उंगली तो
| |
| तब दबाएंगे,
| |
| जब अस्सी फ़िट ऊँची लिखावट को
| |
| यहीं से देखकर
| |
| सामने की लिखावट के
| |
| बराबर पाएँगे।
| |
| ताज के मेमारों ने
| |
| भारतीय गणित विद्या और
| |
| ज्यामिति पढ़ी थी
| |
| इसीलिए उनमें
| |
| नापजोख और पैमाइश की
| |
| तमीज़ बड़ी थी।</poem>
| |
| | |
| (ताज की अलग-अलग शिल्पकारियाँ)
| |
| <poem>
| |
| जात-पांत का भेद नहीं था
| |
| बनाने वालों में
| |
| उनकी [[कला]], उनका हुनर ही
| |
| उनका धरम था
| |
| या कहें करम का धरम था।
| |
| मौ. शरीफ़ कलस-साज़ थे समरकंद के
| |
| मौ. हनीफ़ मेमार थे कंधार के
| |
| इस्माइल ख़ाँ रूमी गुम्बद-साज़ थे [[दिल्ली]] के
| |
| चिरंगी लाल, छोटे लाल
| |
| मनोहर सिंह मन्नू लाल ने
| |
| की थी पच्चीकारी
| |
| अता मुहम्मद जाटमल
| |
| शंकर मुहम्मद जोरावर ने गुलकारी
| |
| उस्ताद आफ़न्दी नक्शा-नवीस थे
| |
| उस्ताद ईसा राजगीर
| |
| उस्ताद मनोहर बढ़ई
| |
| सितार ख़ाँ ख़ुशनवीस थे।
| |
| ख़ुशनवीस माने सुंदर लिखने वाले
| |
| और ख़ुशनवीस क्या थे
| |
| ख़ुशनसीब थे
| |
| कितनी आँखें देखती हैं
| |
| हुस्नो जमाल को
| |
| कितने दिल सहराते हैं
| |
| कला के कमाल को
| |
| पाकीज़गी और रूहानियत का जैसे
| |
| साकार रूप तलाशा गया हो,
| |
| फूल की पंखुरियों से गोया
| |
| हीरे का महल तराशा गया हो।</poem>
| |
| | |
| <poem>सदक़े इन फ़नकारों की
| |
| उंगलियों के
| |
| सदक़े उनकी छैनियों के
| |
| सदक़े इंसान की उन कोशिशों के
| |
| जो [[दूध]] में नहाए ख़्वाब जैसा
| |
| ताज बना सकती हैं,
| |
| सदक़े उनकी मेहनत के
| |
| जो संगमरमर का
| |
| [[संगीत]] सुना सकती हैं।
| |
| </poem>
| |
| (सूर्यास्त के समय लौंग शॉट में ताज)
| |
| <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><poem>फ़रिशतो ढांक दो
| |
| रूहों की चादर से इसे वरना
| |
| फ़िज़ा की सांस
| |
| छू-छू कर
| |
| इसे मैला न कर डाले<ref>{{cite book |last=चक्रधर |first=अशोक |authorlink= |coauthors= |title=रंग जमा लो |year=2008 |publisher=डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि. |location= |id=81-7182-958-9}}</ref>
| |
| </poem>
| |
| |}
| |
| </div>
| |